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इंदिरा गांधी ने कहा था- जातिवाद हटाना है, राहुल गांधी कह रहे- जातिवाद लाना है!

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कांग्रेस आज भले ही जातिवार गणना को अपना मुख्य मुद्दा बना रही हो लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि मनमोहन सरकार ने 2011 में जाति आधारित जनगणना तो कराई लेकिन उसके आंकड़े जारी नहीं किए। छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में भी कांग्रेस सरकार ने जातिवार गणना कराई थी लेकिन उसके भी आंकड़े उसने जारी नहीं किए थे। यह उसका दोहरा चरित्र ही है। यह वही कांग्रेस है, जिसने मंडल आयोग की रपट लागू किए जाने का पुरजोर विरोध करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह पर देश को जातीय आधार पर बांटने का आरोप लगाया था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1983 में कहा था कि हमें जातिवाद को हटाना है। वहीं आज राहुल गांधी कहते हैं कि हमें जातिवाद लाना है। कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक में जातिगत जनगणना पर मुहर लग जाने के बाद कांग्रेस की आगे की राजनीति पूरी तरह साफ हो गई है। कांग्रेस अब जाति राजनीति पर ही फोकस करने जा रही है। राहुल गांधी का दोहरा चरित्र देखिए कि एक तरफ वह ओबीसी समुदाय का अपमान करते हैं, मोदी सरनेम मामले में उन्हें सजा मिल चुकी है वहीं अब वह वोट बैंक के लिए जाति की राजनीति पर उतर आए हैं, ओबीसी के हक की बात कर रहे हैं।

इंदिरा गांधीः कुछ लोग जाति के नाम से समाज को चोट पहुंचाते हैं
1983 में इंदिरा गांधी ने कहा था- मेरा विश्वास जातिवाद में नहीं है। मैं तो चाहूंगी कि ये शब्द हम हटा दें अपने देश से। हम सब अपने को एक माने। इस महान देश के महान नागरिक अपने को मानें। किन बातों ने हमको पीछे रखा है। कौन से रोड़े हमारे रास्ते में आए कि हम तेजी से आगे नहीं बढ़ सके। कुछ ऐसे लोग हैं, कुछ ऐसे तबके हैं जो जाति के नाम से समाज को चोट पहुंचाते हैं। ये हैं हमारी कमजोरी।

राहुल गांधीः हिंदुस्तान में ओबीसी, आदिवासी दलित कितने हैं
किसकी कितनी आबादी है। हम जानते हैं कि हिंदुस्तान की सरकार में सेक्रेटरी अगर आप देखें तो दलित, आदिवासी और ओबीसी वर्ग से सिर्फ सात परसेंट आते हैं। मतलब हिंदुस्तान की सरकार को, हिंदुस्तान की सरकार में रीढ़ की हड्डी जो है सेक्रेटरीज आफ गवर्नमेंट आफ इंडिया, उसमें से सिर्फ सात परसेंट दलित, आदिवासी और ओबीसी वर्ग से आते हैं। सबसे बड़ा सवाल है हिंदुस्तान में ओबीसी कितने हैं, आदिवासी कितने हैं, दलित कितने हैं।

राहुल गांधी जाति की राजनीति कर समाज को बांटने में लगे हुए
कांग्रेस पार्टी में ही कितना विरोधाभास है। आज से 40 साल पहले कांग्रेस सरकार की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जहां जाति की राजनीति को हटाने की बात कही वहीं आज राहुल गांधी जाति की राजनीति कर समाज को बांटने में लगे हुए हैं।

