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ब्लैक मनी पर दूसरी सर्जरी, 2000 के नोट की विदाई से टूट जाएगी भ्रष्टाचारियों की कमर, ये नोटबंदी नहीं नोटबदली है!

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भारतीय रिजर्ब बैंक (आरबीआई) की तरफ से 2000 रुपए के नए नोट को चलन से बाहर करने का फैसला जारी किया गया है। इसे लोग नोटबंदी 2.0 का नाम दे रहे हैं। लेकिन असल में यह नोटबंदी नहीं नोटबदली है। क्योंकि इनका लीगल टेंडर खत्म नहीं किया गया है। आरबीआई के अनुसार 2000 रुपये का नोट लीगल टेंडर तो रहेगा, लेकिन इसे सर्कुलेशन से बाहर कर दिया जाएगा। आरबीआई की तरफ से 2,000 के नोटों को बदलने के लिए 30 सितंबर 2023 तक का समय दिया गया है। ऐसे में लोगों को ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। अब इस फैसले पर राजनीति भी गरमा गई है। लेकिन इसे ब्लैकमनी पर दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में ही लेना चाहिए। इस फैसले से जहां भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी और भ्रष्टाचारियों की कमर टूटेगी वहीं ब्लैक मनी का गोरखधंधा भी नहीं चल सकेगा। ब्लैक मनी पर ही चोट करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी का ऐलान किया था। उन्होंने 500 और 1000 के नोट को देश में बैन करने की घोषणा की थी। पीएम मोदी के इस साहसिक फैसले ने देश की तकदीर बदल दी। मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले से ना सिर्फ देश में कालेधन पर चोट पड़ी, बल्कि लोगों को लेनदेन में सुविधा होने के साथ, इससे सरकार की कमाई भी बढ़ी।

2000 का नोट चलन से बाहर, जिनके पास कालाधन वो हो रहे परेशान

आरबीआई का यह फैसला सीधे-सीधे कालेधन पर प्रहार है। जिन लोगों के पास कालाधन है, वो परेशान हो रहे हैं। जिन लोगों के पास बचा कुचा काला धन है वह बी अब बाहर निकल जाएगा। यह सोचने वाली बात है कि अगर अमेरिका 100 डॉलर के नोट से काम चला सकता है तो भारत में 2000 रुपये की क्या आवश्यकता है? यह सही है कि नोटबंदी के दौरान सरकार ने तात्कालिक तौर पर लोगों को राहत देने के लिए 2000 रुपये के नोट को छापना शुरू किया था जिससे देश में नकदी का संकट न हो। लेकिन बाद में आरबीआई ने इसे छापना बंद कर दिया था। अब जो नोट बाजार में चलन में हैं उसे भी निकाला जा रहा है।

रिजर्ब बैंक ने 2017 से ही बाजार हटाना शुरू कर दिया 2000 का नोट

अब 2000 रुपए के नोट को चलन से बाहर करने के फैसले पर विपक्ष हायतौबा मचा रहा है। विपक्ष का कहना है कि आरबीआई ने अचानक 2000 रुपए को बंद कर दिया है। विपक्ष इसी तरह का प्रोपेगेंडा कर रहा है लेकिन वास्तविकता इसके अलग है। रिजर्ब बैंक बैंक ने नोटबंदी के दौरान नकदी संकट को दूर करने के लिए ही 2000 रुपए का नोट छापा था और उसने 2017 के बाद से 2000 के नोट को चलन से बाहर करने का प्रयास शुरू कर दिया था। 2017 में 2000 के नोट जहां कुल नोट का 50 प्रतिशत सर्कुलेशन में था वहीं 2018 में यह घटकर 37.3 प्रतिशत, 2019 में 31.2 प्रतिशत, 2020 में 22.6 प्रतिशत, 2021 में 17.3 प्रतिशत और 2022 में 13.8 प्रतिशत चलन में रह गया था।

23 मई से 30 सितंबर तक बदले जा सकेंगे नोट

आरबीआई के इस फैसले के बाद देश में आम जनता के बीच कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। हालांकि, आरबीआई ने कहा है कि इस बात को लेकर किसी भी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि 23 मई से लेकर 30 सितंबर तक ये नोट बदले जा सकते हैं और इसके लिए बैंक अलग से विंडो खोलेंगे। आप किसी भी बैंक की शाखा में जाकर अपने दो हजार के नोट बदल सकेंगे। हालांकि इस दौरान आप एक बार सिर्फ 20 हजार रुपये ही बदल सकेंगे।

