Home समाचार समाज को विभाजित करने वाली शक्तियों को पहचान सबको अपना मानकर चलना...

समाज को विभाजित करने वाली शक्तियों को पहचान सबको अपना मानकर चलना होगा: सरसंघचालक मोहन भागवत

SHARE

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS आरएसएस) के 98 वें स्थापना दिवस पर 24 अक्तूबर को नागपुर में विजयादशमी कार्यक्रम का आयोजन किया गया। रेशिम बाग मैदान में परम्परागत तरीके से आयोजित इस कार्यक्रम में सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत के साथ मुख्य अतिथि प्रसिद्ध गायक-संगीतकार पद्मश्री शंकर महादेवन भी मंच पर मौजूद थे। इस दशहरा रैली के दौरान ‘पथ संचलन’ का आयोजन किया गया और संघ के संस्थापक केबी हेडगेवार को श्रद्धांजलि दी गई।

शस्त्र पूजा के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशमी उत्सव कार्यक्रम में उपस्थित स्वयंसेवकों को संबोधित किया। आरएसएस चीफ ने कहा कि पिछले कुछ समय से देश में नफरत फैलाने की कोशिश हो रही हैं। लोगों को भड़का कर हिंसा फैलाने के प्रयास किए जा रहे हैं। छोटी-छोटी घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर बड़े पैमाने पर प्रसारित किया जा रहा है। समय रहते इसे पहचानना होगा। समाज को विघटित करने के साथ आपस में अलगाव बढ़ाने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसे में समाज को विभाजित करने वाली शक्तियों को पहचान सबको अपना मानकर चलना होगा।

सरसंघचालक ने साफ कहा कि समस्या के समाधान के लिए बहुआयामी प्रयासों की आवश्यकता रहेगी। इसके लिए जहां राजनैतिक इच्छाशक्ति, तदनुरूप सक्रियता एवं कुशलता समय की मांग है, वहीं इसके साथ-साथ दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति के कारण उत्पन्न परस्पर अविश्वास की खाई को पाटने में समाज के प्रबुद्ध नेतृत्व को भी एक विशेष भूमिका निभानी होगी। सबको अपना मानकर, समझाकर, सुरक्षित, सद्भाव से परिपूर्ण और शान्त रखने के लिए ही प्रयास करते रहने होंगे।

मणिपुर में अशांति पर सवाल करते हुए उन्होंने कहा कि लगभग एक दशक से शांत मणिपुर में अचानक यह आपसी फूट की आग कैसे लग गई? क्या हिंसा करने वाले लोगों में सीमापार के अतिवादी भी थे? अपने अस्तित्व के भविष्य के प्रति आशंकित मणिपुरी मैतेयी समाज और कुकी समाज के इस आपसी संघर्ष को सांप्रदायिक रूप देने का प्रयास क्यों और किसके द्वारा हुआ? वर्षों से वहां पर सबकी समदृष्टि से सेवा करने में लगे संघ जैसे संगठन को बिना कारण इसमें घसीटने का प्रयास करने में किसका निहित स्वार्थ है? इस सीमा क्षेत्र में नागाभूमि व मिजोरम के बीच स्थित मणिपुर में ऐसी अशांति व अस्थिरता का लाभ प्राप्त करने में किन विदेशी सत्ताओं को रुचि हो सकती है? क्या इन घटनाओं की कारण परंपराओं में दक्षिण पूर्व एशिया की भू- राजनीति की भी कोई भूमिका है? देश में मजबूत सरकार के होते हुए भी यह हिंसा किन के बलबूते इतने दिन बेरोकटोक चलती रही है? गत 9 वर्षों से चल रही शान्ति की स्थिति को बरकरार रखना चाहने वाली राज्य सरकार होकर भी यह हिंसा क्यों भड़की और चलती रही? आज की स्थिति में जब संघर्षरत दोनों पक्षों के लोग शांति चाह रहे हैं, उस दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठता हुआ दिखते ही कोई हादसा करवा कर, फिर से विद्वेष व हिंसा भड़काने वाली ताकतें कौन सी हैं?

नागपुर दशहरा रैली में आरएसएस प्रमुख ने कहा कि समाज विरोधी कुछ लोग अपने आपको सांस्कृतिक मार्क्सवादी या वोक (Woke) यानी जगे हुए कहते हैं। परंतु मार्क्स को भी उन्होंने 1920 दशक से ही भुला रखा है। विश्व की सभी सुव्यवस्था, मांगल्य, संस्कार, तथा संयम से उनका विरोध है। मुठ्ठी भर लोगों का नियंत्रण सम्पूर्ण मानवजाति पर हो, इसलिए अराजकता व स्वैराचरण का पुरस्कार, प्रचार व प्रसार करते हैं। माध्यमों तथा अकादमियों को हाथ में लेकर देशों की शिक्षा, संस्कार, राजनीति व सामाजिक वातावरण को भ्रम व भ्रष्टता का शिकार बनाना उनकी कार्यशैली है। आपसी झगड़ों में उलझकर असमंजस व दुर्बलता में फंसा व टूटा हुआ समाज, अनायास ही इन सर्वत्र अपनी ही अधिसत्ता चाहने वाली विध्वंसकारी ताकतों का भक्ष्य बनता है।

