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ईश निंदा या सिर कलम करने जैसे इरादों की नर्सरी यानी मदरसों की शिक्षा निशाने पर, इलाहाबाद हाईकोर्ट में ऐसी शिक्षा के खिलाफ याचिका, केरल के राज्यपाल ने भी जताई आपत्ति

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राजस्थान के उदयपुर में हुए ताबिलानी मर्डर के बाद मदरसों की शिक्षा पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। दरअसल मदरसों में जब मासूम बचपन से ही इस्लाम के नाम पर धार्मिक भेदभाव की, तालिबानी कट्टरता की शिक्षा दी जाती है, तो वह कई मासूमों में घर कर जाती है। ऐसी शिक्षा और समय के साथ कट्टरता में इजाफा होता है और बड़े होने के बाद उदयपुर और अमरावती जैसे बर्बर हत्याएं सामने आती हैं। इस बीच केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि मदरसों में पढ़ाए जा रहे नफरत के पाठ का नतीजा उदयपुर की घटना के रूप में देश के सामने है। दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट में महिला वकील सहर नकवी की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई है। इस याचिका में मदरसों पर पाबंदी लगाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया कि इन मदरसों में कट्टरता का पाठ पढ़ाकर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।

मदरसों में 14 साल से पहले बच्चों को नहीं भेजा जाना चाहिए- आरिफ मोहम्मद
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने साफ तौर पर कहा कि मदरसों में 14 साल से पहले बच्चों को नहीं भेजा जाना चाहिए। आरिफ खान ने यह भी कहा कि देवबंद में कट्टरता का पाठ पढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 14 साल की उम्र से पहले धर्म की शिक्षा दी ही नहीं जानी चाहिए। केरल के राज्यपाल ने कहा कि न सिर्फ राइट टु एजुकेशन बल्कि यूएन में भी इस बात का जिक्र है। इसके बावजूद मदरसों में ऐसा किया जा रहा है। इसको लेकर उन्होंने देवबंद को लेटर भी लिखा था लेकिन 14 साल भी इसका जवाब नहीं मिला है।

 

देवबंद की किताबों में तो पढ़ाया जा रहा है आतंकवाद का पाठ
केरल के राज्यपाल खान के मुताबिक उन्होंने देवबंद को लेटर लिखा था। इसमें उनसे पूछा था कि आप आतंकवाद के खिलाफ सेमिनार कर रहे हैं। लेकिन आपकी किताबों में खुद इसी का पाठ पढ़ा रहे हैं। यह सब पढ़कर बच्चा उग्रवाद और आतंकवाद के रास्ते पर ही तो जाएगा। आरिफ मोहम्मद खान एक समाचार चैनल पर बातचीत में कहा कि मदरसों में नफरती पढ़ाई बंद होनी चाहिए। यही नहीं इस दौरान आरिफ खान ने पाकिस्तान के विद्वान जावेद अहमद गामदी का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि गामदी ने लिखा है कि आज जो आतंकवाद दिखाई दे रहा है, वह मदरसों में पढ़ाई जा रही धार्मिक सोच का नतीजा है।

 

उदयपुर-अमरावती जैसी घटनाएं रोकने को कट्टरता की शिक्षा के खिलाफ हो मोर्चाबंदी
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ने मदरसों की शिक्षा पर सवाल उठाते हुए कहा था कि यहां ईश निंदा करने वाले का गला काटने वाला कानून बच्चों को पढ़ाया जाता है। हैदराबाद में हाल में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इस पर मंथन हुआ कि कि अब सर कलम करने के इरादों की नर्सरी के खिलाफ मोर्चाबंदी होनी चाहिए। ताकि उदयपुर-अमरावती जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके। हालांकि कार्यकारिणी में साफ-साफ नहीं कहा गया है, लेकिन इस तरह की नर्सरी का सीधा सा मतलब मदरसे ही है। जिनकी तरफ आरिफ मोहम्मद का इशारा था।

