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Year Ender 2022: वैश्विक मंच पर बढ़ी पीएम मोदी की लोकप्रियता, कूटनीति में भारत की धाक बढ़ी, विश्व पटल पर मिली कई जिम्मेदारियां, भारत की बात सुन रही है दुनिया

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वर्ष 2022 वैश्विक मंच पर भारत के लिए उपलब्धियों भरा वर्ष रहा। इस दौरान भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता, G-20 समूह की अध्यक्षता, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की अध्यक्षता का अवसर मिला और G-7 समूह में भारत को शामिल करने को लेकर हो रही चर्चा भी काफी महत्वपूर्ण है। वैश्विक मंच पर भारत को मिलने वाली इन जिम्मेदारियों से पता चलता है कि भारत आने वाले दिनों में और अधिक ताकतवार देश के तौर पर उभरेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन की वजह से आज दुनियाभर में भारत की धाक बढ़ रही है। पीएम मोदी की बातों को आज दुनिया ध्यान से सुन रही है। विश्व के नेता पीएम मोदी के मुरीद बन रहे हैं और इससे उनकी लोकप्रियता भी तेजी से बढ़ रही है। विश्व पटल पर पिछले कुछ वर्षों में भारत की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हुई है और इसे एक कूटनीतिक जीत के रूप में भी देखा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व का प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है और विश्व के लगभग सभी देश प्रधानमंत्री व भारत की ओर आशा की दृष्टि से देख रहे हैं। कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच दुनियाभर में मंदी के बीच विश्व के नेताओं की नजर पीएम मोदी पर आकर टिक जाती है। क्योंकि इन सब संकटों के बीच भारत निरंतर आर्थिक प्रगति करता रहा है। यही नहीं पीएम मोदी के शांति संदेश को भी दुनिया गंभीरता सुन रही है। आज के दौर में किसी एक देश की गलती से धरती का बड़ा भाग परमाणु विध्वंस की चपेट में आ सकता है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भारत की वर्तमान कूटनीति ने स्थितियों को बिगड़ने से बचा रखा है। विगत दिनों मिस्र में आयोजित अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन में भी पूरी दुनिया की नजर भारत पर ही रही और फ्रांस के राष्ट्रपति ने वहां पर भारत की पर्यावरण संरक्षण की विभिन्न नीतियों का समर्थन किया। जी-20 लेकर कई अंतर्राष्ट्रीय बैठकों में यह साफ हुआ है कि पीएम मोदी और भारत की वैश्विक मंच पर हैसियत बढ़ी है। इसमें देश की बढ़ती आर्थिक हैसियत का भी अहम रोल है। इसी साल भारत दुनिया की पांचवीं बड़ी इकॉनमी बना है और इस दशक के खत्म होने से पहले वह अमेरिका और चीन के बाद तीसरी आर्थिक ताकत बन सकता है।

भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का स्वर्णिम दौर, पीएम मोदी के नेतृत्व में बढ़ा भारत का वर्चस्व

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्र की सत्ता में 2014 में आने के बाद भारतीय विदेश नीति में अभूतपूर्व परिवर्तन प्रारंभ हुआ। पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत में ऊर्जावान कूटनीति एवं शक्तिशाली निर्णयों की शुरुआत हुई। यह स्वर्णिम दौर भारत के लिए क्रांतिकारी परिवर्तन का प्रारंभिक दौर है। वर्तमान में भारत की विदेश नीति मुख्य बिंदु है यथार्थवाद। वर्तमान विदेश नीति पूरी तरह से यथार्थवादी है, जिसका उदाहरण हमें यूक्रेन संकट के दौरान रूस के साथ कच्चे तेल की खरीद जैसे निर्णयों में देखने को मिलता है। इसका दूसरा प्रमुख बिंदु है अर्थव्यवस्था संचालित कूटनीति। इस कारण वर्तमान में भारत की विदेश नीति आर्थिक लाभ के द्वारा ही सर्वाधिक प्रभावित हो रही है। पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत ने अपनी जिजीविषा एवं संघर्ष के बल पर एक ऐसा मुकाम हासिल किया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य न होते हुए भी आज विश्व के अधिकांश स्थायी एवं अस्थायी सदस्य भारत के विचारों या पक्ष को जानने के लिए लालायित रहते हैं। आज भारत ने अपनी ‘साफ्ट स्टेट’ की पहचान को छोड़कर एक मजबूत एवं स्पष्ट हितों वाले देश के रूप में पहचान स्थापित कर ली है। यही वजह है कि भारत की मुखर विदेश नीति ने सबका ध्यान आकर्षित किया है। एससीओ समिट के बाद पश्चिमी देशों के रुख में भी परिवर्तन आया है कि वे भारत के नजरिये को स्वीकार्यता दे रहे हैं। इस सम्मेलन में पीएम मोदी ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से कहा था, ‘यह युद्ध का युग नहीं है।’ यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से ही पीएम मोदी हिंसा रोकने की अपील कर रहे हैं। प्रधानमंत्री और भारत के दूसरे उच्चाधिकारी लगातार यह कहते आए हैं कि इस भू-राजनीतिक संकट में हम वही करेंगे, जो राष्ट्रहित में होगा। यही वजह है कि भारत पश्चिमी देशों के रूस पर लगाए आर्थिक प्रतिबंधों से दूर रहा। यह सही फैसला था क्योंकि यूरोप ने भी रूस से तेल और गैस खरीदना बंद नहीं किया और इसे आर्थिक प्रतिबंधों से अलग रखा।