उन्होंने कहा कि मंत्र विप्लव का सही उत्तर तो समाज की एकता से ही प्राप्त होना है। हर परिस्थिति में यह एकता का भान ही समाज के विवेक को जागृत रखने वाली वस्तु है। संविधान में भी इस भावनिक एकता की प्राप्ति एक मार्गदर्शक तत्व के नाते उल्लेखित है। हर देश में इस एकता के भाव को पैदा करने वाला अपना-अपना धरातल अलग-अलग रहता है। हमारा यह देश एक राष्ट्र के नाते, एक समाज के नाते, विश्व के इतिहास के सारे उतार-चढ़ाव पार कर आज भी अपने भूतकाल के सूत्र से अविछिन्न सम्पर्क बनाए रखकर जीवित खड़ा है।

संघ प्रमुख ने कहा कि हिमालय के क्षेत्र में हिमाचल और उत्तराखंड से लेकर सिक्किम तक लगातार प्राकृतिक आपदाओं का प्राणांतिक खेल हम देख रहे हैं। भविष्य में किसी गंभीर व व्यापक संकट का पूर्वाभास इन घटनाओं के द्वारा हो रहा हो, ऐसी शंकाओं की चर्चा भी है। देश की सीमा सुरक्षा, जल सुरक्षा तथा पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिए भारत की उत्तर सीमा को निश्चित करने वाला यह क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है, किसी भी कीमत पर सर्वथा रक्षणीय है। सुरक्षा, पर्यावरण, जन सांख्यिकी व विकास की दृष्टि से इस पूरे क्षेत्र को एक इकाई मानकर हिमालय क्षेत्र का विचार करना होगा।

मोहन भागवत ने कहा कि अधूरी, निपट जड़वादी तथा पराकोटि की उपभोगवादी दृष्टि पर आधारित विकास पथों के कारण, मानवता व प्रकृति धीरे-धीरे परंतु निश्चित रूप से विनाश की ओर अग्रसर हो रही है। संपूर्ण विश्व में यह चिंता बढ़ी है। उन असफल पथों को त्याग कर अथवा धीरे-धीरे वापिस मोड़कर भारतीय मूल्यों पर तथा भारत की समग्र एकात्म दृष्टि पर आधारित, काल सुसंगत व अद्यतन, अपना अलग विकास पथ भारत को बनाना ही पड़ेगा। यह भारत के लिए सर्वथा उपयुक्त तथा विश्व के लिए भी अनुकरणीय प्रतिमानक बन सकेगा। उपनिवेशी मानसिकता से मुक्त होकर, अपने देश में जो है उसको युगानुकूल बनाते हुए, हम अपना ‘स्व’ आधारित ‘स्व’देशी विकासपथ अपनाएं यह समय की आवश्यकता है।

जी-20 के सफल आयोजन से आरएसएस चीफ ने कहा कि हमारा देश जी-20 नामक प्रमुख राष्ट्रों की परिषद का यजमान रहा। वर्षभर सदस्य राष्ट्रों के राष्ट्र प्रमुख, मंत्रीगण, प्रशासक तथा मनीषियों के अनेक कार्यक्रम भारत में अनेक स्थानों पर सम्पन्न हुए। भारतीयों के आत्मीय आतिथ्य का अनुभव, भारत का गौरवशाली अतीत तथा वर्तमान की उमंगभरी उड़ान सभी देशों के सहभागियों को प्रभावित कर गई। अफ्रीकी यूनियन को सदस्य के नाते स्वीकृत कराने में तथा पहले ही दिन परिषद का घोषणा प्रस्ताव सर्व सहमति से पारित करने में भारत की प्रामाणिक सद्भावना तथा राजनयिक कुशलता का अनुभव सबने पाया। भारत के विशिष्ट विचार व दृष्टि के कारण संपूर्ण विश्व के चिंतन में वसुधैव कुटुम्बकम् की दिशा जुड़ गई। जी-20 का अर्थकेन्द्रित विचार अब मानव केन्द्रित हो गया।

