त्रिपुरा में लोकल टीवी चैनल के पत्रकार 27 वर्षीय शांतनु भौमिक की हत्या कर दी गई। बुधवार को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) के Tribal Wing त्रिपुरा राजेर उपजाति गणमुक्ति परिषद (TRUGP) और Indigenous People’s Front of Tripura(IPFT) की झड़प के दौरान शांतनु पर धारदार हथियार से हमला किया गया था। पुलिस के मुताबिक बुरी तरह से घायल शांतनु को अगरतला मेडिकल कॉलेज ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
अगरतला से 29 किलोमीटर दूर मंडाई में हुई इस वारदात ने जहां त्रिपुरा की माणिक सरकार में कानून-व्यवस्था की लचर स्थिति को उजागर किया है। वहीं एक सवाल यह भी उठा है कि शांतनु भौमिक की हत्या पर पत्रकारिता के कुछ बड़े चर्चित चेहरे काफी देर तक खामोश क्यों रहे जो गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में बेहद आक्रामक दिखे थे?
#RIP Dear #SantanuBhowmik..
Hope it receives the same amount of traction as Gauri Lankesh case! #Tripura pic.twitter.com/GprtsvZCOz— Vinay Pandey (@Vinayvichaar) September 20, 2017
शांतनु की हत्या में सीपीएम का हाथ ?
शांतनु एक उभरते हुए पत्रकार थे। उनको करीब से जानने वाले ये बताते हैं कि कि वो एक बेबाक पत्रकार थे, वैसे बेबाक नहीं जो खुद को बेबाक बताकर उसकी आड़ में पेशे को बदनाम करने वाली कोशिशों में लगे रहते हैं। खबरों को घटनाक्रम के वास्तविक रूप में प्रस्तुत करने में विश्वास था उनका। सवाल ये है कि वास्तविकता को सामने वाली शांतनु की रिपोर्टिंग से त्रिपुरा की सीपीएम सरकार की पोल खुलना ही कहीं शांतनु की जान पर भारी तो नहीं पड़ गया? त्रिपुरा बीजेपी ने इस हत्याकांड के लिए राज्य की माणिक सरकार को दोषी ठहराया है। बीजेपी का कहना है कि सीपीएम के शासन में कानून-व्यवस्था का नामोनिशान नहीं बचा है।
Journalist #ShantanuBhowmick (27) murdered covering political clash in #Tripura. Law and order nonexistent only violence under CPI(M) rule. pic.twitter.com/GXRuMxFzhy
— BJP Tripura (@BJP4Tripura) September 20, 2017
कानून-व्यवस्था ध्वस्त है त्रिपुरा में
शांतनु की हत्या ने त्रिपुरा के कानून व्यवस्था को सामने लाकर रख दिया है। राज्य सरकार पर लोगों का गुस्सा निकलता दिख रहा है।
#Tripura
This incident indicates that law and order is not right in left govt.— Manoj Kumar Singh (@ManojKu86874326) September 20, 2017
पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में हुआ हमला?
शांतनु पर जब हमला हुआ तब वो दो गुटों के बीच हुई झड़प की कवरेज कर रहे थे। एक रिपोर्टर के नाते उनके लिए यह एक नियमित प्रकार की कवरेज थी। इसलिए सरसरी तौर पर ऐसा नहीं लगता कि उनकी हत्या का इस कवरेज से सीधा कोई वास्ता था। जिस तरह से इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया वो एक सुनियोजित हत्या की ओर इशारा करता है। बताया जा रहा है कि भौमिक पर पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में हमला बोला गया जिसके वीडियो फुटेज भी मौजूद हैं। इसके सच होने का मतलब है कि शांतनु पर जानलेवा हमले होते रहे और पुलिसवाले तमाशबीन बने रहे। ये एक ऐसी जानकारी है जहां पुलिस-प्रशासन से लेकर राज्य सरकार तक घेरे में आ जाती है।
शांतनु की हत्या के विरोध पर ‘सेक्युलर’ पत्रकार उदासीन
शांतनु की हत्या की जांच सही दिशा में आगे बढ़े तो कई नये खुलासे सामने आ सकते हैं लेकिन एक बड़ा सवाल ये है गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में आवाज उठाने वाली पत्रकारों की ‘सेक्युलर’ जमात शांतनु की हत्या पर काफी वक्त तक चुप क्यों रही? इस हत्याकांड के लिए विरोध प्रदर्शन को लेकर उन्हें इतना सोचना क्यों पड़ा? क्या पूर्वोत्तर में एक पत्रकार की हत्या पर आवाज उठाने से उन्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला? शायद शांतनु हत्याकांड में इन्हें विरोध प्रदर्शन का वैसा मंच तैयार करने का मौका नहीं दिखा जिसमें देशद्रोह के आरोपी रहे कन्हैया कुमार को ये अपनी मुहिम का नेतृत्व करने के लिए माइक थमा सकें।
अपने ‘एजेंडे’ पर नाप-तौल करके ये लेते हैं फैसला?
बात असल में यही है कि अपनी पत्रकारिता के जरिये ये जिस धारा का समर्थन करते नजर आते हैं उसमें एक निष्पक्ष पत्रकार का मारा जाना इनके लिए कोई मायने नहीं रखता। एक सामान्य आंकड़े से आप समझ सकते हैं कि ये ‘सेक्युलर’ पत्रकार किस तरह से अपनी ही बिरादरी के दो लोगों की हत्या पर भेदभाव बरतते हैं। हम आपको चार ऐसे पत्रकारों के उदाहरण बता रहे हैं जिन्होंने गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में बढ़-चढ़कर Tweets किये लेकिन शांतनु भौमिक की हत्या पर वो तब जाकर प्रदर्शन की औपचारिकता निभाते दिखे जब उन पर सवाल दागने वाले सामने आने लगे।
पत्रकार गौरी लंकेश मामले में Tweet शांतनु मामले में Tweet
सागरिका घोष 46 00
राणा अय्यूब 38 00
राजदीप सरदेसाई 26 00
निधि राजदान 38 00
((21 सितंबर की सुबह तक के आंकड़े)
Finally good u r doing it . Waise u r partial and inclined towards one type of people but still formality hi Sahi . Good good
— Amit Kumar (@AmitIssaramit10) September 21, 2017
शांतनु इनके एजेंडे में फिट नहीं कर रहे!
ये अब तक साफ हो चुका है कि गौरी लंकेश लेफ्ट विचारधारा वाली और बीजेपी विरोधी पत्रकार थीं। उनके ट्विटर अकाउंट और उनकी पृष्ठभूमि से लेफ्ट और नक्सलियों से उनकी नजदीकियां जगजाहिर हो चुकी हैं। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि देश में ऐसे पत्रकारों की बिरादरी सक्रिय है, जो पत्रकारिता की आड़ में अपना एजेंडा चला रहे हैं। शायद ‘सेक्युलर’ पत्रकारों का यही एजेंडा है जो शांतनु पर ज्यादा बोलने से उन्हें परहेज करवा रहा है।