राजीव गांधी ने किया था OBC को नौकरियों में आरक्षण का विरोध
राजीव गांधी ने मंडल कमीशन के तहत केंद्रीय सरकार की नौकरियों में पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का विरोध किया था? आज का राहुल गांधी का नाटक उसी राजनीतिक पाप पर पर्दा डालने की एक फूहड़ कोशिश है। मंडल आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। 1982 में राष्‍ट्रपति की मंजूरी के बाद इसे सदन के पटल पर रखा गया। यह और बात है कि इसे ठंडे बस्‍ते में डाल दिया गया। इंदिरा सरकार के बाद राजीव गांधी सरकार ने भी इस पर कोई ऐक्‍शन नहीं लिया। राजीव ने सदन के पटल पर मंडल कमीशन एक्‍ट को लागू करने का विरोध किया था।।

राजीव गांधी ने कहा था- चुनावी नीति में जातिवाद को वापस ला दिया
वीपी सिंह की सरकार के समय राजीव गांधी ने संसद में कहा था- उपाध्यक्ष महोदय, बहुत लंबे समय के बाद इस तरह का जातीय तनाव पैदा हुआ है और आज जो जातीय तनाव हमने देखा है वह दो स्तरों पर है – पहली लहर जातीय तनाव नेशनल फ्रंट द्वारा इस्तेमाल किए गए फॉर्मूले, ‘एआईजीएआर फॉर्मूला’ के कारण हुआ। AIGAR फॉर्मूला ‘जातिवादी फॉर्मूला था और इसने लगभग 10 वर्षों के अंतराल के बाद चुनावी नीति में जातिवाद को वापस ला दिया। अगर आप पीछे मुड़कर देखें तो 1980 में इंदिरा गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने “ना जात पर, ना पात पर” का नारा बुलंद किया था।

इंदिरा गांधी ने नारा दिया था- न जात पर, न पात पर
1979 में सोशलिस्टों ने संसद में अलग बैठने का फैसला किया। जिससे सरकार अल्पमत में आ गई। इंदिरा से गठजोड़ कर चरण सिंह पीएम बने। एक माह बाद ही कांग्रेस ने समर्थन ले लिया। 1980 के चुनाव में बीजेपी आ गई। भाजपा का चिन्ह कमल तो कांग्रेस का चिन्ह हाथ बना। तब वामपंथियों ने नारा दिया था – चलेगा मजदूर उड़ेगी धूल, न बचेगा हाथ, न रहेगा फूल। इंदिरा के कैंपेन मैनेजर व साहित्यकार श्रीकांत वर्मा ने नारा दिया – ‘न जात पर, न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर’। तो इंदिरा गांधी ने ‘न जात पर, न पात पर’ का नारा दिया था और आज राहुल गांधी जाति की राजनीति पर उतर आए हैं।

ओबीसी को गाली देने वाले राहुल गांधी ओबीसी की हक की बात कर रहे
राहुल गांधी का दोहरा चरित्र ये है एक तरफ वे ओबीसी को गाली देते हैं वहीं दूसरी तरफ उनके हक की बात करते हैं। इसे सत्ता के लिए चरित्र बदलना ही कहा जाएगा। राहुल ने कहा था कि सारे मोदी चोर क्यों हैं। इस बयान को पूरे मोदी समाज के लिए अपमानजनक बताते हुए राहुल गांधी के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया था। इस मामले में सूरत कोर्ट ने राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई थी और उसके बाद राहुल को लोकसभा सदस्‍यता गंवानी पड़ी थी। ओबीसी समुदाय के ऊपर राहुल गांधी की ओछी टिप्पणी कांग्रेस की सामंती सोच को दिखाता है। गरीबों और पिछड़ों को लेकर कांग्रेस की सोच दर्शाती है कि वे इन समुदायों से कितना नफरत करते हैं। वहीं अब अचानक यह हृदय परिवर्तन और ओबीसी के हक की बात करना बताता है कि यह सब वोट बैंक के लिए हो रहा।

