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मुस्लिम परस्ती और हिंदू विरोध में हाई कोर्ट का आदेश भी नहीं मान रहीं ममता

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कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को ऐसे जरूरी कदम उठाने के आदेश दिए हैं जिससे अगले साल ईद-उल जुहा (बकरीद) पर्व से पहले पश्चिम बंगाल पशु वध नियंत्रण कानून-1950 के प्रावधानों पर अमल किया जा सके।

हालांकि राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरकार ने कलकत्ता हाई कोर्ट में हलफनामा देकर साफ कर दिया है कि वह बकरीद पर गोवंश के वध पर रोक लगाने संबंधी हाईकोर्ट के आदेश को पालन करने में सक्षम नहीं है।

ममता सरकार के इस जवाब पर मुख्य न्यायाधीश जे. भट्टाचार्य की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने हैरानी जताई कि राज्य सरकार के पास 68 साल पुराने कानून के प्रावधानों को लागू कराने की मशीनरी नहीं है।

दरअसल ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी की सरकार के पास मशीनरी नहीं है, बल्कि वह कोर्ट के आदेश को भी राजनीतिक चश्मे से देखती है। वह मुस्लिम परस्ती में देश के कानून को भी धता बताती रही हैं। हाल में ही एनआरसी की सूची आने के बाद उन्होंने जब कहा कि गृह युद्ध हो जाएगा तो वह भी मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने के लिए ही था। बहरहाल देश में फिलहाल ममता बनर्जी मुस्लिम परस्ती और हिंदू विरोध की राजनीति की नायिका बनी हुई हैं।

ममता करती हैं बीफ खाने का समर्थन
वर्ष 2016 में केंद्र सरकार के पशुवध निषेध कानून को ममता बनर्जी ने धार्मिक रंग देने की कोशिश की। उन्होंने मुसलमानों से जोड़ते हुए कहा कि यह रमजान से पहले जान बूझकर लगाया गया प्रतिबंध है। उन्होंने कहा कि हम प्रतिबंध को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। हम इसे कानूनी रूप से चुनौती देंगे।

ममता ने 21 जुलाई, 2016 को शहीद दिवस पर कोलकाता में कहा, ”अगर मैं बकरी खाती हूं तो कोई समस्या नहीं है, लेकिन कुछ लोग गाय खाते हैं तो यह समस्या है। मैं साड़ी पहनती हूं तो समस्या नहीं है, लेकिन कुछ लोग सलवार कमीज पहनते हैं तो यह समस्या है। हम धोती पहनना पसंद करते हैं लेकिन कुछ लुंगी पहनने को प्राथमिकता देते हैं। आप कौन हैं तय करने वाले कि लोग क्या पहनें और क्या खाएं?”

18 दिसंबर 2016 को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हुगली में मुसलमानों को संबोधित करते हुए बीफ खाने के प्रति अपना समर्थन दोहराया, ”यह पसंद का मामला है। मेरा अधिकार है मछली खाना। वैसे ही, आपका अधिकार है मांस खाना। आप जो कुछ भी खाएं – बीफ या चिकन, यह आपकी पसंद है।” ममता ने इस कानून को धार्मिक रंग देने की कोशिश की और मुसलमानों से जोड़ते हुए कहा कि यह रमजान से पहले जान बूझकर लगाया गया प्रतिबंध है।

मुस्लिम परस्ती में तारिक फतेह का कार्यक्रम रद्द 
ममता सरकार ने 4 जनवरी 2017 को कलकत्ता क्लब में तारिक फतेह का कार्यक्रम इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि वह पाकिस्तान विरोधी हैं और बलूचिस्तान को पाकिस्तान से आजाद कराना चाहते हैं। एक बार फिर मुसलमानों को खुश करने के लिए यह कदम उठाया गया।

ममता बनर्जी कई मौकों पर दिखा चुकी हैं कि वह मुस्लिम परस्त हैं और हिंदू धर्म के प्रति ‘कुंठा’ का भाव रखती हैं।

