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मोदी राज में कालीन निर्यात 11 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचा! यूरोप, अमेरिका, अरब देशों को खूब पसंद आ रहे भारतीय कालीन

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कांग्रेस पार्टी ने आजादी के बाद देश पर 50 से अधिक वर्षों तक शासन किया लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत हो इसके लिए उसने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। इसी में एक सेक्टर है कालीन (कारपेट) उद्योग। भारत का कालीन उद्योग प्राचीन काल से प्रख्यात रहा है लेकिन कांग्रेस की सरकार ने इसे बढ़ावा देने के लिए ध्यान नहीं दिया। वर्ष 2014 में केंद्र की सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर सेक्टर पर ध्यान दिया और इसकी वजह से आज कालीन निर्यात नए रिकार्ड बना रही है इससे जुड़ा उद्योग भी फल-फूल रहा है। वित्त वर्ष 2013-14 के अप्रैल-दिसंबर अवधि में कालीन निर्यात 7,127 करोड़ रुपये थी। वहीं 2022-23 में इसी अवधि में डेढ़ गुना से ज्यादा बढ़कर 11,274 करोड़ रुपये हो गया। यह पीएम मोदी के विजन से ही संभव हो पाया कि कालीन निर्यात पिछले नौ साल में दोगुना के करीब पहुंचने वाला है।

पीएम मोदी के विजन से बदली कालीन उद्योग की तस्वीर

कांग्रेस जो काम 50 सालों में नहीं कर पाई वो पीएम मोदी ने कुछ ही सालों में कर दिखाया। इसकी वजह साफ है कि पीएम मोदी ने भारतीय बुनकरों की रचनात्मकता को पहचाना और इसे बढ़ावा देने की पहल की। आज भारतीय बुनकरों की रचनात्मकता, कलर और डिजाइन ने इसे चीन के मुकाबले विदेश में ऊंचा मुकाम दिलाया है। भारतीय कारपेट इको-फ्रेंडली होने के साथ अच्छी क्वालिटी और दिखने में शानदार और मजबूत हैं। इसके साथ ही अब भारतीय कालीन उद्योग ने यूरोप और अमरीका के बाजारों की जरूरत को भी समझा है और उसके अनुरूप सुधार भी किया जा रहा है, इसलिए भारतीय कालीन की मांग बढ़ी है।

22 लाख से अधिक कारीगरों और बुनकरों को रोजगार

आज 90 प्रतिशत हाथ से बने कालीन अमरीका जैसे देशों में निर्यात होते हैं। कारपेट उद्योग में 5,000 से अधिक एमएसएमई काम करते हैं और 22 लाख से अधिक कारीगरों और बुनकरों को रोजगार मिल रहा है। उत्तर प्रदेश के भदोही और वाराणसी क्षेत्र के दो लाख से ज्यादा कारीगरों और उनके लगभग 10 लाख परिवारों की जिंदगी जुड़ी हुई है। वहीं हरियाणा के पानीपत में कालीन उद्योग से लाखों लोगों की जिंदगी जुड़ी हुई है।

हाथ से बने कालीन के बाजार में भारत ने चीन को दी पटखनी

हाथ से बने कालीन के बाजार में भारत ने चीन को पीछे छोड़ते हुए और दुनियाभर में इसकी हिस्सेदारी करीब 36.6 प्रतिशत है। भारत हैंडमेड कारपेट का सबसे बड़ा निर्यातक है वहीं मशीन से बने कारपेट और टेक्सटाइल फ्लोर कवर के मामले में भारत को चीन व तुर्की से टक्कर मिल रही है। इस वजह से कुल कारपेट निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 11.5% है और चीन की हिस्सेदारी 19.5% है जबकि तुर्की की हिस्सेदारी 17.8% है। भारत के हाथ से बने कालीन और टेक्सटाइल फ्लोर कवर का निर्यात 2022-23 में 40 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है।

