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पूर्वोत्तर की सूरत और सीरत बदल रही मोदी सरकार, त्रिपुरा में 35 साल बाद थमेगी हिंसा, उग्रवादी गुट हथियार छोड़ मुख्य धारा में आए

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यह अकाट्य सत्य है कि आजादी के बाद दशकों तक कांग्रेस सरकारों ने पूर्वोत्तर राज्यों से सौतेला व्यवहार करते हुए उन्हें हाशिये पर धकेले रखा। कांग्रेस नेताओं का मानना था कि उनके लिए इस क्षेत्र में चुनावी लाभ बहुत कम था, इसलिए नॉर्थ-ईस्ट के विकास को तवज्जो ही नहीं दी। लेकिन पीएम नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद पूर्वोत्तर में यथास्थिति बदलने की प्रतिबद्धता के साथ ही अलगाव और अज्ञानता की नीति को एकीकरण की नीति से बदल दिया है। उन्होंने बीते एक दशक में पूर्वोत्तर से अलगाववाद को खत्म कर इसे भारत के ‘गेटवे ऑफ ईस्ट’ के तौर पर विकसित किया है। खुद पीएम मोदी ने अपने 10 वर्ष के कार्यकाल में ही करीब 70 बार पूर्वोत्तर के राज्यों का दौरा किया है, जो कि शायद उनसे पहले के कुल प्रधानमंत्रियों की संयुक्त यात्राओं से भी कहीं अधिक है। इसके अलावा इस अवधि में मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्रियों ने करीब 680 बार से अधिक बार पूर्वोत्तर क्षेत्रों का दौरा किया है। इससे साबित होता है कि आज पूर्वोत्तर ना दिल्ली से दूर है और ना दिलों से दूर है और हर दिन एक नए युग की नई इबारत लिखने में लगा हुआ है35 साल बाद हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होना स्वागतयोग्य कदम
मोदी सरकार के इसी विजन के चलते पूर्वोत्तर के एक राज्य त्रिपुरा के लिए शांति और खुशी की खबर आई है। त्रिपुरा के दो उग्रवादी संगठन नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT) और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (ATTF) मोदी सरकार के शांति-पथ के साथ कदमताल करते हुए हथियार छोड़कर मुख्यधारा में लौट आए हैं। केंद्र और त्रिपुरा राज्य सरकार ने 4 सितंबर को इनके साथ शांति समझौता किया। इस समझौता ज्ञापन पर साइन करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा मौजूद रहे। गृहमंत्री शाह ने कहा कि 35 साल से चल रहे संघर्ष के बाद 2 संगठनों ने हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने और त्रिपुरा के विकास के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की। शांति समझौते पर साइन के साथ ही दोनों संगठनों के 328 कैडर मुख्यधारा में शामिल होने के लिए तैयार हैं।मार्च में केंद्र, त्रिपुरा और TIPRA मोथा संगठन के साथ भी शांति समझौता
गृह मंत्री शाह ने बताया कि ये नॉर्थ ईस्ट की बेहतरी के लिए 12वां समझौता है। अब तक करीब 10,000 उग्रवादियों ने हथियार छोड़कर आत्मसमर्पण कर चुके हैं। काबिले जिक्र है कि त्रिपुरा के मूल निवासियों की समस्याओं का स्थायी समाधान लाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में इसी साल मार्च महीने के दौरान TIPRA मोथा, त्रिपुरा और केंद्र सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस दौरान अमित शाह ने त्रिपुरा के सभी लोगों को आश्वस्त किया था कि कि अब यहां के निवासियों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ेगा। भारत सरकार उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए सिस्टम बनाने में दो कदम आगे रहेगी।

