बीते एक हफ्ते में देश की राजनीति में बड़ा परिवर्तन हुआ और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आखिरकार पीएम मोदी के निर्णयों, नीतियों, सिद्धांतों और कार्यपद्धति के कायल हो गए हैं। राज्य में नई सरकार बनने के बाद अपने पहले प्रेस कांफ्रेंस में सीएम नीतीश कुमार ने पीएम मोदी की जमकर प्रशंसा की। जब उनसे पूछा गया क्या 2019 में नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे और मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए नीतीश क्या करेंगे तो नीतीश ने कहा, मोदी के अलावा कोई दूसरा प्रधानमंत्री नहीं बन सकता। मोदी जैसा कोई नहीं है।
#WATCH: #Bihar CM and JD(U) president #NitishKumar says “No one is capable of challenging Modi ji in 2019 LS elections”. pic.twitter.com/iDn0LPkMUX
— ANI (@ANI_news) July 31, 2017
11 मार्च को यूपी-उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद यही बात जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने भी कही थी। उन्होंने साफ कहा था कि विपक्ष 2019 का लोक सभा चुनाव भूल जाए और 2014 की तैयारी करे।
At this rate we might as well forget 2019 & start planning/hoping for 2024.
— Omar Abdullah (@abdullah_omar) March 11, 2017
पीएम मोदी के देशहित के फैसले के साथ रहे नीतीश
दरअसल उमर अब्दुल्ला ने वक्त की नब्ज को पहले ही पढ़ लिया था और नीतीश कुछ देर से पढ़ पाए। नीतीश कुमार द्वारा पीएम मोदी की तारीफ यूं ही नहीं निकली है। दरअसल बीते तीन वर्षों में प्रधानमंत्री ने हर पल यह साबित किया है कि उनके लिए देशहित से बढ़कर कुछ नहीं है। नीतीश कुमार कई मौकों पर विपक्ष की लाइन के विरुद्ध जाकर पीएम मोदी का सपोर्ट कर चुके हैं। आठ नवंबर 2016 की रात आठ बजे मोदी ने नोटबंदी का एलान किया तो चौतरफा विरोध के बीच नीतीश कुमार ने इस फैसले की तारीफ की। इसके बाद मधुबनी दौरे पर गए नीतीश ने नोटबंदी से एक कदम आगे बढ़कर बेनामी संपत्ति पर शिकंजा कसने को कहा। इतना ही नहीं सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी, जीएसटी जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर नीतीश हमेशा पीएम मोदी के साथ रहे।
रचनात्मक विरोध की भूमिका भूल बैठा विपक्ष
लेकिन कई विरोधी दल अब भी मोदी विरोध की राजनीति पर चलते हुए रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभा पाने में विफल साबित हो रहे हैं। दरअसल मोदी विरोध का आलम यह है कि केंद्र सरकार कितनी भी अच्छी नीतियां देशहित में क्यों न बना लें, विपक्ष उसके विरोध में हो-हल्ला करता ही है। गलत नीतियों, विचारों का विरोध तो जरूरी है, लेकिन हितकारी नीतियों पर जबरदस्ती विरोध कर देशहित को नुकसान पहुंचाना समझ से परे है। हमारे सामने कई ऐसे उदाहरण हैं जिसपर विपक्ष को सरकार के साथ खड़ा रहना चाहिए था, लेकिन मोदी विरोध की नीति पर चलते हुए वे देशहित से भी खिलवाड़ करते रहे। लेकिन इस विरोध की राजनीति में विपक्ष यह भूल बैठा है कि अब वह 2019 के चुनाव में जीत के बारे में सोचने के लायक भी नहीं रह गया है।
नोटबंदी पर देश में पैदा किया गतिरोध
8 नवंबर की रात भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए काफी अहम था। उस रात नोटबंदी का ऐतिहासिक और साहसिक फैसला लेकर मोदी सरकार ने कालेधन और आतंकवाद पर करारा प्रहार किया था। नोटबंदी से 500 और हजार के पुराने नोटों को चलन से बाहर कर पीएम मोदी ने देश की अर्थव्यवस्था पर झाड़ू चलाई थी। हालांकि, शुरुआत में इस फैसले से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा, मगर बाद में इस फैसले का उन्होंने भी स्वागत किया। नीतीश कुमार ने उस समय भी पीएम मोदी के निर्णय की सराहना की थी। लेकिन विपक्ष मोदी विरोध की राजनीति में उलझा रहा। राहुल लाइन में लगे तो ममता बनर्जी ने आंदोलन छेड़ दिया। लेकिन मोदी विरोध के नाम पर उनकी राजनीति पांच राज्यों के चुनाव नतीजों ने हवा कर दी।