ग्लोबल कारपेट इंडस्ट्री में भारत की बादशाहत

ग्लोबल कारपेट इंडस्ट्री में भारत की बादशाहत है, लेकिन इसे सबसे बड़ी चुनौती मशीन से बने कारपेट से मिल रही है। यही वजह है कि चीन और तुर्की भारत को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। चीन और तुर्की में अधिकतर कारपेट मशीन से बनते हैं, जिन्हें बनाने में कम समय लगता है और ये सस्ते हैं। हाथ से बने कालीन को तैयार होने में 90 से 180 दिन लगता है, लेकिन मशीन से ये कारपेट 5 दिन में तैयार हो जाते हैं। जिससे कि लागत भी 40 प्रतिशत तक घट जाती है। मशीन से बनने वाले टेक्सटाइल फ्लोर कवर के क्षेत्र में भारत को अभी काफी काम करना है, ताकि भारतीय उत्पादों की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम हो और बिक्री और बढ़े।

जर्मनी में पानीपत के कारपेट की धूम, चीन व तुर्की को सीधी टक्कर

हरियाणा की औद्योगिक नगरी पानीपत के कारपेट उद्योग का कालीन यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका और अरब देशों को भी भा रहा है। तभी तो जर्मनी के हैनोवर में आयोजित हो रहे डोमोटेक्स फेयर में पानीपत के कारपेट उद्योग की मांग बढ़ी है। 12 से 15 जनवरी 2023 में हुए डोमोटेक्स फेयर में पानीपत का कारपेट चीन एवं तुर्की के लिए चुनौती साबित हुआ है। इसमें उद्यमियों को 300 करोड़ तक के आर्डर मिले, जिसे लेकर उद्यमियों में खासा उत्साह है। पानीपत में इस समय कारपेट के 250 उद्योग लगे हुए हैं और तीन हजार करोड़ से अधिक का कारपेट निर्यात हो रहा है। पानीपत का अधिकतर कारपेट हैंडमेड है। इससे इसकी कीमत ज्यादा है, जबकि तुर्की और चीन में बना कारपेट मशीन से बनाया जाता है। पानीपत के 70 प्रतिशत उद्योगों में हाथ से कारपेट बनते हैं। यहां एक दिन में 10 करोड़ का कारपेट तैयार हो रहा है।

यूपी का भदोही कालीन निर्यात का एक बड़ा केंद्र

आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020-21 में राज्य से 4,108.37 करोड़ रुपए का कालीन निर्यात हुआ था जबकि वर्ष 2019-20 में 3,704.05 करोड़ रुपए का ही निर्यात राज्य का कालीन उद्योग कर सका था। वही अप्रैल 2021 से अक्टूबर 2021 तक 3,054.97 करोड़ रुपए का कालीन राज्य से निर्यात हुआ। प्रदेश से होने वाले कुल कालीन निर्यात का 95 फीसदी भदोही और उसके आसपास के जिलों से होता है।

यूपी में कालीन उद्योग से 10 लाख परिवारों की जिंदगी से जुड़ी

उत्तर प्रदेश के वाराणसी, भदोही और मिर्जापुर जिले की अर्थव्यवस्था में कालीन उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। करीब डेढ़ हजार से अधिक रजिस्टर्ड कंपनियां इन तीन जिलों में कालीन बनाने और एक्सपोर्ट करने के काम में लगी हुई हैं। इससे अकेले भदोही और वाराणसी क्षेत्र के दो लाख से ज्यादा कारीगरों और उनके लगभग 10 लाख परिवारों की जिंदगी जुड़ी हुई है। भदोही की पर्शियन कार्पेट पाकिस्तान, ईरान और तुर्की में बनी कार्पेट से अधिक पसंद की जाती है। यहां का बना कालीन देश में मुंबई, दिल्ली, गुजरात, गोवा, तमिलनाडू, राजस्थान समेत देश के कई शहरों और अमेरिका, यूरोप, जर्मनी, जापान सहित कई अन्य देशों में जाता है। इसे बढ़ावा देने के लिए प्रदेश की योगी सरकार ने भदोही में कार्पेट एक्सपो मार्ट खोला है।

