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क्रिसमस से पहले पंजाब में धर्मांतरण का खेल, भगवंत मान सरकार की चुप्पी पर उठे सवाल, अवैध धर्म परिवर्तन के खिलाफ सरकार कार्रवाई क्यों नहीं कर रही

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जिस धरती पर गुरु गोविंद सिंह ने धर्म की रक्षा करने के लिए अपने दो साहिबजादों को शहीद करवा दिया। वहां अब सिखों को ईसाई बनाने का खेल चल रहा है। पंजाब में गरीब हिंदुओं-सिखों को बड़े पैमाने पर ईसाई धर्म में बदला जा रहा है। इसके लिए ईसाई मिशनरी तरह-तरह के ढोंग रचते हैं। वो अपने अंदर ईसा मसीह की आत्मा आने का स्वांग भरते हुए गरीब और अशिक्षित लोगों को ईसाई बना रहे है। इधर ईसाई पर्व क्रिसमस से पहले धर्म परिवर्तन का खेल जोरों पर चल रहा है। 16 दिसंबर को भी चमकौर साहिब में एक ऐसी ही घटना घटी है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब में सिखों की संख्या जहां 57.69 प्रतिशत थी तो हिंदुओं की आबादी 38.49 प्रतिशत थी वहीं पंजाब में ईसाइयों की आबादी केवल 1.26 प्रतिशत थी। ऐसे में अपनी आबादी बढ़ाने के लिए ईसाइयों द्वारा गरीब सिखों और हिंदुओं को ईसाई धर्म में शामिल किया जा रहा है। पंजाब में धर्म परिवर्तन का असर यह है कि प्रदेश में ईसाइयों के चर्च की संख्या बढ़ती जा रही है। पाकिस्तान से सटे बॉर्डर इलाकों में यह चर्च बनाए जा रहे हैं। इसके साथ ही ईसाई धर्म को बढ़ावा देने के लिए दीवारों पर संदेश भी लिखे जा रहे हैं। पिछले दिनों धर्मांतरण के खिलाफ निहंग सिखों ने भी जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था। लेकिन इन सब के बीच पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं। इस अवैध धर्म परिवर्तन के खिलाफ सरकार कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है। अगर इसकी तह में जाएं तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सनातन धर्म से नफरत की बात सामने आती है। केजरीवाल ईसाई संत मदर टेरेसा के शिष्य रह चुके हैं और इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो किस विचारधारा से प्रेरित है। यहीं नहीं, ज्यादा दिन नहीं बीते जब केजरीवाल के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने लोगों को ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम और कृष्ण को ईश्वर ना मानने और इनकी कभी पूजा नहीं करने की शपथ दिलाई थी। इन वाकयों से साफ है कि अरविंद केजरीवाल अपने हिंदू विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। एक सवाल यह भी है कि क्या यह किसी अंतर्ऱाष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है।

लोगों को लुभाने के लिए मंच से चमत्कार के दावे, इसका लोग कर रहे विरोध

इस धर्मांतरण का सबसे ज्यादा विरोध इसके तरीकों को लेकर किया जा रहा है। ईसाई मिशनरी मंच पर खड़े होकर अपने अंदर ईसा मसीह की आत्मा आने की बात कहते हैं। वे तरह-तरह के स्वांग रचकर गरीब-अशिक्षित लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए कहते हैं। वे चमत्कारिक तरीके से लंबे समय से बीमार चल रहे लोगों को ठीक करने का दावा करते हैं। वे उन बीमार लोगों का भी पल भर में इलाज करने का दावा करते हैं जिन बीमारियों का इलाज संभव नहीं है। मंच से कुछ लोग इस बात का भी दावा करते हैं कि उनकी कैंसर जैसी गंभीर बीमारी लंबे समय से ठीक नहीं हो रही थी। लेकिन जैसे ही उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार किया, उनकी बीमारी ठीक हो गई। इससे गरीब-अशिक्षित लोग प्रभावित होकर ईसाई धर्म की ओर मुड़ जाते हैं। इस तरह के वीडियो सोशल मीडिया पर फैलाकर भी लोगों को ईसाई धर्म की ओर आकर्षित किया जाता है। वे गरीबों को यह बताते हैं कि ईसाई धर्म अपनाने से वे अमेरिकी-यूरोपीय देशों के ईसाइयों की तरह धनवान बन जाएंगे। लेकिन यह संभव नहीं है और इसका कोई आधार नहीं है। यही कारण है कि सिख समुदाय की ओर से इन दावों को गैरकानूनी बताकर इनका विरोध किया जा रहा है।

