Home नरेंद्र मोदी विशेष संरचनात्मक सुधारों से बदल रही अर्थव्यवस्था की तस्वीर

संरचनात्मक सुधारों से बदल रही अर्थव्यवस्था की तस्वीर

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश की आर्थिक तस्वीर बदलने का कार्य लगातार जारी है। विमुद्रीकरण और जीएसटी जैसे अहम बदलाव के साथ डिजिटल इंडिया के प्रोत्साहन से देश की अर्थव्यवस्था की ‘सफाई’ भी हो रही है। आधार के माध्यम से ट्रांजैक्शन्स में पारदर्शिता लाने की कोशिश भी जारी हैं। इसके अतिरिक्त ढांचागत बदलाव के साथ सतत सुधारवादी नीतियां भी मोदी सरकार की प्राथमिकता में शामिल हैं। हालांकि अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन दिशा सही है।

शैडो इकोनॉमी पर प्रहार
देश में ‘शैडो इकोनॉमी’ यानी आभासी अर्थव्यवस्था के कारण आर्थिक स्थिति गंभीर हो चली थी। 08 नवंबर, 2016 को नोटबंदी का जब निर्णय किया गया तो इसका एक उद्देश्य ‘शैडो इकोनॉमी’ को भी कम करना था। ‘शैडो इकोनॉमी’ वस्तुओं एवं सेवाओं के उस उत्पादन और व्यापार का उल्लेख करती है, जो जान-बूझकर और अक्सर अवैध रूप से सार्वजनिक प्राधिकरणों से छिपी होती हैं। इसे सरल शब्दों में यूं समझ सकते हैं कि समानान्तर आभासी अर्थव्यवस्था यानी शैडो इकोनॉमी देश की अर्थव्यवस्था के आधारों को नष्ट करती है तथा उन्हें समाप्त कर देती है। इससे महंगाई बढ़ती है और सरकार अपने वैध राजस्व से वंचित रह जाती है।

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‘शैडो इकोनॉमी’ का बड़ा दायरा
जुलाई 2010 में भारत की आभासी अर्थव्यवस्था के आकार का अनुमान सकल घरेलू उत्पाद का 23.2 प्रतिशत लगाया था, लेकिन 2014 में नयी सरकार बनने के बाद ‘शैडो इकोनॉमी’ में उत्तरोत्तर कमी आती गई है और यह वर्तमान समय में (जुलाई, 2017 तक) देश की जीडीपी के मुकाबले 17.22 प्रतिशत है।

शैडो इकोनॉमी से नुकसान
जाली या नकली भारतीय करेंसी नोट के इस्तेमाल से विभिन्न प्रकार की विध्वंसक गतिविधियां हो रही हैं। जासूसी, हथियारों, नशीली दवाओं एवं अन्य वर्जित पदार्थो की तस्करी जैसे तमाम कृत्य इस ‘शैडो इकोनॉमी’ के जरिये चलती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के सूचना के अनुसार 2013 में जाली भारतीय नोटों की संख्या 8,46,966 थी, जिनका कुल मूल्य 42,90,25,555 रुपये था। 30 सितंबर 2016 तक सभी वर्ग मूल्यों के कुल जाली नोटों की संख्या 5,74,176 थी जिनका कुल मूल्य 27,79,39,965 रुपये था। यानी 2013 के मुकाबले इसमें लगभग छह प्रतिशत की कमी हो चुकी है। वर्तमान सरकार के प्रयास का ही परिणाम है कि भारत की ‘शैडो इकोनॉमी’ साल 2025 तक जीडीपी के मुकाबले घटकर 13.6 प्रतिशत तक पहुंच सकती है।

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40% बढ़े पंजीकरण, बढ़े टैक्स पेयर्स
जीएसटी का रजिस्ट्रेशन शुरुआती तीन महीनों में 40 प्रतिशत तक बढ़ा है, जो सकारात्मक संकेत है। 72 लाख लोग पुराने सिस्टम से GST में आए और 28 लाख लोग नए जुड़े हैं। कुल रजिस्ट्रेशन एक करोड़ से ज्यादा हो गया है। इसके साथ ही नोटबंदी के बाद व्यक्तिगत टैक्स रिटर्न करने के अंतिम दिन पांच अगस्त तक 56 लाख नये करदाताताओं ने रिटर्न दाखिल किया, जबकि पिछले साल यह संख्या 22 लाख थी। पहली अप्रैल से लेकर 5 अगस्त के बीच कुल मिलाकर 2.79 करोड़ आईटी रिटर्न दाखिल किए गए जबकि 2016 में इस दौरान 2.23 और 2015 में 2 करोड़ रिटर्न दाखिल किए गए।

कर अनुपालन में बढ़ोतरी
सितंबर में जीएसटी लागू होने के 3 महीने पूरे हो होने के बाद जो आंकड़े सामने आए हैं वो सकारात्मक संकेत देते हैं। शुरुआती तीन महीनों में यानी सितंबर में 92,150 करोड़ रुपये टैक्स कलेक्शन किया गया है। जुलाई में जीएसटी कलेक्शन 95,000 करोड़ रुपये था। अगस्त में ये आंकड़ा 91,000 करोड़ रुपये था। यानी 93-94 हजार करोड़ रुपये का टैक्स कलेक्शन तीन महीनों में मेंटेन है।

