प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी विजन का मंत्र है- विरासत भी और विकास भी। यानी भारत की महान और समृद्ध विरासत बढ़ावा देकर संरक्षित करते हुए विकास की रफ्तार को तेज गति से निरंतर आगे बढ़ाया जाए। इसी सोच पर चलते हुए गुजरात के नर्मदा जिले में स्थित स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (एसओयू) के कैंपस में जल्द म्यूजियम ऑफ रॉयल किंगडम्स ऑफ इंडिया यानी 562 भारतीय राजवंश-साम्राज्यों का संग्रहालय बनने जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी खुद लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्टूबर (राष्ट्रीय एकता दिवस) को नर्मदा तट पर इस ऐतिहासिक म्युजियम का भूमिपूजन कर सकते हैं। यह संग्रहालय एसओयू परिसर में ही 15 एकड़ भूमि पर दो साल में बनकर तैयार होगा। इसकी प्रारंभिक अनुमानित लागत करीब 260 करोड़ रुपए है। प्रधानमंत्री संग्रहालय की तर्ज पर यह म्यूजिमय भी बेहद हाईटेक और आर्कषक होगा। इसमें आजादी के वक्त देश में मौजूद रियासतों की स्थिति और उनके इतिहास के साथ-साथ उनकी अच्छी बातों को प्रदर्शित किया जाएगा।देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा का लोकार्पण
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले सरदार पटेल की 182 फीट ऊंची प्रतिमा का लोकार्पण 2018 में किया था। सरकार स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को दुनिया के सबसे बड़े टूरिस्ट हब में शामिल करना चाहती है। केवडिया के एकता नगर में काफी सारी बड़ी परियोजनाएं चल रही हैं। नर्मदा जिले में स्थित स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को नया हवाई अड्डा 520 एकड़ में तैयार होगा। इसके रनवे की कुल लंबाई तीन किलोमीटर की होगी। अभी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी जाने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट वडोदरा का है। वडोदरा उतरने के बाद सड़क मार्ग से टूरिस्ट स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पहुंचते हैं।
देश-विदेश के करीब दो करोड़ पर्यटक देख चुके हैं स्टैच्यू ऑफ यूनिटी
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी एरिया डेवलपमेंट एंड टूरिज्म गवर्नेंस अथॉरिटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के मुताबिक वर्ष 2022 में लगभग 46 लाख टूरिस्ट स्टेच्यू ऑफ यूनिटी देखने आए थे। पिछले साल यह आंकड़ा पहले ही टूट गया। 2023 के आखिर तक कुल 50,29,147 लोगों ने दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा को देखा। 2018 से लेकर 2023 तक स्टैच्यू ऑफ देखने के लिए 1 करोड़ 75 लाख 26 हज़ार 688 पर्यटक पहुंचे हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि एक ही साल में पर्यटकों की संख्या 50 लाख के आंकड़े को पार कर गई है। पिछले पांच सालों के आंकड़ों पर यदि नज़र डालें तो वर्ष 2018 में 4 लाख 53 हजार 20, वर्ष 2019 में 27 लाख 45 हज़ार 474, वर्ष 2020 में कोविड के कारण पर्यटकों की तादात में कमी आई थी, उस वर्ष 12 लाख 81 हज़ार 582 पर्यटक आए थे, जबकि इसके अगले वर्ष 2021 में पर्यटकों की तादात बढ़कर 34 लाख 32 हजार 34 और पिछले साल 2022 में 45 लाख 84 हज़ार 789 पर्यटक स्टैच्यू ऑफ यूनिटी देखने आए। 2023 में पर्यटकों का आंकड़ा 50 लाख 29 हजार 147 रहा।पीएम मोदी 31 अक्टूबर को इस ऐतिहासिक म्युजियम का भूमिपूजन करेंगे!
