राष्ट्रीय क्षितिज पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उदय ने देश की राजनीतिक दशा और दिशा को ही बदलकर रख दिया है। देश में ऐसे बदलाव देखने को मिल रहे हैं, जिनके बारे में 2014 से पहले किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। कभी कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहरना मुश्किल था,आज वहां का घंटाघर तिरंगे के रंग से रोशन हो रहा है। अब प्रधानमंंत्री मोदी के राजनीतिक करिश्मे ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को भी बदलने पर मजबूर कर दिया है। 15 अगस्त, 2021 को देश एक और ऐतिहासिक बदलाव का गवाह बनेगा, जब आजादी के बाद पहली बार सीपीआई (एम) मुख्यालय में तिरंगा फहराया जाएगा।
दरअसल सीपीआई(एम) ने इस साल पहली बार स्वतंत्रता दिवस को भव्य तरीके से मनाने का फैसला किया है और 15 अगस्त को पार्टी के हर कार्यालय में तिरंगा फहराया जाएगा। सीपीआई(एम) के एक वरिष्ठ नेता ने रविवार को यह जानकारी दी। यह बदलाव लगभग सात दशक से अधिक समय बाद आया है जब अविभाजित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने नारा दिया था कि ‘ये आजादी झूठी है।’
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में साल 1964 में विभाजन के बाद सीपीआई(एम) अस्तित्व में आई थी। सीपीआई(एम) केंद्रीय समिति के सदस्य सुजान चक्रवर्ती ने कहा कि यह निर्णय लिया गया है कि 75वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कोलकाता के अलीमुद्दीन स्ट्रीट स्थित मुख्यालय के अलावा पार्टी के सभी कार्यालयों में तिरंगा फहराया जाएगा। इस अवसर पर पार्टी पूरे साल भर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करेगी।
पश्चिम बंगाल में प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। हाल के विधानसभा चुनाव में जहां बीजेपी ने मुख्य वपक्षी दल का दर्जा हासिल कर लिया, वहीं कांग्रेस और वाम दलों के गठबंधन को करारी हार मिली। हैरानी की बात यह है कि इस चुनाव में 2011 तक सत्ता में रहे वामपंथी दलों व उनके गठबंधन साथी कांग्रेस को एक भी सीट नसीब नहीं हुई। इस हार ने सीपीआई(एम) को सोचने और बदलाव करने पर मजबूर कर दिया है। अब उसे अपने अस्तित्व पर खतरना मंडराने लगा है। इसलिए पार्टी आलाकमान हाल ही में पश्चिम बंगाल में मिली बुरी हार के पीछे के कारणों की तलाश कर रहा है और नेताओं से सुझाव मांग रहा है।
वामपंथी दल हमेशा चीन के इशारों पर काम करते रहे हैं। 2007-08 में भारत-अमेरिका परमाणु संधि को रुकवाने के लिए चीन ने बड़ी चाल चली थी। उस वक़्त कई वामपंथी नेता इलाज के बहाने चीन की यात्रा करते थे। पूर्व केंद्रीय विदेश सचिव विजय गोखले ने अपनी पुस्तक ‘The Long Game: How the Chinese Negotiate with India’ में बताया है कि चीन किस तरह से भारत में अपना ‘घरेलू विपक्ष’ बनाने के लिए वामपंथी दलों में अपने करीबी तत्वों का इस्तेमाल करता रहा है।
मोदी राज में 2017 में जब डोकलाम विवाद हुआ तब भी इन वामपंथी दलों ने चीन की निंदा नहीं की। इन्होंने भारत से कहा कि वो भूटान को चीन के साथ सीमा समझौता करने दे और खुद अलग हट जाए। लद्दाख में जारी टकारव के बीच गाल्वान घाटी में जब भारतीय जवान बलिदान हुए, तब भी सीपीआई(एम) ने अपने बयान में चीन की आलोचना तक नहीं की। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के मबजूत नेतृत्व, सेना की तैयारी और बढ़े मनोबल ने दोनों बार चीन को करारा जवाब दिया। पहली बार भारतीयों को अहसास हुआ है कि भारत पूरी ताकत के साथ हर मोर्चे पर चीन का मुकाबला कर सकता है। इससे जहां देश में राष्ट्रवाद की एक नई लहर पैदा हुई है, वहीं देश विरोधी ताकतों का वजूद खतरे में नजर आ रहा है। इसलिए सीपीआई (एम) भी देशभक्ति के मार्ग पर चल पड़ी है।