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मोदी नीति का असर: कश्मीर में पत्थरबाजी करने वाली लड़की बनी फुटबॉल टीम की कप्तान

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर में लोगों की जिंदगी संवरने लगी है। प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि वहां युवाओं के हाथों में पत्थर नहीं, किताबें हों, हुनर हो, रोजगार हो। मोदी नीति का असर यह रहा है कि अब वहां के युवा आतंकियों-अलगाववादियों के बरगलाने में आकर आतंकवादी बनने की बजाय इंजीनियर बनना चाहते हैं, डॉक्टर बनना चाहते हैं। वे इस बात को समझ रहे हैं कि कश्मीर में कुछ बदलना है तो पहले उन्हें खुद को बदलना होगा और इस कार्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार हर कदम पर उनके साथ है।

मोदी नीति का ही असर है कि श्रीनगर की गलियों में पुलिस पर पत्थर फेंकने वाली लड़कियों के गुट की अगुवाई करने वाली अफशां आशिक अब जम्मू कश्मीर महिला फुटबॉल टीम की कप्तान बन गयी हैं। यह एक स्वप्निल बदलाव है और यह एक तरह से कश्मीरियों के दिलों को जीतने की सरकारी दास्तां भी बयां करता है।

इस 21 वर्षीय खिलाड़ी ने मंगलवार को 22 सदस्यीय फुटबाल टीम के साथ केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की। 22 लड़कियों में 11 जम्‍मू-कश्‍मीर की हैं, जिनमें से 4 जम्‍मू क्षेत्र और 2 लद्दाख से हैं। राजनाथ सिंह ने बताया कि राज्‍य में खेल सुविधाओं के उन्‍नयन के लिए अतिरिक्‍त 100 करोड़ रूपये का विशेष प्रावधान किया गया है। केंद्रीय गृह मंत्री ने तत्काल ही राज्य की मुख्यमंत्री सुश्री महबूबा मुफ्ती फोन पर से बात कर युवा खिलाड़ियों की चिंताओं के निवारण के लिए तुरंत कदम उठाने को कहा।

राजनाथ सिंह ने एक ट्वीट संदेश में कहा, ‘जम्‍मू-कश्‍मीर की पहली महिला फुटबॉल टीम की युवा और ऊर्जावान लड़कियों से मुलाकात हुई। वे फुटबॉल को लेकर अत्‍यंत उत्‍साहित थीं। ये लड़कियां नए युग की ‘लैंगिक सीमा को तोड़ने’ की भूमिका अदा कर, दूसरों के लिए उदाहरण बन रही हैं। मैं उन्‍हें सफलता और भविष्‍य के लिए शुभकामनाएं देता हूं।’

मोदी लहर का असर, कश्मीरी युवाओं पर चढ़ा खेल का जादू
कश्मीरी लोग चाहते हैं कि देश के बाकी भागों की तरह उनके राज्य में भी जन-जीवन सामान्य हो जाए। इस विषय में मोदी सरकार द्वारा खेलों को बढ़ावा देने वाले प्रयासों का बड़ा योगदान है। हाल ही में कश्मीर से 66 किमी. दूर बांदीपोरा डिस्ट्रिक्ट के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में, मोहम्मदन स्पोर्ट्स सोपोर और रियल कश्मीर फुटबॉल क्लब के बीच रात में हुए एक फुटबाल मैच को देखने के लिए भारी संख्या में लोग जमा हुए। 90 मिनट तक चले इस मैच में दर्शकों से अटे पड़े स्टेडियम में शोर तो था, मगर वह दहशत का नहीं, बल्कि खेल-भावना से भरे उल्लास का था। ऐसा हो पाने का सपना देखने वाली मोदी सरकार ने अपने पहले ही बजट में जम्मू-कश्मीर में खेल के बुनियादी ढांचों के विकास के लिए 200 करोड़ रुपये दिये थे। राज्य के युवाओं को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना इन प्रयासों का मुख्य लक्ष्य है।

इस योजना के तहत 70 करोड़ रुपये की लागत से 500 खिलाड़ियों के लिए खेल छात्रावास का निर्माण होना है। साथ ही जम्मू और कश्मीर के इनडोर स्टेडियम का विकास, 2 करोड़ रुपये की लागत से श्रीनगर के मानसबल में जन खेल केंद्र का निर्माण तथा इसके अतिरिक्त राज्य में आठ स्थानों पर चार करोड़ रुपये की लागत से इनडोर स्पोर्टस कॉम्पलेक्स का निर्माण शामिल है। यही नहीं राज्य में गांव के स्तर पर भी खेल प्रतियोगिताओं को आयोजित करने के लिए केंद्र सरकार ने पांच करोड़ रुपये अलग से दिये हैं।

