Home पश्चिम बंगाल विशेष प्रधानमंत्री मोदी का नाम सुनकर ही क्यों डर जाती हैं ममता ?

प्रधानमंत्री मोदी का नाम सुनकर ही क्यों डर जाती हैं ममता ?

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी करतूतों के चलते बुरी तरह डरी हुई हैं। अपनी सरकार और नेताओं के शारदा-नारदा घोटालों में फंसने के बाद उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा है कि वो क्या करें, जिससे टीएमसी का भ्रष्टाचार और सियासी आतंक छिप जाए? उनके अंदर इस बात का डर घर कर चुका है कि, एक न एक दिन तो जनता के सामने उनकी पोल खुलकर के रहेगी और उनके सियासी चेहरे पर चढ़ा नकाब उतर जाएगा। उनको लगता है कि अगर सीबीआई और ईडी, उनके कारनामों की निष्पक्ष जांच करना बंद कर दें तो उनकी सारी मुश्किलें खत्म हो सकती हैं। शायद ये बातें उन्हें सपने में भी परेशान करती है, इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम सुनते ही उनके कंठ सुखने लगते हैं। अपने इस डर और खीज मिटाने के चक्कर में वो कानून, संविधान, केंद्र-राज्य संबंधों की धज्जिया उड़ाने में जुट गई हैं। ममता के डर का इससे बड़ा सबूत क्या हो सकता है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम के डर से राज्य में सभी केंद्रीय योजनाओं का ही नाम बदल दिया है।

भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सियासी तौर पर अपने आपको बहुत ही असुरक्षित महसूस कर रही हैं। उनको पता है कि राज्य सरकार ने घोटालों के सिवा कुछ तो किया नहीं है। ऐसे में अगर राज्य में केंद्रीय योजनाओं के तहत विकास के कार्य होंगे, तो वो जनता के पास क्या मुंह लेकर जाएंगी। क्योंकि केंद्रीय योजनाओं का नाम देखकर ही जनता समझ जाएगी कि ये तो मोदी सरकार के प्रयासों का फल है कि विकास का इतना काम हो रहा है। इसी डर के चलते ममता ने केंद्रीय योजनाओं के नाम बदलने की चाल चली है। उन्हें लगता है कि इस फरेब से वो जनता को एकबार फिर से मूर्ख बनाने में सफल हो जाएंगी।

केंद्रीय योजनाओं के नाम बदलने का खेल
देश के हर राज्य में केंद्रीय योजनाएं एक समान नामों से चल रही हैं। लेकिन, पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन सभी नामों को बदल दिया है। नाम बदलने के पीछे ममता का तर्क है कि इन सभी योजनाओं में राज्य भी 40 प्रतिशत खर्च वहन करता है, इसलिए उसे नाम बदलने का हक है। लेकिन असलियत में उन्हें लगता है कि योजनाओं में प्रधानमंत्री या केंद्रीय योजनाओं का नाम देखते ही जनता सच्चाई जान जाएगी। इसीलिए राज्य सरकार ने ‘दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना’का नाम बदलकर ‘आनंदाधारा’, ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का नाम बदलकर ‘मिशन निर्मल बांग्ला’, ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ का ‘सबर घरे आलो’,‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ को ‘राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन’, ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ को ‘बांग्लार ग्राम सड़क योजना’ और ‘प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना’ का नाम बदलकर ‘बांग्लार गृह प्रकल्प योजना’ कर दिया है।

‘स्मार्ट सिटी मिशन’ से पीछे हट गईं ममता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2015 में 100 स्मार्ट शहरों के विकास की योजना का शुभारंभ किया था। शुरुआत में पश्चिम बंगाल ने चार शहरों कोलकाता, विधान नगर, न्यू टाउन और हल्दिया को इस योजना के लिए नामांकित किया। लेकिन, बाद में न्यूटाउन जो 100 शहरों में से एक शहर चुना गया था उसे ममता बनर्जी ने स्मार्ट सिटी योजना से हटा लिया। इसके पीछे तर्क दिया कि ऐसी योजनाऐं असमान विकास को बढ़ावा देंगी। इस योजना की जगह मुख्यमंत्री ने राज्य में ‘हरित व स्मार्ट सिटी’ विकसित करने की नई योजना शुरु कर दी। इस के तहत वो 10 शहरों के विकास का दावा कर रही हैं।

