Home विशेष अंत्योदय की अवधारणा का प्रतिफल है प्रधानमंत्री जन धन योजना

अंत्योदय की अवधारणा का प्रतिफल है प्रधानमंत्री जन धन योजना

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26 मई 2014 को जब देश के प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने शपथ ली तो यह महज राजनीतिक परिवर्तन की तारीख नहीं थी। यह सवा सौ करोड़ देशवासियों की उम्मीदों, आशाओं और आकांक्षाओं की जिम्मेदारी के दायित्वबोध की तारीख भी थी। इसी कारण मोदी सरकार ने पहले दिन से अपनी कार्य प्रणाली के केंद्र में समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को प्रमुखता दी। बीजेपी के अंत्योदय की अवधारणा को एक नयी धारणा देने का प्रयास किया। दरअसल शासन की नीतियां जब समाज के अंतिम व्यक्ति की समग्र जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बनाई जाए और उसकी पहुंच को उस अंतिम छोर तक सुनिश्चित किया जाए, तब जाकर सही मायने में अंत्योदय की अवधारणा को व्यावहारिक कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री ने इसी अवधारणा के तहत अंत्योदय का संकल्प किया और उसे सिद्धि तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। 

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अंतिम व्यक्ति को मुख्यधारा से जोड़ने की कवायद
भारतीय समाज में आर्थिक समृद्धि का विशेष महत्व है, आर्थिक चिंतन को भी खास जगह प्राप्त है। ये इसलिए है कि आर्थिक समृद्धि को मूर्त रूप दिए बिना विकास के लक्ष्य को पाना असंभव है। लेकिन स्वतंत्रता के सात दशक बीतने के बावजूद समाज के अंतिम छोर पर खड़ा एक विशाल तबका मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं बन सका था। वर्ष 1969 में बैंकिग क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण के बावजूद 45 वर्ष बाद भी देश में एक बड़ा तबका ऐसा था जिसका बैंक खाता तक नहीं खुल सका था।

2011 तक 42 प्रतिशत परिवारों में नहीं थे बैंक खाते
वर्ष 2011 की जनगणना तक देश के लगभग 42 प्रतिशत परिवार ऐसे थे जिनमें किसी भी सदस्य के पास बैंक खाता नहीं था। ये आंकड़े साफ बताते हैं कि स्वतंत्रता के पैसठ वर्षों में देश की बड़ी जनसंख्या को अर्थतंत्र का हिस्सा ही नहीं बनाया गया। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार ने जनधन योजना के माध्यम से देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था से जोड़ने का एक अभियान शुरू किया। वर्तमान में जनधन योजना के अंतर्गत लगभग तीस करोड़ (16 अगस्त तक 29.52 करोड़) लोगों को बैंक खातों के माध्यम से अर्थतंत्र का हिस्सा बनाया गया।

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जन धन योजना से गरीब तबके को दोहरा लाभ
इस योजना का दोतरफा लाभ गरीबों को मिल रहा है। एक तो खाताधारक, यानि आम जनता इससे लाभान्वित हो रही है, वहीं दूसरी तरफ देश की अर्थव्यवस्था में आम गरीब लोगों की भागीदारी भी सुनिश्चित हो रही है। इसके तहत बीमा सुरक्षा का लाभ लोगों को सहजता एवं सरलता से प्राप्त हो रहा है। दूसरी तरफ देश के आर्थिक ढांचे को भी मजबूती मिल रही है। 

गरीबों के जीवन का नया सवेरा है जन-धन योजना
प्रधानमंत्री जन धन योजना देश के गरीबों के जीवन में नया सवेरा लेकर आया है। इसके माध्यम से न सिर्फ आर्थिक छुआछूत कम हुआ है बल्कि इससे गरीबी हटाने की दिशा में बड़ी सफलता मिल रही है। पहले दिन ही डेढ़ करोड़ खाता खोलने का रिकॉर्ड बना चुकी यह योजना वित्तीय समावेशन की दिशा में केंद्र सरकार की बड़ी पहल है। ये बात इन खातों में औसत जमा से भी साबित होती है। 16 अगस्त, 2017 तक इन खातों में औसत बैलेंस 2,231 रुपये रहा।