पुतिन से पीएम मोदी ने कहा- यह समय युद्ध का नहीं

रूस -यूक्रेन युद्ध के सन्दर्भ में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा व उसके किसी भी मंच पर कभी रूस के विरुद्ध मतदान नहीं किया अपितु ऐसे हर प्रस्ताव के समय अनुपस्थित रहा किन्तु जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भेंट रूसी राष्ट्रपति पुतिन से हुई तो उन्होंने स्पष्ट रूप से पुतिन से कहा कि यह समय युद्ध का नहीं है। इसके बाद यूरोपियन समुदाय के सभी देशों के प्रमुख नेताओं ने प्रधानमंत्री के बयान का स्वागत व प्रशंसा की। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है कि आज रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन दोनों ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा कर रहे हैं।

पुतिन ने की तारीफ, कहा- पीएम मोदी स्वतंत्र विदेश नीति को आगे बढ़ा रहे

रूस के राष्ट्रपति पुतिन कई अवसरों पर पीएम मोदी की प्रशंसा कर चुके हैं। वह भारत की स्वतंत्र विदेशी नीति की भी जमकर सराहना कर चुके हैं। हाल ही में रूस की सबसे बड़ी पॉलिटिकल कॉन्फ्रेंस वल्दाई फोरम में भी पुतिन ने भारत का ज़िक्र किया। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को एक बड़ा देशभक्त बताया। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत ने बड़ी तरक्की की है और भारत के साथ रूस के गहरे संबंध हैं, जिसे आगे बढ़ाने की कोशिश होनी चाहिए। पुतिन ने यह भी कहा कि पीएम मोदी ऐसे व्यक्ति हैं, जो स्वतंत्र विदेश नीति को आगे बढ़ा रहे हैं। यानी पुतिन को भारत के निष्पक्ष और तटस्थ रुख पर भरोसा है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में बहुत कुछ किया गया है। वह अपने देश के देशभक्त हैं। ‘मेक इन इंडिया’ का उनका विचार आर्थिक और नैतिकता दोनों में मायने रखता है। भविष्य भारत का है, इस पर गर्व हो सकता है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।

पश्चिमी मीडिया ने मोदी के बयान को गलत रूप में पेश किया, मोदी-पुतिन की दोस्ती रही कायम

एससीओ समिट के दौरान पीएम मोदी ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से कहा था कि ‘यह युद्ध का युग नहीं है’। इस बयान को लेकर पश्चिमी देशों के मीडिया ने इसे इस तरह से पेश किया, जैसे भारत ने रूस को लेकर रुख बदल दिया है। लेकिन यह गलत सोच थी। मोदी ने पुतिन से यह बात इसलिए कही क्योंकि युद्ध की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। वह यूक्रेन युद्ध के कारण खड़े हुए खाद्य और तेल-गैस संकट की ओर ध्यान दिलाना चाहते थे, जिससे श्रीलंका दिवालिया हो गया और बांग्लादेश-नेपाल-पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ बड़ी संख्या में विकासशील और गरीब देश जबरदस्त संकट का सामना कर रहे हैं। पुतिन को भी पता है कि मोदी के कहने का मतलब वह नहीं, जो पश्चिमी देश और उनका मीडिया निकाल रहा है। यही वजह है कि पुतिन ने पीएम मोदी की इस राय को तवज्जो दी। उन्होंने दुनिया को यकीन दिलाया कि भारत के साथ उनके संबंध पहले की तरह ही हैं।

