Home विचार कश्मीरियों को गले लगाने के लिए मोदी सरकार ने की पहल

कश्मीरियों को गले लगाने के लिए मोदी सरकार ने की पहल

SHARE

कांग्रेस की सरकारों ने कश्मीर को एक समस्या बनाकर रखा था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने केंद्र की कमान संभालने के पहले दिन से ही कश्मीर की समस्या को संजीदगी से देखा है और इसके स्थायी समाधान की तरफ कदम बढ़ा रही है। ”गाली और गोली से नहीं, गले लगाने से कश्मीर समस्या हल होगी”… 15 अगस्त, 2017 को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कही गई इस बात ने संकेत दे दिये थे कि कश्मीर में अब बातचीत की पहल जल्द शुरू होने वाली है। दरअसल ऑपरेशन ऑल आउट की सफलता और अलगाववादियों पर नकेल के बाद अब वक्त है कि कश्मीर के लोगों में विश्वास बहाली की पहल हो। 

बातचीत से निकलेगा हल
मोदी सरकार द्वारा कश्मीर में बातचीत की पहल को आगे बढ़ाएंगे पूर्व IB चीफ दिनेश्वर शर्मा। उन्होंने साफ कहा है कि जो भी इस देश का नागरिक है जो भी स्टेकहोल्डर है, जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर उन सभी से बातचीत की जाएगी। वे जल्दी ही जम्मू कश्मीर जाएंगे और उन लोगों से बातचीत का सिलसिला शुरू करेंगे। दरअसल मोदी सरकार की कोशिश है कि कश्मीर में विकास के रास्ते खुले, विकास हो और कश्मीर के नौजवानों को रोजगार मिले और जो नौजवान भटका हुआ है वह सही रास्ते पर आए। बिहार के गया जिले के रहने वाले और केरल कैडर के आईपीएस अधिकारी दिनेश्वर शर्मा जब एनएसए अजीत डोभाल आईबी में डायरेक्टर थे, उसी दौरान कश्मीर का काम देखते थे और कश्मीर के कई आतंकी ऑपरेशन को उस दौरान अंजाम दिया था।

Image result for राजनाथ और दिनेश्वर शर्मा

कश्मीर में आतंक का हुआ सफाया
अमरनाथ तीर्थयात्रियों पर हमले के बाद शुरू किए गए ऑपरेशन ऑल आउट को भारी सफलता मिली है। आतंकियों के विरुद्ध सुरक्षाबलों के अभियान में इस साल अब तक 174 से अधिक आतंकी ढेर किए जा चुके हैं। इसके साथ ही पाकिस्तान से आकर कश्मीर में आतंक फैलाने वाले अधिकतर दहशतगर्द या तो मारे जा चुके हैं या फिर वे वापस पाकिस्तान भाग गए हैं। गैर आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार करीब 95 पाकिस्तानी आतंकियों को मौत के घाट उतारा जा चुका है। इसके अतिरिक्त दसियों आतंकियों ने या तो सरेंडर कर दिया है या फिर वे सुरक्षा बलों द्वारा पकड़ लिए गए हैं। आलम यह है कि हर दिन दो या तीन आतंकी घटनाएं झेलने वाले कश्मीर में अब हफ्ते में औसतन दो आतंकी घटनाएं हो रही हैं।

ढेर हुए आतंकी के लिए चित्र परिणाम

अलगाववादियों पर कसी गई नकेल
कांग्रेस की सरकारों ने जिन अलगाववादियों को पाल रखा था मोदी सरकार में उनके दिन लद गए हैं। सैयद अली शाह गिलानी, यासीन मलिक और उमर वाइज फारुख जैसे अलगाववादी नेताओं पर एनआइए की कार्रवाई ने बहुत हद तक कश्मीर में अमन लाया है। पत्थरबाजी की घटनाएं पूरी तरह बंद हो गई हैं और इन अलगावादी नेताओं को भी समझ में आने लगा है कि कश्मीर को भारत से अलग करना नामुमकिन है। लिहाजा ये भी अब कश्मीरियत और जम्हूरियत की जुबान बोलने लगे हैं। बीते अगस्त में एक वीडियो भी आया था जिसमें उन्होंने कहा कि कश्मीर मुद्दे का हल इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत के दायरे में रहकर ही हल किया जा सकता है।