डिजिटल ट्रांजैक्शन्स में उछाल
रिजर्व बैंक के अनुसार 4 अगस्त तक लोगों के पास 14,75,400 करोड़ रुपये की करेंसी सर्कुलेशन में थे। जो वार्षिक आधार पर 1,89,200 करोड़ रुपये की कमी दिखाती है। जबकि वार्षिक आधार पर पिछले साल 2,37,850 करोड़ रुपये की वृद्धि दर्ज की गई थी। नीति आयोग के मुताबिक मार्च 2017 में 63,80,000 डिजिटल ट्रांजेक्शन्स हुए जिनमें 2,425 करोड़ रुपयों का लेनदेन हुआ। नवंबर 2016 से अगर इसकी तुलना की जाए तो उस वक्त 2,80,000 डिजिटल लेनदेन हो रहे थे जिनमें 101 करोड़ रुपयों का लेनदेन हुआ था। यानि इसमें 23 गुना की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

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FDI में भारी बढ़ोतरी
25 सितंबर, 2014 को मेक इन इंडिया की शुरुआत हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्यमियों को संबोधित करते हुए एफडीआई का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और कहा- FDI यानि फर्स्ट डेवलप इंडिया। उद्योग जगत ने इस अपील को सकारत्मक तरीके से लिया और उनमें एक नये उत्साह का संचार हुआ। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह की बात करें तो अप्रैल 2012 से सितंबर 2014 के तीस महीनों के दौरान 90.98 बिलयन डॉलर था। जबकि इसके मुकाबले अक्टूबर 2014 से मार्च 2017 के दौरान इसमें 51 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह आंकड़ा 137.44 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया।

क्लीन हो रही इंडियन इकोनॉमी
आर्थिक प्रणाली को साफ व स्वच्छ करने के लिए नोटबंदी का निर्णय सफल साबित हो रहा है। अब तक 18 लाख संदिग्ध खातों की पहचान हो चुकी है और 2.89 लाख करोड़ रुपये जांच के दायरे में हैं। इसके अलावा अडवांस्ड डेटा ऐनालिटिक्स के जरिए 5.56 लाख नए मामलों की जांच की जा रही है। साथ ही साढ़े चार लाख से ज्यादा संदिग्ध ट्रांजेक्शन पकड़े गए हैं। दरअसल नोटबंदी से पहले 1000 रुपये के 633 करोड़ नोट सर्कुलेशन में थे। इनमें से नोटबंदी के बाद 98.6 फीसदी नोट वापस बैंकों में जमा हो गए। यानी 8,900 करोड़ रुपये बैंकों में वापस नहीं लौटे हैं। स्पष्ट है कि सरकार के लिए अब इन नोटों का हिसाब-किताब लगाना अब आसान हो गया है।

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सिस्टम में आ रही पारदर्शिता
पिछले सरकारों में घोटालों की तुलना में कोयला ब्लॉक और दूरसंचार स्पेक्ट्रम की सफल नीलामी प्रक्रिया अपनाई गई। इस प्रक्रिया से कोयला खदानों (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 के तहत 82 कोयला ब्लॉकों के पारदर्शी आवंटन के तहत 3.94 लाख करोड़ रुपये से अधिक की आय हुई। नोटबंदी के बाद से सीबीडीटी ने देश में चल और अचल, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपत्तियों की खोजबीन के बाद ऐसी बेनामी संपत्ति का पता लगाने में भी बड़ी सफलता मिली है। आयकर विभाग के अनुसार 14 क्षेत्रों में अब तक 233 मामलों में 813 करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति जब्त की गई है। कालेधन के खिलाफ कार्रवाई तेज करते हुए सरकार ने 2.24 लाख से अधिक कंपनियों का नाम आधिकारिक रिकॉर्ड से हटा दिया है।

विदेशी कर्ज घटाने पर जोर
केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का विदेशी ऋण 13.1 अरब डॉलर यानि 2.7% घटकर 471.9 अरब डॉलर रह गया है। यह आंकड़ा मार्च, 2017 तक का है। इसके पीछे प्रमुख वजह प्रवासी भारतीय जमा और वाणिज्यिक कर्ज उठाव में गिरावट आना है। रिपोर्ट के अनुसार मार्च, 2017 के अंत में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और विदेशी ऋण का अनुपात घटकर 20.2% रह गया, जो मार्च 2016 की समाप्ति पर 23.5% था। इसके साथ ही लॉन्ग टर्म विदेशी कर्ज 383.9 अरब डॉलर रहा है जो पिछले साल के मुकाबले 4.4% कम है।

व्यापाार संतुलन पर बल
2017 के सितंबर महीने में व्यापार घाटा 8.98 अरब डॉलर रहा जो पिछले वर्ष के इसी महीने के 9 अरब डॉलर के लगभग बराबर है। भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-जुलाई 2013-14 में अनुमानित व्‍यापार घाटा 62448.16 मिलियन अमरीकी डॉलर का था, वहीं अप्रैल-जनवरी, 2016-17 के दौरान 38073.08 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। जबकि अप्रैल-जनवरी 2015-16 में यह 54187.74 मिलियन अमेरिकी डॉलर के व्‍यापार घाटे से भी 29.7 प्रतिशत कम है। यानी व्यापार संतुलन की दृष्टि से भी मोदी सरकार में स्थिति लगातार बेहतर होती जा रही है और 2013-14 की तुलना में लगभग 35 प्रतिशत तक सुधार आया है।

तीन सालों में हुए 7000 सुधार
पीएम मोदी ने सत्ता संभालते ही विभिन्न क्षेत्रों में विकास की गति तेज की और देश में बेहतर कारोबारी माहौल बनाने की दिशा में भी काम करना शुरू किया। इसी प्रयास के अंतर्गत ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ नीति देश में कारोबार को गति देने के लिए एक बड़ी पहल है। इसके तहत बड़े, छोटे, मझोले और सूक्ष्म सुधारों सहित कुल 7,000 उपाय (सुधार) किए गए हैं। सबसे खास यह है कि केंद्र और राज्य सहकारी संघवाद की कल्पना को साकार रूप दिया गया है।

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