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Year Ender 2022 : नीतीश कुमार ‘पलटू नेता ऑफ द ईयर’, ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको नीतीश ने ठगा नहीं, उद्धव ठाकरे दूसरे और केजरीवाल तीसरे पायदान पर रहे

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अगस्त 2022 में बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया। 26 साल के साथ में ये दूसरी बार है जब नीतीश भाजपा से अलग हुए। नीतीश कुमार समता पार्टी के दौर से ही भाजपा के साथ आ गए थे। 2000 में जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तब भाजपा के साथ ही थे। तब से लेकर अब तक सात बार वह इस पद पर रह चुके हैं। इनमें से पांच बार शपथ के दौरान भाजपा उनकी सहयोगी थी। कुर्सी के लिए नीतीश अपनी सुविधा के अनुसार पलटते रहे हैं। इससे पहले 2013 में नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाए जाने के खिलाफ नीतीश एनडीए से अलग हो गए थे और 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया था। 2015 में उन्होंने पुराने सहयोगी लालू यादव के साथ गठबंधन किया, लेकिन ये सरकार भी 20 महीने ही चल पाई। आरजेडी से अलग होने के बाद नीतीश ने एक बार फिर एनडीए का दामन थामा और फिर अगस्त 2022 में एनडीए का साथ छोड़ दिया। नीतीश के इस पलटी मारने पर सोशल मीडिया पर भी लोगों ने तरह-तरह के कमेंट किए। एक ट्विटर यूजर ने चुटकी लेते हुए कमेंट किया कि सरकारें आएंगी जाएंगी लेकिन नीतीश कुमार पीएम रहना चाहिए। रश्मि रंजन ने लिखा, ‘ नीतीश आया राम, नीतीश कुमार गया राम। अंकित चौधरी ने कमेंट किया- देख रहे हो विनोद, सब कुर्सी की माया है। उत्कर्ष मिश्रा ने लिखा- किसी ने बहुत सही कहा है कि चाय पानी सब के साथ होते रहना चाहिए क्योंकि राजनीति में सब पलट जाता है। अनुभव शुक्ला नाम के ट्विटर यूजर ने कमेंट किया कि ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको नीतीश कुमार ने ठगा नहीं। पलटीमार पालीटिक्स करने में जहां नीतीश कुमार ने नंबर वन के साथ बाजी मारी वहीं उद्धव ठाकरे दूसरे पायदान पर और अरविंद केजरीवाल तीसरे पायदान पर रहे।

नीतीश 2000 में पहली बार मुख्यमंत्री बने

वर्ष 2000 में जब बिहार विधानसभा के चुनाव हुए। तब नीतीश कुमार की पार्टी का नाम समता पार्टी था। भाजपा, समता पार्टी और कुछ अन्य छोटे दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा। वहीं, राजद, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी एक साथ मैदान में थे। एनडीए गठबंधन को चुनाव में 151 सीटें मिलीं। भाजपा ने 67 सीटें जीती थीं। नीतीश कुमार की पार्टी के 34 उम्मीदवार चुनाव जीते थे। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। एनडीए गठबंधन ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री चुन लिया। नीतीश ने सीएम पद की शपथ भी ले ली। हालांकि, बहुमत का आंकड़ा 163 था। राजद की अगुआई वाली यूपीए के पास 159 विधायक थे। बहुमत का आंकड़ा नहीं होने के कारण नीतीश को सात दिन के अंदर ही इस्तीफा देना पड़ा और यूपीए गठबंधन की सरकार बनी और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी।