हिंदुओं को बांटने के लिए कांग्रेस की नीति में उलटफेर
यहां तक कि राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी ने भी संसद में मंडल कमीशन एक्‍ट को लागू करने का विरोध किया था। इस तरह कांग्रेस की पॉलिसी में इसे भी बड़ा उलटफेर ही कह सकते हैं। यह सब हिंदुओं को बांटने के लिए किया जा रहा है। कांग्रेस आज भी अंग्रेजों की मानसिकता से ही काम कर ही है। फूट डालो और राज करो। यही बात जब मुसलमानों पर आती है तो वहां वे जाति की बात नहीं करते जबकि मुसलमानों में भी कई जातियां हैं। लेकिन हिंदुओं को बांटने में ये कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे। वह ऐसा इसलिए भी कर रहे क्योंकि वह खुद हिंदू नहीं है। उनके पिता पारसी थे और मां कैथोलिक। हालांकि वह खुद को ब्रह्मण बताते हैं लेकिन जरा सोचिए पारसी और कैथोलिक की संतान हिंदू कैसे हो सकता है। 

यहूदी की तरह हिंदुओं को भी एकजुट होने की जरूरत
अब ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा दे रहे हैं। समय की जरूरत है कि हिंदू जातियों में न बंटें और एकजुट हो जाएं। आज इजरायल उदाहरण सबके सामने है। इजरायल यहूदी समुदाय का देश है और मुस्लिम देशों से घिरा हुआ है। उसके ऊपर आतंकवादियों के हमले अक्सर होते रहे हैं और अभी तो पिछले 50 सालों में सबसे बड़ा हमला किया गया है। लेकिन ऐसे वक्त में दुनियाभर के यहूदी एकजुट होकर इसका मुकाबला कर रहे हैं। इसी तरह हिंदुओं को भी एकजुट होने की जरूरत है।

बीजेपी ने देश को पहला ओबीसी प्रधानमंत्री दिया
देश पर 60 साल तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी को आज ओबीसी की याद आ रही है। जबकि बीजेपी ने देश को पहला ओबीसी प्रधानमंत्री दिया। बीजेपी ने 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के ओबीसी उम्मीदवार के तौर पर पेश किया और पीएम मोदी के नेतृत्व में भारी जीत हासिल की। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब मोदी खुद को पिछड़ी मां का बेटा बता रहे थे। उस वक्त कांग्रेस के नेता राहुल गांधी अपना जनेऊ दिखाकर घूम रहे थे और अपनी सारस्वत कश्मीरी ब्राह्मण की पहचान को आगे कर रहे थे। लेकिन आज वह अपना चेहरा ओबीसी समाज के साथ दिखाना चाहते हैं। यानि इनकी अपनी कोई पहचान नहीं है। ये वोट बैंक के लिए कुछ भी कर सकते हैं।

मोदी सरकार में ओबीसी समाज को कांग्रेस की सरकार के मुकाबले ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया गया है। इस पर एक नजर-

कांग्रेस ने 250 में 43 ओबीसी मुख्यमंत्री बनाए, बीजेपी ने 68 में 21 ओबीसी मुख्यमंत्री बनाए
ओबीसी को राजनीति में हिस्सेदारी देने के मामले में बीजेपी ने कांग्रेस को काफी पीछे छोड़ दिया है। आजादी के बाद अब तक बने सभी मुख्यमंत्रियों का आंकड़े को देखें तो ओबीसी मुख्यमंत्री बनाने के मामले में बीजेपी सबसे आगे है, जबकि कांग्रेस इस मामले में सबसे पीछे है। बीजेपी ने अब तक जितने मुख्यमंत्री बनाए हैं, उनमें से 30.9 फीसदी ओबीसी हैं। जबकि कांग्रेस द्वारा बनाए गए मुख्यमंत्रियों में सिर्फ 17.3 फीसदी ओबीसी हैं। अन्य दलों के लिए ये आंकड़ा 28 फीसदी है। संख्या की बात करें तो बीजेपी ने अब तक 68 मुख्यमंत्री बनाए हैं, जिनमें 21 ओबीसी थे। जबकि कांग्रेस के बनाए हुए 250 मुख्यमंत्रियों में सिर्फ 43 ही ओबीसी हैं।

