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बीबीसी डॉक्यूमेंट्री और जलियांवाला बाग हत्याकांड में है समानता, भारतीय समाज आज ‘जयचंद’ को पहचाने

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भारत को बदनाम करने के लिए बनाई गई बीबीसी डॉक्यूमेंट्री और जलियांवाला बाग हत्याकांड में काफी समानता है। जलियांवाला बाग हत्याकांड में अंग्रेज अफसर ने हुक्म दिया था, लेकिन गोली चलाने वाले भारतीय थे और मरने वाले निर्दोष लोग भी भारतीय थे! बीबीसी डॉक्यूमेंट्री भी बिल्कुल इससे मिलती-जुलती है। बीबीसी डॉक्यूमेंट्री से जुड़े किरदारों में प्रोपेगेंडा वेबसाइट द वायर के पत्रकार अलीशान जाफरी, वेबसाइट द कारवां के राजनीतिक संपादक हरतोष सिंह बल, मनी लॉन्ड्रिंग आरोपी फर्म न्यूज़क्लिक से जुड़े नीलांजन मुखोपाध्याय और लेफ्ट लिबरल लेखिका अरुंधति रॉय आदि शामिल रहे हैं। ऐसे में भारतीय समाज के लिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि आज वह देश से गद्दारी करने वाले जयचंदों को समझे जिससे प्रगति के पथ पर अग्रसर भारत को कमजोर न किया जा सके। इन सभी लोगों का कांग्रेस पार्टी से जुड़ाव भी छिपा नहीं है। और आज (14 फरवरी) जब बीबीसी के दिल्ली और मुंबई दफ्तरों पर आयकर विभाग जांच करने पहुंची है तो कांग्रेस का अपने हमदर्दों के प्रति दर्द झलक पड़ा है।वह हाय-तौबा मचा रही है और इसे अघोषित आपातकाल बता रही है। इससे यह आसानी से समझी जा सकती है कि इनकी मिलीभगत कितनी गहरी है।   

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पहला किरदार- अलीशान जाफरी

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री @alishan_jafri से शुरू होता है। वह प्रोपेगेंडा वेबसाइट द वायर के पत्रकार हैं। वह आर्टिकल 14 और मनी लॉन्ड्रिंग आरोपी प्रोपेगेंडा फर्म न्यूज़क्लिक के लिए भी लिखते हैं।

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री दूसरा किरदार- हरतोष सिंह बल

इस प्रोपगेंडा डॉक्यूमेंट्री में दूसरा किरदार हरतोष सिंह बल का है। वह प्रोपेगेंडा न्यूज वेबसाइट द कारवां के राजनीतिक संपादक हैं। कहने को तो वह पत्रकार हैं लेकिन वह पीएम मोदी के खिलाफ मुखर होकर लिखते रहे हैं। इससे उनकी विचारधारा को समझी जा सकती है।

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री तीसरा किरदार- नीलांजन मुखोपाध्याय

बीबीसी के प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री में दिखाई देने वाला तीसरा किरदार नीलांजन मुखोपाध्याय है। दिलचस्प बात यह है कि वह प्रोपेगेंडा वेबसाइट द वायर और द कारवां के लिए भी लिखते हैं। वह पीएम मोदी और हिंदू धर्म के खिलाफ लिखते रहे हैं। वह मनी लॉन्ड्रिंग आरोपी फर्म न्यूज़क्लिक के लिए काम करते हैं उससे वेतन प्राप्त करते हैं।

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री चौथा किरदार- अरुंधति रॉय

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री में दिखाई देने वाला चौथा चरित्र अरुंधति रॉय है। फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट Altnews और उनके कम्युनिस्ट मालिकों को फंड देने वाली वह पहली महिला थीं! अरुंधति की विचारधारा जगजाहिर है। उन्होंने कहा था- NPR पर जानकारी मांगी जाए तो अपना नाम रंगा-बिल्ला बताइए। उनके कुछ अन्य बयान देखिए- कश्मीर समस्या का एकमात्र हल कश्मीर की आजादी है। 70 लाख भारतीय सैनिक मिलकर ‘आजादी गैंग’ को हरा नहीं पाते। अफजल गुरु के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे। 1998 में अटल सरकार का परमाणु परीक्षण करना गलत था। इससे आप समझ सकते हैं अरुंधति किस विचारधारा की पोषक हैं।

