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उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर कब्जा कर बसा ली ‘गफूर बस्ती’, बन गई 20 मस्जिदें, अब वहां शाहीन बाग जैसे प्रदर्शन की तैयारी

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उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे स्टेशन के पास बनी अनधिकृत कॉलोनियों पर बुलडोजर चलाने की तैयारी कर ली गई है। कई मकानों पर अब तक रेलवे का बुलडोजर चल चुका है। नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर अतिक्रमण हटाओ अभियान शुरू किया गया है। वहीं, इसके विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। यहां करीब 70 एकड़ जमीन पर 4300 से अधिक परिवार रहे हैं। लोगों ने रेलवे की जमीन पर कब्जा कर गफूर बस्ती के साथ ही अन्य कालोनियां बसा ली। यहां करीब 50 हजार लोग रहते हैं। इनमें से अधिकतर परिवार मुस्लिम समाज से आते हैं। इसको लेकर राजनीति शुरू हो गई है। दिसंबर 2022 में नैनीताल हाईकोर्ट ने उस अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया। रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे की जमीन पर अवैध रूप से बनाए गए कई छोटे ढांचों को गिराने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इनमें करीब 4365 अतिक्रमणकारी मौजूद हैं। कब्जाधारियों को परिसर खाली करने के लिए सात दिन का समय दिया गया है। अगर 7 दिनों के अंदर घर खाली नहीं किया गया तो उसे ढहा दिया जाएगा। खास बात यह है कि जिस जगह से अतिक्रमण हटाया जाना है, वहां करीब 20 मस्जिदें हैं। यह अतिक्रमण कोई पांच-दस साल में नहीं हुआ है। यह पिछले पचास साल से कांग्रेस की सरकारों के नाक के नीचे हो रहा था और मुस्लिम तुष्टिकरण में कांग्रेस की सरकारों ने इन पर कोई कार्रवाई नहीं की। अब इस मुद्दे पर अदालत के फैसले के खिलाफ हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं। इसे राजनीतिक रंग दिया जा रहा है और दिल्ली के शाहीनबाग की तरह महिलाओं और बच्चों को आगे कर आंदोलन चलाया जा रहा है। AIMIM के बाद अब समाजवादी पार्टी ने भी अल्पसंख्यक कार्ड खेलते हुए इस फैसले को वापस लेने की मांग की है। सपा के उत्तराखंड प्रदेश महासचिव शोएब अहमद सिद्दीकी ने कहा कि अतिक्रमण के नाम पर देश में केवल एक समुदाय विशेष को निशाना बनाया जा रहा है। इस बीच समुदाय विशेष की राजनीति करने वाले और राजनीतिक रोटियां सेंकने वालों ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हल्द्वानी के विधायक सुमित हृदयेश, सपा के प्रदेश प्रभारी अब्दुल मतीन सिद्दीकी सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में पांच जनवरी को सुनवाई करेगा। 

शाहीन बाग की तरह बच्चों और महिलाओं को कर दिया आगे

हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब अतिक्रमणकारियों ने दिल्ली के शाहीन बाग आंदोलन की तरह महिलाओं और बच्चों को आगे कर दिया है। जो अपनी पढ़ाई और सुरक्षित भविष्य का हवाला देकर अवैध कब्जे न हटाने की मांग कर रहे हैं। वहीं महिलाएं ठंड के मौसम का सहारा लेकर इस अतिक्रमणरोधी कार्रवाई को गलत बता रही हैं। लेफ्ट लिबरल एक्टिविस्टों का एक धड़ा भी इस कार्रवाई को समुदाय विशेष का उत्पीड़न बताकर लोगों को भड़काने में लगे हैं। अब इन अवैध कब्जों पर कार्रवाई होगी या नहीं, इस पर सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई पर टिक गई हैं।