मोदी सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए हर सेक्टर को मजबूत करने पर जोर दे रही है। यही वजह है कि आज सेक्टर में निर्यात बढ़ रहा है। निर्यात के आंकड़ों पर एक नजर-

पीएम मोदी के विजन से खिलौना निर्यात 6 गुना बढ़कर 1000 हजार करोड़ रुपये पहुंचा

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र की सत्ता में आने के बाद भारत के विकास की तस्वीर बदल दी। बंद पड़े खाद कारखानों से लेकर कई उद्योगों एवं फैक्टरी को फिर से शुरू किया गया। इन्हीं उद्योगों में एक था खिलौना उद्योग जिसे कांग्रेस ने मरने के लिए अपने हाल पर छोड़ दिया था। लेकिन पीएम मोदी के विजन से खिलौना उद्योग सफलता के नए कीर्तिमान रच रहा है। वित्त वर्ष 2022-23 की अप्रैल-दिसंबर अवधि के दौरान देश का खिलौनों का निर्यात छह गुना बढ़कर 1,017 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। जबकि इसी अवधि में 2013 में यह 167 करोड़ रुपये था। वर्ष 2021-22 में निर्यात 2,601 करोड़ रुपये रहा था।

दवाओं का निर्यात एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंचा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ‘विश्व की फार्मेसी’ बनने की ओर अग्रसर है। अप्रैल-दिसंबर 2022 में दवाओं एवं फार्मास्युटिकल उत्पादों का निर्यात 2013 की इसी अवधि की तुलना में लगभग 2.4 गुना बढ़ गया। अप्रैल-दिसंबर 2013-14 में भारत से दवाओं का निर्यात जहां 49,200 करोड़ रुपये का था वहीं अप्रैल-दिसंबर 2022-23 में यह बढ़कर 1,17,740 करोड़ रुपये हो गया। विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत से दवा का निर्यात वित्त वर्ष 2023 में 27 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर को छू सकता है। फार्मास्युटिकल्स एक्सपोर्ट्स प्रमोशन काउंसिल (Pharmexcil) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह अब तक का सबसे अधिक मूल्यांकन वाला निर्यात होगा।

मेड इन इंडिया का कमाल, 2.5 बिलियन डॉलर से अधिक के आईफोन का एक्सपोर्ट

पहले भारत में चीन में निर्मित सस्ते स्मार्ट फोन की बड़ी मांग थी, लेकिन अब भारत में बने आईफोन की मांग पूरी दुनिया में बढ़ गई हैं। एप्पल ने 2022-23 के पहले नौ महीने यानी पिछले साल अप्रैल-दिसंबर माह में भारत से 2.5 बिलियन डॉलर से अधिक के आईफोन का एक्सपोर्ट किया, जो पूरे वित्त वर्ष 2021-22 (FY22) में किए गए निर्यात का लगभग दोगुना है। तेजी से बढ़ती संख्या इस बात की ओर इशारा करती है कि कैसे एप्पल अपने उत्पादन को चीन के बाहर स्थानांतरित कर रही है। इस क्षेत्र के जानकारों मुताबिक भारत में आईफोन बनाने वाले फॉक्सकॉन टेक्नोलॉजी समूह और विस्ट्रॉन कॉर्प ने साल 2022-23 के पहले नौ महीने में एक-एक अरब डॉलर से ज्यादा के एप्पल के साजो-सामानों का निर्यात किया है। एप्पल के लिए प्रोडक्शन करने वाली एक और कंपनी पेगाट्रॉन कॉर्प भी इस महीने के अंत तक करीब 50 करोड़ डॉलर के Gadgets निर्यात करने वाली है।

