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पंजाब में सिद्धू की मुश्किलें बढ़ीं, चुनावी रणभूमि में विपक्षियों ने तो घर में बहन ने ही घेरा, सीएम फेस के लिए भी चन्नी ने लॉबिंग की तेज 

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पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। कांग्रेस का सीएम फेस बनने के लिए वो जितने उतावले हैं, उतना ही यह सिद्धू से दूर जा रहा है। राहुल गांधी ने फिलहाल उन्हें सीएम फेस बनाने का ऐलान नहीं किया है, लेकिन राहुल ने कहा है कि पार्टी सीएम फेस डिक्लेयर कर सकती है। दलित चेहरा होने के चलते चरणजीत सिंह चन्नी की सीएम फेस बन सकते हैं। दूसरी ओर सिद्धू की बहन के आरोपों के बाद वे पारिवारिक विवाद में भी फंस गए हैं। इधर बिक्रम मजीठिया का मुकाबले में उतरना नवजोत सिद्धू के लिए बड़ा खतरा बन गया है। सिद्धू सिर्फ इसी अमृतसर ईस्ट से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं मजीठिया अपनी पुरानी सीट मजीठा से भी चुनाव लड़ेंगे। सिद्धू हारे तो उनके सियासी जीवन के लिए बड़ा संकट होगा। मजीठिया के पास मजीठा का विकल्प है। दूसरा सिद्धू लगातार सीएम चेहरे के लिए दावेदारी ठोक रहे हैं। अगर उन्हें किसी तरह से हार मिली तो उनका यह दावा भी खत्म हो जाएगा।

हाईकमान पर दबाव के लिए सिद्ध और चन्नी की लॉबिंग तेज
पंजाब में कांग्रेस का सीएम चेहरे की घोषणा के राहुल गांधी के फैसले से चरणजीत चन्नी और नवजोत सिद्धू के बीच जंग तेज हो गई है। पार्टी के कार्यकर्ता और नेता हाईकमान के आगे उनका नाम रखें, इसके लिए लॉबिंग शुरू हो गई है। इसके साथ ही दोनों नेताओं के कमजोर और मजबूत पक्ष का भी गणित निकाला जा रहा है, ताकि हाईकमान पर इसके आधार पर दबाव बनाया जा सके। यदि 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव का रिजल्ट और दलित वोट बैंक का गणित देखें तो वह चन्नी के पक्ष में है। चन्नी न केवल अपनी सीट से जीते, बल्कि लोकसभा चुनाव में पार्टी को अपनी सीट से ज्यादा वोट दिलाई। सिद्धू के मामले में यह बिल्कुल उलट है। वहीं चन्नी के सहारे कांग्रेस पंजाब में 32% दलित वोट बैंक को साध सकती है। सिद्धू जिस जट्‌टसिख कम्युनिटी से हैं, उनके सिर्फ 19% वोट हैं, उसमें भी अकाली दल का दबदबा माना जाता है।

कैप्टन को हटाने की जो वजह बनी, वही सिद्धू के साथ भी हैं
पंजाब कांग्रेस में सीएम चेहरे की जंग के बीच एक और दिलचस्प पहलू है। जिस वजह से कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीएम की कुर्सी से हटना पड़ा, लगभग वही सिद्धू के साथ भी है। कैप्टन के खिलाफ बगावत करने वाले चन्नी, मंत्री सुखजिंदर रंधावा, तृप्त राजिंदर बाजवा, विधायक कुलबीर जीरा जैसे कई नेता पहले सिद्धू के साथ थे। जिन्होंने कैप्टन को हटाने के लिए पूरा मोर्चा संभाला। हालांकि रंधावा और सिद्धू में सीएम की कुर्सी की जंग हो गई और चरणजीत चन्नी सीएम बन गए। जिसके बाद इनका ग्रुप चन्नी के साथ है। जो खुलकर चन्नी को सीएम चेहरा बनाने की वकालत कर रहे हैं। कैप्टन के जाने के बाद उनके जो करीबी कांग्रेस में रह गए, वह भी चन्नी के समर्थन में हैं। बस, सिद्धू के पास अपना एजेंडा और बोलने की कला ही है।

हॉट सीट बनी अमृतसर ईस्ट, सिद्धू को यहीं घेरने की प्लानिंग
पंजाब में अमृतसर ईस्ट अब विधानसभा चुनाव की सबसे हॉट सीट बन गई है। यहां प्रदेश कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिद्धू के खिलाफ दिग्गज अकाली नेता बिक्रम मजीठिया चुनाव मैदान में होंगे। पंजाब की राजनीति में यह लड़ाई कई मायनों में दिलचस्प है। यह पहली सीट है, जहां इस बार के विधानसभा चुनाव में दिग्गज आमने-सामने होंगे। पिछले विधानसभा चुनाव में लंबी सीट से कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रकाश सिंह बादल, जलालाबाद से सुखबीर बादल के खिलाफ भगवंत मान चुनाव मैदान में कूदे थे। इस बार यह सब सेफ सीट से लड़ रहे हैं।