धर्मांतरण कार्यक्रमों में निहंग सिखों ने किया था प्रदर्शन

अवैध धर्मांतरण के कार्यक्रमों में पहुंचकर निहंग सिखों ने विरोध प्रदर्शन किया था, जिससे स्थिति तनावपूर्ण बन गई थी। एसजीपीसी के कुछ नेताओं ने भी धर्मांतरण के खिलाफ आजाव उठाई थी, लेकिन इसके बाद भी इन कोशिशों में कोई कमी नहीं आई है। हालांकि, स्थानीय ईसाई इस तरह की किसी साजिश से इनकार करते हैं।

भाजपा ने भगवंत मान सरकार की चुप्पी पर उठाए सवाल

पंजाब के चमकौर साहिब में अवैध धर्मांतरण की घटना सामने आई है। गत 16 दिसंबर को एक ईसाई मिशनरी के द्वारा एक सभा में स्वयं के अंदर ईसा मसीह की आत्मा आने का स्वांग रचा गया और गरीब-अशिक्षित लोगों को बहला-फुसलाकर ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया गया। इससे पंजाब में अवैध धर्मांतरण का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। भाजपा ने आरोप लगाया है कि पंजाब की भगवंत मान सरकार इस मामले का पूरा सच जानने के बाद भी चुप है, क्योंकि उसे अपना वोट खोने का डर है। भाजपा प्रवक्ता मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि पंजाब में गरीब हिंदुओं-सिखों को बड़े पैमाने पर ईसाई धर्म में परिवर्तित कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसके लिए ईसाई मिशनरी तरह-तरह के ढोंग रचते हैं। वे मंच पर खड़े होकर स्वयं में ईसा मसीह की आत्मा आने का स्वांग रचते हैं और तरह-तरह के करतब दिखाकर गरीब और अशिक्षित लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। सिरसा ने कहा कि दो दिन पहले 16 दिसंबर को भी इसी तरह की एक घटना पंजाब के चमकौर साहिब में घटी है। यह वही जगह है जहां सिखों के आराध्य गुरु गोविंद सिंह ने अपने दो साहिबजादों को धर्म की रक्षा करने के लिए शहीद करवा दिया। आज उसी धरती पर सिखों को ईसाई बनाने का खेल चल रहा है और लोग कुछ लालच में अपना धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपना रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि पंजाब की भगवंत मान सरकार इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुए है और इस अवैध धर्मांतरण को रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रही है।

पंजाब में मस्जिदें और चर्च बनना चिंता का विषयः जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह

अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि हमें धार्मिक रूप से कमजोर करने के लिए पंजाब की इस धरती पर बहुत जोर-शोर से ईसाई धर्म का प्रचार किया जा रहा है। पंजाब में विभिन्न जगहों पर मस्जिदें और चर्च बन रहे हैं, जो हमारे लिए चिंता का विषय है। पंजाब के सिखों और हिंदुओं को गुमराह कर उन्हें ईसाई बनाने की कोशिश की जा रही है और यह सब सरकार की नाक के नीचे हो रहा है।

क्या कहता है संविधान

भारतीय संविधान के (अनुच्छेद 25-28) अनुसार कोई व्यक्ति अपनी पसंद से कोई भी धर्म चुन सकता है, और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है। लेकिन किसी व्यक्ति का धर्म जबरन या लालच देकर नहीं कराया जा सकता। भारतीय दंड संहिता की धारा 295-ए और 298 के अनुसार यह एक दंडनीय अपराध है। इसे लेकर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में कानून बने हैं।