कांग्रेस के मुकाबले ओबीसी को मुख्यमंत्री बनाने में बीजेपी ने बाजी मारी
ओबीसी मुख्यमंत्रियों के आंकड़े को देखें तो स्थिति और स्पष्ट हो जाएगी। कांग्रेस सिस्टम के दौर में ओबीसी के मुख्यमंत्री बेहद कम बने। इसलिए कांग्रेस का कुल आंकड़ा इस मायने में बहुत खराब रहा। जब बीजेपी का उभार होता है, तब तक ओबीसी राजनीति में मजबूत होने लगे थे। बीजेपी ने खुद को ब्राह्मण-बनिया पार्टी की छवि से मुक्त करते हुए कई पहल किए। इसलिए 90 के दौर में उसने कल्याण सिंह, शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती, बाबू लाल गौर, विनय कटियार आदि को आगे कर दिया। इस तरह ओबीसी को मुख्यमंत्री बनाने में भी बीजेपी ने बाजी मार ली।

लोकसभा में बीजेपी के 303 में से 85 सांसद ओबीसी
लोकसभा में बीजेपी के 303 में से 85 सांसद ओबीसी हैं। यानि संसद में बीजेपी के 27 प्रतिशत सांसद हैं। वहीं कांग्रेस के कुल सांसदों की संख्या 52 है। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने जीत का परचम लहराया था। पूरे देश में चली पीएम मोदी की लहर के बाद बीजेपी ने 300 का आकंड़ा पार कर लिया। वहीं कांग्रेस सिर्फ 52 सीटों पर ही सिमट गई। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं। इतना ही नहीं 2019 में कांग्रेस के हाथ से उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट भी निकल गई थी। यहां राहुल गांधी को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने हरा दिया। हालांकि राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से जीत गए और उनकी सांसदी बच रह गई थी। अब यही राहुल गांधी ओबीसी मुद्दा उछालकर कहते हैं जितनी आबादी उतना हक।

देशभर में बीजेपी के 1,358 में से 365 विधायक ओबीसी
देशभर में बीजेपी के कुल 1,358 विधायक हैं। इनमें 365 विधायक ओबीसी समाज से हैं। यानि बीजेपी में 27 फीसदी विधायक ओबीसी से आते हैं। इससे साफ होता है कि बीजेपी ओबीसी समाज के लोगों ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया है। वहीं कांग्रेस बदलती राजनीति और ओबीसी उभार को देखकर भी खुद को बदल नहीं पाई। इसकी वजह शायद ये रही कि पार्टी का संगठन सवर्ण हिंदुओं और कुछ हद तक मुसलमानों के हाथ में रहा। इस वजह से कांग्रेस अपने संरचनात्मक स्वरूप में सवर्ण पार्टी बनी रह गई। वह बीजेपी जितना ओबीसी हितैषी नहीं बन पाई।

बीजेपी के 163 में से 65 विधान पार्षद ओबीसी
देशभर में बीजेपी के विधान पार्षदों (एमएलसी) के आंकड़ो पर गौर करें तो पाएंगे कि बीजेपी 40 फीसदी एमएलसी ओबीसी जाति से हैं। देशभर में बीजेपी के विधान पार्षदों की संख्या 163 है जिनमें 65 ओबीसी समाज से हैं। अब चूंकि जातीय जनगणना के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इससे ‘जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी भागीदारी’ की नीति पर चलना संभव होगा। इसका जवाब भाजपा सड़क से संसद तक देती आ रही है। भाजपा के मुख्यमंत्रियों, सांसदों, विधायकों, विधान पार्षदों के आंकड़े बताते हैं कि वह हमेशा से ओबीसी हितैषी रही है। केंद्र से लेकर भाजपा शासित राज्यों में भी ओबीसी वर्ग के जनप्रतिनिधियों की भागीदारी पहले की सरकारों की तुलना में कहीं अधिक है।

मोदी सरकार ने पिछड़े नौ सालों में पिछड़ा वर्ग के लिए अनेक काम किए हैं। इससे ओबीसी समाज के लोगों को फायदा पहुंचा है। इस पर एक नजर-