भारतीय रक्षा उत्पादों का निर्यात 8 गुना बढ़ा : मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 अक्टूबर 2022 को डिफेंस एक्सपो-2022 का उद्घाटन करने के बाद कहा कि भारतीय रक्षा बलों का देश में बने अधिकतर उपकरणों को खरीदने का निर्णय ‘आत्मनिर्भर भारत’ की क्षमता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि विश्व स्तर पर रक्षा क्षेत्र में कुछ निर्माण कंपनियों के एकाधिकार के बावजूद भारत ने अपना स्थान बनाया है। उन्होंने कहा कि भारत से रक्षा निर्यात 2021-22 में लगभग 13,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया और आने वाले समय में हमने इसे 40,000 करोड़ रुपये तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। भारतीय रक्षा उत्पादों का निर्यात पिछले कुछ वर्षों में आठ गुना बढ़ा है। उन्होंने कहा, ‘देश बहुत आगे निकल गया है, क्योंकि पहले हम कबूतर छोड़ते थे और अब हम चीतों को छोड़ते हैं।’ प्रधानमंत्री ने समुद्री सुरक्षा और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के महत्व पर भी जोर दिया। मोदी ने कहा कि पहली बार डिफेंस एक्सपो में केवल भारतीय कंपनियां भाग ले रही हैं। इसमें 1,300 से अधिक प्रदर्शकों ने शिरकत की है, जिनमें भारतीय रक्षा उद्योग, इससे जुड़े कुछ संयुक्त उद्यम, 100 से अधिक स्टार्ट-अप हैं।

भारत ने 7,034 करोड़ रुपये की रक्षा सामग्री का निर्यात किया

भारत ने 1 नवंबर 2022 तक 7000 करोड़ का रक्षा निर्यात किया है। इस तरह चालू वित्त वर्ष में 15000 करोड़ रुपये रक्षा निर्यात किए जाने की उम्मीद है। आधिकारिक आंकड़े के अनुसार, भारत ने इस साल 1 नवंबर तक 7,034 करोड़ रुपये की रक्षा सामग्री का निर्यात किया है। वर्ष 2021-22 में भारत ने 12,814 करोड़ रुपये का के रक्षा निर्यात किया था। 2014-15 के बाद से इसमें उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है, उस दौरान यह आंकड़ा मात्र 1940.64 करोड़ था।

अनाज के निर्यात में 53.78 प्रतिशत की बढ़ोतरी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार में जहां अनाजों का भरपूर उत्पादन हो रहा है, वहीं भारत को निर्यात के मोर्चे पर लगातार सफलता मिल रही है। कृषि व खाद्य वस्तुओं के निर्यात में लगातार तेज बढ़ोतरी देखी जा रही है। चावल के अलावा विभिन्न प्रकार के अनाज के निर्यात में तो नवंबर 2022 में 53.78 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, नवंबर माह में चाय, चावल, विभिन्न अनाज, तंबाकू, ऑयल मिल्स, तिलहन, फल व सब्जी, विभिन्न प्रकार के तैयार अनाज व प्रोसेस्ड आइटम के निर्यात में पिछले साल नवंबर के मुकाबले दहाई अंक में बढ़ोतरी रही। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चाय 27.03 प्रतिशत, चावल 19.16 प्रतिशत, ऑयल मिल्स 17.55 प्रतिशत, तिलहन 38.83 प्रतिशत, फल व सब्जी 25.01 प्रतिशत, प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के एक्सपोर्ट करने में 22.75 प्रतिशत की ग्रोथ हुई है। निर्यातकों के मुताबिक आगामी वर्ष को संयुक्त राष्ट्र ने मिलेट्स वर्ष घोषित किया है और इससे मोटे अनाज के निर्यात को प्रोत्साहन मिलेगा।