हल्द्वानी की अवैध बस्ती से अतिक्रमण हटाने का हाईकोर्ट का आदेश

नैनीताल हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर 2022 को फैसला सुनाते हुए हल्द्वानी की गफूर बस्ती पर से अतिक्रमण हटाने के आदेश दे दिए। अतिक्रमणकारियों को एक हफ्ते का नोटिस देकर अतिक्रमण ध्वस्त करने के आदेश दिए गए। न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद शर्मा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया। इस मामले में पहले ही सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ता ने कोर्ट के बार-बार आदेश होने के बाद भी अतिक्रमण नहीं हटाने की बात कही। गौरतलब है कि पूर्व में कोर्ट ने सभी अतिक्रमणकारियों से अपनी-अपनी आपत्ति पेश करने को कहा था। जिसे सुनने के बाद फैसला सुरक्षित किया था और अब उसे सुना दिया गया है। इसी आदेश में कोर्ट ने प्रशासन से वनभूलपुरा क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लाइसेंसी हथियर भी जमा करवाने को कहा था। दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट भी रेलवे की जमीनों पर अतिक्रमण को ले कर चिंता जताते हुए इसे जल्द से जल्द खाली करवाने के आदेश दे चुका है।

किसी भी व्यक्ति के पास जमीन के वैध कागजात नहीं पाए गए

इससे पहले नौ नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने हल्द्वानी के समाजसेवी रविशंकर जोशी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दस सप्ताह के भीतर रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। साथ ही ये भी कहा था कि जितने भी अतिक्रमणकारी हैं, उनको रेलवे पीपी एक्ट के तहत नोटिस देकर जनसुनवाई की जानी चाहिए। जिसके बाद रेलवे की तरफ से हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण की बात कही गई थी। इनमें करीब 4365 अतिक्रमणकारी मौजूद हैं। हाई कोर्ट के आदेश पर इन लोगों को पीपी एक्ट में नोटिस दिया गया, जिनकी रेलवे ने पूरी सुनवाई कर ली है। किसी भी व्यक्ति के पास जमीन के वैध कागजात नहीं पाए गए हैं। सुनवाई के दौरान पूर्व में अतिक्रमणकारियों की तरफ से कहा गया कि उनका पक्ष रेलवे ने नहीं सुना था, इसलिए उनको भी सुनवाई का मौका मिलना चाहिए। वहीं, रेलवे का कहना था कि सभी अतिक्रमणकारियों को पीपी एक्ट के तहत नोटिस जारी किए थे।

रेलवे ने कहा- 4365 वादों की हो चुकी है सुनवाई

हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य संपदा अधिकारी पूर्वोत्तर रेलवे इज्जतनगर मंडल में करीब चार साल पहले सुनवाई शुरू हुई थी। रेलवे की रिपोर्ट के मुताबिक, अतिक्रमण की जद में आए 4365 वादों की सुनवाई हुई। जिसमें सभी वादों का निस्तारण हो चुका है। मगर कोई भी अतिक्रमणकारी कब्जे को लेकर ठोस सबूत नहीं दिखा पाया। किसी के पास भी जमीन संबंधित कागजात नहीं मिले।

रेलवे भूमि पर अतिक्रमण मामले में SC ने स्वीकार की याचिका, पांच जनवरी को होगी सुनवाई

रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण मामले में राहत पाने के लिए एक पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी स्वीकार कर ली है। इस मामले में सुनवाई पांच जनवरी को होगी। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ हल्द्वानी के विधायक सुमित हृदयेश, सपा के प्रदेश प्रभारी अब्दुल मतीन सिद्दीकी सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। विधायक सुमित हृदयेश ने बताया कि उनके वकील सलमान खुर्शीद हैं और उनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर ली है। विधायक के अनुसार इस मामले में सुनवाई पांच जनवरी को होगी। उधर, सपा के प्रदेश प्रभारी अब्दुल मतीन सिद्दीकी ने बताया कि उन्होंने भी एसएलपी दायर की है। उनके वकील प्रशांत भूषण और अन्य हैं। उन्हें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट पांच जनवरी को उनके पक्ष में कोई निर्णय लेगा। उधर, इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले गौलापार निवासी रविशंकर जोशी ने भी कैविएट दाखिल कर दी है।