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29 करोड़ से ज्यादा जनधन खाते खोले गए
बीते 3 साल सालों में प्रधानमंत्री जनधन योजना (PMJDY) के तहत 16 अगस्त 2017 तक 29.52 करोड़ खाते खोले जा चुके हैं जबकि जनवरी 2015 में जनधन खातों की संख्या 12.55 करोड़ थी। इसमें भी ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदर्शन बेहद सराहनीय रहा। जनवरी, 2015 में ग्रामीण क्षेत्र में जहां 7.54 करोड़ जनधन खाते खोले गए थे, वहीं 16 अगस्त, 2017 तक PMJDY के तहत 17.64 करोड़ ग्रामीण खाते खोले गए।

जीरो बैलेंस खातों की संख्या में भारी गिरावट
सरकार द्वारा बताए गए आंकड़ों को अनुसार जनवरी 2015 में जारी हुए 11.08 करोड़ रुपे कार्डों की संख्या 16 अगस्त, 2017 तक बढ़कर 22.71 करोड़ हो गई। लाभार्थियों के खाते की राशि भी बढ़कर 65,844.68 करोड़ रुपये हो गई और प्रति खाता औसत शेष राशि का आंकड़ा भी जनवरी 2015 के 837 रुपये से उछलकर अगस्त, 2017 में 2,231 रुपये हो गया। दूसरी ओर जीरो बैलेंस खातों की संख्या में खासी कमी देखने को मिली है। सितंबर, 2014 में जहां 76.81 प्रतिशत ऐसे खाते थे तो अगस्त 2017 में उनका दायरा सिकुड़कर 21.41 प्रतिशत रह गया।

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जन धन से हो रहा महिलाओं का सशक्तिकरण
जन धन योजना ने महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में भी इसने अहम भूमिका निभाई है। मार्च, 2014 तक कुल बचत खातों में 33.69 करोड़ खातों के साथ महिलाओं की 28 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। देश के शीर्ष 40 बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों यानि आरआरबी के आंकड़ों के अनुसार इसमें महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़कर तकरीबन 40 प्रतिशत हो गई है। महिलाओं के कुल 43.65 करोड़ खातों में से 14.49 करोड़ खाते जनधन योजना से जुड़े हैं। वित्तीय समावेशन में यह महिलाओं की बड़े पैमाने पर हिस्सेदारी की कहानी बयां करता है।

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जन धन योजना से मिलती है गरीबों को सुरक्षा
प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना यानि पीएमजेजेबीवाई और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना यानि पीएमएसबीवाई के जरिये गरीबों को सुरक्षा आधार मुहैया कराने की मुहिम भी शुरू की है। 7 अगस्त, 2017 तक पीएमजेजेबीवाई के तहत 3.46 और पीएमएसबीवाई के तहत 10.96 करोड़ नामांकन हो चुके हैं। इन दोनों ही योजनाओं में 40 प्रतिशत से ज्यादा नामांकन महिलाओं के हैं।

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जन धन योजना से मुद्रा योजना को भी बढ़ावा
प्रधानमंत्री जनधन योजना से बने समूचे तंत्र की बदौलत मुद्रा योजना जैसे कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में मदद मिली है। 18 अगस्त, 2017 तक इसमें 8.77 करोड़ लाभार्थियों के खातों में 3.66 लाख करोड़ रुपये की रकम हस्तांतरित की गई। यह पूरी की पूरी राशि उनके बैंक खातों में ही गई है। जाहिर है इसके जरिये देश में युवा उद्यमियों की एक नई पौध पनप रही है जिसे समुचित संसाधन मुहैया करवाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। 

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सब्सिडी की राशि सीधे लाभर्थी के खाते में
जनधन योजना के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को जोड़ने का बड़ा लाभ यह भी हुआ कि सब्सिडी की राशि, जो जनता तक पहुंच नहीं पाती थी, वह अब सीधे लोगों के बैंक खातों में पहुंचने लगी है। यानि गरीब का अधिकार सीधे उसके खाते में मिलने लगा। वर्तमान में सरकार सालाना 35 करोड़ खातों में 74 हजार करोड़ रुपये सीधे ट्रांसफर कर रही है। इसमें से एक महीने में 6 हजार करोड़ ट्रांसफर होते हैं। पैसों का ये ट्रांसफर सरकार की पहल, मनरेगा, वृद्धावस्था पेंशन और स्टूडेंट स्कॉलरशिप योजनाओं में होता है, और यह बिना किसी भ्रष्टाचार के होता है।

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