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सीबीएसई बोर्ड परीक्षा फीस को लेकर न्यूज एजेंसी PTI ने फैलाई भ्रामक खबरें

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आज सभी समाचार पत्रों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्र-छात्राओं के लिए सीबीएसई परीक्षा फीस बढ़ाए जाने की खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई हैं।

न्यूज एजेंसी पीटीआई भाषा की ओर से जारी इस खबर में कहा गया है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) छात्रों के लिए 10वीं और 12वीं कक्षा के बोर्ड परीक्षा शुल्क में 24 गुना वृद्धि की है। अब इस वर्ग के छात्रों को 50 रुपये के बजाय 1200 रुपये का शुल्क देना होगा। सामान्य वर्ग के छात्रों के शुल्क में भी दो गुनी वृद्धि की गई है और अब उन्हें 750 रुपये के स्थान पर 1500 रुपये देने होंगे। यदि कोई छात्र अतिरिक्त विषय लेता है तो उसे 300 रुपये और चुकाने होंगे।

सच्चाई क्या है?
पीटीआई की खबर से उलट सच्चाई यह है कि दिल्ली को छोड़कर देशभर को एससी-एसटी छात्रों को पहले 750 रूपये परीक्षा फीस देने होते थे। पांच साल से फीस में कोई वृद्धि नहीं होने के कारण सीबीएसई ने सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए फीस 750 रुपये से बढ़ा कर 1500 रुपये कर दिए, जबकि एससी/एसटी छात्रों के लिए फीस 750 रुपये से बढ़ाकर सिर्फ 1200 रुपये किए हैं।

अब समझिए की पीटीआई ने फेक न्यूज कैसै फैलाई
यहां एक बात साफ करने की जरूरत है कि दिल्ली में एससी-एसटी छात्रों को पहले सिर्फ 350 रूपये परीक्षा फीस देने होते थे। इसमें से 300 रुपये दिल्ली सरकार की ओर से रीइंबर्स… वापस होने के कारण छात्रों के सिर्फ 50 रुपये देने होते थे। यानी सिर्फ दिल्ली के SC/ST छात्रों को परीक्षा फीस के रूप में 50 रुपये चुकाने होते थे ना की देश भर के छात्रों को। अन्य राज्यों के एससी/एसटी छात्रों को 750 रुपये ही देने होते थे।

पीटीआई की खबर में कहा गया है कि एससी/एसटी वर्ग के लिए परीक्षा फीस 24 गुना बढ़ा दी गई है। अब इन्हें 50 रुपये की जगह 1200 रुपये चुकाने होंगे। यह खबर दो तरह से गलत है। एक तो यह कि सीबीएसई की तरफ से दिल्ली में एससी/एसटी वर्ग के लिए परीक्षा फीस 350 रुपये है ना कि 50 रुपये। इस तरह से यह 24 गुना नहीं है। दूसरा देश भर के एससी/एसटी वर्ग के लिए मौजूदा परीक्षा फीस 750 रुपये है जिसे बढ़ाकर 1200 रुपये किया गया है।

यह भ्रामक खबर इसके बाद सोशल मीडिया पर सनसनीखेज हेडलाइन के साथ फैलाई गई है। ऐसी फर्जी खबरों के गंभीर सामाजिक परिणाम होते हैं। एससी/एसटी छात्रों को यह लग सकता है कि उनके साथ अन्याय हो रहा है। इस तरह की खबरों पर ज्यादा सतर्कता बरतने की जरूरत है।

तमाम अखबार लेते हैं पीटीआई से खबर
आपको बता दें कि देश के ज्यादातर समाचार पत्र, वेबसाइट और न्यूज चैनल न्यूज एजेंसी पीटीआई के ग्राहक है। पीटीआई से ये सभी खबरों को लेते हैं। आप कह सकते हैं कि PTI सभी समाचार पत्र और चैनलों के लिए समाचारों का मुख्य स्रोत है, इसकी खबरों को बिना किसी जांच पड़ताल के सभी समाचार पत्र और चैनल धड़ल्ले से उपयोग करते हैं। ऐसे में पीटीआई कोई गलत खबर प्रसारित करती है तो देश भर के अखबारों में गलत खबर छप जाती है।

पहले भी पीटीआई ने चलाई है फेक न्यूज-

वित्त मंत्री के बयान को तोड़-मरोड़कर बनाई Fake News
न्यूज एजेंसी  PTI ने इसके पहले वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के राज्यसभा के प्रश्नकाल में दिए गये बयान पर फेक खबर चलाई थी। 2 जुलाई, 2019 को राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान पूरक प्रश्नों के जवाब में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश की आर्थिक स्थिति के बारे जानकारी देते हुए देश के अच्छे आर्थिक संकेतों का उल्लेख किया। वित्त मंत्री के बयान से जब PTI को कोई चासनी वाली खबर नहीं मिली तो उसने अपनी खबर की टीआरपी बढ़ाने के लिए हेडलाइन में ही चासनी डाल दी। हेडलाइन पर चासनी पड़ते ही, सभी समाचार पत्र और चैनल इस खबर पर चीटियों की तरह चिपक गये। सबसे पहले NDTV ने वित्त मंत्री के बयान की खबर को अपने वेबसाइट पर डाला-