राज्य में शांति के लिए मोदी सरकार ने 3 समझौते किए-सीएम माणिक साहा
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने कहा कि पिछले 10 सालों में मोदी सरकार ने शांति समझौतों और बातचीत से नॉर्थ ईस्ट में विकास किया है। इनमें अकेले त्रिपुरा के लिए अब तक तीन समझौते हुए हैं। NLFT और ATTF के सदस्यों भी राज्य के विकास में सहयोग देने के लिए मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला किया है। उन्होंने पूरे नॉर्थ ईस्ट में शांति और विकास का माहौल बनाने के लिए पीएम मोदी और अमित शाह के प्रयासों की भूरि-भूरि सराहना की। उन्होंने बताया, ‘एनएलएफटी और एटीटीएफ ने 35 साल से चल रहे संघर्ष को समाप्त करने और मुख्यधारा में लौटने, हिंसा का त्यागने के फैसले से एक समृद्ध और विकसित त्रिपुरा के निर्माण का मोदी सरकार का संकल्प और दृढ़ हुआ है। पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में अपना विश्वास जताकर त्रिपुरा की युवा शक्ति के भविष्य को संवारने का काम किया है।एक दशक में पूर्वोत्तर में 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक के विकास कार्य कराए
मोदी सरकार की पूर्वोत्तर में शांति बहाली और विकास के प्रयास लगातार देखने को मिल रहे हैं। मोदी सरकार ने एक दशक में पूर्वोत्तर में 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च करते यहां की सूरत और सीरत दोनों बदल दी है। पिछले साल ही दिसंबर में असम का उग्रवादी संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) ने हथियार छोड़कर शांति की राह पकड़ी थी। उल्फा ने केंद्र और असम सरकारों के साथ एक त्रिपक्षीय समझौता साइन किया। इस शांति समझौते में हिंसा छोड़ने और समाज की मुख्यधारा में शामिल होने की बातें हुईं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की मौजूदगी में यह समझौता हुआ था। इस शांति समझौते के बाद ULFA के 700 कैडरों ने भी समर्पण किया था।

आइए, अब जानते हैं त्रिपुरा के उन दो उग्रपंथी गुटों के बारे में, जिन्होंने हथियार छोड़कर शांति की राह पकड़ी है…

क्या हैं NLFT और ATTF?
• NLFT और ATTF दोनों ही प्रतिबंधित त्रिपुरी नेशनलिस्ट टेररिस्ट ऑर्गेनाइजेशन है। ये दोनों उग्रवादी संगठन हैं।
• ये संठगन हथियार के दम त्रिपुरा को भारत से अलग करके एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने का मंसूबा पाले हुए थे।
• ATTF की स्थापना 11 जुलाई 1990 को रंजीत देबबर्मा के नेतृत्व में त्रिपुरा नेशनल वॉलंटियर के पूर्व सदस्यों के एक ग्रुप ने थी।
• केंद्र सरकार ने एनएलएफटी और एटीटीएफ को गैरकानूनी घोषित करते हुए कई साल पहले प्रतिबंध लगा दिया था।
• उग्रवादी गतिविधियों के चलते 2019 और फिर 2023 में में NLFT-ATTF पर लगे बैन को बढ़ाया गया था।
• अपने मकसद को हासिल करने के लिए NLFT-ATTF त्रिपुरा में हिंसक घटनाओं में लिप्त थे, इसलिए इन पर बैन लगाया गया था।मणिपुर के सबसे बड़े और पुराने उग्रवादी संगठन ने भी हथियार डाले 

प्नधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मणिपुर सरकार के लगातार प्रयास से पूर्वोत्तर में शांति का मार्ग प्रशस्त हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी के अथक कोशिशों से मणिपुर में 60 साल पुराना विषय खत्म हो चुका है। मणिपुर का सबसे बड़ा और सबसे पुराना उग्रवादी संगठन यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) ने हथियार डाल दिया है। यूएनएलएफ ने केंद्र सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद हिंसा छोड़ने और मुख्यधारा में शामिल होने पर सहमति व्यक्त की। इससे मणिपुर के साथ ही पूरे देश के लोगों ने राहत की सांस ली है। वहीं मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इस समझौते के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के प्रति आभार जताया है। 

प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के अथक प्रयास से हुआ शांति समझौता- एन बीरेन सिंह

पिछले साल  दिसंबर में पत्रकारों को संबोधित करते हुए बीरेन सिंह ने कहा कि मैं मणिपुर और पूरे पूर्वोत्तर में शांति बहाल करने की पहल के लिए प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देना चाहता हूं। इसके साथ ही बीरेन सिंह ने गृहमंत्री अमित शाह के “अथक प्रयासों” के लिए आभार व्यक्त किया और बताया कि उनकी पहल से शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। मणिपुर के सीएम ने कहा कि शांति वार्ता के प्रयास कई सालों से किए जा रहे थे, लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी। शांति समझौते पर हस्ताक्षर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हुआ। यह बीजेपी द्वारा पूर्वोत्तर में बनाए गए विश्वास का नतीजा है। 