2005 में जदयू-भाजपा ने मिलकर सरकार बनाई

वर्ष 2005 विधानसभा चुनाव से दो साल पहले यानी 2003 में समता पार्टी नए नाम जदयू के तौर पर अस्तित्व में आई। इसमें नीतीश कुमार की समता पार्टी के साथ लोक शक्ति, जनता दल (शरद यादव ग्रुप), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय हो गया था। जदयू और भाजपा ने मिलकर एनडीए गठबंधन में चुनाव लड़ा। फरवरी में हुए इस चुनाव में किसी भी गठबंधन या दल को बहुमत नहीं मिला। राम विलास पासवान की लोजपा को 29 सीटें मिलीं। पासवान जिसके साथ जाते उसकी सरकार बनती। लेकिन, पासवान दलित या मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की मांग पर अड़ गए। दोनों ही गठबंधन उनकी शर्त मानने को तैयार नहीं हुए। क्योंकि, एक तरफ तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी नेता थीं, तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार गठबंधन के नेता थे। छह महीने राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा। नए सिरे से चुनाव हुए। इस बार एनडीए गठबंधन में शामिल जदूय को 88 और भाजपा को 55 सीटें मिलीं। जो बहुमत के आंकड़े 122 से काफी ज्यादा था। नीतीश कुमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

2010 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने नीतीश

एनडीए गठबंधन ने 2010 में भी साथ में मिलकर चुनाव लड़ा। तब जदयू को 115, भाजपा को 91 सीटें मिलीं। लालू प्रसाद यादव की राजद 22 सीटों पर सिमटकर रह गई। तब तीसरी बार नीतीश कुमार को बिहार की सत्ता मिली। वह मुख्यमंत्री बने।

2013 में नीतीश पलटे, टूटा 17 साल पुराना साथ

2013 में नीतीश ने 17 साल पुराने साथ को छोड़ दिया और पलटी मार ली। तब भाजपा ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। नीतीश कुमार भाजपा के इस फैसले से सहमत नहीं थे। उन्होंने एनडीए से अलग होने का फैसला ले लिया। भाजपा के सभी मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया गया। राजद ने नीतीश को समर्थन का एलान कर दिया। नीतीश पद पर बने रहे।

नीतीश ने कहा था- नरेंद्र भाई बहुत दिन गुजरात के दायरे में सिमटकर नहीं रहेंगे

नीतीश कुमार ने साल 2003 में गुजरात के कच्छ में एक रेल परियोजना का उद्धाटन करते हुए कहा था कि “मुझको पूरी उम्मीद है कि नरेंद्र भाई बहुत दिन गुजरात के दायरे में सिमटकर नहीं रहेंगे। देश को इनकी सेवाएं मिलेंगी।” लेकिन 2014 में जब नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार घोषित किया गया तो नीतीश कुमार को रास नहीं आया और अपनी बात से पलट गए।

2014 लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश ने दिया इस्तीफा, जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया

2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश की पार्टी ने अकेले लड़ा। उसे महज दो सीटों पर जीत मिली। एनडीए केंद्र की सत्ता में आई। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने महादलित परिवार से आने वाले जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया।

मिट्टी में मिल जाएंगे, बीजेपी से हाथ नहीं मिलाएंगेः नीतीश

2014 में बीजेपी से अलग होते समय नीतीश कुमार ने कहा था कि ‘रहें चाहें या मिट्टी में मिल जाएं लेकिन आपके साथ हाथ नहीं मिलाएंगे।’ उन्होंने कहा था कि ‘भरोसा किया था, वो अटल जी का युग था, अब अटल जी का युग नहीं है। इसलिए जब हम अलग हो रहे थे तो आडवाणी जी ने फोन किया था और कहा था कि आपको अध्यक्ष ने वचन दिया है, उसको निभाया जाएगा, हमने कहा कि अब हम लोगों के लिए संभव नहीं है। और जो अध्यक्ष ने वचन दिया, वो अध्यक्ष हैं नहीं। और इन बातों को कौन सुनेगा, इसलिए हम लोग अपने रास्ते पर चले। वो युग समाप्त हो चुका है। अब आपका नया अवतार हो चुका है। अब इसके बाद किसी परिस्थिति में लौटकर जाने का प्रश्न नहीं उठता।” ये अलग बात है कि 2017 में नीतीश फिर पलटे और भाजपा से हाथ मिला लिया था।