वित्तमंत्री ने खबर को Fake बताया
इस खबर की वही हेडलाइन थी, जो PTI ने दी थी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यसभा में अपने पूरे बयान के दौरान नोटबंदी पर कोई बात नहीं कही थी, लेकिन फिर भी PTI और NDTV ने खबर से हटकर, खबरों में टीआरपी लाने के लिए नोटबंदी की हेडलाइन दी और लिखा-Demonetization has no effect on Indian Economy-Nirmala Sitharaman, इस खबर के प्रकाशित होने और सोशल मीडिया पर आते ही, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सवाल खड़ कर दिए-
कांग्रेसी अखबार ‘नवजीवन’ ने झूठी हेडलाइन पर पूरी खबर गढ़ दी
NDTV और PTI की खबरों को आधार बनाकर कांग्रेसी समाचार पत्र ‘नवजीवन’ ने हेडलाइन ही नहीं पूरी खबर नोटबंदी पर बना दिया –नवजीवन ने पीटीआई की केवल हेडलाइन पढ़कर ही पूरी खबर को अपने मन मुताबिक गढ़ दिया। यह ऐसी खबर थी, जिसका कोई आधार नहीं था, जिसके कोई सबूत नहीं थे, फिर भी सरकार के खिलाफ एजेंडा खड़ा करने के लिए हेडलाइन खड़ी कर दी गई।

‘फेक न्यूज’ एजेंसी पीटीआई
उत्तर प्रदेश में भाजपा की योगी सरकार ने 11 जुलाई 2017 को विधानसभा में 2017-18 का बजट पेश किया। इस बजट पर रिपोर्टिंग करते हुए पीटीआई ने समाचार दिया कि “उत्तर प्रदेश की सरकार ने सेकेंडरी और उच्च शिक्षा के लिए पूर्व सरकार की तुलना में बजट में कटौती कर दी है। पूर्व की अखिलेश यादव की सरकार ने 2016-17 में सेकेंडरी शिक्षा के लिए 9,990 करोड़ रुपये दिये थे, जबकि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने 9,414 करोड़ रुपये की कटौती करके मात्र 576 करोड़ रुपये दिये हैं। इसी तरह से उच्च शिक्षा के बजट में भी कटौती की गई है। पिछले बजट में उच्च शिक्षा को 2,742 करोड़ रुपये दिये गये थे, जबकि इस साल के बजट में 2469.73 करोड़ रुपये की कटौती करते हुए, मात्र 272.77 करोड़ रुपये ही दिए गये हैं।”

योगी सरकार की ओर से शिक्षा बजट में इतनी भारी कटौती सचमुच एक बड़ी खबर थी। यह सभी समाचार पत्रों और टेलीविजन न्यूज चैनलों के लिए टीआरपी वाली स्टोरी भी थी। पीटीआई की इस खबर को आंख मूंद कर सभी ने अपने-अपने समाचार पत्र और चैनलों में बड़ी खबर बनाया।इसी फेक न्यूज को आधार बनाकर, कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया-इसी तरह से पीटीआई की एक फेक न्यूज को सोशल मीडिया पर सही मानकर प्रतिक्रिया दी जाने लगी।
पीटीआई ने कैसे बनायी ‘फेक न्यूज’
अफसोस की बात यह है कि पीटीआई की खबर होने के कारण किसी भी अखबार या न्यूज चैनेल ने इसकी सत्यता परखने की कोशिश नहीं की। जब इसकी सत्यता की परख की गई तो पता चला कि यह एक फेक न्यूज थी। वास्तव में, पीटीआई ने उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा पेश बजट के कुछ अंशों के आधार पर ही यह रिपोर्ट की थी। अगर यह रिपोर्ट बजट अनुमान के कागजों को ठीक ढंग से पढ़कर बनाई गयी होती तो पता चलता कि योगी सरकार ने शिक्षा के लिए बजट में कमी नहीं बल्कि 34 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की है। अखिलेश यादव की सरकार ने 2016-17 में जहां 46,442 करोड़ रुपये शिक्षा के लिए दिये थे वही 2017-18 में योगी आदित्यनाथकी सरकार ने 62, 351 करोड़ रुपये दिए हैं। जब इस फेक न्यूज पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आधिकारिक बयान दिया और सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी दी, तो पता चला कि यह फेक खबर पीटीआई ने दी है। इसके बाद सरकार की खिंचाई करने वालों ने पीटीआई के इस फेक न्यूज पर प्रतिक्रिया ना देकर चुप्पी साध ली।

जनता के सामने सच लाने वाले पत्रकार और मीडिया संस्थान जब खबरों को जान- बूझकर तोड़ते मरोड़ते हैं तो Fake Journalism की जड़ें ही मजबूत होती हैं। ये पत्रकार और मीडिया संस्थान, देश और देश की प्रजातंत्रिक व्यवस्थाओं के साथ विश्वासघात करते हैं, जिसकी कीमत देश की जनता और प्रधानमंत्री मोदी की सरकार को चुकानी पड़ती है।

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