प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जहां एक तरफ देशवासियों को कोरोना से लड़ने के लिए जागरुक कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ डॉक्टरों, वैज्ञानिकों को इस वायरस की काट खोजने के लिए प्रोत्साहित करने में लगे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के उत्साहवर्धन और प्रोत्साहन का ही नतीजा है कि इतने कम समय में कोरोना वैक्सीन के लिए भारतीय वैज्ञानिकों का शोध अब जानवरों के ट्रायल के स्तर पर पहुंच चुका है। बताया जा रहा है कि एक या दो सप्ताह में यह परीक्षण शुरू होगा। इसमें सफलता मिलने के बाद इसका इंसानों पर परीक्षण होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार देश के सात से आठ वैज्ञानिक समूह वैक्सीन शोध में आगे चल रहे हैं। आधा दर्जन शैक्षणिक संस्थाओं के वैज्ञानिक भी वैक्सीन के अध्ययन में जुटे हुए हैं।
बताया जा रहा है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार करने में भारतीय वैज्ञानिकों को 12 से 18 महीने का वक्त लग सकता है। भारतीय वैज्ञानिकों की तरह की दुनियाभर में वैज्ञानिकों के 75 ग्रुप भी वैक्सीन तैयार करने में जुटे हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक वैक्सीन किसी भी देश में बने, इसका उत्पादन भारत में ही किया जाएगा। जानकारी के अनुसार भारत बायॉटेक, कैडिला, सीरम इंस्टीट्यूट सहित कुछ कंपनियों के वैज्ञानिक जानवरों के ट्रायल तक पहुंच चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर देश में शुरू हुए शोधों की निगरानी जैव प्रौद्योगिकी विभाग की सचिव डॉ. रेणु स्वरूप कर रही हैं। इस दौरान वायरस के प्रजनन पर भी शोध हो रहा है।
कोरोना की वैक्सीन खोजने में भारत के साथ पूरी दुनिया के वैज्ञानिक भी जुटे हुए हैं। शोध में लगे एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि करीब दो वर्ष पहले दुनियाभर के औद्योगिक व शैक्षणिक वैज्ञानिकों का एक समूह बना गया था, जिसमें भारत की भागीदारी भी है। यह समूह इस तरह की महामारी के आने पर वैक्सीन की तैयारी पर भी काम कर रहा था।
वैक्सीन के लिए आईआईटी गुवाहाटी ने किया करार
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कोरोना की वैक्सीन के लिए आईआईटी गुवाहाटी ने अहमदाबाद की बायोसाइंसेज कंपनी हेस्टर के साथ करार किया है। जल्द जानवरों पर इसका ट्रायल शुरू हो जाएगा। वैक्सीन के लिए रीकॉम्बिनेंट एवियन पैरामाइक्सोवायरस-1 पर काम होगा, जिसमें सार्स-कोविड-2 का प्रोटीन होगा। बायोसाइंसेज एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर सचिन कुमार ने कहा कि अभी इस वैक्सीन पर कुछ भी कहना ठीक नहीं है। जानवरों पर इसके परीक्षण का परिणाम सामने आने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।
विदेशों में भी जारी है शोध, ऑक्सफोर्ड मे बंदरों पर सफल परीक्षण
ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों का दावा है कि बंदरों पर वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल सफल रहा है। अब मई के अंत तक वे छह हजार इंसानों पर भी परीक्षण कर लेंगे। फिर नियामकों से आपात मंजूरी के बाद इस साल सितंबर तक वैक्सीन बाजार में आ सकती है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने मार्च में मोंटाना के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान की रॉकी माउंटेन लैब में छह मकाक बंदरों पर वैक्सीन का परीक्षण किया था। बंदरों की यह प्रजाति इंसान की सबसे करीबी मानी जाती है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के इस शोध में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भी शामिल है। सीरम दुनिया में वैक्सीन की सबसे बड़ी आपूर्तिकर्ता है। सीरम में ही वैक्सीन का उत्पादन होगा।