चरणजीत चन्नी : चन्नी खुद भी जीते और पार्टी को भी जिताया
चन्नी 2017 में चमकौर साहिब सीट से विधायक बने। उन्हें 61 हजार 60 वोटें पड़ी। उनका वोट प्रतिशत 42.26% रहा। इसके बाद जब 2019 में लोकसभा चुनाव हुए तो आनंदपुर साहिब सीट से कांग्रेस प्रत्याशी को चमकौर साहिब से 46.99% वोट मिले। मतलब यह कि चन्नी खुद ही नहीं जीते बल्कि पार्टी की जीत में उनकी सीट का बड़ा योगदान रहा। इसी सीट से मनीष तिवारी सांसद हैं, जो अक्सर सिद्धू पर निशाना साधते रहे हैं।

नवजोत सिद्धू : दो सीटों की जिम्मेदारी, दोनों ही जगह पार्टी हारी
सिद्धू 2017 में अमृतसर ईस्ट से विधायक बने। सिद्धू को 67 हजार 865 वोट मिले। सिद्धू का दबदबा ऐसा था कि खुद चुनाव लड़े तो उन्हें अमृतसर ईस्ट से 61.01% यानी आधे से ज्यादा वोट मिले। हालांकि 2 साल बाद लोकसभा चुनाव हुए तो यह कांग्रेस के लोकसभा कैंडिडेट के लिए यह वोट शेयर 53.2% रह गया। वहीं अकाली-भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार का वोट प्रतिशत 2017 में 17.82% के मुकाबले बढ़कर 40.33% हो गया। कैप्टन अमरिंदर सिंह भी कह चुके हैं कि सिद्धू भीड़ इकट्‌ठी कर सकते हैं लेकिन चुनाव नहीं जिता सकते। लोकसभा चुनाव में सिद्धू को बठिंडा और गुरदासपुर की जिम्मेदारी दी थी। दोनों जगह सिद्धू ने प्रचार किया। दोनों ही सीटें कांग्रेस हार गई।

सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ED की रेड के बाद सवालों में
सीएम चन्नी दलित चेहरे के रूप में भले ही आगे हों, लेकिन हाल ही में उनकी साली के बेटे भूपिंदर हनी पर ईडी की रेड से सीएम भी सवालों के घेरे में हैं। चन्नी ने इसे राजनीतिक बदलाखोरी बताया, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि 18 लाख कैपिटल इन्वेस्टमेंट की कंपनी चलाने वाले हनी के घर से मिले 10 करोड़ से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। विपक्षी भी चन्नी को घेर रहे हैं क्योंकि अवैध रेत माफिया पंजाब के सबसे बड़े मुद्दों में से एक है। कैप्टन अमरिंदर सिंह भी सीधे चन्नी पर अवैध रेत खनन को लेकर आरोप लगा रहे हैं। इसके उलट सिद्धू के सियासी जीवन में ऐसे कोई आरोप नहीं है।

बहन सुमन के आरोप – सिद्धू बहुत क्रूअल, मां को लावारिस हालत में मरने के लिए छोड़ा
अब सिद्धू को पारिवारिक विवाद ने जरूर घेर लिया है। सिद्धू की NRI बहन सुमन तूर ने आरोप लगाया कि सिद्धू ने पिता भगवंत सिद्धू की मौत के बाद मां निर्मल भगवंत और बड़ी बहन को घर से निकाल दिया। इसके बाद मीडिया को बयान देकर झूठ बोला कि मेरे माता-पिता न्यायिक तौर पर अलग हुए। सिद्धू उस वक्त अपनी उम्र 2 साल बता रहे हैं लेकिन वह भी सब झूठ है। सिद्धू की बड़ी बहन सुमन तूर ने आरोप लगाया कि कि शैरी (नवजोत सिद्धू का निकनेम) बहुत क्रुअल है। उन्होंने कहा कि 1986 में जब पिता भगवंत सिद्धू की भोग सेरेमनी हुई तो उसके तुरंत बाद सिद्धू ने मां के साथ उन्हें घर से निकाल दिया। सुमन ने कहा कि उनकी मां ने अपनी छवि बचाने के लिए दिल्ली के चक्कर काटे और अंत में दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उनकी लावारिस की तरह मौत हो गई। सुमन तूर ने कहा कि सिद्धू ने यह सब प्रॉपर्टी के लिए किया। इस पर सिद्धू का अभी कोई जवाब नहीं आया है।

 

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