प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज 6 सितंबर को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गुजरात के सूरत में ‘जल संचय जनभागीदारी पहल’ का शुभारंभ किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि जल-संचय, ये केवल एक पॉलिसी नहीं है। ये एक प्रयास भी है, और यूं कहें तो ये एक पुण्य भी है। इसमें उदारता भी है, और उत्तरदायित्व भी है। आने वाली पीढ़ियां जब हमारा आंकलन करेंगी, तो पानी के प्रति हमारा रवैया, ये शायद उनका पहला पैरामीटर होगा। आज इस दिशा में जनभागीदारी के जरिए एक और सार्थक प्रयास शुरू हो रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा ‘हाल के दिनों में देश के हर कोने में वर्षा का जो तांडव हुआ, देश का शायद ही कोई ऐसा इलाका होगा जिसको इस मुसीबत का सामना न करना पड़ा हो। मैं कई वर्षों तक गुजरात का मुख्यमंत्री रहा, लेकिन एक साथ इतने सभी तहसीलों में इतनी तेज बाारिश मैंने कभी ना सुना था, ना देखा था। लेकिन इस बार गुजरात में बहुत बड़ा संकट आया। सारी व्यवस्थाओं की ताकत नहीं थी कि प्रकृति के इस प्रकोप के सामने हम टिक पाएं। लेकिन गुजरात के लोगों का अपना एक स्वभाव है, देशवासियों का स्वभाव है, सामर्थ्य है कि संकट की घड़ी में कंधे से कंधा मिलाकर के हर कोई, हर किसी की मदद करता है। आज भी देश के कई भाग ऐसे हैं, जो भयंकर वर्षा के कारण परेशानियों से गुजर रहे हैं।’
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ‘आज जब पर्यावरण और जल-संरक्षण की बात आती है, तो कई सच्चाइयों का हमेशा ध्यान रखना है। भारत में दुनिया के कुल फ्रेश वाटर का सिर्फ 4 प्रतिशत ही है। हमारे एक बड़े भूभाग को पानी की कमी से जूझना पड़ रहा है। कई जगहों पर पानी का स्तर लगातार गिर रहा है। क्लाइमेट चेंज इस संकट को और गहरा रहा है।’
उन्होंने आगे कहा कि ‘इस सबके बावजूद, ये भारत ही है जो अपने साथ-साथ पूरे विश्व के लिए इन चुनौतियों के समाधान खोज सकता है। इसकी वजह है भारत की पुरातन ज्ञान परंपरा। जल संरक्षण, प्रकृति संरक्षण ये हमारे लिए कोई नए शब्द नहीं है, ये हमारे लिए किताबी ज्ञान नहीं है। ये हालात के कारण हमारे हिस्से आया हुआ काम भी नहीं है। ये भारत की सांस्कृतिक चेतना का हिस्सा है। हम उस संस्कृति के लोग हैं, जहां जल को ईश्वर का रूप कहा गया है, नदियों को देवी माना गया है। सरोवरों को, कुंडों को देवालय का दर्जा मिला है। गंगा हमारी मां है, नर्मदा हमारी मां है। गोदावरी और कावेरी हमारी मां हैं। ये रिश्ता हजारों वर्षों का है। हजारों वर्ष पहले भी हमारे पूर्वजों को जल और जल-संरक्षण का महत्व पता था। जिस राष्ट्र का चिंतन इतना दूरदर्शी और व्यापक रहा हो, जलसंकट की त्रासदी के हल खोजने के लिए उसे दुनिया में सबसे आगे खड़ा होना ही होगा।’
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ‘जल-संरक्षण केवल नीतियों का नहीं, बल्कि सामाजिक निष्ठा का भी विषय है। जागरूक जनमानस, जनभागीदारी और जनआंदोलन ये इस अभियान की सबसे बड़ी ताकत है। जल-जीवन मिशन के रूप में पहली बार देश ने ‘हर घर जल’ इसका संकल्प लिया। पहले देश के केवल 3 करोड़ घरों में पाइप से पानी पहुंचता था। आज देश के 15 करोड़ से अधिक ग्रामीण घरों को पाइप से पानी मिलने लगा है। जल-जीवन मिशन के जरिए देश के 75 प्रतिशत से ज्यादा घरों तक नल से साफ पानी पहुंच चुका है।’
उन्होंने कहा कि आज जलशक्ति अभियान एक राष्ट्रीय मिशन बन चुका है। पारंपरिक जलस्रोतों का नवीनीकरण हो, नए निर्माण हो, स्टेकहोल्डर से लेकर सिविल सोसाइटी और पंचायतों तक, हर कोई इसमें शामिल है। जनभागीदारी के जरिए ही हमने आज़ादी के अमृत महोत्सव में हर जिले में अमृत सरोवर बनाने का काम भी शुरू किया था। इसके तहत देश में जनभागीदारी से 60 हजार से ज्यादा अमृत सरोवर बने। इसके साथ ही खेतों के पास तालाब-सरोवर बनाना, रीचार्ज वेल बनाना हमें कई नई तकनीक के साथ ऐसे पारंपरिक ज्ञान को भी बढ़ावा देना होगा।’
प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘साफ पानी की उपलब्धता, जल संरक्षण की सफलता, इससे एक बहुत बड़ी वॉटर इकोनॉमी भी जुड़ी है। जैसे जल जीवन मिशन ने लाखों लोगों को रोजगार और स्वरोजगार के मौके दिए हैं। बड़ी संख्या में इंजीनियर्स, प्लंबर्स, इलेक्ट्रिशियन्स और मैनेजर्स जैसी जॉब्स लोगों को मिली हैं। WHO का आकलन है कि हर घर पाइप से जल पहुंचने से देश के लोगों के करीब साढ़े 5 करोड़ घंटे बचेंगे। ये बचा हुआ समय विशेषकर हमारी बहनों-बेटियों का समय फिर सीधे देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में लगेगा। वॉटर इकोनॉमी का एक पहलू, अहम पहलू हेल्थ भी है- आरोग्य। रिपोर्ट्स कहती हैं जल जीवन मिशन से सवा लाख से ज्यादा बच्चों की असमय मौत भी रोकी जा सकेगी। हम हर साल 4 लाख से ज्यादा लोगों को डायरिया जैसी बीमारियों से भी बचा पाएंगे यानि बीमारियों पर लोगों का जो खर्च होता था, वो भी कम हुआ है।’