धर्म परिवर्तन के लिए क्या है कानूनी प्रक्रिया

धर्म परिवर्तन करने के दो तरीके हैं। पहला कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए और दूसरा धार्मिक स्थल पर जाकर उनके निर्धारित शिष्टाचार का पालन करते हुए। अगर कोई अपना धर्म बदलना चाहता है तो उसे अपने ज़िले के कलेक्टर या किसी अन्य संबंधित अधिकारी को नोटिस देना होगा। नोटिस देने के 30 से 60 दिनों के अंदर धर्म परिवर्तन कराया जाएगा। इसके लिए आपको कोर्ट या किसी वकील से एक हलफनामा बनाना होगा और अपनी सारी जानकारी देनी होगी – जैसे आप किस धर्म में जा रहे हैं, नाम और पता आदि। धर्म बदलने के बाद धर्म गजट कार्यालय में अपना नया नाम और धर्म दर्ज कराना होता है।

कई राज्यों में हैं धर्मांतरण विरोधी कानून

भारत के 10 राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून मौजूद हैं। यह कानून पहली बार 1967 में ओडिशा में बनाया गया था। उसके बाद इसे गुजरात, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में लागू किया गया। हरियाणा विधानसभा द्वारा भी धर्मांतरण विरोधी विधेयक पारित किया जा चुका है। इन सभी राज्यों में कानून का उल्लंघन करने पर सज़ा और जुर्माने की राशि अलग-अलग है।

पंजाब में वर्ष 2011 में ईसाइयों की जनसंख्या केवल 1.26 प्रतिशत थी

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब में ईसाइयों की जनसंख्या केवल 1.26 प्रतिशत है। यहां सबसे ज्यादा सिख (57.69 प्रतिशत) और हिंदू (38.49 प्रतिशत) हैं। लेकिन आरोप है कि हाल ही के कुछ वर्षों में पंजाब में ईसाइयों के द्वारा गरीब सिखों-हिंदुओं को तरह-तरह का लालच देकर या धर्म के झूठे स्वांग रचकर उन्हें ईसाई धर्म में शामिल किया जा रहा है।

अब पादरियों की संख्या 65 हजार से अधिक हो चुकी

साल 2011 की जनगणना के अनुसार, पंजाब में ईसाइयों की कुल जनसंख्या 3 लाख 48 हजार थी। लेकिन आज आलम यह है कि यहां पादरियों की संख्या 65,000 के करीब हो चुकी है। यही नहीं पंजाब में ईसाइयत के प्रचार का बेड़ा उठाए लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। पंजाब में सिखों को ईसाई बनाने के तमाशे ने लाखों लोगों को चर्च तक पहुंचा दिया है। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। हालत यह है कि ईसाई मिशनरी यहां के सभी 23 जिलों में फैली हुई हैं। ये मिशनरियां माझा और दोआबा बेल्ट के अलावा मालवा में फिरोजपुर और फाजिल्का के सीमावर्ती इलाकों में सबसे ज्यादा सक्रिय हैं।

पंजाब के सीमावर्ती इलाक़ों में तेजी से फैला ईसाई धर्म

चंडीगढ़ से अमृतसर और गुरदासपुर जाते हुए रास्ते में आपको जगह-जगह ईसाई पादरियों के पोस्टर और होर्डिंग दिखाई देंगे। पाकिस्तान से लगने वाले पंजाब के इलाक़ों में ईसाई धर्म का कितना प्रभाव है। इसका अंदाज़ा गांवों में बने चर्चों से लगाया जा सकता है। इनमें से अधिकांश नए चर्च निजी तौर पर प्रचार करने वाले पादरियों द्वारा स्थापित किए जा रहे हैं। कई जगहों पर ईसाई धर्म मानने वाले लोगों ने घरों में चर्च स्थापित कर लिए हैं। वह प्रचार के विभिन्न माध्यमों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ख़ूब प्रचार भी कर रहे हैं।