अब पीएम मोदी ने केवड़िया पार्ट-2 का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री मोदी खुद लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्टूबर (राष्ट्रीय एकता दिवस) को नर्मदा तट पर इस ऐतिहासिक म्युजियम का भूमिपूजन करेंगे। इसमें स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर ही देश के तमाम राजे-रजवाड़े जिन्होंने भारत की एकता और अखंडता के लिए राज शासन दे दिए थे। उनका म्यूजियम (संग्रहालय) बनेगा। सरदार पटेल ने आजादी के बाद देश में मौजूद रियासतों को एकजुट करके देश को एकता के सूत्र में बांध दिया था। पीएम मोदी के म्यूजियम प्लान को केवड़िया पार्ट-2 के तौर पर देखा जा रहा है। इस म्यूजियम के निर्माण के बाद केवड़िया पहुंचने वाले लोग वर्तमान के साथ अतीत को देखेंगे और सरदार पटेल के काम पर गर्व करेंगे। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (SOU) के पास बनने वाले इस म्यूजियम की डिजाइनिंग का काम शुरू हो गया है। डिजाइनिंग के साथ-साथ रिसर्च का काम भी चल रहा है। कि पहले के राजे-राजवाड़े कैसे हुआ करते थे? क्या-क्या करते थे? कितना बड़ा देश समाज का भला करने का काम किया। उसको दर्शाया जाएगा।
सरदार पटेल ने 562 देशी रियासतों को मिलाकर भारत को एक सूत्र में बांधा
सरदार पटेल ने लगभग 562 देशी रियासतों को भारत में मिलाकर भारत को एक सूत्र में बांधा और भारत को मौजूदा स्वरूप दिया। केवड़िया में बनने वाले इस म्यूजियम की प्रगति की निगरानी सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से भी हो रही है। इसमें तमाम यूनीवर्सिटी और विभागों की मदद ली जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में पंच प्रणों का जिक्र किया था। इसमें अपनी विरासत के अपने प्रति गर्व करना भी शामिल था। यह म्यूजियम केवड़िया को जहां और बड़ा केंद्र बनाएगा तो वहीं अतीत और देश की विरासत को संरक्षित करेगा। देश की युवा पीढ़ी यहां आकर करके अतीत को अच्छे से जान पाएगी और सरदार पटेल के बेहद कठिन तप को नमन कर सकेगी। प्रधानमंत्री ने गुजरात के लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर स्थल की प्रगति की समीक्षा में इस इस ड्रीम प्रोजेक्ट का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि केवड़िया के एकता नगर में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी हमें भारत की एकता और अखंडता के लिए किए गए प्रयासों, दृढ़ता और तपस्या की याद दिलाती है। देश के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश के 562 राजे-रजवाड़ों का भारत में किस तरह विलय कराकर अखंड भारत का निर्माण किया, इससे जुड़े दस्तावेज, चित्र व कहानियां केवड़िया में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर बनने वाले म्यूजियम में देखने को मिलेंगी।
भारत की आजादी के समय कुछ रियासतें खुद को स्वतंत्र रखने की जिद पर थीं
आजादी के पहले ही रियासतों में भारत में शामिल होने न होने को लेकर उठापटक शुरू हो गई थी। बहुत से नवाब, राजा-रजवाड़े आजाद रहना चाहते थे। त्रिपुरा की महारानी कंचनप्रभा देवी ने 13-14 अगस्त 1947 को भारत में शामिल होने के सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए लेकिन भोपाल, हैदराबाद, जूनागढ़ सहित कुछ रियासतों ने भारत में शामिल होने से इनकार कर दिया। इससे पहले 25 जुलाई को लॉर्ड माउंटबेटन ने दिल्ली में पहली बार सभी राजे-रजवाड़ों की बैठक बुलाई। इसमें 75 महाराजा और नवाबों के अलावा 74 राजा-महाराजाओं के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। विलय से बचने के लिए बैठक में उन्होंने माउंटबेटन के सामने अजीब और हास्यास्पद बहाने बनाए। एक राजा ने पूछा कि अगर उन्होंने भारत में रियासत का विलय कर दिया तो क्या जंगलों में शेर का शिकार करने का उनका अधिकार बना रहेगा? एक रियासत के दीवान ने बहाना बनाया कि राजा समुद्र की यात्रा पर हैं।सरदार वल्लभ भाई पटेल के कूटनीतिक प्रयासों से इनका विलय हो पाया
वल्लभ भाई पटेल ने रियासतों, रजवाड़ों के विलय का मुश्किल काम शुरू किया। उन्होंने तबके वरिष्ठ नौकरशाह वीके मेनन को गृह विभाग का मुख्य सचिव बनाकर नवाबों, राजाओं से बातचीत शुरू की। सरदार पटेल ने रियासतों के वंशजों के सामने प्रिवीपर्स के माध्यम से उन्हें आर्थिक मदद देने का प्रस्ताव रखा। सरदार पटेल की अथक मेहनत और रणनीति से आजादी के दिन तक करीब 136 रियासतों ने भारत में सम्मिलित होने का निर्णय ले लिया था। लेकिन कुछ अन्य ने खुद को अलग रखा था। त्रावणकोर, भोपाल, जूनागढ़, हैदराबाद की कहानी रोचक है। 15 अगस्त 1947 को आजादी के समय देश में करीब 562 राजाओं-नवाबों की रियासतें थीं। सरदार वल्लभ भाई पटेल और वीपी मेनन की कूटनीतिक प्रयासों से इनका विलय हो पाया।