पूर्वोत्तर में शांति के अथक प्रयासों में एक नया अध्याय जुड़ गया है- अमित शाह

केंद्र सरकार और यूएनएलएफ के बीच बुधवार को दिल्ली में समझौता हुआ। इसके बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल हुई। पूर्वोत्तर में स्थायी शांति स्थापित करने के मोदी सरकार के अथक प्रयासों में एक नया अध्याय जुड़ गया है क्योंकि यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) ने आज नई दिल्ली में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। मणिपुर का सबसे पुराना घाटी स्थित सशस्त्र समूह यूएनएलएफ हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने पर सहमत हो गया है। मैं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में उनका स्वागत करता हूं और शांति और प्रगति के पथ पर उनकी यात्रा के लिए शुभकामनाएं देता हूं।”

अमित शाह ने मुख्यमंत्रियों के साथ कई बार मीटिंग के बाद बनाई थी रणनीति

राज्य में तीन मई 2023 को जातीय हिंसा भड़कने के बाद यह पहली बार है कि किसी बड़े उग्रवादी समूह ने शांति के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने समझौते से दो दिन पहले ही मणिपुर में शांति स्थापित करने के संकेत दे दिए थे। समझौते के लिए उन इलाकों की पहचान की गई थी जहां यह संगठन सक्रिय था। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गृह मंत्रालय के अधिकारियों और पूर्वोत्तर के राज्यों से आने वाले मुख्यमंत्रियों के साथ कई बार मीटिंग की। पिछले कुछ सालों में एक खास रणनीति के तहत गृहमंत्रालय ने इस ग्रुप के साथ समझौते की योजना बनाई। इस ग्रुप के गठन और इसको बढ़ावा देने में चीन परोक्ष रूप से मदद देता रहा है। यह संगठन मणिपुर में पुलिस और नागरिकों पर हमलों के साथ-साथ भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ गतिविधियों में शामिल था। वर्ष 1990 में इस संगठन ने भारत से मणिपुर की ‘मुक्ति’के लिए एक सशस्त्र संघर्ष शुरू किया था।

मोदी सरकार के प्रयास से पूर्वोत्तर में कई उग्रवादी संगठनों ने डाला हथियार

प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद पूर्वोत्तर में शांति स्थापित करने और देश की एकता-अखंडता को बनाए रखने के लिए प्रयास शुरू कर दिया। उनकी दूरदर्शी नीतियों और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की सजगता और तत्परात की वजह से पिछले कई सालों में पूर्वोत्तर राज्यों के बहुत सारे उग्रवादी संगठन मुख्यधारा से जुड़े हैं। एक के बाद एक उग्रवादी गुटों ने हथियार डालकर शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसमें असम में सक्रिय उग्रवादी समूह दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी (डीएनएलए) शामिल है। 2021 में नगालैंड में सक्रिय उग्रवादी संगठन एनएससीएन (के) निकी ग्रुप ने हिंसा का रास्ता छोड़कर संघर्ष विराम समझौते पर हस्ताक्षर किया। इसके अलावा जनवरी 2020 में बोडो एग्रीमेंट, असम में कार्बी समूह के काडर्स का सरेंडर और अगस्त 2019 में त्रिपुरा के उग्रवादी संगठन एनएलएफटी (एसडी) का सरेंडर हुआ था। 

मणिपुर में सुनियोजित तरीके से भड़काई गई थी आग

गौरतलब है कि मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में हिंसा भड़क उठी थी। पहाड़ी जिलों में तीन मई,2023 को आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के बाद भड़की हिंसा में अब तक सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद उस पर काबू पा लिया गया था लेकिन जो लोग इसे मुद्दा बनाए रखना चाहते हैं उन्होंने आग में घी डालते हुए एक वीडियो वायरल कर दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमेरिका दौरे से पहले इस हिंसा को भड़काया गया और संसद सत्र शुरू होने से पहले एक वीडियो वायरल किया गया जिसमें दो महिलाओं को नग्न करके घुमाया गया था। कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को बदनाम करने के लिए सुनियोजित तरीके से हिंसा को बढ़ावा दिया। कूकी और मेइती के बीच संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय रूप देने की साजिश रची। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी अपने शांति के रास्ते से विचलित नहीं हुए। उन्होंने पूर्वोत्तर में शांति स्थापित करने के प्रयास से विपक्ष की लगाई आग को बुझा दिया।  