RERA कानून भी नहीं बनने दिया
एक मई से पूरी तरह से लागू करने के लिए RERA कानून के तहत नियमों को नहीं बनाने वाले कुछ राज्यों में पश्चिम बंगाल भी शामिल है। मई 2016 में संसद ने घर खरीदने वालों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए इस कानून को पारित किया था। तब राज्यों को केन्द्र के कानून के आधार पर नियमों को अधिसूचित करने के लिए 27 नवंबर 2016 तक का समय दिया गया था। लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कानून के तहत नियमों को अधिसूचित करके घर खरीदने वाले सामान्य लोगों को धोखेबाज बिल्डरों और कंपनियों से बचाने के लिए नियम नहीं बनाया। इतना ही नहीं उन्होंने शहरी विकास मंत्रालय की जनवरी 17 व मार्च 27 की बैठकों में भी हिस्सा नहीं लिया। ये कानून विशेष रूप से शहरी मध्यम वर्ग के हितों की रक्षा के हिसाब से बनाया गया है। लेकिन ममता बनर्जी को लगता है कि उनके यहां अगर लोकहितकारी ये कानून बन गया तो मध्यम वर्ग प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करने लगेगा।

नदियों को जोड़ने की परियोजना के लिए तैयार नहीं
केंद्र की मोदी की सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ के ध्येय को पूरा करने के उद्देश्य से मानस-संकोष-तिस्ता-गंगा नदियों को जोड़ने की परियोजना शुरू करना चाहती है। इससे असम, पश्चिम बंगाल और बिहार में बाढ़ की समस्या पर नियंत्रण पाया जा सकेगा और पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था भी हो सकेगा। लेकिन ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल की सरकार इस योजना में शामिल होने के लिए तैयार नहीं है। केंद्रीय जल संशाधन मंत्री उमा भारती ने ममता बनर्जी को इस योजना में शामिल होने के लिए कई पत्र लिखे, लेकिन उन्होंने राज्य को इससे होने वाले नुकसान का हवाला देते हुए इसमें शामिल होने से मना कर दिया। लेकिन, मोदी सरकार अब भी इस योजना पर आगे बढ़ रही है । ममता को लगता है कि अगर ये परियोजना शुरू हो गई तो प्रधानमंत्री करोड़ों गरीबों और निम्न वर्ग के लोगों के दिलों में राज करने लगेंगे, इसी खुन्नस में वो जन-कल्याण के इस काम में अड़ंगा लगा रही हैं।

संयुक्त इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (JEE)का विरोध
देश के सभी इंजीनियरिंग कालेजों में प्रवेश के लिए एकल संयुक्त परीक्षा के मोदी सरकार की पहल का ममता बनर्जी ने जमकर विरोध किया। पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्था चटर्जी ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर कहा, कि राज्य की इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा को रद्द करके एकल संयुक्त परीक्षा राज्यों के अधिकार क्षेत्र पर केंद्र का अतिक्रमण है। लेकिन सच्चाई है कि ममता को लगता है कि इस पहल से पीएम मोदी करोड़ों युवाओं के दिल-दिमाग पर छा जाएंगे, इसीलिए वो इस नेक काम में भी अड़ंगा लगाने से नहीं रुकीं।

स्वच्छ भारत सर्वेक्षण से परेशान ममता 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में स्वच्छता अभियान के प्रति और जागरुकता पैदा करने और उसमें लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक स्वच्छता सर्वेक्षण करवाने का निर्णय किया। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने देश के 500 शहरों में ये सर्वेक्षण कराने का फैसला लिया, लेकिन ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के 60 शहरों को इस सर्वेक्षण से बाहर कर लिया। दरअसल ममता, जनता के मन में मोदी के लिए उत्पन्न होने वाली प्रतिबद्धता से घबरा गईं थीं।

ममता बनर्जी को लगता है कि वो अपनी नकारात्मक राजनीति से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकासपुरुष वाली छवि से जनता को दूर करके रख लेंगी। वो पश्चिम बंगाल में भाजपा के प्रति बढ़ रहे अपार जनसमर्थन से अंदर ही अंदर हिल उठी हैं, उन्हें पता चल चुका है कि उनके किले का आधार उखड़ चुका है, ईमानदार राजनीतिज्ञ की उनकी छवि दागदार हो चुकी है। यही वजह है कि वो राज्य की भोली-भाली जनता में हो रही जागृति को रोकने पर तुली हुई हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि जन-मानस के साथ जब भी ऐसा कुकृत्य किया गया है, वह ऐसा निर्णय सुनाती है कि कोई नामलेवा भी नहीं बच जाता।

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