40 हजार करोड़ रुपये से अधिक के मोबाइल फोन का निर्यात

नीति आयोग के अनुसार चालू वर्ष के दौरान नवंबर 2022 तक, मोबाइल फोन का निर्यात 40 हजार करोड़ रुपये से अधिक का हो चुका है। यह पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान हुए निर्यात के दोगुने से भी अधिक है। मोबाइल फोन का उत्पादन जो 2014-15 में लगभग छह करोड़ का था वह 2021-22 में बढ़कर लगभग 31 करोड़ हो गया। जिस रफ्तार से मोबाइल फोन का निर्यात हो रहा है, उससे यह उम्मीद की जा रही है कि पूरे वित्त वर्ष 2022 के आंकड़े को दिसंबर की शुरुआत में ही पार कर लिया जाएगा और वित्तीय वर्ष 2023 को यह 8.5-9 बिलियन डॉलर की सीमा को भी पार कर लेगा। वहीं भारत ने वित्त वर्ष 2022 में 5.8 बिलियन डॉलर के मोबाइल फोन का निर्यात किया है।

मोबाइल आयात पर निर्भरता लगभग 5 प्रतिशत हुआ

उद्योग निकाय इंडिया सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन के मुताबिक, जैसे-जैसे निर्यात बढ़ रहा है, भारत ने वित्त वर्ष 2022 में मोबाइल आयात पर निर्भरता को भी लगभग 5 प्रतिशत तक कम कर दिया है, जो 2014-15 में 78 प्रतिशत के उच्च स्तर पर था। वहीं अब भारत का लक्ष्य 2025-26 तक 60 बिलियन डॉलर के सेल फोन का निर्यात करना है। शुरुआत में भारत से मुख्य तौर पर साउथ एशिया,अफ्रीका, मिडिल ईस्ट और ईस्टर्न यूरोप के देशों को मोबाइल फोन निर्यात किया जाता था। लेकिन अब कंपनियों का ध्यान यूरोप और एशिया के कॉम्पिटिटिव मार्केट पर है। पहले मोबाइल फोन निर्यात के मामले में काफी पीछे हुआ करता था। वर्ष 2016-17 में देश से केवल 1 प्रतिशत से अधिक ही मोबाइल फोन उत्पादन का निर्यात हुआ करता था, लेकिन आईसीईए के आंकड़ों के अनुसार यह प्रतिशत 2021-22 में बढ़कर लगभग 16 प्रतिशत तक पहुंच गया। वहीं ऐसी संभावनाएं जतायी जा रही हैं कि साल 2022-2023 में उत्पादन का लगभग 22 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा।

पीएम मोदी के विजन से फलों का निर्यात तीन गुना बढ़ा

भारत विश्वभर में आम, केला, आलू तथा प्याज जैसे फलों और सब्जियों का प्रमुख उत्पादक है। सब्जियों की बात करें तो अदरक और भिंडी के उत्पादन में भारत पहले स्थान पर है। आलू, प्याज, फूलगोभी, बैगन तथा पत्ता गोभी आदि के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान रखता है। लेकिन जब बात निर्यात या वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी की आती है तो इसमें भारत बहुत पीछे रह गया। वर्ष 2014 में देश की बागडोर संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समूचे भारत के विकास पर जोर दिया और उन्होंने हर उस सेक्टर की पहचान की जिसमें भारत बेहतर कर सकता है। पिछले आठ साल में भारतीय फल पपीता और खरबूजे के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2013-2014 के अप्रैल-सितंबर में इन दोनों फलों का निर्यात जहां 21 करोड़ रुपये का होता था वहीं अब अप्रैल-सितंबर वर्ष 2022-2023 में यह तीन गुना बढ़कर 63 करोड़ रुपये का हो गया है।

आदिवासी हैंडीक्राफ्ट ने विदेशों में की 12 करोड़ डॉलर से अधिक की कमाई

देश के निर्यात में हैंडीक्राफ्ट का हिस्सा बढ़ता जा रहा है। हैंडीक्राफ्ट का करीब 30 फीसदी की दर से निर्यात बढ़ रहा है। हाल ही के आंकड़ों के मुताबिक आदिवासी हस्तशिल्प ने विदेशी बाजारों में 12 करोड़ डॉलर से अधिक की कमाई की है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में बताया कि भारत अब सबसे बड़े हस्तशिल्प निर्यातक देशों में से एक है, जिसमें आदिवासी हस्तशिल्प विदेशी बाजारों में 120 मिलियन डॉलर से अधिक की कमाई करते हैं। आज दुनिया के 90 से अधिक देश भारत के हस्तशिल्प उत्पादों को खरीदते हैं।