2015 में बिहार में बना महागठबंधन, नीतीश पांचवीं बार बने मुख्यमंत्री

2015 विधानसभा चुनाव से पहले जदयू, राजद, कांग्रेस समेत अन्य छोटे दल एकसाथ आ गए। सभी ने मिलकर महागठबंधन बनाया। तब लालू की राजद को 80, नीतीश कुमार की जदयू को 71 सीटें मिलीं। भाजपा के 53 विधायक चुने गए। राजद, कांग्रेस और जदयू ने मिलकर सरकार बनाई और नीतीश कुमार फिर से पांचवी बार मुख्यमंत्री बन गए। लालू के बेटे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम और दूसरे बेटे तेज प्रताद स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए।

2017 में नीतीश फिर पलटे, महागठबंधन छोड़ भाजपा से हाथ मिलाया

2017 में तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो नीतीश कुमार ने उनसे इस्तीफा मांगा। हालांकि, राजद ने मना कर दिया। इसके बाद नीतीश कुमार ने खुद इस्तीफा दे दिया और चंद घंटों बाद भाजपा के साथ मिलकर फिर से सरकार बना ली। भाजपा की मदद से सीएम बने।

2020 में भाजपा ने ज्यादा सीटें जीतीं, फिर भी नीतीश को बनाया मुख्यमंत्री

2020 में भाजपा-जदयू ने मिलकर एनडीए गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ा। तब जदयू ने 115, भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था। भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 74 सीटें हासिल की। ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद जदयू सिर्फ 43 सीटें जीत पाई थी। इसके बाद भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने। भाजपा की तरफ से दो उप मुख्यमंत्री बनाए गए।

2022 में फिर नीतीश पलटे, राजद से हाथ मिलाया

अगस्त 2022 में नीतीश ने फिर पलटी मारते हुए एनडीए से अलग हो गए और राजद से हाथ मिलाया। अभी बिहार विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 243 है। यहां बहुमत साबित करने के लिए किसी भी पार्टी को 122 सीटों की जरूरत होती है। वर्तमान आंकड़ों को देखें तो बिहार में सबसे बड़ी पार्टी राजद है। उसके पास विधानसभा में 79 सदस्य हैं। वहीं, भाजपा के 77, जदयू के 45, कांग्रेस के 19, वाम दलों के 16, एआईएमआईएम का 01, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के 04 विधायक और एक निर्दलीय विधायक हैं।

आखिर नीतीश कुमार कब-कब और क्यों पलटे, इस पर संक्षिप्त में एक नजर…

-साल 1994 में नीतीश कुमार ने अपने पुराने सहयोगी लालू यादव का साथ छोड़कर लोगों को चौंका दिया था। जनता दल से किनारा करते हुए नीतीश ने जॉर्ज फ़र्नान्डिस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया था और 1995 के बिहार विधानसभा चुनावों में लालू के विरोध में उतरे लेकिन चुनाव में बुरी तरह से उनकी हार हुई। हार के बाद वो किसी सहारे की तलाश में थे।

-इसी तलाश के दौरान उन्होंने 1996 में बीजेपी से हाथ मिला लिया। बीजेपी और समता पार्टी का ये गठबंधन अगले 17 सालों तक चला। हालांकि, इस बीच में साल 2003 में समता पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) बन गई। जेडीयू ने बीजेपी का दामन थामे रखा और साल 2005 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की। इसके बाद साल 2013 तक दोनों ने साथ में सरकार चलाई।

-साल 2013 में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2014 के लिए जब नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया तो नीतीश कुमार को यह रास नहीं आया और उन्होंने बीजेपी से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया। राजद के सहयोग से सरकार चला रहे नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और कुर्सी अपनी सरकार के मंत्री और दलित नेता जीतन राम मांझी को सौंप दी। वे खुद बिहार विधानसभा चुनाव 2015 की तैयारी में जुट गए।

-लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी से पटखनी खा चुके नीतीश कुमार ने साल 2015 में पुराने सहयोगी लालू यादव और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में आरजेडी जेडीयू से अधिक सीट लेकर आई। बावजूद इसके नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री व बड़े बेटे तेजप्रताप यादव स्वास्थ्य मंत्री बने।