BCG का भी क्लिनिकल ट्रायल
भारत के कुछ राज्यों में प्लाज्मा थेरपी से अच्छे नतीजे आए हैं। अब ट्यूबरक्यूलोसिस (TB) की दवा BCG यानी Bacillus Calmette-Guerin से कोरोना के इलाज की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। अमेरिका के हॉफकिन रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक महाराष्ट्र के मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट (एमईडी) के साथ मिलकरक्लिनिकल ट्रायल की तैयारी कर रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि शुरुआती टेस्ट्स में BCG कॉन्सेप्ट के नतीजे बेहतर आए हैं, इसीलिए इसके परीक्षण की दिशा में कदम आगे बढ़ाए जा रहे हैं।
Gimsilumab का यूएस में ट्रायल
अमेरिका के टेंपल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ने मोनोक्लोनल एंटीबॉडी Gimsilumab का टेस्ट मरीजों पर शुरू किया है। यह उन फैक्टर्स को टारगेट करती है जो COVID-19 की वजह से फेफड़े खराब करते हैं। इस दवा का कई बार नॉन-क्लिनिकल ट्रायल हो चुका है और दो बार क्लिनिकल स्टडी हुई है। सारे डेटा ये कहते हैं कि ये दवा सेफ है और इंसानी शरीर इसे बर्दाश्त कर सकता है।
Remdesivir ने दिए हैं पॉजिटिव रिजल्ट्स
कोरोना से लड़ाई में अबतक की सबसे प्रभावी दवा Remdesivir बताई जा रही है। अमेरिका में इसके थर्ड स्टेज की टेस्टिंग में पॉजिटिव रिजल्ट्स आए हैं। कैलिफोर्निया की दवा कंपनी गिलीड साइंसेज ने कहा है कि शुरुआती रिजल्ट्स बताते हैं कि ‘रेम्डेसिविर’ दवा की 5 दिन की खुराक के बाद COVID-19 के मरीजों में से 50 प्रतिशत की हालत में सुधार हुआ। उनमें से आधे से अधिक को दो सप्ताह के भीतर छुट्टी दे दी गई। थर्ड स्टेज की टेस्टिंग के बाद ही दवा को अप्रूवल मिलता है। ‘रेम्डेसिविर’ दवा को हालांकि विश्व में अभी कोई मंजूरी या लाइसेंस नहीं मिला है और न ही कोविड-19 के उपचार में यह अभी तक सुरक्षित या प्रभावी साबित हुई है। ‘रेम्डेसिविर’ को इबोला के इलाज के लिए विकसित किया गया था। इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह वायरस को शरीर के भीतर अपने क्लोन बनाने से रोक सके।
Favipiravir की टेस्टिंग को भी मंजूरी
ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स को कोरोना वायरस से इन्फेक्टेड मरीजों पर Favipiravir टैबलेट्स का टेस्ट करने की परमिशन मिल गई है। कंपनी ने कहा कि उसने इस दवा के लिए कच्चा माल (API) खुद तैयार किया है। इसके अलावा, दवा का फॉम्युलेशन भी उसी ने डेवलप किया है। फैविपिराविर एक एंटी-वायरल मेडिसिन है। इंफ्लूएंजा वायरस के खिलाफ यह दवा कारगर रही है। जापान में इंफ्लूएंजा वायरस के इलाज के लिए इस दवा के उपयोग की अनुमति है। पिछले कुछ महीनों में चीन, जापान और अमेरिका में कोरोना वायरस के मरीजों पर इस तरह के कई प्रायोगिक परीक्षण किए गए हैं। इस दवा को चीन में मंजूरी मिल चुकी है।
कोरोना के खिलाफ कई और दवाओं से उम्मीद
देश और दुनिया में और भी कई दवाओं पर ट्रायल हो रहा है। एम्स भोपाल में माइक्रोबैक्टीरियम-डब्ल्यू (MW) का ट्रायल शुरू कर दिया गया है। अमेरिका में एयरवे थेरेपॉटिक्स नाम की कंपनी AT-100 प्रोटीन पर ट्रायल कर रही है। इसके अलावा तियाना लाइफ साइंसेज नाम की कंपनी कोविड-19 के लिए TZLS-501 नाम की मोनोक्लोनल एंटीबॉडी डेवलप कर रही है। OyaGen ने OYA1 नाम के ड्रग का टेस्ट शुरू किया है। BeyondSpring ने BPI-002 नाम के मॉलिक्यूल एजेंट पर रिसर्च शुरू कर दी है।