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मोदी सरकार ने मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को दी बड़ी राहत, प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की आधी सीटों पर देनी होगी सरकारी कॉलेज जितनी फीस

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चिकित्सक बनने की चाहत रखने वाले छात्रों को बड़ी राहत दी है। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला नहीं मिलने पर अब उन्हें एमबीबीएस या मेडिकल के अन्य कोर्सेस की पढ़ाई करने के लिए विदेश नहीं जाना पड़ेगा। वहीं पैसे की कमी की वजह से अपने सपने पूरे नहीं करने वाले छात्र और माता-पिता को निराश नहीं होना पड़ेगा। मोदी सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए निजी मेडिकल कॉलेजों की 50 सीटों की फीस को सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बराबर कर दिया है। इससे गरीब और मध्यमवर्ग के छात्रों को बड़ी मदद मिलेगी और उनके डॉक्टर बनने के सपने साकार होंगे।

सोमवार (07 मार्च, 2022) को जन औषधि दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन औषधि योजना की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने ट्वीट किया, ”कुछ दिन पहले ही सरकार ने एक और बड़ा फैसला लिया है जिसका बड़ा लाभ गरीब और मध्यम वर्ग के बच्चों को मिलेगा। हमने तय किया है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में आधी सीटों पर सरकारी मेडिकल कॉलेज के बराबर ही फीस लगेगी।”

मोदी सरकार के इस फैसले के बाद नेशनल मेडिकल कमीशन (National Medical Commission) ने गाइडलाइन तैयार कर ली है। अगले सत्र से इस नियम को लागू कर दिया जाएगा। यह फैसला निजी विश्वविद्यालयों के अलावा डीम्ड यूनिवर्सिटीज़ पर भी लागू होगा। एनएमसी के दिशा-निर्देश में कहा गया है कि निजी मेडिकल कॉलेज और मानद (डीम्ड) विश्वविद्यालयों में 50 प्रतिशत सीट के लिए उतनी ही फीस ली जानी चाहिए, जितनी की संबंधित राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेज द्वारा वसूली जा रही है। साथ ही हर राज्य में मेडिकल की फीस की नई गाइडलाइन का क्रियान्वयन करने की जिम्मेदारी वहां की फीस फिक्सेशन कमेटी की होगी।

गौरतलब है कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए अभ्यर्थियों को एक वर्ष में 80,000 रुपये फीस देनी होती है। वहीं, प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में एक वर्ष की फीस 15 लाख से 25 लाख रुपये लगती है। कुल साढ़े चार साल में 70 लाख से एक करोड़ रुपये आता है। ज्यादा फीस लगने की वजह से अधिकतर छात्र प्राइवेट कॉलेजों में पढ़ाई नहीं करते हैं और दूसरे देशों जैसे यूक्रेन, रूस और चीन चले जाते हैं। जहां 20 से 35 लाख रुपये में पढ़ाई हो जाती है। लेकिन इन देशों के कई कॉलेजों की पढ़ाई की गुणवत्ता कम पाई गई है। इसे देखते हुए सरकार ने यहां आने के बाद उनके लिए स्क्रीनिंग टेस्ट अनिवार्य किया है।

मोदी सरकार ने हमेशा लोगों के स्वास्थ्य को सर्वोपरि रखा है, एक नजर डालते हैं बीते पांच वर्षों में चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए उठाए गए कदमों पर-

जितने डॉक्टर पिछले 70 वर्षों में बने, उतने अगले 10 वर्षों बनेंगे-पीएम मोदी

जनवरी 2022 में प्रधानमंत्री मोदी ने कोलकाता के चितरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के नए कैम्पस का वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए उद्घाटन करते हुए कहा कि देश में आज जिस तेजी से मेडिकल संस्थानों का विस्तार किया जा रहा है, उससे बहुत बड़ी संख्या में डॉक्टरों की जरूरत होगी। देश में जितने डॉक्टर पिछले 70 वर्षों में बने, उतने अगले 10 वर्षों में ही बनने जा रहे हैं। एक और बहुत बड़ी समस्या हमारे हेल्थ सेक्टर की रही है- डिमांड और सप्लाई में बहुत बड़ा गैप। डॉक्टर और दूसरे हेल्थ प्रोफेशनल्स हों या फिर हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर, डिमांड और सप्लाई के इस गैप को भरने के लिए भी देश में आज मिशन मोड पर काम हो रहा है। साल 2014 तक देश में अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट सीटों की संख्या 90 हज़ार के आसपास थी। पिछले 7 सालों में इनमें 60 हज़ार नई सीटें जोड़ी गई हैं। 

मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए NMC का गठन

मोदी सरकार ने 25 सितंबर 2020 को चिकित्सा शिक्षा को विनियमित करने वाली केंद्रीय मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) को रद्द करके इसकी जगह पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) का गठन किया। अब देश में मेडिकल शिक्षा और मेडिकल सेवाओं से संबंधित सभी नीतियां बनाने की कमान इस कमीशन के हाथों में हैं। कमीशन का पहला अध्यक्ष डॉ सुरेश चंद्र शर्मा को बनाया गया। अध्यक्ष के अलावा, NMC में 10 पदेन सदस्य और 22 अंशकालिक सदस्य होते हैं, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किए जाने का प्रावधान किया गया है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC), एक नया निकाय है जो गजट नोटिफिकेशन के माध्यम से केंद्र सरकार के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स-मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (BoG-MCI) को भंग करने के एक दिन बाद देश में चिकित्सा शिक्षा के शीर्ष नियामक के रूप में कार्य कर रहा है। एनएमसी की स्थापना चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में सुधार लाने के लिए एक बड़ा कदम है।

मेडिकल शिक्षा में ओबीसी और ईडब्ल्यूएस को आरक्षण

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार के साथ ही सामाजिक न्याय को भी प्राथमिकता दी है। सामाजिक न्याय के मसीहा के रूप में प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार (29 जुलाई, 2021) को मेडिकल शिक्षा में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का ऐतिहासिक फैसला किया। इसे शैक्षणिक वर्ष 2021-22 से ही लागू किया गया। इसके तहत एमबीबीएस, एमएस, बीडीएस, एमडीएस और डिप्लोमा में 5,550 छात्रों को फायदा मिल रहा है। मोदी सरकार के इस फैसले से हर साल एमबीबीएस में लगभग 1,500 ओबीसी और 550 ईडब्ल्यूएस छात्रों को प्रवेश मिल सकेगा। वहीं, मेडिकल के स्नातकोत्तर कोर्स में 2,500 ओबीसी छात्रों और करीब 1,000 ईडब्ल्यूएस छात्रों को प्रवेश का मार्ग प्रशस्त हुआ। 

 75 नए मेडिकल कॉलेजों की मंजूरी

मोदी सरकार ने मेडिकल शिक्षा को बढ़ावा देने और स्‍वास्‍थ्‍य सेवा से जुड़ी आधारभूत सुविधा और मानव शक्ति की उपलब्‍धता सुनिश्चित करने के उद्देश्‍य से 75 नए मेडिकल कॉलेजों की मंजूरी दी। इससे एमबीबीएस की 15,700 सीटें भी बढ़ेंगी। 28 अगस्त,2019 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई आर्थिक मामलों की मत्रिमंडल समिति की बैठक में इस फैसले को मंजूरी दी गई। इसके तहत 75 जिला अस्पतालों को 2021-22 तक मेडिकल कॉलेज में बदला जाएगा। इसके लिए 24,375 करोड़ रुपये का बजट मंजूर किया गया।

200 बिस्तरों वाले जिला अस्पताल बनेंगे मेडिकल कॉलेज

किस राज्य में कितने मेडिकल कॉलेज बनेंगे यह अभी तय नहीं है। यह राज्यों से मिलने वाले प्रस्तावों के आधार पर तय होगा। सरकार ने तय किया है कि उन्हीं इलाकों में जिला अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में बदला जाएगा, जहां पहले से कोई मेडिकल कॉलेज नहीं है। मेडिकल कॉलेज बनाने के लिए जिला अस्पताल कम से कम 200 बिस्तर का होने की शर्त है, ताकि 100 बिस्तर और बढ़ाने के बाद मेडिकल कॉलेज शुरू हो सके। मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में 300 बिस्तर होना अनिवार्य है।

ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की बढ़ेगी उपलब्धता 

केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने कहा कि अभी तक मेडिकल शिक्षा के लिए इतना बड़ा निर्णय नहीं हुआ। सरकार के इस फैसले से लाखों की संख्या में गरीबों एवं ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों को लाभ होगा और देहात एवं ग्रामीण इलाकों में डाक्टरों की उपलब्धता बढ़ेगी। यह मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि बनेगी। उन्होंने कहा कि मौजूदा जिला/रेफरल अस्‍पतालों से जुड़े नए चिकित्‍सा महाविद्यालय की स्‍थापना से सरकारी क्षेत्र में योग्‍य स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों और उन्‍नत सेवाओं की उपलब्‍धता बढेगी। साथ ही जिला अस्‍पतालों की मौजूदा अवसंरचना का इस्‍तेमाल होगा और देश में किफायती चिकित्‍सा शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा।  

निजी मेडिकल कॉलेजों में भी NEET जरूरी

निजी मेडिकल कॉलेजों में अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित NEET (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेस टेस्ट) पास करने के बाद ही किसी का दाखिला होता है। निजी मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए भी नीट देना जरूरी है। सिर्फ डोनेशन के दम पर ही अब डॉक्टर नहीं बन पाएंगे। परास्नातक (पीजी) मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश और मरीजों का इलाज करने का लाइसेंस हासिल करने के लिए नेशनल एक्जिट टेस्ट (नेक्स्ट) का प्रावधान किया गया है। यह कॉमन टेस्ट एमबीबीएस के चौथे वर्ष में होगा। यह परीक्षा विदेशी मेडिकल स्नातकों के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट का भी काम करेगी।

 

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