-20 महीने तक दो पुराने साथियों की सरकार ठीक से चलती रही लेकिन 2017 में दोनों पार्टियों में खटपट शुरू हो गई। अप्रैल 2017 में शुरू हुई खटपट ने जुलाई तक गंभीर रूप ले लिया, जिसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने योजनाबद्ध तरीके से इस्तीफा दे दिया। चूंकि, विधानसभा में बीजेपी विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी थी, इसलिए बीजेपी ने मध्यावधि चुनाव से इंकार करते हुए पुराने सहयोगी को समर्थन देने का निर्णय लिया और नीतीश कुमार फिर एक बार मुख्यमंत्री बन गए।

शिवसेना-भाजपा की दोस्ती 30 साल चली, उद्धव ने कुर्सी के लिए 2019 में मारी पलटी

शिवसेना-भाजपा की दोस्ती 30 साल तक चली, लेकिन 2019 में उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री का ऐसा ख्वाब जागा कि उन्होंने पलटी मारते हुए बीजेपी से रिश्ता तोड़ लिया और कांग्रेस एवं एनसीपी से हाथ मिलाकर सरकार बना लिया। हालांकि यह सरकार ढाई साल भी नहीं चल पाई और जून 2022 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। शिवसेना-भाजपा की दोस्ती पर नजर डालें तो साल 1984 में पहली बार शिवसेना ने बीजेपी के साथ लोकसभा की 2 सीटों पर गठबंधन किया और वो दोनों ही सीटें हार गई। ये वो समय था, जब इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी और पूरे देश में बीजेपी ने ही मात्र दो सीटें जीती थीं। इसके एक साल बाद साल 1985 के विधानसभा के चुनावों में शिवसेना अकेली मैदान में उतरी और एक ही सीट जीती जिस पर छगन भुजबल जीते। इसके बाद शिवसेना मुंबई में एक ताकत बन चुकी थी और बीएमसी के चुनावों में अकेले उतरी। 139 सीटों में 74 सीटों पर जीत हासिल की। इसके बाद साल 1989 में बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन के जरिए हिंदुत्व की विचारधारा को प्रचलित किया और शिवसेना ने एक बार फिर बीजेपी से दोस्ती बढ़ाई। लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन हुआ। ये बीजेपी के साथ साथ शिवसेना के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। इसके बाद साल 2014 के सितंबर महीने तक बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन लगातार बना रहा। उस समय मोदी लहर चली तो बीजेपी और मजबूत होती गई जबकि साल 2012 में बाल ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना कमजोर होती गई।

केजरीवाल बयानों से पलटी मारने में अव्वल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बयानों से पलटी मारने में यूं तो देश के अव्वल नेताओं में शुमार किए जाते हैं। दिल्ली में यमुना की सफाई का मुद्दा हो या फिर इसी साल गुजरात चुनाव के दौरान सुरक्षा मुद्दा, वे बयानों से पलटते रहे हैं। पहले अपनी सुरक्षा का मुद्दा उठाने वाले केजरीवाल ने गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान आटो की सवारी के मुद्दे पर कहा कि मुझे सुरक्षा नहीं चाहिए। केजरीवाल ने कहा था कि दिल्ली में बसों की संख्या बढ़ाएंगे। लेकिन सच यह है कि पांच सालों में एक नई बस दिल्ली की सड़कों पर नहीं दिखी है। दिल्ली की जनता को किए हर वादे से अरविंद केजरीवाल पलटे हैं और पांच सालों में उनके झूठ और फरेब की कार्यशैली का ही बोलबाला रहा है। दिल्ली में फ्री बिजली का मॉडल फेल हो चुका है। अब दिल्ली में सभी को मुफ्त बिजली नहीं मिलेगी। बिजली सब्सिडी अब वैकल्पिक होगी। इन्ही सब वजहों से लोग सोशल मीडिया पर कहते हैं कि किस्मत पलटे या न पलटे लेकिन केजरीवाल जरूर पलट जाएंगे।

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