पीएम मोदी ने दिया राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा
पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का काम पीएम मोदी ने किया है। कांग्रेस ने 60 साल के शासनकाल में पिछड़े वर्ग के लिए कुछ नहीं किया। 1952 में काका कालेकर के नाम से कमीशन बना था। इस कमीशन ने 1955 में भारत सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी कि देश में 52 प्रतिशत पिछड़ी जाति के लोग वास करते हैं, लेकिन उस समय की कांग्रेस सरकार ने कमीशन की रिपोर्ट के बाद भी पिछड़ी जातियों को आरक्षण नहीं दिया था। 1977 में पिछड़े वर्ग के लोगों ने काका कालेकर कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने की मांग उठाई। 1993 में कांग्रेस सरकार ने पिछड़ा आयोग बनाकर उसे एससी कमीशन से संबद्ध कर दिया, लेकिन अगस्त 2018 में राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। आज उसी की परिणाम है कि एमबीबीएस की सीटों में पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की घोषणा हो चुकी है।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को सिविल कोर्ट के अधिकार
मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को न केवल संवैधानिक दर्जा दिया बल्कि इसके लिए 123वां संविधान संशोधन करके संविधान में एक नया अनुच्छेद 338बी जोड़ा गया। आयोग को अब सिविल कोर्ट के अधिकार प्राप्त होंगे और वह देश भर से किसी भी व्यक्ति को सम्मन कर सकता है और उसे शपथ के तहत बयान देने को कह सकता है। उसे अब पिछड़ी जातियों की स्थिति का अध्ययन करने और उनकी स्थिति सुधारने के बारे में सुझाव देने तथा उनके अधिकारों के उल्लंघन के मामलों की सुनवाई करने का भी अधिकार होगा। संविधान संशोधन के बाद अब इस आयोग को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग या राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के बराबर का दर्जा मिल गया है। इस तरह राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का दर्जा बढ़ाना मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि है।

ओबीसी जातियों के बंटवारे के लिए रोहिणी आयोग का गठन
बीजेपी का ओबीसी आबादी के लिए एक अन्य बड़ा कदम है ओबीसी जातियों के बंटवारे के लिए रोहिणी आयोग का गठन। 2 अक्टूबर, 2017 को केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत एक आयोग के गठन की अधिसूचना जारी की। इस आयोग को तीन काम सौंपे गए हैं- एक, ओबीसी के अंदर विभिन्न जातियों और समुदायों को आरक्षण का लाभ कितने असमान तरीके से मिला, इसकी जांच करना। दो, ओबीसी के बंटवारे के लिए तरीका, आधार और मानदंड तय करना, और तीन, ओबीसी को उपवर्गों में बांटने के लिए उनकी पहचान करना। आयोग की अध्यक्षता पूर्व न्यायाधीश जी. रोहिणी को सौंपी गई थी। इस आयोग के बनने से अति पिछड़ी जातियों को न्याय मिल पाएगा। इस आयोग के गठन के पीछे तर्क यह था कि ओबीसी में शामिल पिछड़ी जातियों में पिछड़ापन समान नहीं है। इसलिए ये जातियां आरक्षण का लाभ समान रूप से नहीं उठा पातीं। कुछ जातियों को वंचित रह जाना पड़ता है। इसलिए ओबीसी श्रेणी का बंटवारा किया जाना चाहिए।

किसान सम्मान निधि से 4.20 करोड़ ओबीसी किसानों को लाभ मिला
सरकार का आंकड़ा कहता है कि बेशक, किसान सम्मान निधि योजना सभी वर्गों के लिए है, लेकिन इसका सर्वाधिक लाभ ओबीसी को हुआ है। इस योजना से ओबीसी वर्ग के 4.20 करोड़ किसानों को लाभ मिला है। इसी तरह मुद्रा लोन के लाभार्थियों में 35 प्रतिशत युवा पिछड़ा वर्ग से हैं।