दिसंबर 2022 में राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने की थी मांग

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी 12 दिसंबर 2022 को राज्यसभा में 2000 रुपए के नोट पर बैन लगाने की मांग की थी। उन्होंने राज्यसभा में कहा था कि बड़े नंबर्स के नोटों को जारी रखने पर उन्हें ब्लैकमनी के रूप में रखने की संभावना ज्यादा होती है। ऐसे में 2000 के नोट को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा था कि विकसित देशों में करेंसी 100 से ऊपर नहीं है।

नोटबंदी के 6 साल बाद 2000 के नोट को बंद करने की मांग

नोटबंदी के 6 साल बाद दिसंबर 2022 में सुशील मोदी ने 2000 के नोट बंद करने की मांग उठाई। उन्होंने राज्यसभा में कहा था कि 2000 रुपये का नोट ब्लैकमनी हो गया है। उन्होंने कहा था कि सरकार को जनता को तीन साल का समय देकर धीरे-धीरे 2000 रुपये के नोट वापस लेने चाहिए। ऐसे नोट का इस्तेमाल ब्लैकमनी के रूप में हो रहा है।

सुशील मोदी ने कहा- यह नोटबंदी नहीं बल्कि नोटबदली है

सुशील मोदी ने इसे नोटबंदी नहीं बल्कि नोटबदली करार दिया। उन्होंने कहा कि इससे आम आदमी को परेशानी नहीं होगी क्योंकि उनके पास 2,000 रुपये नोट नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि 2,000 के नोट का इस्तेमाल टेरर फंडिंग तथा काला धन के रूप में हो रहा था। उन्होंने कहा कि 2,000 के नोट की छपाई 2018 से ही बंद थी और बाजार में कहीं प्रचलन में नहीं था। उन्होंने कहा कि यह काले धन पर दूसरा सर्जिकल स्ट्राइक है।

नकली नोट के सौदागर ने की खुदकुशी, दाऊद से था खास कनेक्शन

दाऊद इब्राहिम, लश्कर ए तोईबा और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकवादी संगठनों को नकली नोट सप्लाई करने वाले और हवाला के जरिए पैसा पहुचाने वाले शख्स ने पाकिस्तान में 9 दिसंबर 2016 को सुसाइड कर लिया। इस शख्स का नाम जावेद खनानी है। भारत सरकार के नोटबंदी के फैसले से जावेद खनानी का धंधा चौपट हो गया और कराची में अपनी एक अंडर कन्स्ट्रक्शन बिल्डिंग से छलांग लगाकर उसने सुसाइड कर लिया। जिस वक्त उसने सुसाइड किया उसके पास 20 हजार करोड़ की नकली करेंसी मौजूद थी जो रद्दी बन चुकी थी। यह भी पता चला कि जावेद खनानी पिछले कुछ सालों में 40 हजार करोड़ की नकली करेंसी दाऊद के नेटवर्क के जरिए इंडियन मार्केट में खपा चुका था। ऐसी भी जानकारी है कि 8 नवम्बर को ISI के पास लगभग 500 और 1000 के नकली नोट छापने के लिए बड़ी तादाद में कच्चा माल मौजूद था लेकिन ये कचरे का ढेर बन गया।

मोदी सरकार ने सात साल पहले नोटबंदी की थी। काला धन, भ्रष्टाचार, आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए की गई नोटबंदी पर विपक्षी दलों ने खूब हायतौबा मचाया था। नोटबंदी के सकारात्मक परिणाम पर एक नजर-

नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के फैसले को ठहराया सही

सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2016 में 500 और 1000 रुपये के नोटबंदी पर मोदी सरकार के फैसले को सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने 2 जनवरी 2023 को फैसला सुनाते हुए कहा कि नोटबंदी को लेकर सरकार ने सभी नियमों का पालन किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि छह महीने तक सरकार और आरबीआई के बीच इस मसले को लेकर बातचीत हुई और इसके बाद फैसला लिया गया। बहुमत के आधार पर फैसले को देते हुए न्‍यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा कि नोटबंदी करने का मकसद काला बाजारी रोकना और आतंकी गतिविधियों के लिए धन मुहैया कराने पर रोक लगाना था। कोर्ट ने कहा कि नोटों को बदलने के लिए 52 दिन के समय को अनुचित नहीं कहा जा सकता है।