4365 निर्माणों पर चलना है बुलडोजर

हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट ने फैसला दिया है। इस फैसले के तहत 70 एकड़ जमीन पर बने अवैध निर्माणों को हटाया जाना है। हल्द्वानी में रेलवे लाइन से सटे करीब 2.2 किलोमीटर इलाके में 4300 से अधिक कच्चे- पक्के निर्माण किए गए हैं। यहां करीब 20 मस्जिदें 9 मंदिर और स्कूल भी बने हुए हैं। इन सब पर बुलडोजर चलाए जाने की तैयारी है। यहां रह रहे परिवारों को अब बेदखल होने का खतरा मंडराने लगा है। इसको लेकर लोगों का आक्रोश फूट पड़ा है। वे अतिक्रमण हटाए जाने से पहले खुद को बसाए जाने की मांग कर रहे हैं। परिवारों का कहना है कि वे दशकों से यहां रह रहे हैं।

2.2 किलोमीटर पटरी पर बने 4365 अतिक्रमण चिन्हितः रेलवे

रेलवे का इस पूरे मामले में कहना है कि 2.2 किलोमीटर पटरी पर बने 4365 अतिक्रमण को चिन्हित किया गया है। उसे हटाया जाएगा। मकानों और अवैध निर्माण को गिराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है। इस मामले में 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। अतिक्रमण हटाए जाने को लेकर आई नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट के फैसले पर दोबारा विचार करने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले इस पर राजनीति शुरू हो गई है।

रेलवे ने अतिक्रमण का ड्रोन से कराया सर्वेक्षण

रेलवे के अधिकारियों द्वारा एक ड्रोन सर्वेक्षण किया गया था, जो अपनी भूमि पर अवैध अतिक्रमण को हटाने की योजना बना रहे थे। अधिकारियों के मुताबिक, उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे भूमि पर अतिक्रमित क्षेत्र का सीमांकन करने के लिए ड्रोन सर्वेक्षण किया गया था।

हल्द्वानी के इन क्षेत्रों में रेलवे की जमीन पर है अवैध कब्जा

हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास करीब 29 एकड़ भूमि है, जिसे रेलवे अपना बताकर यहां रहने वालों को अतिक्रमणकारी बता रहा है। ये इलाके वार्ड एक, 18, 20, 22, 24, गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती, नई बस्ती आदि हैं। इन इलाकों में धर्म विशेष की आबादी की बहुलता है। 2020 और 2021 में रेलवे ने इन इलाकों में 15 दिन में कब्जा खाली करने का नोटिस भी दिया था, फिर भी अवैध कब्जे नहीं हटाए जा सके।

अतिक्रमण के खिलाफ 15 साल पहले चला था अभियान

रेलवे भूमि पर अतिक्रमण का यह मामला नया नहीं है। अतिक्रमण हटाने के लिए करीब 15 साल पहले बड़े स्तर पर अभियान भी चला था, जिसके बाद मामला हाई कोर्ट पहुंच गया था। इस बीच 2016 में रेलवे ने सीमांकन कर रेलवे स्टेशन के आसपास के क्षेत्रों में पिलर लगा दिए थे।

अतिक्रमणकारियों का कहना- पहले कहीं और बसाया जाए फिर तोड़ा जाए

रेलवे की जमीन पर बने 4365 घरों को तोड़ने का आदेश जारी किया गया है। वहीं, अतिक्रमणकारियों का कहना है कि उनका विस्थापन किया जाए। उनके रहने की व्यवस्था हो। इससे पहले उन्हें बेघर नहीं किया जाए। उनका कहना है कि हमारे पूर्वज कई दशकों से उस जमीन पर रह रहे हैं। रेलवे अब इसको अपनी जमीन बता रहा है।

ओवैसी ने अतिक्रमण हटाओ अभियान को अल्पसंख्यकों पर कार्रवाई कहा

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने हल्द्वानी के अतिक्रमण हटाओ अभियान को अल्पसंख्यकों पर कार्रवाई से जोड़ दिया। उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी से इस मामले में दखल देने की मांग की है। ओवैसी ने कहा है कि इंसानियत दिखाते हुए उत्तराखंड के हल्द्वानी के लोगों की मदद के लिए आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोगों को वहां से नहीं निकाला जाना चाहिए। ओवैसी ने सवाल किया कि हल्द्वानी के लोगों के सिर से छत छीन लेना कौन सी इंसानियत है? लेकिन ओवैसी जो कि खुद के वकील हैं और कानून के जानकार हैं वो ये नहीं कह रहे हैं कि अतिक्रमण करना अवैध है।