भारत ने 2 लाख टन चीनी निर्यात किया

भारत ने चालू वर्ष 2022-23 में अबतक लगभग 35 लाख टन चीनी के निर्यात के लिए अनुबंध किए हैं। इसमें से 2,00,000 टन चीनी का पिछले महीने निर्यात किया गया है। पांच नवंबर को घोषित 2022-23 की चीनी निर्यात नीति में 31 मई तक कोटा के आधार पर 60 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी गई थी। घरेलू उत्पादन का आकलन करने के बाद निर्यात के लिए आगे की मात्रा के लिए अनुमति दी जाएगी। इसमें से लगभग 2,00,000 टन चीनी का भौतिक रूप से अक्टूबर में देश के बाहर निर्यात किया गया है, जबकि पिछले साल इसी महीने में लगभग 4,00,000 टन चीनी का निर्यात किया गया था। पिछले 2021-22 सत्र में भारत ने 1.1 करोड़ टन चीनी का निर्यात किया था।

लद्दाख से 35 एमटी ताजा खुबानी का निर्यात किया गया

लद्दाख से कृषि और खाद्य उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय निर्यात को बढ़ावा देने वाली अपनी संस्था एपीडा के माध्यम से ‘लद्दाख एप्रिकोट’ यानी लद्दाख खुबानी ब्रांड के तहत लद्दाख से निर्यात बढ़ाने के लिए खुबानी मूल्य श्रृंखला के हितधारकों को सहायता देने की प्रक्रिया में है। खुबानी लद्दाख के महत्वपूर्ण फलों में से एक है और स्थानीय स्तर पर ‘चुली’ के नाम से जानी जाती है। एपीडा ने वर्ष 2021 के दौरान केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से ताजा खुबानी फलों के निर्यात की पहचान की थी और खुबानी सीजन 2021 के अंत में परीक्षण के तहत इसकी दुबई को आपूर्ति की गई थी। इसके अनूठे स्वाद और सुगंध के कारण उत्पाद की स्वीकार्यता के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्पाद की खासी मांग थी। एपीडा ने 14 जून, 2022 को लेह में एक अंतर्राष्ट्रीय क्रेता-विक्रेता बैठक का भी आयोजन किया था, जो खुबानी की खेती का सीजन शुरू होने से ठीक पहले हुई थी। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से खुबानी और अन्य कृषि उत्पादों के उत्पादकों और आपूर्तिकर्ताओं के साथ संवाद के लिए भारत, अमेरिका, बांग्लादेश, ओमान, दुबई, मॉरिशस आदि देशों के 30 से ज्यादा खरीदार एकजुट हुए थे। इसके परिणामस्वरूप 2022 सीजन के दौरान पहली बार लद्दाख से 35 एमटी ताजी खुबानी का विभिन्न देशों को निर्यात किया गया। परीक्षण के तहत 2022 सीजन के दौरान सिंगापुर, मॉरिशस, वियतनाम जैसे देशों को भी शिपमेंट भेजी गई। 15,789 टन के कुल उत्पादन के साथ लद्दाख देश का सबसे बड़ा खुबानी उत्पादक है जो कुल उत्पादन का लगभग 62 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में लगभग 1,999 टन सूखी खुबानी का उत्पादन किया, जिससे यह देश में सूखी खुबानी का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है। लद्दाख में खुबानी की खेती का कुल क्षेत्रफल 2,303 हेक्टेयर है।

