प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से आतंकवाद को समग्र मानवता का दुश्मन करार दिया और आतंकवाद के वास्तविक स्वरूप को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया, इसका अब सीधा असर होता भी दिख रहा है। अच्छे और बुरे आतंकवाद के बीच फर्क मिटाकर अब आतंकवाद के हर स्वरूप के विरुद्ध विश्व जनमत तैयार हो चुका है। पीएम मोदी के प्रयासों का परिणाम है कि दुनिया के देश अब आतंकवाद और पाकिस्तान एक दूसरे के पर्याय मान रहे हैं। जाहिर है आतंकवाद को देश की राष्ट्रीय नीति में शामिल करने वाला पाकिस्तान अब मुश्किल में फंस चुका है।
आर्थिक आधार पर अलग-थलग होगा पाकिस्तान
23 फरवरी को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानि FATF की ओर से पाकिस्तान की इकॉनमी को ‘ग्रे लिस्ट’ में शामिल कर लिया गया। इस कदम से अब वह आर्थिक आधार पर दुनिया से अलग-थलग हो जाएगा। पाकिस्तान ने अगर आतंकवाद पर जल्दी ही काबू नहीं पाया तो आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, वर्ल्ड बैंक, एशियन डिवेलपमेंट बैंक समेत मूडीज, स्टैंडर्ड ऐंड पूअर और फिच जैसी एजेंसियां पाकिस्तान को डाउनग्रेड भी कर सकती हैं। हालांकि इसका असर अभी से ही दिखने भी लगा है और पाकिस्तान के स्टॉक मार्केट समेत पूरी इकॉनमी में गिरावट शुरू हो गई है।
पाकिस्तान को FATF की ग्रे सूची में डाला गया
दरअसल मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फाइनेंसिंग के मसले पर रोक न लगाने वाले देशों की रेटिंग तैयार करने का काम फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स तैयार करता है। ये इसी आधार पर ग्रे और ब्लैक लिस्ट तैयार करता है, लेकिन यह किसी भी देश पर कोई प्रतिबंध नहीं लगा सकता है। हालांकि इसका असर उस देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ना लाजिमी है। इससे पाकिस्तान की वित्तीय साख खराब हो गई है और अंतरराष्ट्रीय बाजार से कर्ज हासिल करना उसके लिए मुश्किल हो गया है। विदेशी निवेशकों और कंपनियों की पाकिस्तान में दिलचस्पी कम हो गई है।
पाकिस्तान को कंगाल करने पर तुला अमेरिका
आतंकवाद पर विश्व जनमत को एक मंच पर लाने की दिशा में किए गए मोदी सरकार के सफल प्रयासों का ही परिणाम है कि पाकिस्तान आज इस हालात में आ पहुंचा है। गौरतलब है कि अगर सुधार नहीं हुआ तो जून में वह ब्लैक लिस्ट में भी शामिल हो सकता है। ऐसा होने पर वैश्विक वित्तीय संस्थान पाकिस्तान से लेनदेन में परहेज करने लगेंगे और कारोबारी माहौल के लिहाज से भी यह नकारात्मक होगा।
चीन-सऊदी अरब ने छोड़ा पाकिस्तान का साथ
पाकिस्तान का परंपरागत तौर पर मित्र रहे अमेरिका ने तो उसका साथ छोड़ ही दिया, चीन और अरब जैसे देशों ने भी पाकिस्तान को उसकी ‘करनी’ याद दिला दी है। आलम यह है कि तुर्की को छोड़कर पाकिस्तान का साथ देने वाला दुनिया में कोई देश ही नहीं है। यहां तक कि मुस्लिम देशों ने भी पाकिस्तान को आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए दबाव डाला है और कहा है और भारत की नीतियों का समर्थन किया है।
पाकिस्तानी राजनयिक पर कसेगा शिकंजा
वर्ष 2014 में दक्षिण भारत में अमेरिकी और इजरायली वाणिज्य दूतावासों पर आतंकी हमले की साचिश रचने के मामले में भारत ने पाकिस्तान के राजनयिक अमीर जुबैर सिद्दिकी पर शिकंजा कसना शुरू कर दिय है। कोलंबो में पाकिस्तानी दूतावास में कार्यरत रहे सिद्दिकी का नाम इस साजिश में सामने आया था। एनआइए के आरोपपत्र में भी इनका नाम साजिशकर्ता के तौर पर शामिल किया गया है। गौरतलब है कि अप्रैल 2014 में वाणिज्य दूतावासों पर हमले की साजिश का खुलासा श्रीलंकाई नागरिक साकिर हुसैन की गिरफ्तारी से सामने आया था। सरकार ने अब जुबैर सिद्दिकी के लिए रेड कार्नर नोटिस हासिल करने के लिए फ्रांस स्थित इंटरपोल के मुख्यालय से संपर्क साधा है।
कनाडा के पीएम का भारत को समर्थन
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो की भारत यात्रा के दौरान हुए फीके आवभगत को मुद्दा बनाकर की मीडिया हाउसेज और कांग्रेस पार्टी ने मोदी सरकार को घेरा। परन्तु जब पीएम मोदी से मुलाकात के बाद दोनों देशों के संयुक्त वक्तव्यों को देखें तो ये मोदी सरकार की एक और सफलता रही। दोनों ही देशों के वक्तव्य में आतंकवाद एक प्रमुख मुद्दा रहा और कनाडा ने संयुक्त भारत की वकालत की। स्पष्ट है कि कनाडा ने अब खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों पर कार्रवाई का मन बना लिया है। दरअसल भारत के टुकड़े-टुकड़े करने का इरादा रखने वाला पाकिस्तान खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों को हर स्तर पर सहायता मुहैया कराता है, लेकिन कनाडा के रुख से उसे करारा झटका लगा है।
जलसंधि के तोड़ने पर जारी है मंथन
भारत और पाकिस्तान के बीच 57 साल पहले यह सिंधु जल समझौता हुआ था। इस अंतरराष्ट्रीय जल संधि पर 19 सितंबर, 1960 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाक राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत सिंधु घाटी की 6 नदियों का जल बंटवारा हुआ था। इन नदियों को दो हिस्सों (पूर्वी और पश्चिमी) दो हिस्सों में बांटा गया था। पूर्वी पाकिस्तान की तीन नदियों (व्यास, रावी और सतलज) का नियंत्रण भारत के पास है। जबकि सिंधु, चेनाब, झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान के पास है। लेकिन प्रधानंत्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि खून और पानी साथ नहीं बह सकते। यानि पाकिस्तान को आतंकवाद बंद करना होगा तभी उसे उसके हिस्से का पानी मिलेगा। भारत द्वारा पाकिस्तान से हुए इस जल समझौते पर दोबारा मंथन शुरू कर दिया गया है। 2017 के अगस्त में विश्व बैंक ने भी भारत के रुख का समर्थन किया था।