घाटी में खिलता-खेलता जीवन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले ही बजट में जम्मू-कश्मीर राज्य में खेलों के विकास के लिए 200 करोड़ रुपयों की राशि आवंटित करके इस राज्य के जनजीवन को पटरी पर लाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर दी थी।  राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने काफी समय पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि इस राज्य की समस्याओं का समाधान यदि कोई कर सकता है तो वह केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ही हो सकती है।

देश-हित सर्वोपरि
एक ओर राज्य में खेलों को प्रोत्साहन देकर, आतंकवादी संगठनों का साथ छोड़कर वापस लौटे युवाओं को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में हरसंभव मदद देकर मोदी सरकार ने उदारता का परिचय दिया, वहीं दूसरी ओर अलगाववादियों का बहिष्कार करके, देशविरोधियों के विरुद्ध कार्रवाई करके, सेना को राज्य में स्थिति के अनुसार निर्णय लेने में छूट देकर, आतंकवादियों को मिल रहे स्थानीय जनसमर्थन पर रोक लगाकर, सेना पर पत्थरबाजी जैसी घटनाओं के प्रति कड़े फैसलों लेकर, एक-एक करके कुख्यात आतंकियों का सफाया करके और नोटबंदी जैसे कड़े निर्णय से आतंकवादियों का आर्थिक आधार समाप्त करके और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे सख्त कदमों द्वारा यह संदेश भी प्रसारित कर दिया कि इस घाटी में देशविरोधी घटनाओं को न तो सीमापार से सहन किया जाएगा, न सीमा के भीतर से। कश्मीर में शांति, सद्भाव और प्रगति के लिए केंद्र की सरकार प्रतिबद्ध है।

प्रधानमंत्री स्पेशल स्कॉलरशिप योजना
इस वर्ष जम्मू-कश्मीर में प्रधानमंत्री स्पेशल स्कॉलरशिप योजना के अंतर्गत 3,420 छात्र लाभान्वित हुए हैं। ये संख्या पिछले साल के मुकाबले करीब 1200 ज्यादा है। इस वर्ष इस योजना के तहत आवेदन करने वाले कुल 25,798 छात्रों में से 10,944 जम्मू से जबकि 12,047 श्रीनगर से थे।  यह जम्मू-कश्मीर के छात्रों को उच्च शिक्षा से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार द्वारा विशेष रूप से किया गया प्रयास है। इसके अंतर्गत उच्च शिक्षा में फीस में जनरल डिग्री वाले छात्रों के लिए 30 हजार, इंजीनियरिंग में सवा लाख और मेडिकल में तीन लाख रुपये तक की सहायता राशि प्रदान करने की व्यवस्था है। वर्ष 2017 में इस योजना के अंतर्गत प्रवेश लेने वाले छात्रों में 2,377 इंजीनियरिंग के, 228 फार्मेसी के, 508 नर्सिंग के और 13 छात्र मेडिकल के शामिल हैं।

पत्थर थामे हाथों को मिली किताबें
यहां यह तथ्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016 में जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की 40-50 घटनाएं नियमित रूप से होना सामान्य बात हो गई थी। किसी-किसी दिन तो एक ही दिन में ऐसी 4-5 घटनाएं घट जाया करती थीं। प्रधानमंत्री मोदी की सरकार को यह समझते जरा भी देर नहीं लगी कि ‘भय बिनु होत न प्रीति।‘ इसलिए इस मामले में तुरंत कड़ा रुख अपनाए जाने के बाद से वर्ष 2017 में इन घटनाओं में 90 प्रतिशत की कमी आई है, यानी एक तरह से कहा जा सकता है कि कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं लगभग समाप्त हो चुकी हैं।

भटके कदमों की होती घर-वापसी
कश्मीर में आतंकवाद के विषय में मोदी सरकार द्वारा लिए जा रहे कड़े फैसलों में भी वहीं के लोगों का हित छिपा है। जहां एक तरफ खूंखार आतंकियों का एक के बाद एक सफाया किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ भटककर आतंक के रास्ते पर चल पड़े युवाओं की घर-वापसी की भी पूरी व्यवस्था की जा रही है। वापस लौटे इन युवाओं के सामाजिक रूप से पुनर्वास व रोजगार की ओर भी सरकार ध्यान दे रही है। यहां तक कि आतंकवादी रहते हुए अगर उन्होंने किसी बड़ी घटना को भी अंजाम दिया है तो भी वापसी के बाद उनके प्रति कार्रवाई करते हुए संवेदनशीलता बरती जाएगी। इसका एक ताजा उदाहरण माजिद अरशिद खान है, जो हाल ही में लश्कर-ए-तैयबा को छोड़कर घर वापस आया है। कल तक जो एक विद्यार्थी था, फुटबॉल का होनहार गोलकीपर था, उसने आतंकवाद का रास्ता चुन तो लिया, मगर जल्दी ही उसे समझ में आ गया कि इन आतंकियों का असल मकसद क्या है।  

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