ईसाई धर्म अपनाने वाले दलित समुदाय के लोग नाम नहीं बदलते

पंजाब में ईसाई समुदाय की आबादी बहुत कम हैं। जानकारों का मानना है कि कम संख्या का एक कारण यह भी है कि बहुत से लोग धर्मांतरण के बाद अपना नाम नहीं बदलते हैं। इसके पीछे कारण है दलित समुदाय के लोगों को मिलने वाला आरक्षण है। सीमावर्ती इलाक़ों में जो धर्मांतरण हो रहा है उस में ज्यादातर लोग ग़रीब और दलित वर्ग से आते है। बहुत सारे दलित असल में ईसाई बन चुके है पर कागजों में दलित ही हैं क्योकि ईसाई समुदाय को कोई आरक्षण नहीं मिलता है। इसलिए बहुत सारे लोग असल में ईसाई घर्म को मानते हैं पर वो ना तो आपना नाम बदलते है और ना ही कोई चीज़ पहनते हैं जिससे ये पता लग सके कि ये लोग आपना धर्म बदल कर ईसाई धर्म अपना चुके है। पंजाब में ईसाई समुदाय की संख्या को देखा जाए तो पता चलता है कि जिन लोगों ने धर्मांतरण किया है उन में से अधिकांश दलित समुदाय के लोग हैं।

पंजाब के कई गांवों में ईसाई हुए बहुसंख्यक

पंजाब के हालात वैसे ही हो रहे हैं जैसे 1980 और 1990 के दशक में तमिलनाडु या आंध्र प्रदेश के हुआ करते थे। गुरदासपुर के कई गांवों की छतों पर छोटे-छोटे चर्च बन गए हैं। पंजाब के सीमावर्ती इलाके में रहने वाले मजहबी सिख और वाल्मीकि हिंदू समुदायों के कई दलितों ने ईसाई धर्म अपना लिया है। यूनाइटेड क्रिश्चियन फ्रंट की मानें तो अमृतसर और गुरदासपुर जिलों में 600-700 चर्च बन चुके हैं, इनमें से 70 फीसदी पिछले पांच वर्षों में ही बने हैं। पाकिस्तान बॉर्डर से लगभग 2 किलोमीटर पहले दुजोवाल गांव पड़ता है। इस गांव में लगभग 30 प्रतिशत लोग ईसाई हैं। गांव में दो गुरुद्वारे हैं और दो ही चर्च हैं।

पंजाब में जब धर्मांतरण का मुद्दा इतना गंभीर है तो आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल और पंजाब की भगवंत मान सरकार कदम क्यों नहीं उठा रही है। इसका जवाब केजरीवाल की ईसाई मिशनरी से संबद्धता है…

मदर टेरेसा और ईसाई मिशनरी के रास्ते पर चल रहे शिष्य केजरीवाल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ईसाई संत मदर टेरेसा के शिष्य रहे हैं। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो किस विचारधारा से प्रेरित है। आम तौर पर माना जाता है कि शिष्य पर गुरु के उपदेशों का असर होता है। केजरीवाल पर भी उनके गुरु के उपदेश का असर दिखाई दे रहा हैे। वो उन्हीं के बताये रास्ते पर चल रहे हैं। जिस तरह मदर टेरेसा ने गरीबों की मुफ्त सेवा के बहाने दलितों और आदिवासियो के बीच पैठ बनाई। उसके बाद ईसाई मिशनरियों ने चमत्कारिक मुफ्त इलाज, मुफ्त शिक्षा और पैसे का लालच देकर और ऊंच-नीच, जात-पात का एहसास दिलाकर गरीब दलितों और आदिवासियों का धर्मांतरण कराया। उसी तरह केजरीवाल भी मुफ्त रेवड़ी कल्चर के जरिए गरीब दलितों, आदिवासियों, सिखों में पैठ बनाकर उनके बौद्ध और ईसाई धर्म में धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहे हैं।

मदर टेरेसा को संत की उपाधि देने के कार्यक्रम में शामिल हुए थे केजरीवाल

गौरतलब है कि 4 सितंबर, 2016 को वेटिकन सिटी में मदर टेरेसा को पोप फ्रांसिस की मजूदगी में संत की उपाधि दी गई। उपाधि देने के लिए आयजित इस कार्यक्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी शामिल हुए थे। अरविंद केजरीवाल मदर टेरेसा को बहुत मानते थे। इसी समय उन्होंने मदर टेरेसा को याद करते हुए एक लेख आउटलुक पत्रिका में लिखा था। लेख में केजरीवाल ने 1992 में मदर टेरेसा से मिलने और मिशनरीज ऑफ चैरिटी के कालिघाट आश्रम में बिताये गए पलों का जिक्र किया था। उस लेख का कुछ अंश यहां दिया जा रहा है…

