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कांग्रेस प्रायोजित छापामार आंदोलन के पीछे का सच, हार्दिक पटेल से लेकर मेवानी तक सब चुनाव से पहले बने आंदोलनकारी, बाद में कांग्रेस में हुए शामिल, अब राकेश टिकैत की बारी

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कांग्रेस और पाकिस्तान में कोई फर्क नहीं है। दोनों परोक्ष और छद्म लड़ाई के जरिए अपना मकसद पूरा करना चाहते हैं। जहां पाकिस्तान भारत की मजबूत सेना से सीधे टकरा नहीं सकता, इसलिए आतंकवादियों के जरिए छद्म युद्ध छेड़ रखा है, उसी तरह कांग्रेस मोदी सरकार से सीधे टकराने का साहस खो चुकी है,इसलिए छापामार आंदोलन का सहारा ले रही है। इसके लिए वो चुनाव से ठीक पहले परोक्ष रूप से एक आंदोलन शुरू करती है और बाद में जब आंदोलनकारियों की भूमिका खत्म हो जाती है, तो उन्हें अपनी पार्टी में शामिल कर लेती है। कांग्रेस प्रायोजित आंदोलन की उपज हार्दिक पटेल से लेकर जिग्नेश मेवानी तक इसके प्रमाण है। 

दरअसल छापेमार लड़ाई में छापेमारों को पहचानना कठिन होता है। इनकी कोई विशेष वेशभूषा नहीं होती। दिन के समय ये साधारण नागरिकों की भांति रहते और छिपकर आतंक फैलाते हैं। छापामार नियमित सेना को धोखा देकर विध्वंस कार्य करते हैं। इसी तरह कांग्रेस चुनाव से पहले एक आंदोलन की पृष्टभूमि तैयार करती है, उसके लिए एक छद्म आंदोलनकारी तैयार करती है, ताकि जनता कांग्रेस के सियासी मंसूबों से अनजान रहे और जनता के बीच बीजेपी सरकार की छवि खराब की जा सके। इसी रणनीति का हिस्सा रहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी मंगलवार (28 सितंबर, 2021) को कांग्रेस में शामिल हो गए। इन दोनों युवा नेताओं ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में देश की सबसे पुरानी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। 

कांग्रेस जिस सेक्युलर और टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन करती है, उसके पोस्टर बॉय कन्हैया कुमार है।  मूल रूप से बिहार से ताल्लुक रखने वाले कन्हैया जेएनयू में कथित तौर पर देशविरोधी नारेबाजी के मामले में गिरफ्तारी के बाद सुर्खियों में आए थे। वह पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार की बेगूसराय लोकसभा सीट से केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के खिलाफ भाकपा के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे थे, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

जिग्नेश मेवानी कांग्रेस के प्रायोजित आंदोलन की उपज है। 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव होने वाला था, उससे ठीक एक साल पहले यानि 2016 में कई युवा आंदोलनकारी उभर कर समाने आए। गुजरात में चुनाव से पहले आंदोलनों का दौर शुरू हुआ। पाटीदार आंदोलन का अगुवा हार्दिक पटेल बने, तो अन्य पिछड़े वर्गों के आंदोलन का नेतृत्व अल्पेश ठाकुर ने किया। इस दौरान दलित आंदोलन भी शुरू हुआ, जिसका नेतृत्व पत्रकार से वकील बने जिग्नेश मेवानी ने किया। जिग्नेश ऊना में दलितों की पिटाई के बाद गुजरात में चल रहे दलित आंदोलन का मुख्य चेहरा बनकर उभरें। किसी से छिपा नहीं है कि इस आंदोलन को हवा देने में कांग्रेस ने किस तरह पीछे से काम किया। 2017 में जिग्नेश मेवानी ने बनासकांठा जिले की वडगाम सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था और यहां कांग्रेस ने अपना कैंडिडेट न उतारकर उन्हें जीतने में मदद की थी। तब से ही कांग्रेस और मेवानी के बीच अच्छे रिश्ते बन गए थे। 

इससे पहले गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल 12 मार्च, 2019 को आधिकारिक तौर पर कांग्रेस में शामिल हुए थे। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हार्दिक पटेल का पार्टी में स्वागत किया था। इस मौके पर प्रियंका गांधी और मनमोहन सिंह भी मौजूद थे। महज 22 साल की उम्र में हार्दिक पटेल ने पटेल आरक्षण को लेकर आंदोलन चलाया। उस दौरान उन्होंने 80 से ज्यादा रैलियां की थीं। परदे के पीछे से कांग्रेस ने पाटीदार आंदोलन का खर्च का जिम्मा उठाना शुरू कर दिया था। यहां तक कि हार्दिक के आंदोलन के पीछे भीड़ जमा करना भी शुरू कर दिया था। बाद में हार्दिक ने 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में दो अन्य युवा नेताओं अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी के साथ कांग्रेस का साथ दिया था।

हार्दिक, जिग्नेश के बाद अब किसान नेता राकेश टिकैत की कांग्रेस में शामिल होने की बारी है। क्योंकि विधायक और सांसद बनने की राकेश टिकैत की पुरानी महत्वाकांक्षा है। इसके लिए वे दो बार प्रयास भी कर चुके हैं, लेकिन जनता ने उन्हें नाकार दिया। अब वो किसान आंदोलन की आड़ में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन तैयार कर रहे हैं। इसमें कांग्रेस उनकी पूरी मदद कर रही है। दरअसल किसान आंदोलन की पूरी पठकथा कांग्रेस ने लिखी है। तीन कृषि कानून मोदी सरकार के विरोध का सिर्फ बहाना है। मोदी सरकार की किसानों में छवि खराब करने के लिए आंदोलन की शुरुआत की गई है, जिसकी पूरी फंडिंग कांग्रेस कर रही है। खुद कांग्रेस के विधायक ने ही इसका खुलासा किया है। अब राकेश टिकैत भी पूरी तरह कांग्रेस नेता के रूप में काम कर रहे है, सिर्फ आधिकारिक घोषणा करना बाकी है। वो कांग्रेस प्रवक्ता के रूप में विभिन्न मंचों पर राहुल गांधी के कसीदे पढ़ रहे हैं। इससे किसान आंदोलन के पीछे कांग्रेस के छापामार आंदोलन की सच्चाई दुनिया के सामने आने लगी है। 

 

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