नोटबंदी के खिलाफ दाखिल हुईं थी 58 याचिकाएं, सभी खारिज

प्रधानमंत्री मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को राष्ट्र को संबोधित करते हुए नोटबंदी का ऐलान किया था। उन्होंने 8 नवंबर को रात 12 बजे से 500 और 1000 के नोट को देश में बैन करने की घोषणा की थी। काला धन वालों को इस फैसले से कितनी परेशानी हुई इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि सरकार के इस फैसले के खिलाफ अदालत में 58 याचिकाएं दाखिल की गईं थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए इन सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था।

पीएम मोदी के फैसले से कालेधन पर चोट के साथ सरकार की कमाई बढ़ी

प्रधानमंत्री मोदी के इस साहसिक फैसले ने देश की तकदीर बदल दी। मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले से ना सिर्फ देश में कालेधन पर चोट पड़ी है, बल्कि लोगों को लेनदेन में सुविधा होने के साथ, इससे सरकार की कमाई भी बढ़ी है।

नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट में आई क्रांति

नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर डिजिटल पेमेंट के क्षेत्र में देखने को मिला है। क्रेडिट-डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग, यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस सभी तरीकों डिजिटल पेमेंट में इजाफा हुआ। आज हर कोई डिजिटल पेमेंट को प्राथमिकता दे रहा है, जो UPI और ई वॉलेट की सफलता की कहानी कह रहा है। दुनिया भी भारत की डिजिटल पेमेंट में आई क्रांति देखकर हैरान है। यूपीआई ने 2022 कैलेंडर वर्ष में शानदार प्रदर्शन किया। दिसंबर 2022 में रिकॉर्ड 7.82 बिलियन यूपीआई लेनदेन किया गया जो कृरकम के हिसाब से 12.82 ट्रिलियन रुपये थी। NPCI डेटा के अनुसार नवंबर की तुलना में दिसंबर में यूपीआई लेनदेन 7.12 प्रतिशत अधिक, जबकि इसी अवधि के दौरान लेनदेन का मूल्य 7.73 प्रतिशत बढ़ा।

कालाधन पर चोट, पैन कार्ड होल्‍डर बढ़े

नोटबंदी के बाद मोदी सरकार कालाधन रोकने के लिए लगातार फैसले ले रही है। देश में पैन कार्ड धारकों की संख्या 50 करोड़ से ज्यादा है। अब पैन कार्ड को बैंक अकाउंट से लिंक करना जरूरी हो गया है। साथ ही बड़े ट्रांजैक्शन पर पैन नंबर देना भी जरूरी कर दिया गया है। पैन कार्ड को बैंक अकाउंट से लिंक करने से इस बात का पता आसानी से लगाया जा सकता है कि एक पैन कार्ड से कितने खाते जुड़े हैं। मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले का ये भी फायदा हुआ है कि देश में पैन कार्ड के होल्‍डर की संख्या बढ़ी है। सरकार की कोशिश जल्द से जल्द देश में पैन कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने की है। ताकि लेनदेन में और पारदर्शिता लाई जा सके। आंकड़ों के मुताबिक देश में अभी तक 43.74 करोड़ पैन कार्ड आधार कार्ड से लिंक हुए हैं।

जनधन खातों से ऐतिहासिक बदलाव, बैंकों में बढ़ा पैसा

नोटबंदी से पहले देश के गरीबों की पहुंच बैंक खातों तक नहीं थी। इस वजह से कैश ट्रांजेक्शन उनकी मजबूरी थी, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की कोशिशों से देश में जनधन योजना के तहत खुले बैंक खातों की तादाद तेजी से बढ़ी है। देश में जन धन बैंक खातों की संख्या बढ़कर 47.78 करोड़ हो गई है, इन जनधन खातों में करीब 1.8 लाख करोड़ रुपए जमा हैं। मोदी सरकार के फैसले से अब देश की बैंकिंग सिस्टम का लाभ भी गरीबों तक तेजी से पहुंच रहा है।