इमरान खान ने की पीएम मोदी और भारत की विदेश नीति की तारीफ

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने कई अवसरों पर पीएम मोदी की प्रशंसा की है। इमरान खान ने कहा कि भारत की विदेश नीति स्वतंत्र है। रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले के बारे में बोलते हुए, खान ने कहा, ‘मुझे भारत का उदाहरण लेना चाहिए, जो हमारे साथ-साथ आजाद हुआ था। अब इसकी विदेश नीति को देखें। यह एक स्वतंत्र और स्पष्ट विदेश नीति है। भारत अपने निर्णयों के पक्ष में डट कर खड़ा रहता है कि अपने नागरिकों के हित में रूस से तेल खरीदेंगे।’ पीएम मोदी की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि यूक्रेन युद्ध के बीच पश्चिम के दबाव के बावजूद मोदी सरकार के अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप रूसी तेल की खरीद की सराहना करते हुए इमरान खान ने कहा कि भारत और अमेरिका क्वाड सहयोगी हैं। इसके बावजूद भारत ने अपने नागरिकों के हित में रूस से तेल खरीदने का फैसला किया। इमरान खान ने कई बार भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की है। इससे पहले नवंबर में इमरान खान ने मोदी सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा था कि भारत ने अमेरिका के साथ गरिमापूर्ण संबंधों का भरपूर लाभ उठाया है।

वैश्विक मंचों पर और बढ़ेगा भारत का कद

अमेरिका कोशिश कर रहा है कि यूक्रेन अपनी ओर से रूस को सिग्नल दे कि वह बातचीत करना चाहता है। यूक्रेन ने कहा भी कि रूस ने उसके जिन हिस्सों पर कब्जा किया है, वह अगर वापस लौटा दे तो सुलह हो सकती है। पुतिन शायद ही इन शर्तों पर युद्धविराम करने को तैयार हों। लेकिन युद्ध जितना लंबा खिंच गया है, रूसी राष्ट्रपति ने कल्पना नहीं की थी। हाल में यूक्रेन में कई मोर्चों से रूसी सेना को पीछे हटना पड़ा है। इसलिए पुतिन भी अपनी शर्तों पर शांति चाहते होंगे। अब अगर दोनों देशों को शांति की टेबल पर लाने में भारत की कोई भूमिका होती है तो उसका कद कहीं और बढ़ जाएगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो भी आने वाले वर्षों में बड़ी आर्थिक ताकत होने के नाते जी-20 जैसे वैश्विक मंचों पर भारत की आवाज और बुलंद होगी, जिसे दुनिया ध्यान से सुनेगी।

पीएम मोदी की पहल से यूक्रेन से छात्रों की सुरक्षित वापसी संभव हुई

यह भारत की सुविचारित कूटनीति का ही परिणाम था कि रूस- यूक्रेन युद्ध के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप के कारण कुछ समय के लिए युद्ध रूका और वहां फंसे भारतीय छात्रों की वापसी संभव हो सकी। छात्र वापस तो आ गए किन्तु रूस और यूक्रेन युद्ध के कारण उनकी पढ़ाई में काफी नुकसान हुआ। अब एक कदम आगे बढ़कर रूस उन छात्रों के लिए एक बड़ा सहारा बनने जा रहा है। इन छात्रों को पढ़ाई पूरी करने के लिए रूस ने एक प्रस्ताव दिया है। भारत यात्रा पर आये रूस के महावाणिज्य दूत ओलेग अलदीब ने कहा कि यूक्रेन से निकले भारतीय छात्र अपनी मेडिकल की पढ़ाई रूस में पूरी कर सकते हैं। रूस में होने वाली मेडिकल की पढ़ाई का कोर्स लगभग एक जैसा ही है। इसके साथ ही छात्र रूसी भाषा भी सीख सकते हैं। रूस का कहना है कि भारत के छात्रों व नागरिकों के लिए हमारे दरवाजे सदा खुले हैं।

जब दुनिया के नेता मौन थे, तब मोदी ने तालिबान को विश्व शांति के लिए बड़ा खतरा बताया

