प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी विजन से निकला डिजिटल इंडिया मिशन कुछ सालों में ही ऐसा कमाल दिखाएगा, इसकी किसी ने कल्पना भी ना की होगी। देश में अब सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट की दुनिया में बहुत बड़े बदलाव हो रहे हैं। भारत अगले दो साल में अमेरिका को पीछे छोड़ सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग टैलेंट का हब बनने की राह पर है। मोदी सरकार भविष्य के लिए डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) बनाने पर लगातार काम कर रही है। इससे लाखों डेपलपर्स को मदद मिलेगी। अमेरिका जैसे विकसित देश को पछाड़कर भारत 2026-27 तक दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर डेवलपर कम्युनिटी बन सकता है। यह देश को दुनिया की थर्ड एकोनॉमी बनाने में भी मददगार साबित होगा, क्योंकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस युग में डेवलपर्स जीडीपी वृद्धि को आगे बढ़ा रहे हैं।
एशिया में 2030 तक सॉफ्टवेयर डेवलपर्स की मांग 21% तक बढ़ेगी
भारत में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में 2015 में डिजिटल इंडिया प्रोग्राम की शुरुआत की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य देश के लोगों को डिजिटल टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी और सेवाओं से जोड़ना था। सरकार ने इसके लिए कई कदम उठाए हैं। इसी अभियान के तहत नेशनल ओपन फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क (NOFN) और भारत नेट (BharatNet) परियोजना की भी शुरुआत की गई। डिजिटल पेमेंट क्रांति, 5जी नेटवर्क, फिनटेक कंपनियां और कई डिजिटल स्टार्टअप इसी प्रोग्राम को नेक्स्ट लेवल पर ले जा रहे हैं। एआई और ग्लोबलाइजेशन के कारण न सिर्फ कोडिंग की प्रक्रिया आसान हो रही है, बल्कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स की मांग और बढ़ रही है। देश में कई कंपनियों ने एआई का इस्तेमाल प्रभावी ढंग से करने के प्रयास शुरू किए हैं। सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग में एआई का योगदान अहम साबित हो रहा है। एक आंकलन के मुताबिक एशिया में 2024 से 2030 तक सॉफ्टवेयर डेवलपर्स की मांग 21 प्रतिशत तक बढ़ेगी। इस कारण, कंपनियां सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट के लिए आउटसोर्सिंग के लिए सबसे ज्यादा फोकस भारत पर कर रही हैं। यहां 40 प्रतिशत से अधिक डेवलपर्स एआई का इस्तेमाल करने लगे हैं। यह संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो वैश्विक डिमांड पूरी करेगी।भारत है अमेरिका और ब्रिटेन से कहीं ज्यादा डिजिटल फ्रेंडली
एक वर्कप्लेस सर्वे के अनुसार, डिजिटल कार्यक्षेत्र में भारत दुनिया में सबसे अधिक कुशल देश है। इसके बाद ब्रिटेन और अमेरिका दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। सर्वे के मुताबिक, ज्यादातर भारतीय डिजिटल क्षेत्र की नई तकनीकों का उपयोग करना जानते हैं। साथ ही वे नई तकनीकों को सीखने में रुचि दिखा रहे हैं। रिसर्च एनालिटिक्स रश्मि चौधरी के मुताबिक भारत में कामकाज वाले 30 प्रतिशत से ज्यादा कर्मचारी डिजिटल रूप से इस क्षेत्र में पूरी तरह कुशल हैं। वहीं, हर 10 में से 7 कर्मचारी नई तकनीकों को हाई सैलरी और बेहतर जॉब अवसर के रूप में देखते हैं। टेक्निकल प्रोफेशनल्स का मानना है कि मैन्युअल या सेमी स्किल्ड कर्मचारियों के बजाए डिजिटल तकनीक में कुशल लोगों की मांग ज्यादा है।
चीन, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन भी हमसे हैं पीछे
