प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जिस तरह से ‘सर्वसमाज के हित’ की अवधारणा को मजबूती प्रदान की गई है इससे मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चलती रही राजनीतिक पार्टियों का आधार हिल गया है। अल्पसंख्यकवाद के आसरे जिन पार्टियों ने देश की राजनीति को गंदा किया, अब उन्हें बहुसंख्यक हिंदुओं की चिंता भी होने लगी है। अब तक मुस्लिम परस्ती का दंभ भरने वाली ममता बनर्जी ने भी खुद को बदलना शुरू कर दिया है और हिंदुओं की हिमायती दिखने की कोशिश करने लगी हैं। हालांकि उनका यह बदलाव सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश भर है।
दरअसल इस साल कुछ समय बाद पंचायत चुनाव होने वाले हैं और इन चुनावों से पहले ममता बनर्जी यह साबित करने पर तुली हैं कि तृणमूल कांग्रेस कोई हिंदू-विरोधी पार्टी नहीं है। जाहिर है प्रदेश में बीजेपी के तेजी से हो रहे उभार के बीच ममता बनर्जी की बेचैनी समझी जा सकती है।
आइये पहले उनके लिए गए कुछ उन निर्णयों पर नजर डालते हैं जो उन्होंने अपनी छवि सुधारने के लिए किए हैं-
- रामनवमी पूजा करेगी टीएमसी
तृणमूल कांग्रेस ने इस वर्ष रामनवमी मनाने की घोषणा की। - ब्राह्मण सम्मेलन से दिया संदेश
9 जनवरी, 2018 को टीएमसी ने ब्राह्मण सम्मेलन किया। - गोदान से छवि सुधारने की कोशिश
नवंबर, 2017 में ममता सरकार ने 2000 गाय बांटने का निर्णय लिया। - गंगा सागर मेला को कुंभ मेला कहा
गंगा सागर में लगने वाले मेला को ममता बनर्जी ने कुंभ मेला कहा। - मंदिरों के लिए अलग बोर्ड का गठन
तारापीठ तारकेश्वर और कालीघाट मंदिर के पुनर्रुद्धार के लिए बोर्ड बनावाने का फैसला किया। - राजबंशी के लिए वेलफेयर बोर्ड
एससी एडवायजरी काउंसिल बनाने और राजबंशी वेलफेयर बोर्ड बनाने का फैसला लिया।
बहरहाल हम अब ममता की ‘हिंदुओं की हिमायती’ होने की हकीकत की पड़ताल करते हैं। दरअसल ये निर्णय दिखावे के लिए हैं, परन्तु ये उस डर का भी परिणाम है जो प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के लगातार विस्तार से हो रहा है। गौरतलब है कि पूरे देश की तरह ही पश्चिम बंगाल में बीजेपी का खामोशी से बढ़ती जा रही है। भले ही यह उभार अभी तक बीजेपी के लिए चुनावी कामयाबी की शक्ल ना ले पाया हो, लेकिन कांग्रेस और लेफ्ट को पछाड़कर बीजेपी का दूसरी बड़ी पार्टी हो जाना और त्रिपुरा की सत्ता में बीजेपी का बड़े समर्थन के साथ आ जाना, ममता के लिए खतरे की घंटी है।
दरअसल इस उभार के पीछे जहां पीएम मोदी के नेतृत्व पर लोगों का भरोसा है, वहीं ममता बनर्जी की मुस्लिम परस्त राजनीति भी बड़ी जिम्मेदार है। आइये हम ममता की हिंदू विरोध और मुस्लिम तुष्टिकरण की इस राजनीति पर नजर डालते हैं-
सरकारी पैसे से ‘मुस्लिम परस्ती’
ममता सरकार 2013 से पहले 30 हजार मुस्लिम इमामों और 15 हजार मुअज्जिनों को क्रमश: 2500 और 1500 रुपये का स्टाइपेंड यानी जीविका भत्ता देती थी। वहीं हिंदू पुरोहितों ने जब ये स्टाइपेंड मांगा तो उन्होंने साफ मना कर दिया। हालांकि हाईकोर्ट ने इसे फिजूलखर्जी करार देते हुए इस फैसले पर रोक लगा दी है।
छठ पूजा पर लगाई रोक
पिछले वर्ष ममता बनर्जी सरकार ने पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में महानंदा नदी में छठ पूजा मनाने पर रोक लगा दी थी। एक अखबार की खबर के अनुसार मता सरकार ने एनजीटी के आदेश का हवाला देकर महानंदा नदी में छठ पूजा मनाने पर बैन कर दिया।
दशहरे में शस्त्र जुलूस पर रोक
हिंदू धर्म में दशहरे पर शस्त्र पूजा की परंपरा रही है, लेकिन मुस्लिम प्रेम में ममता बनर्जी ने दशहरा के दिन पश्चिम बंगाल में शस्त्र जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी।
She is saying Muharram procession with Blades will be allowed however…Those are peaceful https://t.co/d5iuhZ9tS3
— RAJ (@RKBB10) September 5, 2017
कांगलापहाड़ी में दुर्गा पूजा पर रोक
बीरभूम जिले के कांगलापहाड़ी गांव में 300 घर हिंदुओं के हैं और 25 परिवार मुसलमानों के हैं, लेकिन मुसलमानों को खुश करने के लिए इस गांव में चार साल से दुर्गा पूजा पर पाबंदी है।
रामनवमी पूजा पर लगाई रोक
‘लेक टाउन रामनवमी पूजा समिति’ ने पिछले वर्ष 22 मार्च को पूजा की अनुमति के लिए आवेदन दिया था, लेकिन जब राज्य सरकार के दबाव में नगरपालिका ने पूजा की अनुमति नहीं दी तो कलकत्ता हाईकोर्ट ने पूजा शुरू करने की अनुमति देने का आदेश दिया।