जो बाईडेन ने अमेरिका की सत्ता संभालने के कुछ समय पश्चात अचानक अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुलाने का निर्णय लिया, उसके बाद जब अगानिस्तान में तालिबान ने अपनी सरकार बना ली और अपना कानून लागू कर दिया तब विश्व का कोई भी देश तालिबान के खिलाफ एक शब्द भी बोलने कि हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। उस समय केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही तालिबान को विश्व शांति के लिए बड़ा खतरा बताते हुए अपना पक्ष रखा था। तब उस समय दुनिया भर के जो नेता मौन थे उन्हें आज इस बात का एहसास हो गया है कि तालिबान में कोई बदलाव नहीं आया है और वह अब भी खूंखार बना हुआ है। अफगानिस्तान में लड़कियों का जीवन बर्बाद हो चुका है और उनकी शिक्षा व बाहर काम करने जैसे सपनों पर ग्रहण लग चुका है।

तालिबान पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव में पीएम मोदी के विचारों को विशेष महत्व

दुनिया को जब तालिबान की हकीकत का पता चला तो संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों को विशेष महत्व दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तालिबान पर अफगान महिलाओं तथा लड़कियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए यह प्रस्ताव पारित किया। इसमें तालिबान पर एक प्रतिनिधि सरकार स्थापित करने में नाकाम रहने तथा देश को गंभीर आर्थिक, मानवीय और सामाजिक स्थिति में डालने का आरोप लगाया गया। प्रस्ताव में 15 महीने पहले अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद से देश में निरंतर हिंसा और अल कायदा तथा इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी समूहों के साथ ही विदेशी आतंकवादी लड़ाकों का भी उल्लेख किया गया है। 193 सदस्यीय सभा में 116 मतों से यह प्रस्ताव पारित हुआ। रूस, चीन, बेलारूस, बुरूंडी, उत्तर कोरिया, इथियोपिया, गिनी, निकारागुआ, पाकिस्तान और जिम्बाब्वे सहित 10 देश प्रस्ताव से दूर रहे। सुरक्षा परिषद की तुलना में महासभा के प्रस्ताव कानूनी रूप से बाध्य नहीं हैं लेकिन वे दुनिया की राय को दर्शाते हैं। सभा में यह प्रस्ताव जर्मन राजदूत की ओर से रखा गया था।

पीएम मोदी की पहल, 2023 को सम्पूर्ण विश्व मनाएगा अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष

वर्ष 2023 को सम्पूर्ण विश्व भारत के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष मनाने जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से पारित यह प्रस्ताव भारत की ओर से ही रखा गया था। भोजन में मोटे अनाज का सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण और आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुकूल होने के साथ-साथ भारत की सांस्कृतिक विरासत का भी अभिन्न अंग है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की सराहना की। उन्होंने मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने के लिए मोटा अनाज वर्ष के आयोजन का भारत का प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए विश्व समुदाय को धन्यवाद भी दिया। मोदी ने अपने संदेश में कहा, “मोटे अनाज को उपभोक्ता, उत्पादक एवं जलवायु के लिए अच्छा माना जाता है। ये पौष्टिक होने के साथ कम पानी वाली सिंचाई से भी उगाए जा सकते हैं।” मोटे अनाज या कदन्न (millet) में ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, कुटकी, कोदो, सावां आदि शामिल हैं। अप्रैल 2016 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भूख को मिटाने और दुनिया भर में कुपोषण के सभी प्रकारों की रोकथाम की आवश्यकता को मान्यता देते हुए 2016 से 2025 तक ‘पोषण पर संयुक्त राष्ट्र कार्रवाई दशक’ की घोषणा की थी। मोटा अनाज दुनिया से भूख मिटाने और कुपोषण दूर करने में भी सहायक बनेगा।

पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत लगातार नई ऊंचाइयों को छू रहाः जेनेट येलेन

भारत में विरोधी दलों के नेता भले ही सरकार पर यह आरोप लगाए कि मोदी राज में महंगाई, बेरोजगारी की दर तेजी से बढ़ रही है और रूपया रसातल में जा रहा है लेकिन अमेरिका से भारत दौरे पर आईं अमेरिका की ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन ने कहा कि पीएम मोदी के नेतृतव में भारत लगातार नई ऊंचाइयों को छू रहा है। अब भारत दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओ में से एक है। इसमें किसी को भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हम महामारी के प्रभाव से निपट रहे हैं। मगर रूस यूक्रेन युद्ध के कारण पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था बिगड़ रही है। येलेन का कहना है कि अमेरिका और भरत के बीच द्विपक्षीय व्यापार सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है जो अभी और नई ऊचाइयां छुएगा। अमेरिका ने भारत में हरित हाईड्रोजन और सौर ऊर्जा जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं की सराहना की। आज पूरी दुनिया में भारत का डंका बज रहा है तथा हर वैश्विक चुनौती पर अपनी अंतिम रणनीति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान व भारत सरकार की ओर से आ रही प्रतिक्रिया के बाद ही बनाई जा रही है।