मिशनरीज ऑफ चैरिटी और केजरीवाल का संस्मरण

“टाटा स्टील से इस्तीफा दे दिया और मदर टेरेसा से मिलने कोलकाता चला गया। ये सुबह का समय था और वहां लंबी कतारें लगी हुई थीं। वह सभी लोगों से कुछ सेकेंड के लिए मिल रही थी। जैसे ही मेरा नंबर आया उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और पूछा तुम क्या चाहते हो? मैंने मदर से कहा कि मां, मैं आपके साथ काम करना चाहता हूं।

उन्होंने मुझसे कलिघाट आश्रम जाने की बात कही। ये मिशनरीज ऑफ चैरिटी के अहम केंद्रों में से एक था। उन्होंने मुझसे वहां जाकर काम करने के लिए कहा। उस समय कोलकाता ऐसा स्थान था जहां दोनों तरह के लोग मिल जाते थे, जिसमें कुछ तो बहुत गरीब थे, वहीं कुछ बहुत अमीर। फिलहाल वहां अभी के हालात मुझे नहीं पता हैं। मुझे काम दिया गया कि मैं शहर में घूमकर गरीब, असहाय, बेबस लोगों को कलिघाट आश्रम ले जाऊं और उनकी सेवा करूं, मैंने ऐसा ही किया।

एक बार मैंने मदर से पूछा कि आप जरूरतमंद लोगों को सेवा मुहैया कराती हैं, आखिर आप उन्हें ठीक होने के बाद आत्मनिर्भर बनाने पर विचार क्यों नहीं करती हैं? इस पर उन्होंने कहा कि ये काम सरकार और दूसरे एनजीओ का है। उनका काम जरूरतमंदों की सेवा करना है। ये पूरा अनुभव मेरे लिए आध्यात्मिक था। मैं वहां कुछ महीने तक रहा।

जब मैं नागपुर में नेशनल एकेडमी ऑफ डायरेक्ट टैक्स की ट्रेनिंग के लिए पहुंचा, जहां आईआरएस ट्रेनियों को भेजा जाता है, वहां मुझे मदर टेरेसा का आश्रम एकेडमी के बिल्कुल पास ही मिल गया। एकेडमी में ही मेरी सुनीता (पत्नी) से मुलाकात हुई। हम अकसर सप्ताह के आखिर में आश्रम जाते थे। नागपुर का आश्रम बिल्कुल अलग था। यहां कलिघाट आश्रम की तरह वॉलंटियर नहीं बल्कि नन्स होती थी जो सेवा कार्य करती थी। इसलिए यहां हमारे लिए ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं था।”

सेवा की आड़ में दलितों और आदिवासियों का धर्मांतरण

दरअसल मदर टरेसा ने गरीबों की सेवा की आड़ में ईसाई मिशनरियों के लिए भारत में एक मैदान तैयार किया, जिसमें वो धर्मांतरण का खेल बखूबी खेल सके। मदर टेरेसा ने तथाकथित नि:स्वार्थ सेवाभाव से भारतीय जनमानस में एक दीन-दुखियों के उद्धारक के रूप में अपनी छवि बनाई, उसका फायदा आगे चलकर ईसाई मिशनरियों ने भी उठाया। पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित और खुद को प्रगतिशील बताने वाले वामपंथियों, सेक्युलर और लिबरल गैंग ने मदर टरेसा का खूब महिमामंडन किया। उन्होंने मदर टेरेसा को गरीबों का मसीहा बताकर जनता के सामने पेश किया। लेकिन मदर टेरेसा और ईसाई मिशनरियों का मकसद सेवा की आड़ में दलितों और आदिवासियों का धर्म परिवर्तन कराना था।