टेरर फंडिग से अलगावादी कनेक्शन
सैयद अली शाह गिलानी के इस हृदय परिवर्तन का कारण मोदी सरकार की वो कठोर नीति है जो भारत से कश्मीर को अलग करने का ख्वाब देखने वालों पर शिकंजा कसता है। दरअसल आतंकवादियों को पाकिस्तान से होने वाली फंडिंग के मामले में गिलानी और उनके रिश्तेदारों पर मोदी सरकार ने शिकंजा कस रखा है। गिलानी का दामाद अल्ताफ फंटूश समेत 5 दूसरे लोग हिरासत में हैं और गिलानी के दोनों बेटों से लगातार पूछताछ चल रही है। एक अनुमान के अनुसार कश्मीर में देश विरोध गतिविधियों के माध्यम से गिलानी परिवार ने सैकड़ों करोड़ की अवैध संपत्ति बना रखी है।

पाकिस्तान पड़ा अलग-थलग
कहावत है जब सीधी उंगली से घी न निकले तो उसे टेढ़ी करनी पड़ती है… प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जबसे उंगली टेढ़ी करनी शुरू की है, तब से पाकिस्तान सीधी राह चलने लगा है। पीएम मोदी की पहल पर एक तरफ अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकवाद फैलाने पर लताड़ लगाई तो ब्रिक्स देशों ने भी पाकिस्तान को साफ कर दिया कि वह अपने यहां पल रहे आतंकियों पर कार्रवाई करे। नतीजा हुआ कि अब तक डिनायल मोड में चल रहे पाकिस्तान ने मान लिया है कि उसकी जमीन से लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन संचालित हो रहे हैं। इतना ही नहीं अब तो पाक सेना भी मानने लगी है कि पाक में आतंकी जिहाद नहीं, फसाद फैला रहे हैं। भारत को सबसे बड़ी कामयाबी तब मिली जब प्रधानमंत्री मोदी के दबावों के चलते ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान को आतंकवादियों की शरणस्थली वाले देशों की सूची में डाल दिया।

सलाउद्दीन पर लगा प्रतिबंध
प्रधानमंत्री मोदी के दबाव के कारण अमेरिका ने स्वीकार किया कि पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों को संरक्षण और बढ़ावा देता है। पाकिस्तान में इनको ट्रेनिंग मिलती हैं और यहां से ही इन आतंकवादी संगठनों की फंडिंग हो रही है। 26 जून को अमेरिका ने हिजबुल सरगना सैयद सलाउद्दीन को वैश्विक आतंकी घोषित किया तो साफ हो गया कि आतंक के मामले पर अमेरिका अब भाारत के साथ पूरी तरह खुलकर खड़ा है। दरअसल सलाउद्दीन का जम्मू-कश्मीर में कई हमलों के पीछे उसका हाथ रहा है। आतंकवाद के खिलाफ भारत द्वारा वैश्विक स्तर पर चलाए जा रहे अभियान की यह एक बड़ी सफलता है।

हिजबुल मुजाहिदीन पर बैन
प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों के चलते अमेरिका ने 16 अगस्त, 2017 को हिजबुल मुजाहिदीन को आतंकी संगठन करार दे दिया। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि हिजबुल मुजाहिद्दीन को आतंकवादी संगठन घोषित करने से इसे आतंकवादी हमले करने के लिए जरूरी संसाधन नहीं मिलेगा, अमेरिका में इसकी संपत्तियां जब्त कर ली जाएंगी और अमेरिकी नागरिकों को इससे संबद्धता रखने पर प्रतिबंधित होगा। अमेरिका ने यह भी कहा कि हिजबुल कई आतंकी हमलों में शामिल रहा है। अमेरिका इससे पहले लश्कर के मुखौटा संगठन जमात उद दावा और संसद हमले में शामिल जैश ए मोहम्मद पर पाबंदी लगा चुका है।

स्थानीय लोगों का बढ़ा भरोसा
भारतीय सेना के बारे में भले ही जो भी छवि गढ़ने की कुत्सित कोशिश की जाती रही हो, लेकिन जमीन पर हालात अलग है। कश्मीर के ज्यादातर लोगों को सेना पसंद हैं, उनके काम पसंद हैं और स्थानीय लोगों से उनका जुड़ाव पसंद है। सेना भी कश्मीरियों का भला करने में पीछे नहीं रहती है। आर्मी गुडविल स्कूल के तहत जरूरतमंदों को शिक्षा मुहैया करना हो या फिर सुपर-40 के जरिये प्रतिभाओं को नई धार देने की कोशिश, सब में सेना बढ़-चढ़ कर शामिल रहती है। सेना में युवाओं के भर्ती अभियान को भारी सफलता मिल रही है। कश्मीर में लड़कियां खेल रही हैं क्रिकेट और फुटबॉल। कट्टरपंथियों को कश्मीर से युवा जवाब दे रहे हैं और मुख्यधारा से जुड़ने को बेताब हैं।

Leave a Reply