COP 15: भारत के सुझावों का जोरदार समर्थन, पर्यावरण पर योगदान को सराहा

कनाडा के मांट्रियल में हुई संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (कॉप15) के समापन पर एक महत्वपूर्ण समझौते पर सहमति बनी। जो इस दशक के अन्त तक विश्व में 30 प्रतिशत भूमि, तटीय इलाकों और अन्तर्देशीय जलक्षेत्र के संरक्षण पर लक्षित है। इसके अतिरिक्त सम्मेलन के दौरान वार्ताकारों ने मानवीय गतिविधियों के कारण प्रकृति के चिन्ताजनक विध्वंस पर लगाम कसने के लिये कारगर उपायों पर चर्चा की। समझौते के तहत धरती के 30 फीसदी हिस्से को 2030 तक संरक्षित क्षेत्र बनाने की बात की गई है। इसके साथ ही विकासशील देशों को करीब 3 करोड़ डॉलर की सालाना संरक्षण मदद दी जायेगी। इसकी मदद से वो मानव जनित कारणों से लुप्त होने का संकट झेल रहे जीवों की मदद के लिए कुछ कार्य कर सकेंगे। भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि अंतिम वैश्विक जैव विविधता ढांचे को अपनाए जाने से पहले भारत ने दृढ़ता के साथ अपनी बात रखी और सीओपी प्रेसीडेंसी व जैविक विविधता पर कन्वेंशन के सचिवालय के साथ विचार-विमर्श किया। सभी लक्ष्यों को विश्व स्तर पर रखने के भारत के सुझावों को अन्य प्रस्तावों के साथ जोरदार समर्थन के साथ स्वीकार किया गया। भारत ने कॉप15 शिखर सम्मेलन में पर्यावरण के लिए जीवन शैली (एलआईएफई), सामान्य लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं के प्रस्ताव पर पुरजोर ढंग से अपनना पक्ष रखा। इसे सभी देशों का जबरदस्त समर्थन मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल ग्लासगो में कॉप 26 के दौरान पहली बार जीवन पहल को पेश किया था। यह टिकाऊ खपत पर फ्रेमवर्क के लक्ष्य 16 के अनुरूप पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण के लिए बिना सोचे समझे तथा विनाशकारी खपत के बजाय सचेत व जानबूझकर इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने का एक अभियान है।

जी-20 मीटिंग में सबको साथ लेकर चला भारत

भारत ने जी-20 मीटिंग में सदस्य देशों के बीच आम सहमति बनाने में अहम रोल अदा किया। भारत ने विकासशील देशों और उभरते हुए देशों के साथ मिलकर जी-20 के साझे बयान का मसौदा तैयार किया। इसकी प्रस्तावना और साझे बयान को अंतिम रूप देने में भी उसकी भूमिका रही। साझे बयान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन अहम बातों को सदस्य देश जगह देने पर राजी हुए। इनमें यूक्रेन युद्ध में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की चेतावनी को खारिज करना, कूटनीति और बातचीत से शांति कायम करना शामिल हैं। पश्चिमी देश चाहते थे कि जी-20 यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की आलोचना करें, लेकिन भारत ने ब्राजील, मेक्सिको, सऊदी अरब और सिंगापुर जैसे देशों के साथ मिलकर पक्का किया कि बयान में राजनीतिक के बजाय आर्थिक मुद्दों को प्रमुखता दी जाए। इतना ही नहीं, उसने बयान पर रूस की भी सहमति हासिल की।

आइए जानते हैं कि हाल के दिनों में भारत को क्या-क्या जिम्मेदारियां मिली हैं-

G-20 समूह की अध्यक्षता, अगले साल नई दिल्ली में होगा समिट

भारत को इस साल के अंत में G-20 समूह की अध्यक्षता मिलेगी और इसका समिट अगले साल राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में होगा। G-20 में दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश शामिल हैं। इस लिहाज से भारत को विश्व के कई ताकतवार देशों की अध्यक्षता का मौका मिलेगा। G-20 की अध्यक्षता भारत को एक दिसंबर को मिलेगी और 30 नवंबर 2023 तक भारत के पास रहेगी। जो देश G-20 की अध्यक्षता करता है, वह किसी भी देश को इसमें शामिल होने के लिए गेस्ट कंट्री के तौर पर आमंत्रित कर सकता है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने पहले ही घोषणा की है कि भारत इसमें बांग्लादेश, मिस्र, मारिशस, नीदरलैंड्स, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और संयुक्त अरब अमीरात को आमंत्रित करेगा। G-20 का गठन 1999 में हुआ था और इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया के आर्थिक विकास की चिंता करना और कारोबार के क्षेत्र में काम करना है।