पीएम मोदी ने विकास की गंगा बहाकर पूर्वोत्तर के लोगों का दिल जीत

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की बागडोर संभालने के बाद पूर्वोत्तर में शांति और तेज विकास पर ध्यान दिया। उन्होंने पूर्वोत्तर के दूर दराज के इलाकों और मुख्यधारा से कटे लोगों तक विकास को पहुंचाकर उनका दिल जीत लिया है। जो पूर्वोत्तर पहले दिल्ली से दूर माना जाता था, आज प्रधानमंत्री मोदी के प्रयास से काफी करीब हो गया है। पूर्वोत्तर के लगातार दौरे और वहां के लोगों से जुड़ाव का असर है कि हाल ही में हुए तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया। वहीं भारत के खिलाफ हथियार उठाकर देश की एकता और अखंडता को चुनौती देने वाले उग्रवादी और अलगाववादी भी हथियार छोड़कर अब देश की मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं।

अरुणाचल प्रदेश में भी उग्रवादी संगठनों की हुई घर वापसी

पिछले साल 12 मार्च का दिन पूर्वोत्तर में शांति की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस्टर्न नगा नेशनल गवर्नमेंट (ईएनएनजी) के 15 उग्रवादियों ने पुलिस मुख्यालय में आयोजित ‘घर वापसी’ समारोह में अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस दौरान  राज्य के गृह मंत्री बामांग फेलिक्स, उप मुख्यमंत्री चोना मीन, असम राइफल्स के अधिकारी भी मौजूद थे। पुलिस अधीक्षक रोहित राजबीर सिंह के मुताबिक उग्रवादियों ने संगठन प्रमुख तोशाम मोसांग के नेतृत्व में भारी मात्रा में गोलाबारुद के साथ आत्मसमर्पण किया। उग्रवादियो ने पुलिस को जिन हथियारों को सौंपा उनमें दो एके-47 राइफल, चीन निर्मित नौ एमक्यू श्रृंखला के हथियार, एक पिस्तौल, 19 मैगजीन, चार चीनी हथगोले और अन्य गोलाबारूद शामिल है। 

मुख्यमंत्री खांडू ने उग्रवादियों के आत्मसमर्पण को ऐतिहासिक करार दिया। साथ ही कहा कि यह सब राज्य पुलिस और असम राइफल्स के संयुक्त रूप से चलाए गए अभियान का परिणाम है। जिसमें सख्ती के साथ बातचीत का रास्ता भी अपनाया गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का लक्ष्य पूर्वोत्तर में शांति बहाल करना है। इसके लिए उग्रवादियों को हथियार छोड़ने और शांतिवार्ता शुरू करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसकी वजह से पहले भी कई उग्रवादियों ने शांति के मार्ग पर चलने का फैसला किया और मुख्यधारा से जुड़े।

ईएनएनजी के प्रमुख और 14 उग्रवादियों के आत्मसमर्पण करने से इस संगठन का अस्तित्व लगभग खत्म हो चुका है। इससे उत्साहित मुख्यमंत्री खांडू ने उम्मीद जताई कि आने वाले समय में अन्य संगठनों के उग्रवादी भी इसका अनुसरण करते हुए आत्मसमर्पण करेंगे। उन्होंने आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादियों को सरकार की तरफ से हरसंभव मदद और पुनर्वास का भरोसा दिया। उन्होंने कहा कि बंदूक की संस्कृति किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकती है। गौरतलब है कि पूर्वोत्तर का दौरा करने के मामले में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों को पीछे छोड़ दिया है। 2014 में पहली बार देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक वह 51 बार पूर्वोत्तर का दौरा कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने सुनिश्चित किया है कि केंद्र का एक मंंत्री हर 15 दिन पर पूर्वोत्तर के राज्यों का दौरा करें और वहां चल रहे विकास कार्यों का जायजा लें। प्रधानमंत्री मोदी पूर्वोत्तर के विकास के लिए एक्ट ईस्ट पॉलिसी अपनाई है। इस पॉलिसी की वजह से पूर्वोत्तर में तेजी से बदलाव आ रहा है और इसका लाभ आम लोगों को भी मिल रहा है।

 

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