हनुमान जयंती में जुलूस पर रोक
11 अप्रैल, 2017 को पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के सिवड़ी में हनुमान जयंती के जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण ममता सरकार से हिन्दू जागरण मंच को हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी।
हिंदुओं पर कानूनी डंडे की चोट
ममता बनर्जी ने 6 अप्रैल, 2017 को बयान दिया – भगवान राम ने दुर्गा की पूजा फूलों के साथ की थी, तलवारों के साथ नहीं। ममता सरकार का इशारा मिलते ही पुलिस ने हनुमान जयंती जुलूस में शामिल होने पर 12 हिन्दुओं को गिरफ्तार कर लिया। उन पर आर्म्स एक्ट समेत कई गैर जमानती धाराएं लगा दीं।
धूलागढ़ दंगे में एंटी हिंदू एक्शन
धूलागढ़ दंगे मेंहिन्दू परिवारों पर आक्रमण हुए। उनके घर जलाए गए, उन्हें मारा-पीटा गया, महिलाओं के साथ बलात्कार हुए, लेकिन ममता सरकार ने हिन्दुओं के बचाव के लिए कुछ नहीं किया। उल्टा हिंसा में 65 आरोपियों को गिरफ्तार करने पर हावड़ा के एसपी (ग्रामीण) सब्यसाची रमन मिश्रा का तबादला कर दिया गया। रिपोर्ट कवर करने गए जी न्यूज की रिपोर्टर, संपादक पर केस दर्ज कराया गया। उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की गयी।
पुस्तकालयों में नबी दिवस-ईद अनिवार्य
11 जनवरी 2017 को ममता सरकार ने आदेश जारी किया कि नबी दिवस को सरकारी पुस्तकालयों में भी मनाया जाएगा। राज्य के सभी 2480 सरकारी पुस्तकालयों को इसके लिए सरकारी खजाने से फंड देने की भी व्यवस्था की गई।
NabiDibas & Eid made mandatory in 2480 Govt Libraries of WB•BUT NO Saraswati Pujo•Only cultural program allowed#Shame pic.twitter.com/eEgQEeNsWL
— Babul Supriyo (@SuPriyoBabul) February 18, 2017
ममता राज में सरस्वती पूजा पर बैन
हावड़ा के एक सरकारी स्कूल पिछले 65 सालों से सरस्वती पूजा मनायी जा रही थी, लेकिन मुसलमानों को खुश करने के लिए ममता सरकार ने 2016 की फरवरी में पूजा पर रोक लगा दी। जब स्कूल के छात्रों ने सरस्वती पूजा मनाने को लेकर प्रदर्शन किया, तो मासूम बच्चों पर डंडे बरसाए गए।
Pious TMC boycotts Budget to celebrate Saraswati Puja. In Bengal, Tehatta HS School shut down as Muslims won’t allow Saraswati Puja. pic.twitter.com/dvoYSh4e5V
— কাঞ্চন গুপ্ত (@KanchanGupta) February 1, 2017
ममता ने बदला ‘राम’ का नाम
तीसरी क्लास में पढ़ाई जाने वाली किताब अमादेर पोरिबेस (हमारा परिवेश) ‘रामधनु’ (इंद्रधनुष) का नाम बदल कर ‘रंगधनु’ कर दिया गया। साथ ही ब्लू का मतलब आसमानी रंग बताया गया है। दरअसल साहित्यकार राजशेखर बसु ने सबसे पहले ‘रामधनु’ का प्रयोग किया था, लेकिन अब एक समुदाय विशेष को खुश करने के लिए किताब में इसका नाम ‘रामधनु’ से बदलकर ‘रंगधनु’ कर दिया है।
गोहत्या को ममता का समर्थन
18 दिसंबर 2016 को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हुगली में मुसलमानों को संबोधित करते हुए बीफ खाने के प्रति अपना समर्थन दोहराया, ”यह पसंद का मामला है। मेरा अधिकार है मछली खाना। वैसे ही, आपका अधिकार है मांस खाना। आप जो कुछ भी खाएं – बीफ या चिकन, यह आपकी पसंद है।”
8,000 गांवों से विलुप्त हुए हिंदू
पश्चिम बंगाल के 38,000 गांवों में 8,000 गांव अब इस स्थिति में हैं कि वहां एक भी हिन्दू नहीं रहता, या यूं कहना चाहिए कि उन्हें वहां से भगा दिया गया है। बंगाल के तीन जिलों में आबादी का संतुलन बिगड़ गया है। मुर्शिदाबाद में 47 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिन्दू, मालदा में 20 लाख मुस्लिम और 19 लाख हिन्दू, और उत्तरी दिनाजपुर में 15 लाख मुस्लिम और 14 लाख हिन्दू हैं।
बंगाल में घटती जा रही हिंदुओं की संख्या
पश्चिम बंगाल में 1951 की जनसंख्या के हिसाब से 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी कमी आयी है। अखिल भारतीय स्तर पर भारत की हिन्दू आबादी 0.7 प्रतिशत कम हुई है तो वहीं सिर्फ बंगाल में ही हिन्दुओं की आबादी में 1.94 प्रतिशत की गिरावट हुई है, जो कि बहुत ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की आबादी में 0.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जबकि सिर्फ बंगाल में मुसलमानों की आबादी 1.77 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर से भी दोगनी है।