डिजिटल पेमेंट की सफलता ने नोटबंदी विरोधियों को दिया जवाब

नोटबंदी को जब लागू किया गया था तो कांग्रसे के दिग्गज नेताओं के साथ कई लोगों ने भारत में डिजिटल पेमेंट को लेकर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि भारत में डिजिटल पेमेंट का आधारभूत ढांचा नहीं है। लोग तकनीकी रूप से सक्षम नहीं है। यहां तक कि गरीबी और अशिक्षा का हवाला देकर डिजिटल पेमेंट की सफलता पर आशंकाएं जतायी थीं। लेकिन आज उसी जनता ने उनके सभी आशंकाओं को गलत साबित कर दिया है और बता दिया है कि कांग्रेस और उसके नेताओं को भारत के लोगों की क्षमता पर भरोसा नहीं है।

कोरोना काल में वरदान साबित हुई नोटबंदी

कोरोना काल में नोटबंदी देश के लिए वरदान साबित हुई। डिजिटल पेमेट की पहले से तैयारी और मोदी सरकार की इस दिशा में लगातार प्रयास ने देश को कोरोना जैसे बड़े संकट का सामना करने में सक्षम बनाया। महिलाओं को उनके खाते में 500-500 रुपये भेजने में मदद मिली। बुजुर्गों और विधवाओं को 1000-1000 रुपये का डिजिटल भुगतान हुआ। योजनाओं के लाभार्थियों को भी डिजिटल पेमेंट किया गया। यह डिजिटल पेमेंट गरीबों को करोना से लड़ने में हथियार साबित हुआ।

डिजिटल पेमेंट में आई क्रांति से अर्थव्यवस्था में तेजी

आज भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली बन चुकी है। इसके लिए देश में डिजिटल पेमेंट क्रांति को भी एक बड़ी वजह बताया जा रहा है। IMF जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था भी भारत की डिजिटल क्रांति की आज तारीफ कर रही है। हालांकि नोटबंदी के बाद डिजिटल भुगतान की धीमी शुरुआत हुई थी, लेकिन मोदी सरकार ने लोगों को प्रेरित करने के लिए कई प्रयास किए। सरकार का प्रयास भी सफल रहा और लोगों ने डिजिटल पेमेंट को अपनाना शुरू किया। इसका परिणाम है कि आज लोगों के लिए ये पेमेंट का पसंदीदा तरीका बन चुका है। नए-नए बदलाव और सुविधाएं इससे जुड़ने से डिजिटल पेमेंट का और विस्तार हुआ।

डिजिटल पेमेंट इकोसिस्टम के दायरे का लगातार विस्तार

उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने 4 नवंबर, 2022 को भारत में बढ़ते डिजिटल परिदृश्य के बारे में एक पोस्ट शेयर की थी। उन्होंने ट्विटर पर उत्तराखंड में 10,500 फीट की ऊंचाई वाले गांव में भारत की ‘आखिरी चाय की दुकान’ पर एक इंटरनेट यूजर की पोस्ट को रीट्वीट किया था। इस दुकान पर यूपीआई का उपयोग किया जा रहा है। पोस्ट को साझा करते हुए उद्योगपति ने लिखा, “जैसा कि वे कहते हैं, एक तस्वीर एक हजार शब्दों के बराबर होती है। यह भारत के डिजिटल पेमेंट इकोसिस्टम के लुभावने दायरे और पैमाने को दिखाती है। जय हो!”

भारत में सबसे ज्यादा डिजिटल पेमेंट के विकल्प मौजूद

आज पूरी दुनिया भारत में डिजिटल पेमेंट की तारीफ कर रही है और इसके प्लेटफॉर्म UPI यानी Unified Payment Interface को अपने-अपने देश में शुरू करना चाहती है। वहीं विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से ज्यादा विकल्प भारत में मौजूद हैं। भारत में डिजिटल पेमेंट करने के लिए यूपीआई (UPI), रुपे (RUpay), पेटीएम (Paytm), फोन-पे (Phone-Pay), गूगल पे (Google Pay) के साथ अन्य विकल्प मौजूद हैं। जबकि अमेरिका और चीन के पास इससे कम ऑप्शंस हैं।

रियल टाइम डिजिटल पेमेंट के मामले में भारत नंबर 1

नोटबंदी के फैसलों से कैश ट्रांजेक्शन पर लगाम और डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के मोदी सरकार के फैसले से दुनियाभर में भारत की धाक बढ़ी है। रियल टाइम डिजिटल पेमेंट के मामले में भारत ने अमेरिका, चीन और जापान जैसे देशों को पीछे छोड़ दिया है। पूरी दुनिया के टॉप 10 देशों में रियल टाइम पेमेंट लेन-देन के मामले में भारत पहले नंबर पर है। जबकि चीन दूसरे नंबर पर है। अमेरिका जैसा विकसित देश इस मामले में 9 वें नंबर पर है। जापान सातवें नंबर पर है। मार्केट के जानकारों का कहना है कि वर्ष 2026 तक एक ट्रिलियन से ज्यादा लोग भारत में डिजिटल पेमेंट करने लगेंगे।