अवैध बस्तियों में बन गए स्कूल, मदरसे-अस्पताल 

रेलवे की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इंदिरानगर व गफूरबस्ती में पांच सरकारी स्कूल व इंदिरानगर में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर बनाए गए हैं। प्राथमिक विद्यालय लाइन नंबर 17-18, राजकीय इंटर कालेज इंदिरानगर, जूनियर हाईस्कूल लाइन नंबर 17, ललित आर्य महिला इंटर कालेज, चोरगलिया रोड, प्राथमिक विद्यालय इंदिरानगर आदि शिक्षा संस्थान अतिक्रमण की जद में बताए गए हैं।

अतिक्रमण की जद में 20 मस्जिद और पांच मंदिर

कई मदरसा मसलन नैनीताल पब्लिक स्कूल मदरसा, निषाद मेमोरियल मदरसा, हयात-ऊलूम मदरसा, मदरसा गरीब नवाज सहित 20 मस्जिद इस अवैध भूमि पर बने हुए हैं। इसके साथ ही पांच मंदिर बने हुए हैं। इंदिरानगर व गफूरबस्ती में कई समुदाय के लोग निवासरत हैं। हालांकि ज्यादा आबादी एक समुदाय विशेष की है। इसके अलावा दो पेयजल टैंक भी इंदिरानगर व गफूरबस्ती में रेलवे की जमीन पर बने हुए हैं।

यहां के लोग सरकारी योजनाओं का भी उठा रहे लाभ

यहां रह रहे लोग सभी सरकारी योजनाओं का लाभ भी उठा रहे हैं। राशन कार्ड, आधार कार्ड के साथ ही उनके स्थायी निवास प्रमाणपत्र भी बने हैं। कई लोगों का ये भी दावा है कि वे नगर निगम को टैक्स भी देते हैं। लोगों के पास बिजली-पानी के कनेक्शन भी है। इसी आधार पर ये लोग कह रहे हैं कि जमीन उनके नाम पर है। अतिक्रमण होने पर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ कैसे मिलता।

अतिक्रमण हटाने में 23 करोड़ खर्च होने का अनुमान

अप्रैल 2022 में कोर्ट से अतिक्रमणकारियों को बड़ा झटका लगा था। तब हाईकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने को लेकर रेलवे से मास्टर प्लान मांगा था। इसके बाद जिला प्रशासन व रेलवे अतिक्रमण हटाने की तैयारियों में जुट गया। जिला प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने में करीब 23 करोड़ रुपये लगने का अनुमान जताया था। यही नहीं, 15 मई को प्रशासन के निर्देश पर लोक निर्माण विभाग ने तैयारियां करते हुए बुलडोजर व पोकलैंड के लिए टेंडर भी जारी कर दिया था।

अतिक्रमण हटा तो होगा विकासः याचिकाकर्ता

इस मामले में याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी का कहना है कि हल्द्वानी कुमाऊं मंडल का प्रवेश द्वार है। कुमाऊं के विकास के लिए नई ट्रेनों का संचालन जरूरी है। इसके लिए नई लाइनों का निर्माण, वाशिंग-यार्ड, मेंटेनेंस-यार्ड, शंटिंग-लाइनों आदि का निर्माण भी होना है। मगर हल्द्वानी स्टेशन पर भूमि की कमी के कारण ये कार्य नहीं हो पा रहे हैं। अतिक्रमण हटने से पूरे कुमाऊं का विकास होगा। पर्यटन के साथ व्यापारिक-व्यवसायिक गतिविधियों को भी व्यापक बढ़ावा मिलेगा।

सुप्रीम कोर्ट 2021 में रेलवे अतिक्रमण हटाने का दिया था आदेश

दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को दिशा निर्देश दिए थे कि अगर रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण है तो पटरी के आसपास रहने वाले लोगों को दो सप्ताह और उसके बाहर रहने वाले लोगों को छह सप्ताह के भीतर नोटिस देकर हटाएं, ताकि रेलवे का विस्तार हो सके। इन लोगों को राज्य में कहीं भी बसाने की जिम्मेदारी जिला प्रशासन व राज्य सरकारों की होगी। अगर इनके सभी पेपर वैध पाए जाएं तो राज्य सरकारें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत इनको आवास मुहैया कराएं।

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