सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व सॉलिसिटर जनरल रहे हरीश साल्वे ने सुशांत सिंह राजपूत के मामले में मुंबई पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि इस मामले में क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन का पूरी तरह मजाक बना कर रख दिया गया है। इसके लिए अगर कोई एक संस्था जिम्मेदार है तो वो है मुंबई पुलिस।
‘टाइम्स नाउ’ से बात करते हुए हरीश साल्वे ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि आखिर मुंबई पुलिस ने इस मामले में एफआईआर तक भी क्यों नहीं दर्ज की? साथ ही उन्होंने सुशांत सिंह राजपूत की मौत के समय का ऑटोप्सी रिपोर्ट में जिक्र न होने को भी अजीब बताया।
#Exclusive | It looks like cover-up of what is possibly a homicide in SSR case: Harish Salve, Senior Advocate, SC tells Navika Kumar on @thenewshour. | #SalveDemolishesRheaLobby pic.twitter.com/SHSZYGXFoo
— TIMES NOW (@TimesNow) August 28, 2020
हरीश साल्वे ने कहा कि यदि आज मुंबई पुलिस की खिंचाई हो रही है, तो ऐसा होना चाहिए। एक मंझे हुए सिस्टम में मीडिया को मुद्दे पर सकारात्मक पक्ष रखना चाहिए और पड़ताल होनी चाहिए। लेकिन यहां तो जांच पड़ताल हो ही नहीं रही थी, और मीडिया के एक धड़े ने यह जिम्मेदारी खुद उठाई। अच्छा हुआ उन्होंने ये काम किया।
हरीश साल्वे ने ‘प्राइवेसी पर आक्रमण’ वाले आरोप को भी नकार दिया। साल्वे ने कहा कि किसी भी आपराधिक मामले में हो रही जांच ‘इन्वेजन ऑफ प्राइवेसी’ होती है, इसीलिए ये आरोप सही नहीं है। साथ ही उन्होंने जांच एजेंसी सीबीआई पर भरोसा जताते हुए कहा कि उसके अधिकारी मूर्ख नहीं हैं और वो अपने तरीके से रिया चक्रवर्ती से पूछताछ करेंगे। उन्होंने कहा कि अब भारत में ‘चलता है’ वाला व्यवहार बहुत हो गया। उन्होंने अंदेशा जताया कि सुशांत मामले में हत्या को छिपाने की कोशिश हो सकती है।
हरीश साल्वे ने मुंबई पुलिस को मामले में सभ्य तरीके से जांच पड़ताल नहीं करने, सुशांत के पार्थिव शरीर की फोटो लीक होने देने जैसी गलतियों के लिए भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने पूछा कि मुंबई पुलिस ऐसे घृणित तस्वीरों को लीक होने भी कैसे दे सकती थी ? क्या जांच पड़ताल का कोई सिस्टम नहीं था उस समय ?
हरीश साल्वे ने मुंबई पुलिस द्वारा एफाईआर रजिस्टर नहीं करने को बहुत बड़ी भूल बताया। उनके अनुसार, जब परिवार ने शक जताया, तो उन्हें बिना समय गवाए इस मामले पर जांच पड़ताल करनी चाहिए। किसी भी घटना की जांच में पारदर्शिता होना बहुत अहम है। आत्महत्या हो तो भी हर सिरे से जांच करना आवश्यक है। परंतु मुंबई पुलिस ने ऐसा कुछ नहीं किया, और बिना सोचे समझे एक निष्कर्ष पर आ पहुंचे। आखिर उन्हें या किसी को भी ये अधिकार किसने दिया कि बिना जांच पड़ताल के एक मामले को निष्कर्ष पर ले आये? हरीश साल्वे ने जो सवाल उठाये, वो काफी गंभीर है और मुंबई पुलिस की लापरवाहियों को दर्शाता है।