चिकित्सा शिक्षा में ओबीसी छात्रों को 27 प्रतिशत आरक्षण
चिकित्सा शिक्षा में पहली बार ओबीसी छात्रों को 27 प्रतिशत आरक्षण मिला है। केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, सैनिक स्कूल आदि में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। पहली बार ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा भाजपा सरकार में दिया गया। इस तरह इस वर्ग के लिए सबसे अधिक काम भाजपा की मोदी सरकार ने किया है। जातीय जनगणना की पैरोकारी करने वालों को जनता के बीच बताना होगा कि जब उनकी सरकारें थीं, तब उन्होंने इस वर्ग के हित में क्या-क्या कदम उठाए। 

कोरोना काल में 80 करोड़ को मुफ्त राशन, सबसे बड़े लाभार्थी ओबीसी 
अब जब यह कहा जा रहा है जितनी आबादी उतना हक तो यह स्वाभाविक है 80 करोड़ लोगों को मिले मुफ्त राशन में सबसे बड़े लाभार्थी ओबीसी समाज के लोग हैं क्योंकि उनकी उनका आबादी सबसे ज्यादा है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने कोरोना काल में 80 करोड़ से अधिक देशवासियों को मुफ्त राशन की व्यवस्था करके दुनिया के सामने एक उदाहरण पेश किया। मोदी सरकार ने अप्रैल 2020 में प्रधानमंत्री गरीब कल्‍याण अन्‍न योजना की शुरुआत की थी। अब इस योजना को केंद्र सरकार ने देश के बीपीएल कार्ड धारकों के लिए दिसंबर 2023 तक बढ़ा दिया है। इस तरह ओबीसी समाज को भी  मुफ्त राशन की सुविधा मिलती रहेगी। सरकार की इस घोषणा से देश के करोड़ों जरूरतमंद लोगों लिए बड़ी राहत की बात है।

जन धन योजना से 47.57 करोड़ से ज्यादा गरीब बैंकिंग सिस्टम से जुड़े 
प्रधानमंत्री मोदी ने 28 अगस्त, 2014 को गरीबों को बैंकों से जोड़ने के लिए जन धन योजना की शुरुआत की। इस योजना के सबसे बड़े लाभार्थी ओबीसी समाज के हैं। प्रधानमंत्री जनधन योजना (PMJDY) के तहत खोले गए बैंक खातों की संख्या 50 करोड़ से पार पहुंच गई है। पीएमजेडीवाई खातों की संख्या मार्च 2015 के 14.72 करोड़ से तीन गुना (3.4) बढ़कर 16 अगस्त 2023 तक 50.09 करोड़ हो गई है। 09 अगस्त 2023 तक जन धन खातों की कुल संख्या 50.09 करोड़ से अधिक हो गई है। मार्च 2015 के बाद खातों की संख्‍या में 3.34 गुना वृद्धि के साथ जमा राशि लगभग 13 गुना बढ़ गई है। इन खातों में जमा राशि 2.03 लाख करोड़ रुपये से अधिक है और लगभग 34 करोड़ रुपे कार्ड जारी किए गए हैं। पीएमजेडीवाई खातों में औसत बैलेंस 4,063 रुपये हैं। साथ ही 6.26 करोड़ से अधिक जनधन खातों को डीबीटी का लाभ मिल रहा है। इसके साथ ही 8.50 लाख से अधिक बैंक मित्र देश भर में बिना बैंक शाखाओं के लोगों को बैंक की सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं।