सरसंघचालक ने अपने संबोधन में कहा कि हमारे देश के खिलाड़ियों ने एशियाई खेलों में पहली बार 100 से अधिक 107 पदक (28 सुवर्ण, 38 रजत तथा 41 कांस्य) जीतकर हम सब का उत्साहवर्धन किया है। उनका हम अभिनन्दन करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अंतरिक्ष युग के इतिहास में पहली बार भारत का विक्रम लैंडर उतरा। समस्त भारतीयों का गौरव व आत्मविश्वास बढ़ाने वाला यह कार्य सम्पन्न करने वाले वैज्ञानिक तथा उनको बल देने वाला नेतृत्व संपूर्ण देश में अभिनंदित हो रहा है।

भागवत ने कहा कि संविधान की मूल प्रति के एक पृष्ठ पर जिनका चित्र अंकित है, ऐसे धर्म के मूर्तिमान प्रतीक श्रीराम के बालक रूप का मंदिर अयोध्या जी में बन रहा है। श्रीराम अपने देश के आचरण की मर्यादा के प्रतीक हैं, कर्तव्य पालन के प्रतीक हैं, स्नेह व करुणा के प्रतीक हैं। अपने-अपने स्थान पर ही ऐसा वातावरण बने। राम मंदिर में श्रीरामलला के प्रवेश से प्रत्येक ह्रदय में अपने मन के राम को जागृत करते हुए मन की अयोध्या सजे व सर्वत्र स्नेह, पुरुषार्थ तथा सद्भावना का वातावरण उत्पन्न हो ऐसे, अनेक स्थानों पर परन्तु छोटे-छोटे आयोजन करने चाहिए।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2025 से 2026 का वर्ष संघ के 100 वर्ष पूरे होने के बाद का वर्ष है। सभी क्षेत्रों में संघ के स्वयंसेवक कदम बढ़ाएंगे। समाज के आचरण में, उच्चारण में संपूर्ण समाज और देश के प्रति अपनत्व की भावना प्रकट हो। मंदिर, पानी, श्मशान में कहीं भेदभाव बाकी है, तो वह समाप्त हो। परिवार के सभी सदस्यों में नित्य मंगल संवाद, संस्कारित व्यवहार व संवेदनशीलता बनी रहे, बढ़ती रहे व उनके द्वारा समाज की सेवा होती रहे। सृष्टि के साथ संबंधों का आचरण अपने घर से पानी बचाकर, प्लास्टिक हटाकर व घर-आंगन में तथा आसपास हरियाली बढ़ाकर हो। ‘स्व’देशी के आचरण से ‘स्व’-निर्भरता व स्वावलंबन बढ़े, फिजूलखर्ची बंद हो। देश का रोजगार बढ़े व देश का पैसा देश में ही काम आए।

सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने जोर देकर कहा कि समाज की एकता, सजगता व सभी दिशा में निस्वार्थ उद्यम, जनहितकारी शासन व जनोन्मुख प्रशासन ‘स्व’ के अधिष्ठान पर खड़े होकर परस्पर सहयोगपूर्वक प्रयासरत रहते है, तभी राष्ट्र बल वैभव सम्पन्न बनता है। बल और वैभव से सम्पन्न राष्ट्र के पास जब हमारी सनातन संस्कृति जैसी सबको अपना कुटुंब मानने वाली, तमस से प्रकाश की ओर ले जाने वाली, असत् से सत् की ओर बढ़ाने वाली तथा मर्त्य जीवन से सार्थकता के अमृत जीवन की ओर ले जाने वाली संस्कृति होती है, तब वह राष्ट्र, विश्व का खोया हुआ संतुलन वापस लाते हुए विश्व को सुख-शांतिमय नवजीवन का वरदान प्रदान करता है। सद्य काल में हमारे अमर राष्ट्र के नवोत्थान का यही प्रयोजन है।

इसके पहले पद्मश्री शंकर महादेवन ने कहा कि हमारे अखंड भारत का जो विचार है हमारे कल्चर, हमारे ट्रेडिशन, हमारी संस्कृति बचाकर रखने में इस देश में आप लोगों से ज्यादा किसी और का योगदान नहीं है। हमारी संस्कृति और परंपरा की रक्षा में आप सभी का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने कहा कि जब मैं स्वयंसेवकों को देखता हूं वो देश में कोई भी घटना हो, कोई भी प्रॉब्लम हो, जब जरूरत है वो भी पीछे खड़े होकर शांति अपने देश के लिए काम करते हैं तो अगर हम कहेंगे कि हमारा देश एक गीत है तो हमारे स्वयंसेवक उसके पीछे की सरगम हैं। जो गीत को जान देते हैं। मेरा मानना है कि संगीत और गीतों के माध्यम से हमारी संस्कृति को भविष्य की पीढ़ियों तक शिक्षित और प्रसारित करना मेरा कर्तव्य है। मैं युवाओं और बच्चों के साथ अपनी बातचीत में, अपने शो, रियलिटी शो और यहां तक कि फिल्मी गानों में भी ऐसा करने की कोशिश करता हूं।

देखिए वीडियो-

Leave a Reply