नोटबंदी से हाउसिंग सेक्टर में ब्लैक मनी का इस्तेमाल 80 प्रतिशत घटा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी के बाद से देश के हाउसिंग सेक्टर में बढ़ा बदलाव आया है। 2016 के आखिर से अब तक देश के हाउसिंग मार्केट में काले धन का इस्तेमाल 75 से 80 प्रतिशत घटा है और इंवेनटरी में भी कमी आई है। नोटबंदी से पहले के उलट नई लांचिंग के मुकाबले बिक्री ज्यादा बढ़ी है। प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी फर्म एनाराक की एक रिसर्च से यह जानकारी सामने आई है।

नोटबंदी रियल एस्टेट के लिए वरदान साबित, दाम घटे

रियल एस्टेट क्षेत्र कालेधन के ट्रांजेक्शन्स के लिए बेहद ही आसान जरिया बन गया था। लेकिन नोटबंदी के निर्णय के बाद आम लोगों के लिए घर खरीदना बहुत सस्ता हो गया। दो लाख रुपये से अधिक के कैस ट्रांजेक्शन पर रोक लगने के बाद प्रॉपर्टी की कीमतों में 30 से 40 प्रतिशत तक कमी आ चुकी है। नोटबंदी के कारण रियल एस्टेट सेक्टर अब अधिक पारदर्शी, संगठित, भरोसेमंद और खरीददारों के लिए अनुकूल साबित हो रहा है।

अब काले धन का पता लगाना काफी आसान

नोटबंदी के बाद 99 प्रतिशत नकदी बैंकिंग सिस्टम में आ गए हैं। इसका फायदा यह है कि अब काले धन का पता लगाना काफी आसान हो गया है। इस निर्णय के बाद 24.75 लाख ऐसे संदिग्ध मामलों की पहचान की गई जिनमें पैन कार्ड धारकों के प्रोफाइल नोटबंदी के पहले के प्रोफाइल से मेल नहीं खाते।

इकोनॉमिक स्वच्छता : 2.38 लाख शैल कंपनियां आइडेंटीफाई

नोटबंदी के बाद पांच लाख से ज्यादा संदिग्ध कंपनियां जांच एजेंसियों के राडार पर आईं। इनमें से अधिकतर कालाधन को छिपाने और कर चोरी के उद्देश्य से संचालित की जा रहीं थी। 2018 से 2021 के बीच में ही 2.38 लाख शैल कंपनियों को भारत सरकार ने आइडेंटीफाई करने के बाद इनका रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया। नोटबंदी के बाद असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के जीवन में भी बड़ा बदलाव आया है। अब उन्हें सामाजिक सुरक्षा से उनके अधिकारों के संरक्षण दिये जा रहे हैं। एक करोड़ से अधिक श्रमिकों को प्रोविडेंट फंड का लाभ मिलने लगा है।

विदेशों से टेरर फंडिंग पर लगी रोक

देश की सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले कुछ वर्षों में आतंक के आकाओं की नकेल ऐसे टाइट कर दी है कि वे भारत की सरजमीं में अपने नापाक कदम रखने के नाम पर थर-थर कांप रहे हैं। ऐसे में वो विदेश की नापाक सरजमीं से फंडिंग के जरिए दहशतगर्दी का कायराना खेल खेलने के मंसूबे पाल रहे हैं। अब फंडिंग चाहे पाकिस्तान से हो रही हो, चीन से हो रही हो या कनाडा से उनके मंसूबे कामयाब नहीं हो रहे हैं। इसका पूरा श्रेय नोटबंदी को है, जिसने बैंकिंग खातों में होने वाले हर लेन-देन में पारदर्शिता ला दी है, जिससे संदिग्ध खातों पर नजर रखना और उन्हें ट्रैक करना आसान हो गया है। बैंकों से मिले इनपुट के आधार पर एनआईए की लगातार छापेमारी हो रही है।

जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाज हुए गायब

जम्मू-कश्मीर में हर शुक्रवार को पत्थरबाजी इतिहास की बात हो गई है। विदेशी फंडिंग पर रोक, बैंक खातों पर निगरानी और सुरक्षा बलों की सख्ती ने पत्थरबाजों और उनके आकाओं की कमर तोड़ दी है। गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जम्मू-कश्मीर में 2019 की तुलना में पत्थरबाजी के मामलों में आश्चर्यजनक रूप से 90 प्रतिशत की कमी आई है। जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजों को सैलरी देने वाले अलगाववादी नेताओं की बड़े स्तर पर गिरफ्तारियां हुई हैं। पत्थरबाजों को रुपयों का लालच देकर पत्थरबाजी के लिए उकसाने वाले इन नेताओं पर NIA समेत अन्य सरकारी एजेंसियों ने शिकंजा कसा है। जिसके वजह से अब इनके मुंह से पत्थरबाजों को उकसाने वाले बयान निकलना बंद हो चुके हैं। अलगाववादी नेताओं पर इस कड़ाई से पत्थरबाजों के दिल में भी डर बैठ गया है। इससे कश्मीर में सड़कों पर पत्थरबाज दिखाई नहीं दे रहे हैं और पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आई है।

आतंकियों की भर्ती और हमलों में 40 प्रतिशत की कमी

कश्मीर घाटी में विदेशी फंडिंग कम होने से आतंकी हमलों और नए आतंकियों की भर्ती में कमी के रूप में साफ नजर आने लगा है। मौजूदा वर्ष के पहले दस माह की तुलना अगर वर्ष 2020 के पहले दस माह से करें तो आतंकियों की भर्ती और हमलों में 40 प्रतिशत की कमी आयी है। इस वर्ष अब तक करीब 120 आतंकी मारे गए हैं। इसके अलावा सरेंडर करने वाले आतंकियों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। कश्मीर में जो हालात बदले हैं, उसमें अलगाववादी और राष्ट्रविरोधी तत्वों का ऑनग्राउंड दुष्प्रचार लगभग समाप्त हो गया है। इंटरनेट मीडिया पर भी विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों ने राष्ट्रिविरोधी और जिहादी तत्वेां के दुष्प्रचार के खिलाफ अभियान चला रखा है। इसके अलावा युवाओं को खेल गतिविधियों मेंं, समाज कल्याण और राष्ट्रनिर्माण की गतिविधियों में उनकी ऊर्जा को लगाया जा रहा है।

पैसों का हुआ टोटा, बैंक लुटेरे बन गए आतंकी

दरअसल क्वेटा और कराची स्थित पाकिस्तान की सरकारी प्रिटिंग प्रेसों में भारत के नकली करेंसी नोट छापने का जो नापाक खेल चलता था, वो नोटबंदी से चौपट हो गया है। इसी कारण अब आतंकियों के पास फंड नहीं है। टेरर फंडिंग की चेन टूटने से आतंकियों के पास पैसों का इतना टोटा हुआ कि कुछ आतंकवादी बैंक लूट की घटनाओं को ही अंजाम देने लगे। इसके लिए वह बैंकों को निशाना बना रहे हैं। अप्रैल 2021 में उत्तरी कश्मीर के बारामूला में पीपीई किट पहने तीन हथियारबंद आतंकियों ने जम्मू कश्मीर बैंक की शाखा से 6 लाख की लूट को अंजाम दिया। लेकिन बैंक में मौजूद लोगों के विरोध के चलते उनके मंसूबे पूरी तरह कामयाब नहीं हो सके। भागते हुए लुटेरों ने कई राउंड फायरिंग भी की। लूटरे जिस गाडी में आये थे वह भी जल्दबाजी में घटनास्थल पर ही छोड़ कर भागे और सड़क पर एक और गाड़ी को रोक कर उस में भाग गए।

नक्सलवाद पर नकेल कसने में मिली सफलता

नोटबंदी के कारण एक ओर जहां कश्मीर में इसका सकारात्मक असर है वहीं left wing extremist प्रभावित क्षेत्रों में भी इसका खासा असर है। नोटबंदी की वजह से नक्सली संगठनों का पूरा आर्थिक ढांचा चरमरा गया है। उनके पास बड़ी मात्रा में नकदी थी जो 500 और 1000 के नोट बंद होते ही मिट्टी में मिल गई। 26 सितबंर, 2021 को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए कार्य किया जा रहा है। वामपंथी उग्रवाद पर नकेल कसने में केंद्र और राज्यों के साझा प्रयासों से बहुत सफलता मिली है। एक तरफ जहां वामपंथी उग्रवाद की घटनाओं में 23 प्रतिशत की कमी आई है वहीं मौतों की संख्या में 21 प्रतिशत की कमी आई है।’