मोहर्रम में जुलूस निकले तो परंपरा, रामनवमी पर निकले संप्रदायवाद
सनातन संस्कृति में शस्त्रों का विशेष महत्त्व है। अलग-अलग पर्व त्योहारों पर धार्मिक यात्राओं में तलवार, गदा लेकर चलने की परंपरा रही है, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने धार्मिक यात्राओं और शस्त्र भी दो साम्प्रदायिक और सेक्यूलर करार दे दिया है। गौरतलब है कि जब यही शस्त्र प्रदर्शन मोहर्रम के जुलूस में निकलते हैं तो सेक्यूलर होते हैं, लेकिन रामनवमी में निकलते ही साम्प्रदायिक हो जाते हैं।

राम के नाम से ममता का नफरत कई बार हो चुकी है जाहिर
ममता बनर्जी कई बार हिंदू धर्म और भगवान राम के प्रति अपनी असहिष्णुता जाहिर करती रही हैं। हालांकि कई बार कोर्ट ने उनकी इस कुत्सित कोशिश को सफल नहीं होने दिया है। वर्ष 2017 में जब लेक टाउन रामनवमी पूजा समिति’ ने 22 मार्च को रामनवमी पूजा की अनुमति के लिए आवेदन दिया तो राज्य सरकार के दबाव में नगरपालिका ने पूजा की अनुमति नहीं दी थी। इसके बाद जब समिति ने कानून का दरवाजा खटखटाया तो कलकत्ता हाईकोर्ट ने पूजा शुरू करने की अनुमति देने का आदेश दिया।

बंगाल सरकार ने पाठ्यक्रम में रामधनु को कर दिया रंगधनु 
भगवान राम के प्रति ममता बनर्जी की घृणा का अंदाजा इस बात से भी जाहिर हो गई, जब तीसरी क्लास में पढ़ाई जाने वाली किताब ‘अमादेर पोरिबेस’ (हमारा परिवेश) ‘रामधनु’ (इंद्रधनुष) का नाम बदल कर ‘रंगधनु’ कर दिया गया। साथ ही ब्लू का मतलब आसमानी रंग बताया गया है। दरअसल साहित्यकार राजशेखर बसु ने सबसे पहले ‘रामधनु’ का प्रयोग किया था, लेकिन मुस्लिमों को खुश करने के लिए किताब में इसका नाम ‘रामधनु’ से बदलकर ‘रंगधनु’ कर दिया गया।

हिंदुओं के हर पर्व के साथ भेदभाव करती हैं ममता बनर्जी
ऐसा नहीं है कि ये पहली बार हुआ है कि ममता बनर्जी ने हिंदुओं के साथ भेदभाव किया है। कई ऐसे मौके आए हैं जब उन्होंने अपना मुस्लिम प्रेम जाहिर किया है और हिंदुओं के साथ भेदभाव किया है। सितंबर, 2017 में कलकत्ता हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से ममता बनर्जी का हिंदुओं से नफरत जाहिर होता है। कोर्ट ने तब कहा था,  ”आप दो समुदायों के बीच दरार पैदा क्यों कर रहे हैं। दुर्गा पूजन और मुहर्रम को लेकर राज्य में कभी ऐसी स्थिति नहीं बनी है। उन्‍हें साथ रहने दीजिए।”

दशहरे पर शस्त्र जुलूस निकालने की ममता ने नहीं दी थी अनुमति
हिंदू धर्म में दशहरे पर शस्त्र पूजा की परंपरा रही है। लेकिन मुस्लिम प्रेम में ममता बनर्जी हिंदुओं की धार्मिक आजादी छीनने की हर कोशिस करती रही हैं। सितंबर, 2017 में ममता सरकार ने आदेश दिया कि दशहरा के दिन पश्चिम बंगाल में किसी को भी हथियार के साथ जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी जाएगी। पुलिस प्रशासन को इस पर सख्त निगरानी रखने का निर्देश दिया गया। हालांकि कोर्ट के दखल के बाद ममता बनर्जी की इस कोशिश पर भी पानी फिर गया।