बेनामी संपत्ति एक्ट का विरोध
एक नवंबर को ही मोदी सरकार ने बेनामी संपत्ति संशोधन कानून, 2016 को लागू कर दिया था। लेकिन 22 मार्च को वित्त मंत्री अरूण जेटली ने जो वित्त विधेयक पेश किया उसमें इस कानून को और तल्ख कर दिया। इनकम टैक्स विभाग को छापा मारने और बेनामी संपत्ति जब्त करने की ताकत मिल गई। विपक्ष ने इसकी आलोचना की पर नीतीश चुप रहे। उनकी मौन सहमति यहां भी मोदी के साथ थी। आज लालू यादव यादव का परिवार हो या फिर देश के कई ऐसे रसूखदार लोग जिन्होंने बेनामी संपत्ति जमा की है वो जांच एजेंसियों की राडार पर हैं।
सर्जिकल स्ट्राइक का विरोध
राजनीतिक विरोध अपनी जगह है लेकिन संकट के समय देश एक स्वर में बोलता है। विपक्ष की नकारात्मक राजनीति ने देश को शर्मसार करने का काम किया। खास तौर पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के सवालों ने सेना को भी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। दरअसल सर्जिकल स्ट्राइक पर पाकिस्तान तो सवाल उठा ही रहा था, साथ में देश के विपक्षी नेताओं ने भी सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो सरकार से इसके सबूत भी मांगने शुरू कर दिये। कांग्रेस के प्रमुख नेता पी. चिदंबरम और फिर संजय निरुपम ने तो सेना की साख पर ही सवाल खड़े कर दिये थे।
जीएसटी का विरोध
देश की आर्थिक आजादी की नयी कहानी लिखने वाला वस्तु एवं सेवा कर यानि जीएसटी एक जुलाई से लागू हो चुका है। लेकिन इसके लागू होने की प्रक्रिया में विपक्ष के कई दल रोड़े अटकाते रहे हैं। ‘वन नेशन, वन टैक्स’ की नीति देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए है, देश में पूंजी निवेश बढ़ाने के लिए है, जनता की सहूलियत के लिए है। लेकिन विपक्ष को तो केंद्र सरकार के हर निर्णय का विरोध करना होता है इसलिए विरोध करते रहे। अपनी राजनीति के सामने देशहित से भी खिलवाड़ करता रहा।
सेंट्रल हॉल में कार्यक्रम का विरोध
वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लागू करने के लिए कांग्रेस 30 जून की आधी रात को संसद की विशेष बैठक के बहिष्कार की घोषणा कर दी। कांग्रेस ने दलील यह दी कि 1947 में आजादी, 1972 में आजादी की सिल्वर जुबली और 1997 में आजादी की गोल्डन जुबली के कार्यक्रम आधी रात को सेंट्रल हॉल में आयोजित हुए थे। यानि आधी रात को संसद में जो भी कार्यक्रम हुए हैं वह आजादी से जुड़े हुए हैं और जीएसटी को इस तरह लागू करना वह संसद की गरिमा के खिलाफ है। लेकिन विरोध करते हुए कांग्रेस यह शायद भूल गई कि 29 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेश वाले देश में वन नेशन, वन टैक्स लागू करना ही अपने आप में मील का पत्थर है। यह भी आर्थिक आजादी की ही रात थी। लेकिन विपक्ष ने तो जैसे अपना सिद्धांत ही बना लिया है किसी भी स्तर पर जाकर विरोध करना है।
आतंकवाद पर सख्ती का विरोध
8 मार्च को लखनऊ के बाहरी इलाके ठाकुरगंज में एक घर में लगभग 13 घंटे तक चली मुठभेड़ के बाद पुलिस ने आतंकवादी सैफुल्ला को मार गिराया। सैफल्ला के पिता ने भी उसे आतंकी माना और लाश लेने से इनकार कर दिया। लेकिन कांग्रेस कहां मानने वाली थी। उसने संसद में सवाल उठा दिया। बजट सत्र के दूसरे सेशन में संसद शुरू होने पर कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने मामला उठाते हुए कहा कि जब संदिग्ध सैफुल्लाह के आतंकी संगठन आईएस से जुड़े होने के सबूत नहीं थे तो उसे मारा क्यों गया? जाहिर है खुद जिसके पिता ने आतंकी माना, कांग्रेस अपनी कुत्सित राजनीति के कारण उसे आतंकी मानने को तैयार नहीं थी।
आर्मी चीफ पर लेफ्ट-कांग्रेस का हमला