सर्वे में यह भी देखा गया है कि रियल टाइम सहयोग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली टूल को लेकर भारत और सिंगापुर के कर्मचारी काफी आगे हैं। वहीं, चीन, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन पीछे है। रिपोर्ट के मुताबिक, 45 फीसदी भारतीय कर्मचारियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि डिजिटल तकनीक उनके कामकाज की आदतों की निगरानी करती है। सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि डिजिटल कर्मचारी किसी प्रकार की कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं चाहते हैं। वे सीधे जॉब करने के लिए तैयार हैं। भारत में 39 फीसदी डिजिटल कर्मचारी अपने मशीन लर्निंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स की नॉलेज के आधार पर सीधे नौकरी करना चाहते हैं, वे किसी प्रकार की कोई ट्रेनिंग की जरूरत नहीं समझते हैं।
देश में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में विकास और प्रोडक्टिविटी बढ़ी
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी के कारण सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में विकास और प्रोडक्टिविटी बढ़ रही है। इनकी मांग न सिर्फ तकनीकी कंपनियों में, बल्कि गैर-तकनीकी कंपनियों में भी बढ़ रही है। कुछ देशों में एक सॉफ्टवेयर डेवलपर का औसत वेतन सभी बिजनेसेज में टॉप 5 में आ गया है। भारत में भी इसका असर देखा जाने लगा है। इंटरनेट की तरह, एआई भी सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट की प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बना रहा है। को पायलट नामक एआई टूल, अब तक 20 लाख लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत जल्द ही अमेरिका को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे बड़ा सॉफ्टवेयर टैलेंट हब बन सकता है।
एआई उन कामों संभालेगा जो डेवलपर्स के लिए होते हैं बोरिंग
दरअसल, उभरते हुए बाजारों से सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की संख्या में भारी इजाफा हो रहा है। इस कारण, अभी यह कहना गलत होगा कि एआई की वजह से सॉफ्टवेयर डेवलपर्स की नौकरियां खत्म हो जाएंगी। इसके उलट एआई से सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट की जटिलता और लागत कम हो रही है, जिससे कंपनियों को अधिक उत्पादकता प्राप्त करने में मदद मिल रही है। भविष्य में, एआई उन कामों संभालेगा जो डेवलपर्स के लिए बोरिंग होते हैं। एआई का अगले एक दशक में काफी आर्थिक असर होने वाला है। विशेषज्ञों के मुताबिक एआई डेवलपर से 2030 तक वैश्विक जीडीपी 1.5 ट्रिलियन डॉलर का प्रोडक्टिविटी बेनिफिट हो सकता है। भारत की इसमें बेहद अहम भूमिका रहने वाली है।एक दशक में डिजिटल इंडिया कार्यक्रम बना एक परिवर्तनकारी शक्ति
देश में मोदी सरकार आने के बाद 2015 में शुरू किया गया डिजिटल इंडिया कार्यक्रम एक परिवर्तनकारी शक्ति बन गया है। इसने भारत की विकास कहानी की गति को बदल दिया है और देश को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था में बदल दिया है। इस दृष्टिकोण को तीन प्रमुख स्तंभों के माध्यम से साकार किया जा रहा है: मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचा, सुलभ सरकारी सेवाएं और सशक्त नागरिक। देश के डिजिटल परिवर्तन की नींव जीवन को आसान बनाने के लिए एक सर्वव्यापी डिजिटल बुनियादी ढांचे के निर्माण में निहित है। डिजिटल इंडिया पहल इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक रही है, और इसे 2021-22 से 2025-26 तक 14,903 करोड़ के कुल बजट के साथ बढ़ाया गया है। भरती हुई प्रौद्योगिकियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी प्रौद्योगिकियों ने भारत में व्यवसायों को अधिक कुशल और उत्पादक बनने में मदद की है। इन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके, वे पूर्वानुमानित विश्लेषण तक पहुँच प्राप्त करते हैं जो रुझानों और ग्राहक वरीयताओं की पहचान करते हैं। AI को एकीकृत करने से शासन में स्वचालन और उभरते खतरों के खिलाफ बेहतर सुरक्षा मिलती है, जिससे सरकार और व्यवसाय दोनों सुरक्षित रहते हैं। सरकार ने सामाजिक प्रभाव के लिए समावेश, नवाचार और अपनाने को बढ़ावा देने के लिए परिवर्तनकारी तकनीकों का लाभ उठाने के लिए IndiaAI पहल की भी स्थापना की है।