मदरसों में नफरती पढ़ाई होगी, तब तक दुनिया में शांति स्थापित होना मुश्किल
इस दौरान आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि जावेद गामदी बताते हैं कि मदरसों में पढ़ाया जाता है कि अगर किसी अन्य तरीके से पूजा-प्रार्थना होती है तो यह विधर्म होगा। सिर्फ इतना नहीं, यह भी कहा जाता है कि ऐसा करने वाले को सजा देने का अधिकार भी उन्हें है। मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को यह तक सिखाया जाता है कि मुस्लिम दुनिया में अन्य धर्म के लोगों पर शासन करने के लिए पैदा हुए हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, आरिफ खान के मुताबिक गामदी ने यह भी कहा है कि जब तक मदरसों में इस तरह की पढ़ाई होती रहेगी, दुनिया में शांति नहीं स्थापित हो सकती।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल, मदरसों में पढ़ाए जा रहे कट्टरता के पाठ
इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से मदरसों में दी जाने वाली इस्लामिक शिक्षा पर सवाल उठाते हुए एक जनहित याचिका दाखिल की गई है। इस याचिका में मदरसों पर पाबंदी लगाने की मांग की गई है। आरोप लगाया गया है कि मदरसों में कट्टरता का पाठ पढ़ाकर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। धार्मिक शिक्षा के नाम पर बच्चों को गुमराह करने का भी आरोप लगाया गया है। इसमें कहा गया कि बच्चों के अंदर नफरत और कट्टरता फैलाई जा रही है। लिहाजा इन मदरसों पर पाबंदी लगनी चाहिए।

धर्म विशेष की शिक्षा पर लगाई जाए रोक, रोजगारपरक शिक्षा पर होना चाहिए फोकस
याचिका के जरिए मांग की गई है कि मदरसों में धर्म विशेष की शिक्षा पर भी रोक लगाई जाए। इन बच्चों को यूपी के बेसिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग में शामिल कर देना चाहिए। इसी के साथ मदरसे में उच्च संस्थानों को यूजीसी से संबंधित कर देना चाहिए। ऐसा इसलिए जिससे यहां दाखिला पाने वाले बच्चे बेहतर और रोजगारपरक शिक्षा हासिल कर सके। यही नहीं उन्हें ऐसी शिक्षा मिल सके जिससे उनके व्यक्तित्व का बेहतर निर्माण हो सके। उन्हें रोजगार पाने में सहूलियत रहे और उनके भीतर नफरत और कट्टरपंथी सोच न विकसित होने पाए। इसकी जगह उनमें सकारात्मक सोच पैदा हो और वह राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे सकें।

मदरसों में धार्मिक शिक्षा के नाम पर बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ का आरोप
इस जनहित याचिका को इलाहाबाद की वकील सहर नकवी की ओर से दाखिल किया गया है। याचिका में कहा गया कि यूपी के ज्यादातर मदरसों में धार्मिक शिक्षा के नाम पर जो भी परोसा जा रहा है वह उनके भविष्य को खराब करने वाला है। लिहाजा हाईकोर्ट यूपी में संचालित हो रहे मदरसो पर पाबंदी लगाकर उन्हें पूरी तरह से बंद कर दे। इन मदरसों का विलय बेसिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग में कर दिया जाए। यहां पढ़ने वाले बच्चों को सामान्य शिक्षा ही दी जानी चाहिए। यूपी में योगी सरकार मदरसों में ऐसी पढ़ाई पर नजर रखे हुए है। योगी सरकार ने पहले कार्यकाल में मदरसों की जांच कराई थी, जिसमें ‘फर्जी‘ पाये गये दो हजार से ज्यादा मदरसों को बंद कराया। साथ ही सभी मदरसों में राष्ट्रगान को अनिवार्य किया गया।        *मदरसों की फोटो सांकेतिक हैं।

 

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