नोटबंदी से पड़ी भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बुनियाद, जानिए 11 फायदे

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव-2014 के दौरान देशवासियों से वादा किया था कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार और कालेधन पर कार्रवाई करेगी। उन्होंने लोगों को यह भी भरोसा दिया था कि वे भारतीय अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता लाने का प्रयास करेंगे। अपने उसी वादे के अनुरूप प्रधानमंत्री मोदी ने कई बड़े और कड़े कदम उठाए हैं। भारत जैसे विशाल देश में नोटबंदी जैसा निर्णय कोई आसान नहीं था, लेकिन प्रधानमंत्री ने साहस दिखाया और देश की जनता ने उनका साथ दिया। 08 नवंबर को नोटबंदी लागू किए हुए दो साल पूरे हो गए हैं और नोटबंदी के बाद कैश का बैंकिंग सिस्टम में आना, टैक्स पेयर्स की संख्या में बढ़ोतरी, कैशलेस ट्रांजेक्शन में वृद्धि और आतंकवादी-नक्सलवादी गतिविधियों में भारी गिरावट नोटबंदी की सफलता की कहानी कहती है। इस एक वर्ष में नोटबंदी के अनेकों फायदे सामने आए हैं, आइये हम उनपर एक दृष्टि डालते हैं-

1. कर अनुपालन में हुई बढ़ोतरी
नोटबंदी के बाद टैक्स रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या में 80 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। 2013-14 में 3.79 करोड़ थी, जो 2017-18 में बढ़कर 6.86 करोड़ हो गई। इसके साथ ही 2013-14 में करदाताओं की संख्या 5.27 करोड़ से 40 प्रतिशत बढ़कर 2017-18 में 7.41 करोड़ हो गई।

2. डिजिटल हो रही अर्थव्यवस्था
नोटबंदी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था लेस कैश सोसाइटी की ओर अग्रसर है। कैशलेस लेनदेन लोगों के जीवन को आसान बनाने के साथ-साथ हर लेनदेन से काले धन को हटाते हुए क्लीन इकोनॉमी बनाने में भी मददगार साबित हुआ है। नवंबर 2016 में जहां यूपीआई आधारित ट्रांजेक्शन सिर्फ 90 करोड़ रुपए का था अक्तूबर 2018 में बढ़कर 74978 करोड़ रुपए पर पहुंच गया है। इस दौरान क्रेडिट और डेबिट कार्ड का ट्रांजेक्शन भी दोगुना से ज्यादा हो गया है।

3. ट्रेस आउट हो सका कालाधन
नोटबंदी के बाद 99 प्रतिशत नकदी बैंकिंग सिस्टम में आ गए हैं। इसका फायदा यह है कि अब काले धन का पता लगाना काफी आसान हो गया है। इस निर्णय के बाद 17.73 लाख ऐसे संदिग्ध मामलों की पहचान की गई जिनमें पैन कार्ड धारकों के प्रोफाइल नोटबंदी के पहले के प्रोफाइल से मेल नहीं खाते।

4. इकोनॉमी सिस्टम में स्वच्छता
नोटबंदी के बाद चार लाख लाख संदिग्ध कंपनियां जांच एजेंसियों के राडार पर आईं। इनमें से अधिकतर कालाधन को छिपाने और कर चोरी के उद्देश्य से संचालित की जा रहीं थी। इनमें से 2.24 कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया।

5. फॉर्मल हो रही इकोनॉमी
नोटबंदी के बाद असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के जीवन में बड़ा बदलाव आया है। अब उन्हें सामाजिक सुरक्षा से उनके अधिकारों के संरक्षण दिये जा रहे हैं। एक करोड़ से अधिक श्रमिकों को प्रोविडेंट फंड का लाभ मिलने लगा है और ESIC में 1.3 करोड़ श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन भी किया गया है।