खिलजी, औरंगजेब और ईसाई मिशनरियों से भी चार कदम आगे निकले केजरीवाल

दरअसल केजरीवाल का मकसद जनता की सेवा नहीं बल्कि विदेशी ईसाई मिशनरियों की सेवा पसंद थी। आज केजरीवाल ईसाई मिशनरियों की मदद कर रहे हैं। वो अलाउद्दीन खिलजी, औरंगजेब, अंग्रेज और ईसाई मिशनरियों से भी चार कदम आगे निकल गए हैं। जो काम मुगल, अंग्रेज और ईसाई मिशनरी नहीं कर सके वो केजरीवाल कर रहे हैं। केजरीवाल हिन्दू धर्म के लिए सबसे बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। दिल्ली सरकार में मंत्री राजेंद्र पाल गौतम और गुजरात में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया हिन्दू धर्म को खत्म करने में उनकी पूरी मदद कर रहे हैं। जहां राजेंद्र पाल गौतम राम, कृष्ण जैसे देवताओं को नहीं मानते हैं, वहीं गोपाल इटालिया सत्यनारायण भगवान की पूजा को फालतू मानते हैं और हिन्दुओं को ब्राह्मणों से पूजा नहीं कराने की सलाह देते हैं।

केजरीवाल के मंत्री राजेन्द्र पाल ने दस हजार लोगों को दिलाई देवी-देवताओं की पूजा न करने की शपथ

दिल्ली में ‘मिशन जय भीम’ कार्यक्रम के दौरान केजरीवाल सरकार के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने लोगों को ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम और कृष्ण को ईश्वर ना मानने और इनकी कभी पूजा नहीं करने की शपथ दिलाई। इस कार्यक्रम में केजरीवाल सरकार के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम भी शामिल हुए थे। 05 अक्टूबर, 2022 को विजयादशमी के अवसर पर दिल्ली के करोलबाग स्थित अंबेडकर भवन में आयोजित ‘मिशन जय भीम’ कार्यक्रम में 10 हजार लोगों ने बौद्ध दीक्षा ली। इसके साथ ही उन्हें हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा नहीं करने शपथ दिलाई गई…

शपथ

मैं…
राम और कृष्ण को ईश्वर नहीं मानूंगा,
ना ही कभी उनकी पूजा करूंगा,
गौरी गणपति आदि हिन्दू धर्म के किसी भी देवी देवाताओं को नहीं मानूंगा,
और ना ही उनकी पूजा करूंगा।

हिन्दुओं के धर्मांतरण के लिए “मिशन जय भीम”

केजरीवाल सरकार के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने इस कार्यक्रम की जानकारी देते हुए ट्विटर पर लिखा, ”चलो बुद्ध की ओर मिशन जय भीम बुलाता है। आज “मिशन जय भीम” के तत्वाधान में अशोका विजयदशमी पर डॉ. अंबेडकर भवन रानी झांसी रोड पर 10,000 से ज्यादा बुद्धिजीवियों ने तथागत गौतम बुद्ध के धम्म में घर वापसी कर जाति विहीन व छुआछूत मुक्त भारत बनाने की शपथ ली। नमो बुद्धाय, जय भीम!”

सत्यनारायण और भागवत कथा फालतू, हिजड़ों की तरह बजाते हैं तालीः गोपाल इटालिया

अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का हिंदू विरोधी चेहरा कोई नई बात नहीं है। आम आदमी पार्टी के गुजरात प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया की इन बातों से भी इसे समझा जा सकता है। गोपाल इटालिया ने एक वीडियो में कहा था- “लोग सत्यनारायण कथा और भागवत कथा जैसी अवैज्ञानिक और फालतू की चीजों पर पैसा और समय बर्बाद कर देते हैं। इसके बाद भी लोगों को यह नहीं पता चलता कि उन्हें ऐसा करके क्या हासिल हुआ। वे दूसरों का समय भी बर्बाद कर देते हैं। अगर हम 5 पैसे भी ऐसी फालतू चीजों पर खर्च कर देते हैं तो हमें मनुष्य की तरह जीने का अधिकार भी नहीं है।” उन्होंने कहा, “मुझे ऐसे लोगों पर शर्म आती है। जो मैं कहता हूं वह आपको अगर अच्छा न लगे तो मुझे ब्लॉक कर दीजिए। लेकिन हमें उनकी जरूरत नहीं है जो संस्कृति और प्रथाओं के नाम पर हिजड़ों की तरह ताली बजाते हैं। कुछ साधु स्टेज से फालतू बातें करेंगे और हम हिंजड़ों की तरह ताली बजाएंगे।”

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