बासमती और गैर बासमती चावल का निर्यात 10 फीसदी बढ़ा

चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान जहां बासमती चावल के निर्यात में 10.67 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई, वहीं गैर बासमती चावल का निर्यात इस दौरान 9.28 फीसदी ज्यादा हुआ। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान बासमती चावल का निर्यात बढ़कर 21.57 लाख टन का हुआ है, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 19.49 लाख टन का ही हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में बासमती चावल का निर्यात 17,896 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में केवल 12,294 करोड़ रुपये का ही निर्यात हुआ था। गैर बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान बढ़कर 89.56 लाख टन का हुआ है, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 81.95 लाख टन का ही हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में में गैर बासमती चावल का निर्यात 25,191 करोड़ रुपये का हुआ है, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में केवल 21,853 करोड़ रुपये का ही निर्यात हुआ था।

मांस, डेयरी और पोल्ट्री उत्पादों का निर्यात 10.29 प्रतिशत बढ़ा

चालू वित्त वर्ष के छह महीनों में मांस, डेयरी और पोल्ट्री उत्पादों के निर्यात में 10.29 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। अकेले पोल्ट्री निर्यात में 83 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इन रिकॉर्ड निर्यातों से देश को 57 मिलियन अमरीकी डॉलर का लाभ हुआ है। डेयरी उत्पादों की बात करें तो यहां भी 58 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जहां अप्रैल-सितंबर 2021-22 में क्षेत्र से 216 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कमाई हुई थी वहीं अप्रैल-सितंबर 2022-23 में यह कमाई 342 मिलियन अमेरिकी डॉलर रही।

कृषि उत्पादों के निर्यात में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी

कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात में पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 की समान अवधि के मुकाबले चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 के 6 महीनों के दौरान 25% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के दौरान 11,056 मिलियन डॉलर के कृषि एवं प्रशंसक खाद्य उत्पाद निर्यात किए गए थे जबकि इस वर्ष 13,771 मिलीयन डॉलर दर्ज किया गया है। निर्यात किए गए उत्पादों में फल, सब्जियां और अनाज मुख्य रूप से शामिल है।

148 करोड़ डॉलर के गेहूं का निर्यात

वित्त वर्ष की पहली छमाही के दौरान देश के गेहूं निर्यात में जबरदस्त उछाल आया है। अप्रैल से सितंबर 2022 के दौरान देश से कुल 148 करोड़ डॉलर का गेहूं एक्सपोर्ट किया गया, जो पिछले वित्त वर्ष की पहली छमाही के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है। अप्रैल से सितंबर 2021 के दौरान देश से कुल 63 करोड़ रुपये के गेहूं का निर्यात किया गया था।

मसाला निर्यात में 22 फीसदी वृद्धि, बढ़कर 42,860 टन हुआ

नवंबर 2022 में भारत से मसाला निर्यात बढ़कर 42,860 टन हो गया। मसाला बोर्ड की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार नवंबर में निर्यात 0.56 प्रतिशत बढ़कर 42,860 टन रहा। पिछले वर्ष इसी महीने में 42,620 टन मसालों का निर्यात हुआ था। इस दौरान मसाला निर्यात 22 प्रतिशत बढ़कर 62,162.78 करोड़ रुपये का रहा, जो पिछले वर्ष नवंबर में 50,969.37 करोड़ रुपये का था। नवंबर में भारत ने 25,000 टन मिर्च का निर्यात किया जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 19,500 टन का हुआ था। मसाला बोर्ड के बयान के अनुसार अप्रैल-नवंबर 2010 के दौरान 4,320.8 करोड़ रुपये के 3.6 लाख टन मसालों का निर्यात किया गया। अप्रैल-नवंबर 2009 में 3,770.1 करोड़ रुपये मूल्य के 3,41,950 टन मसालों का निर्यात हुआ था। यह मात्रा में 6 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। बोर्ड ने कहा कि चालू वित्तवर्ष में 4,65,000 टन/5,100 करोड़ रुपये के मसाला निर्यात कर लक्ष्य रखा गया है।

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