मुद्रा योजना से 37.76 करोड़ लोगों को मिला लोन, बदली हुनरमंद की जिंदगी
कई लोगों के पास हुनर तो है, लेकिन पूंजी की कमी की वजह से अपने हुनर का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोगों को प्रोत्साहन देने और उनके हाथों को काम देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने 8 अप्रैल, 2015 में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की शुरूआत की थी। पिछले सात वर्षों में 2 दिसंबर, 2022 तक 37.76 करोड़ से अधिक लोगों को मुद्रा लोन दिया जा चुका है। मुद्रा योजना में दिए गए 88 प्रतिशत ऋण ‘शिशु’ श्रेणी के हैं। अब तक करीब 22 प्रतिशत लोन नए उद्यमियों और 68 प्रतिशत ऋण महिला उद्यमियों को दिये गए हैं। इस योजना से भी ओबीसी समाज के लोगों को फायदा हुआ है। मुद्रा योजना के तहत लगभग 51 प्रतिशत ऋण अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को दिये गए हैं। इसके साथ ही करीब 11 प्रतिशत लोन अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को दिए गए हैं। 

तीन करोड़ से ज्यादा पक्के घरों में ओबीसी बड़े लाभार्थी 
पीएम आवास योजना (ग्रामीण) के तहत पिछले साल तक गरीबों के लिए करीब 3 करोड़ पक्के घरों का निर्माण पूरा हो चुका है। इस योजना से ओबीसी समाज को काफी लाभ पहुंचा है। इसके लिए केंद्र सरकार की तरफ से 1.95 लाख करोड़ रुपये की सहायता राशि जारी की जा चुकी है। इसके साथ ही पीएम आवास योजना (शहरी) के तहत कुल 58 लाख पक्के मकानों का निर्माण किया जा चुका है। इसके लिए अब तक 1.18 लाख करोड़ रुपये की राशि जारी की जा चुकी है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार कोरोना संकट काल में भी प्रधानमंत्री आवास योजना में रिकॉर्ड एक लाख घरों का निर्माण किया गया। इस योजना में प्रत्येक लाभार्थी को रसोई गैस के साथ शौचालय, बिजली और पानी की सुविधा भी दी गई है।

सौभाग्य योजना से 2.82 करोड़ घर हुए ‘रोशन’, ओबीसी सबसे ज्यादा लाभ
सौभाग्य दुनिया की सबसे बड़ी विद्युतीकरण योजनाओं में से है। इस योजना का शुभारंभ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर, 2017 को किया था। इस योजना का मकसद अंतिम छोर तक बिजली कनेक्शन पहुंचाकर ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी इलाकों में गरीब परिवारों तक बिजली पहुंचाना है। इस योजना पर कुल खर्च करीब 16,320 करोड़ रुपये बैठेगा। सरकार की प्रमुख सौभाग्य योजना से 2.82 करोड़ परिवारों को बिजली मिली है। सौभाग्य योजना शुरू होने के बाद से अब तक 2.82 करोड़ घरों का विद्युतीकरण किया गया है। मार्च, 2019 तक देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बिजली से वंचित 2.63 करोड़ इच्छुक परिवारों को 18 माह के रिकॉर्ड समय में बिजली कनेक्शन दिया गया।

40 करोड़ LED बल्ब गरीबों को बांटे गए, ओबीसी सबसे बड़ा लाभार्थी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार लोगों को सस्ता और सुलभ बिजली उपलब्ध कराने के लिए लगातार कोशिश कर रही है। नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक प्रधानमंत्री उजाला योजना के तहत अब तक देशभर में 40 करोड़ से ज्यादा LED बल्ब वितरित किए जा चुके हैं। मोदी सरकार की इस ऐतिहासिक पहल से जहां बिजली की बचत हो रही है वहीं लोगों की बिजली बिल में कमी आई है। इस पहल से गरीब परिवारों का हर साल का करीब 20 हजार करोड़ रुपये बिजली बिल कम हुआ है। इसका लाभ भी ओबीसी वर्ग को बड़े पैमाने पर हुआ।