6. जाली नोटों पर कसा शिकंजा
नोटबंदी के बाद जाली नोटों की बाजार में उपलब्धता बेहद कम हो गई है। रिजर्व बैंक ने जिन नकली नोटों का पता लगाया था इनमें से 500 रुपये के 41 प्रतिशत और 1000 के 33 प्रतिशत थे। नोटबंदी के बाद ही ये पता लग पाया कि पांच सौ के हर 10 लाख नोट में औसत 7 और 1000 के हर 10 लाख नोटों में औसत 19 नोट नकली थे।

7. बैंकों के ब्याज दरों में कमी
नोटबंदी के बाद बैंकों ने अपनी ब्याज दरों में करीब एक प्रतिशत तक कमी की है। नोटबंदी के बाद 1 जनवरी, 2017 को भारतीय स्टेट बैंक ने आश्चर्यजनक रूप से धन की सीमांत लागत आधारित ब्याज दर (एमसीएलआर) में 0.9 प्रतिशत कटौती की थी। इसके बाद दूसरे बैंकों ने भी ऐसा ही किया जिससे आम लोगों को काफी राहत मिली है।

8. रियल एस्टेट के लिए वरदान
रियल एस्टेट क्षेत्र कालेधन के ट्रांजेक्शन्स के लिए बेहद ही आसान जरिया बन गया था। लेकिन नोटबंदी के निर्णय के बाद आम लोगों के लिए घर खरीदना बहुत सस्ता हो गया। दो लाख रुपये से अधिक के कैस ट्रांजेक्शन पर रोक लगने के बाद प्रॉपर्टी की कीमतों में 25 से 40 प्रतिशत तक कमी आ चुकी है। नोटबंदी के कारण रियल एस्टेट सेक्टर अब अधिक पारदर्शी, संगठित, भरोसेमंद और खरीददारों के लिए अनुकूल साबित हो रहा है।

9. करोड़ों की बेनामी संपत्ति जब्त
नोटबंदी के बाद से सीबीडीटी ने देश में चल और अचल, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपत्तियों की खोजबीन शुरू की। दरअसल ये संपत्ति वास्तविक मालिक के बजाय किसी और के नाम पर दर्ज हैं। नोटबंदी के बाद ऐसी बेनामी संपत्ति का पता लगाने में भी बड़ी सफलता मिली है। आयकर विभाग के अनुसार 14 क्षेत्रों में 233 मामलों में 813 करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति जब्त की गई है। बेनामी अधिनियम के तहत 233 मामलों में संपत्तियों को अस्थायी तौर पर अटैच किया गया। विभाग ने 600 करोड़ रुपये से अधिक बेनामी संपत्तियों को कुर्क भी किया। गौरतलब है कि 240 मामलों में से 40 मामलों में ही 530 करोड़ रुपये की संपत्ति को कुर्क किया गया है।

10. आतंकवाद और जाली नोट पर चोट
नोटबंदी के बाद से आतंकियों के हौसले पस्त हुए हैं और उनके पास पैसा पहुंचने पर काफी हद तक ब्रेक लगाई जा सकी है। पहले जब कभी भी किसी आतंकी का एनकाउंटर होता था तो हजारों लोग वहां पहुंच जाते और आर्मी पर पत्थरबाजी करते। अब हालात ये हैं कि इनकी तादाद 20 या 30 से ज्यादा नहीं होती। हवाला के जरिये नक्सलियों आतंकवादियों और जिहादियों को जो पैसा मिलता था वो अब कचरा बन गया है। नोटबंदी इसलिए आवश्यक था क्योंकि भारतीय रुपया नकली नोटों की वजह से बर्बाद हो रहा था। रिजर्व बैंक के अनुसार 500 रुपये के बंद हुए हर 10 लाख नोट में औसत 7 नोट नकली थे और 1000 रुपये के बंद हुए हर 10 लाख नोटों में औसत 19 नोट नकली थे।

11. नोटबंदी ने महामंदी से बचाया
नोटबंदी के बाद जीडीपी की गिरावट और विनिर्माण क्षेत्रों में मंदी के सवाल उठाए जा रहे हैं, लेकिन वास्तविक तथ्य यह है कि नोटबंदी के निर्णय ने भारत को बड़ी मुसीबत से बचा लिया है। 2004 के बाद एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार मंदी की तरफ जा रही थी। चलनिधि यानि Liquidity की कमी से उत्पन्न होने लगी थी। परिणामस्वरूप देश की आर्थिक वृद्धि दर घटते-घटते 2013 में 4.4 प्रतिशत तक आ गई थी।

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