आइये जानते हैं कि भारत की आजादी के समय राजे-रजवाड़ों से समझाइश और मान-मनौव्वल के उस दौर में क्या हुआ था।
त्रावणकोर
यहां के दीवान ने ऐलान किया था कि महाराजा एक अलग देश बनाएंगे। उन्हें अपने पास से एक बंदरगाह व यूरेनियम के भण्डार छिन जाने का डर था। इधर जिन्ना ने इसकी सूचना मिलते ही त्रावणकोर के राजा को पत्र भेजकर कहा कि पाकिस्तान स्वतंत्र त्रावणकोर से रिश्ते रखना चाहता है। लेकिन जिन्ना के इस प्रस्ताव पर राजा कुछ विचार कर पाते, एक प्रदर्शनकारी ने त्रावणकोर के प्रधानमंत्री के चेहरे पर छुरे से वार कर दिया। महाराजा घटना से डर गए और 14 अगस्त को विलय पर राजी हो गए।
हैदराबाद
हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली बहादुर ने 12 जून 1947 को ही आजाद देश बनाने की घोषणा कर दी थी। यहां तक कि अपनी निजी सेना तक बना ली थी। जनता निजाम के इस फैसले के खिलाफ थी और लगातार आंदोलन कर रही थी। इस बीच सरदार पटेल ने हैदराबाद पर सैन्य कार्रवाई का फैसला लिया और 13 सितंबर 1948 को ‘ऑपरेशन पोलो’ के नाम से कार्रवाई शुरू कर दी गई। बाद में निजाम ने हथियार डाल दिए और भारत में विलय को राजी हो गए। इस तरह ऑपरेशन पोलो के आगे निजाम को झुकना पड़ा।भोपाल
भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान ने शर्त रखी कि उन्हें या तो एक आजाद संघ बनने दिया जाए, या सेक्रेटरी जनरल बनकर पाकिस्तान जाने दिया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि वे भोपाल की कमान अपनी बेटी को देंगे, लेकिन बेटी ने मना कर दिया। 1948 में नवाब ने भोपाल के स्वतंत्र रहने की घोषणा की। विरोध स्वरूप विलीनीकरण आंदोलन हो गया। लोगों पर गोलियां चलाई गईं, पर आंदोलन नहीं रुका। 30 अप्रैल 1949 को नवाब ने हार मान ली। 1 जून को भोपाल भारत का हिस्सा हो गया।
जूनागढ़
भारतीय सेना द्वारा जूनागढ़ रियासत को घेरने की खबर सुनकर वहां से नवाब पाकिस्तान रवाना हो गए। और पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। पाकिस्तान में शामिल होने के लिए जूनागढ़ के वेरावल में बंदरगाह बनाने और 25 हजार सैनिकों का ठिकाना बनाने की तैयारी थी। जानकारी मिलते ही पटेल ने जूनागढ़ की सीमाओं पर फौज की नाकेबंदी का आदेश दे दिया। नवाब विशेष विमान से पत्नी और बच्चे को लिए बिना ही कराची रवाना हो गए। 7 नवंबर 1947 को जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया।जम्मू-कश्मीर
भारत की आजादी की घोषणा होते ही जम्मू और कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने स्वाधीनता की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि कश्मीर न तो भारत में मिलेगा और न ही पाकिस्तान। हम दोनों देशों के बीच एक अलग देश होंगे। महाराजा के मन में स्वतंत्र होने का विचार जड़ जमा चुका था। वह कांग्रेस से नफरत करते थे, इसलिए भारत में शामिल होने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। लेकिन अगर वो पाकिस्तान में शामिल हो जाते तो उनके हिंदू राजवंश का सूरज अस्त हो जाता। 27 सितम्बर 1947 को नेहरू ने पटेल को कश्मीर की खतरनाक और बिगड़ती हुई स्थिति के बारे में लंबा पत्र लिखा। उन्हें खबर मिली थी कि पाकिस्तान बड़ी संख्या में कश्मीर में घुसपैठियों को भेजना चाहता है। इस दौरान 25 सितम्बर 1947 को महाराजा ने शेख अब्दुल्ला को जेल से रिहा कर दिया गया था। महारा हरिसिंह ने कहा कि केवल एक ही चीज हमारी राय बदल सकती है और वो ये है कि अगर दोनों देशों में कोई भी हमारे खिलाफ शक्ति का इस्तेमाल करता है तो हम अपनी राय पर पुनर्विचार करेंगे। इन शब्दों के बोले जाने के केवल दो हफ्ते बाद ही हजारों हथियारबंद कबायलियों ने राज्य पर उत्तर दिशा से हमला कर दिया। 26 अक्टूबर को वीपी मेनन को जम्मू में महाराजा के पास फिर से भेजा गया। वहां मेनन से उनसे विलय पत्र पर दस्तखत कराए और दिल्ली आ गए। जैसे ही ये कानूनी कार्यवाही पूरी हुई नई दिल्ली ने माउंटबेटन की हिचकिचाहट की परवाह किए बगैर भारतीय सैनिकों से भरे विमान श्रीनगर भेजने शुरू कर दिए। तब तक हमलावर श्रीनगर से कुछ ही दूरी पर रह गए थे। अगर कबायलियों ने बारामूला में लूटपाट और औरतों के साथ दुष्कर्म में समय बर्बाद नहीं किया होता तो वो हवाई अड्डे पर कब्जा कर चुके होते और भारतीय विमानों को वहां उतारना मुश्किल हो जाता। इसके बाद भारत ने उरी तक के क्षेत्र से कबायलियों को खदेड़ते हुए इसे अपने कब्जे में ले लिया। कश्मीर को लेकर दोनों देशों में तनातनी अब भी जारी है।