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की अध्यक्षता, वाराणसी सांस्कृतिक राजधानी नामित

वर्ष 2022 में भारत को उज्बेकिस्तान के समरकंद में एससीओ की अध्यक्षता प्राप्त हुई थी। भारत सितंबर 2023 तक एक वर्ष के लिए समूह की अध्यक्षता करेगा जिसमें एससीओ सदस्य देशों के नेता शामिल होंगे। इसका अगला शिखर सम्मेलन अगले साल भारत में होना है। ये 23वां एससीओ सम्मेलन होगा, इससे पहले 22वें एससीओ सम्मेलन की अध्यक्षता उज्बेकिस्तान ने वर्ष 2022 में की थी। वाराणसी को वर्ष 2022-2023 के लिए शंघाई सहयोग संगठन की पहली पर्यटन और सांस्कृतिक राजधानी नामित किया गया है। यह निर्णय समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन के राष्ट्राध्यक्षों की 22वीं बैठक में लिया गया था। विदेश मंत्रालय के अनुसार इससे भारत और एससीओ सदस्य देशों के बीच पर्यटन, सांस्कृतिक और मानवीय आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलेगा। यह निर्णय एससीओ के सदस्य देशों, विशेष रूप से मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ भारत के प्राचीन संबंधों को भी दर्शाता है। इस प्रमुख सांस्कृतिक आउटरीच कार्यक्रम के अंतर्गत 2022-23 के दौरान वाराणसी में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे और इसमें एससीओ सदस्य देशों के मेहमानों को आमंत्रित किया जाएगा। इन आयोजनों में विद्वान, लेखक, संगीतकार और कलाकार, फोटो पत्रकार, यात्रा ब्लॉगर और अन्य अतिथि आमंत्रित होंगे।

भारत ने दिसंबर 2022 के लिए संभाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता

भारत ने दिसम्‍बर 2022 महीने के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की अध्‍यक्षता संभाली। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के निर्वाचित सदस्य के रूप में अपने दो साल के कार्यकाल में भारत ने दूसरी बार सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता ग्रहण की है। भारत ने इससे पहले, अगस्त 2021 में सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभाली थी। दिसंबर में भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता के दौरान, 14-15 दिसंबर को दो प्रमुख बैठकें हुईं। ये बैठकें ”बहुपक्षवाद के नये स्‍वरूप और आतंकवाद-की रोकथाम’ के बारे में आयोजित की गई और इनकी अध्यक्षता विदेश मंत्री डॉ एस. जयशंकर ने की। सुरक्षा परिषद की भारत की अध्यक्षता के दौरान संयुक्त राष्ट्र में महात्मा गांधी की अर्ध-प्रतिमा का उद्घाटन किया गया। UNSC के हिसाब से पूरी दुनिया चलती है और ऐसे में भारत के पास इसकी अध्यक्षता आना, बहुत बड़ी बात है। हालांकि भारत अभी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अस्थयी सदस्य है। UNSC संयुक्त राष्ट्र संघ का एक अंग है और इसकी स्थापना 1945 में हुई थी। इसका मकसद विश्व में शांति व्यवस्था को बहाल करना है। संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर चर्चा शुरू हो चुकी है।

G-7 समूह में भारत को शामिल करने पर चर्चा

G-7 समूह में दुनिया की विकसित और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाली देशों को शामिल किया गया है। इनमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। भारत ने इस साल जर्मनी में जून में हुई इसकी शिखर बैठक में गेस्ट कंट्री के तौर पर उपस्थिति दर्ज की थी। G-7 समूह में भारत को शामिल करने की चर्चा तेज हो गई है और अगर यह सच साबित हो जाता है, तो भारत दुनिया के सबसे ताकतवर देशों की सूची में शामिल हो जाएगा। G-7 समूह का लक्ष्य स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की सुरक्षा, लोकतंत्र और क़ानून का शासन एवं समृद्धि और सतत विकास स्थापित करना है।

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