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वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे में बड़ा दावा, मस्जिद की पश्चिम दीवार पर कमल का फूल, नंदी की मूर्ति और स्वास्तिक के निशान भी मौजूद

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काशी ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर जिस तरह की संभावनाएं हिंदू वर्ग की ओर से जाहिर की जाती रही हैं, उनको कोर्ट के आदेश पर किए जा रहे सर्वे में बल मिला है। वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में अदालत के आदेश पर सर्वे करने वाली टीम के साथ गए कैमरामैन ने बड़ा दावा किया है। उनके अनुसार, मस्जिद पर कमल के निशान हैं। दीवार पर स्वास्तिक के निशान हैं, दीवारों पर मूर्तियां उकेरी गई हैं। सर्वे उस दावे के आधार पर किया जा रहा है, जिसमें हिंदू पक्ष के एक वर्ग का मानना है कि बनारस में औरंगजेब ने काशी विश्वानाथ मंदिर को तोड़कर और उसके अवशेषों के जरिए ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था। जिसके आधार पर कोर्ट ने वीडियोग्राफी के साथ सर्वे के आदेश दिए थे। कोर्ट के आदेश पर परिसर के श्रृंगार गौरी और विग्रहों का सर्वे किया जाना है।मस्जिद के दीवारों पर हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीक चिन्हों को देखने का कैमरामैन का दावा
श्रृंगार गौरी मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में बड़ा खुलासा हुआ है। टाइम्स नाउ नवभारत पर ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर सर्वे करने वाली टीम के कैमरामैन ने बड़ा दावा किया है। कैमरामैन गणेश शर्मा का दावा है कि उन्होंने मस्जिद की दीवार पर स्वास्तिक के निशान देखे हैं। गणेश शर्मा के मुताबिक परिक्रमा करते वक्त उन्होंने नंदी की मूर्ति भी देखी है। गणेश शर्मा ने मस्जिद के दीवारों पर हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीक चिन्हों को देखने का दावा किया। सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु ने भी दावे को सही ठहराया है। श्रृंगार गौरी के पास आकृतियां भी हैं।

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे को बाधित करने की भी कोशिश की गई
ज्ञानवापी परिसर में सर्वे को बाधित करने की भी कोशिश की गई। हिंदू पक्ष का दावा था कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने रास्ता रोका। दूसरी ओर अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी के वकील रईद अहमद ने कहा कि हमने (अदालत) आयुक्त के खिलाफ एक आवेदन दायर किया क्योंकि वह पक्षपाती हैं और उन्हें हटाया जाना चाहिए। कोर्ट अर्जी पर सुनवाई करेगी और उसके आदेशों का पालन किया जाएगा। काशी विश्वनाथ मंदिर के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने कहा कि आवेदन को दुर्भावनापूर्ण कहा गया है और इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए। आदेश अभी तक सुरक्षित है। यदि कोई गलत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है या इसे समय से पहले प्रस्तुत किया जाता है, तो विपरीत पक्ष इस पर आपत्ति कर सकता है और अदालत इस पर विचार करेगी।

 

तीस साल पहले पुजारियों ने कोर्ट से मांगी थी पूजा की अनुमति
यह करीब 30 साल पुराना मामला है, जब साल 1991 में पुजारियों के समूह ने बनारस की कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र में पूजा करने की अनुमति मांगी थी। इन लोगों ने कोर्ट में यह दलील दी कि औरंगजेब ने काशी विश्वानाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था। ऐसे में उन्हें परिसर में पूजा की अनुमति दी जाय। इस मामले में मस्जिद की देखभाल करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद को प्रतिवादी बनाया गया।

अयोध्या की तरह अब काशी-मथुरा विवाद का भी हल निकलना चाहिए
करीब 6 साल के सुनवाई के बाद 1997 में कोर्ट ने दोनों पक्षों के पक्ष में मिला-जुला फैसला सुनाया। जिससे दोनों पक्ष हाई कोर्ट चले गए और इलाहाबाद कोर्ट ने 1998 में लोअर कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। अयोध्या को लेकर राम मंदिर निर्माण का फैसला आया और उसके बाद ज्ञानवापी केस को लेकर सरगर्मियां शुरू हो गईं। उसे देखते हुए इस फैसले का भारतीय राजनीति पर बड़ा असर दिख सकता है। असल में अयोध्या की तरह भले ही भाजपा ने काशी-मथुरा को लेकर प्रस्ताव पारित नहीं किया हो, पर पार्टी के नेताओं का यह मानना है कि काशी-मथुरा विवाद का भी हल निकलना चाहिए।

 

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