कांग्रेस और लेफ्ट के बड़े नेता हों या छोटे नेता सब के सब जाने किस बौखलाहट में हैं। कभी देशद्रोही ताकतों के साथ हो लेते हैं तो कभी देश का नक्शे से खिलवाड़ करते हैं तो कभी अपनी ही आर्मी, जिसकी पूरी दुनिया में तारीफ होती है उसके प्रमुख को ही ‘सड़क का गुंडा’ कह देती है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता संदीप दीक्षित ने तो आर्मी चीफ को ‘सड़क का गुंडा’ तक कह डाला। प्रकाश करात ने तो मानवाधिकार का मुद्दा तक उठा दिया। लेकिन देश ने उनकी बात को अनसुना कर दिया और अपने आर्मी चीफ का साथ रहा।
Senior Congress leader calls Army chief “sadak ka gunda”. These are times I wonder if there’s anything Indian or National about @INCIndia pic.twitter.com/y6Sx5UcecS
— কাঞ্চন গুপ্ত (@KanchanGupta) June 11, 2017
बीते दिनों देश के पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कश्मीर में सेना की कार्रवाई पर ही सवाल खड़े कर दिए थे। अब चिदंबरम साहब से ज्यादा कश्मीर के हालत के बारे में किसे पता हो सकता है? लेकिन कांग्रेस अपनी कुत्सित राजनीति के कारण सेना पर ही सवाल खड़े करने लगी है। आखिर कांग्रेस ऐसी बातें क्यों करती है जो देश की संप्रभुता और शांति पर ही खतरा उत्पन्न कर दे।
मानव ढाल पर कांग्रेस के सवाल
आर्मी द्वारा एक कश्मीरी पत्थरबाज को मानव ढाल बनाए जाने को लेकर कांग्रेस ने तीखे हमल किये थे। मानवाधिकार से लेकर कश्मीरियत का मुद्दे के साथ राजनीति करने की कुत्सित कोशिश की। मेजर गोगोई जिनके आदेश पर यह किया गया था उन्हें कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। लेकिन देश की जनता और केंद्र की सरकार मेजर गोगोई के इस फैसले के साथ थी। ज्यादातर राजनीतिक दलों ने भी सेना के उठाए गए इस कदम की तारीफ की, लेकिन कांग्रेस और वामपंथी दलों ने इसका पुरजोर विरोध किया था।
आधार कार्ड की अनिवार्यता का विरोध
नोटबंदी के बाद भ्रष्टाचार पर जब जबरदस्त प्रहार हुआ तो सबसे ज्यादा दर्द पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हुआ है। वे कहती हैं कि भले ही वो मरें या जिएं पीएम मोदी को राजनीति से विदा करके रहेंगी। सोते, जागते, उठते, बैठते हर समय उनका अब एक ही मकसद दिख रहा है-मोदी विरोध। मोदी विरोध के नाम पर अब बैंक में खाता खोलने के लिए आधार नंबर को अनिवार्य किए जाने का विरोध कर रही है। हवाला निजता का दिया… लेकिन उद्देश्य वोटबैंक के लिए… मोदी विरोध… देश विरोध!
#Aadhaar has serious issues about privacy. Govt must not make it mandatory before 100% coverage is achieved 2/2
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) June 16, 2017
मोदी विरोध के नाम पर देश विरोध
पिछले तीन साल में पीएम मोदी का जितना विरोध किया गया है शायद ही भारतीय इतिहास में ऐसा कभी हुआ हो। विपक्षी दल मोदी विरोध की राजनीति में यह भी नहीं देखते कि मामला देशहित से जुड़ा है। सबसे अधिक शोर गुल उस राजनैतिक दल ने मचाया जिसे विगत चुनावों में जनता ने सिरे से ख़ारिज कर दिया था। अन्य विरोधियों के साथ मिलकर इतना हो हल्ला जैसे चुनाव जीतने और सत्ता में आने का भाजपा को कोई नैतिक और वैध अधिकार ही न हो। इतना तीव्र विरोध तो कांग्रेस ने विदेशी शासकों का भी कभी नहीं किया होगा।
स्वच्छता अभियान का विरोध, योग दिवस का विरोध, शौचालय बनवाने और लोगों को उसकी प्रेरणा देने का विरोध, नोटबंदी का विरोध, गौहत्या पर लगाई गई रोक का विरोध, सर्जिकल स्ट्राइक, आतंकवादियों व अलगाववादियों तथा पत्थरबाजों के विरुद्ध की गई कार्रवाइयों का विरोध और न जाने क्या क्या, हर रोज हर बात का विरोध। प्रधानमंत्री मोदी देश में रहें तो भी विरोध और विदेश यात्रा पर हों तो उनका भी विरोध। केवल और केवल विरोध।
बहरहाल 2014 के बाद गंगा में काफी पानी बह चुका है और नरेंद्र मोदी का विरोध अब मायने नहीं रखता। देश के 18 राज्यों में अब भाजपा या भाजपा के सहयोग से चलने वाली सरकारें हैं। लेकिन विपक्षी दल शायद अब भी मोदी विरोध की राह को छोड़ने को तैयार नहीं है। लेकिन इतना तय है कि विपक्षी दलों के शोरगुल के बीच जनता देशहित के निर्णयों को भलि-भांति जानती है और समझती है।