12 करोड़ से अधिक घरों में पहुंचा नल से जल, ओबीसी समाज को बड़ा लाभ 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त, 2019 को लाल किले के प्राचीर से जल जीवन मिशन (जेजेएम) की घोषणा की थी। इस मिशन के तहत 2024 तक हर घर में पाइप के द्वारा पानी पहुंचाने का लक्ष्य है। इस जल जीवन मिशन के तहत 12 करोड़ से अधिक ग्रामीण घरों में नल से जल पहुंचा कर नया कीर्तिमान स्थापित किया गया है। इस मिशन की घोषणा होने के वक्त देश भर में 19.27 करोड़ घरों में से केवल 3.23 करोड़ यानी सिर्फ 17 प्रतिशत घरों में ही पानी का कनेक्शन था। मोदी सरकार ने कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बाद भी जल जीवन मिशन के तहत ज्यादातर ग्रामीण घरों तक नल से जल उपलब्ध करा दिया है। इससे आज देश के 12 करोड़ से अधिक घरों को नल से साफ पानी की आपूर्ति का लाभ मिल रहा है।

11.68 करोड़ से अधिक घरेलू शौचालयों का निर्माण, ओबीसी समाज के लोगों को खुले में शौच से मिली मुक्ति
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) ने स्वच्छता के लिए एक जन आंदोलन का रूप लेकर ग्रामीण भारत की तस्‍वीर बदल दी है। इसने 2 अक्टूबर, 2019 को देश के सभी गांवों, जिलों और राज्यों द्वारा खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषणा की ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की, जिससे ग्रामीण भारत खुले में शौच की समस्‍या से पूरी तरह से मुक्‍त हो चुका है। 2 अक्टूबर, 2014 को एसबीएम (जी) की शुरुआत के समय ग्रामीण स्वच्छता कवरेज 38.7 प्रतिशत था, जो बढ़कर अब सौ प्रतिशत हो चुका है। 2 अक्टूबर, 2014 से अब तक 11.68 करोड़ से अधिक घरेलू शौचालयों का निर्माण किया गया है। खुले में शौच मुक्त गांवों की संख्या बढ़कर 6.03 लाख और जिलों की संख्या बढ़कर 706 हो गई है। खुले में शौच मुक्त राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या 35 है। इस योजना का ओबीसी समाज बड़ा लाभ मिला है।

आयुष्मान भारत के बड़े लाभार्थी ओबीसी, 3.62 करोड़ गरीबों का इलाज
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार चिकित्सा क्षेत्र में व्यापक सुधार करते हुए दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना ‘आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना’ (पीएमजेएवाई) की शुरुआत की। आयुष्मान भारत योजना गरीब-वंचितों के लिए वरदान साबित हो रही है। इस योजना के तहत 2 दिसंबर, 2022 तक 3.62 करोड़ लोगों का इलाज हो चुका है। अब तक 18 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को आयुष्मान कार्ड मुहैया कराए गए हैं। आयुष्मान भारत योजना ने लिंग समानता को बढ़ावा देने में भी बड़ी कामयाबी हासिल की है। एक अध्ययन के अनुसार इस योजना का लाभ पाने वालों में 46.7 प्रतिशत महिलाएं हैं। इस योजना से करीब 27,300 निजी एवं सरकारी अस्पताल जुड़े हुए हैं। साथ ही इस योजना के तहत 141 ऐसे medical procedures शामिल किए गए हैं, जो सिर्फ महिलाओं के लिए हैं। इस योजना का लाभ ओबीसी को बड़े पैमाने पर मिला है।

गरीबी से बड़ी कोई आबादी नहींः पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 3 अक्टूबर 2023 को छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में कांग्रेस की जातिगत राजनीति पर जमकर निशाना साधा। जाति आधारित जनगणना को लेकर देश भर में हो रही राजनीति पर प्रधानमंत्री ने कहा कि कल से कांग्रेस ने एक नया राग अलापना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस के नेता कहते हैं – जितनी आबादी उतना हक। मैं कहता हूं कि इस देश में अगर सबसे बड़ी आबादी कोई है तो वो गरीब है, इसलिए मेरे लिए गरीब ही सबसे बड़ी आबादी है और गरीब का कल्याण यही मेरा मकसद है।

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