हनुमान जयंती पर निर्दोषों को किया गिरफ्तार, लाठी चार्ज 
11 अप्रैल, 2017 को पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के सिवड़ी में हनुमान जयंती के जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण ममता सरकार से हिन्दू जागरण मंच को हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी। हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं का कहना था कि हम इस आयोजन की अनुमति को लेकर बार-बार पुलिस के पास गए, लेकिन पुलिस ने मना कर दिया। धार्मिक आस्था के कारण निकाले गए जुलूस पर पुलिस ने बर्बता से लाठीचार्ज किया। इसमें कई लोग घायल हो गए। जुलूस में शामिल होने पर पुलिस ने 12 हिन्दुओं को गिरफ्तार कर लिया। उन पर आर्म्स एक्ट समेत कई गैर जमानती धाराएं लगा दीं।

कई गांवों में दुर्गा पूजा पर ममता बनर्जी ने लगा रखी है रोक
10 अक्टूबर, 2016 को कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश से ये बात साबित होती है ममता बनर्जी ने हिंदुओं को अपने ही देश में बेगाने करने के लिए ठान रखी है।  बीरभूम जिले का कांगलापहाड़ी गांव ममता बनर्जी के दमन का भुक्तभोगी है। गांव में 300 घर हिंदुओं के हैं और 25 परिवार मुसलमानों के हैं, लेकिन इस गांव में चार साल से दुर्गा पूजा पर पाबंदी है। मुसलमान परिवारों ने जिला प्रशासन से लिखित में शिकायत की कि गांव में दुर्गा पूजा होने से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचती है, क्योंकि दुर्गा पूजा में बुतपरस्ती होती है। शिकायत मिलते ही जिला प्रशासन ने दुर्गा पूजा पर बैन लगा दिया, जो अब तक कायम है।

ममता बनर्जी ने सरस्वती पूजा पर भी लगाया प्रतिबंध
एक तरफ बंगाल के पुस्तकालयों में नबी दिवस और ईद मनाना अनिवार्य किया गया तो एक सरकारी स्कूल में कई दशकों से चली आ रही सरस्वती पूजा ही बैन कर दी गई। ये मामला हावड़ा के एक सरकारी स्कूल का है, जहां पिछले 65 साल से सरस्वती पूजा मनायी जा रही थी, लेकिन मुसलमानों को खुश करने के लिए ममता सरकार ने इसी साल फरवरी में रोक लगा दी। जब स्कूल के छात्रों ने सरस्वती पूजा मनाने को लेकर प्रदर्शन किया, तो मासूम बच्चों पर डंडे बरसाए गए। इसमें कई बच्चे घायल हो गए।

 

ममता राज के 8000 गांवों में एक भी हिंदू नहीं
दरअसल ममता राज में हिंदुओं पर अत्याचार और उनके धार्मिक क्रियाकलापों पर रोक के पीछे तुष्टिकरण की नीति है। लेकिन इस नीति के कारण राज्य में अलार्मिंग परिस्थिति उत्पन्न हो गई है। प. बंगाल के 38,000 गांवों में 8000 गांव अब इस स्थिति में हैं कि वहां एक भी हिन्दू नहीं रहता, या यूं कहना चाहिए कि उन्हें वहां से भगा दिया गया है। बंगाल के तीन जिले जहां पर मुस्लिमों की जनसंख्या बहुमत में हैं, वे जिले हैं मुर्शिदाबाद जहां 47 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिन्दू, मालदा 20 लाख मुस्लिम और 19 लाख हिन्दू, और उत्तरी दिनाजपुर 15 लाख मुस्लिम और 14 लाख हिन्दू। दरअसल बंगलादेश से आए घुसपैठिए प. बंगाल के सीमावर्ती जिलों के मुसलमानों से हाथ मिलाकर गांवों से हिन्दुओं को भगा रहे हैं और हिन्दू डर के मारे अपना घर-बार छोड़कर शहरों में आकर बस रहे हैं।

ममता राज में घटती जा रही हिंदुओं की संख्या
पश्चिम बंगाल में 1951 की जनसंख्या के हिसाब से 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी कमी आयी है। 2011 की जनगणना ने खतरनाक जनसंख्यिकीय तथ्यों को उजागर किया है। जब अखिल स्तर पर भारत की हिन्दू आबादी 0.7 प्रतिशत कम हुई है तो वहीं सिर्फ बंगाल में ही हिन्दुओं की आबादी में 1.94 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि बहुत ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की आबादी में 0.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि सिर्फ बंगाल में मुसलमानों की आबादी 1.77 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर से भी कहीं दुगनी दर से बढ़ी है।

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