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पांचवां किरदार- जैफ्रेलॉट क्रिस्टोफ़

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री में पांचवां चरित्र जैफ्रेलॉट क्रिस्टोफ़ हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनके प्रचार कार्यों को द वायर और द कारवां जैसी ही संस्थाओं द्वारा प्रचारित किया जाता है।

प्रोपेगेंडा राइटर जैफ्रेलॉट क्रिस्टोफ ने बीबीसी के इस प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री को देखने और शेयर करने के लिए भारतीय अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल को टैग किया है।

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री छठा किरदार- जैक स्ट्रॉ

बीबीसी प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री में छठा चरित्र जैक स्ट्रॉ हैं। इस डॉक्यूमेंट्री के निर्माण में ब्रिटेन के इस पूर्व विदेश मंत्री की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। क्या संयोग है कि डॉक्यूमेंट्री रिलीज होने के बाद वेबसाइट द वायर पर उनका एक विशेष साक्षात्कार प्रसारित किया गया। क्या इत्तेफाक है कि उन्होंने इंटरव्यू के लिए द वायर को ही चुना!

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री रिलीज होते ही प्रोपेगेंडा पत्रकारों ने काम शुरू कर दिया

बीबीसी की प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री के रिलीज़ होने के बाद, द वायर और द कारवां के प्रोपेगेंडा पत्रकारों और IPSMF ने योजना के अनुसार अपना काम किया है (?)

लेकिन क्या आप जानते हैं कि The Wire, The Caravan, Alt News, Article 14, आदि इन Propaganda वेबसाइटों को पैसा कौन देता है..? यह IPSMF है।

IPSMF के दानदाता कौन हैं? जो प्रोपेगेंडा वेबसाइटों को फंड देते हैं

अब यहां यह समझना जरूरी है कि IPSMF के दानदाता कौन हैं? IPSMF की शुरुआत 100 करोड़ का फंड हासिल करके की गई थी। नंदन नीलेकणी की पत्नी रोहिणी नीलेकणि ने 30 करोड़ देने का वादा किया था। नंदन नीलेकणी की पत्नी रोहिणी नीलेकणी का रोल मॉडल बिल गेट्स और फोर्ड फाउंडेशन के साथ जॉर्ज सोरोस और उनकी ओपन सोसाइटी फाउंडेशन हैं! यानी वह इन वैश्विक संस्थाओं का अनुसरण करती हैं।

नंदन नीलेकणि 2014 में कांग्रेस के टिकट पर लड़ चुके चुनाव

आपको याद ही होगा कि नंदन नीलेकणि 2014 में कांग्रेस में शामिल होने के बाद कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। यही वह समय है जब नंदन नीलेकणि और IPSMF के अन्य दाताओं को यह एहसास हुआ कि उन्होंने अनजाने में फंडिंग की है और यह उनकी गलती थी, उन्हें तुरंत आईपीएसएमएफ को भंग कर देना चाहिए और उन्हें भारतीयों से माफी मांगनी चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करते तो हम भारतीय इसे भारत के खिलाफ साजिश मानते। इससे इस बात का खुलासा हो जाता कि कोई गुप्त संस्था भारत को विभाजित करना चाहता है और वे उनकी मदद कर रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसे जलियांवाला बाग में आदेश तो एक अंग्रेज ने दिया था लेकिन गोली चलाने वाले भी भारतीय थे और इसमें मरने वाले निर्दोष लोग भी भारतीय थे!

हैदराबाद यूनिवर्सिटी में हुई बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग

बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री “इंडिया: द मोदी क्वेश्चन” को यूट्यूब और ट्विटर पर तो ब्लॉक कर दिया गया है। लेकिन जिस एजेंडे के तहत इसे बनाया गया था उसे आगे बढ़ाने में लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम पीछे नहीं है। यही वजह है कि रोक के बाद भी हैदराबाद यूनिवर्सिटी में छात्रों को डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई। आरोप है कि छात्रों ने परिसर में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री देखी। हैदराबाद यूनिवर्सिटी में डॉक्यूमेंट्री दिखाए जाने को लेकर अधिकारी जांच कर रहे हैं।

जेएनयू में भी बीबीसी डॉक्यूमेंट्री दिखाई जाने वाली थी, बाद में रद्द हुआ कार्यक्रम

दिल्ली के जेएनयू में भी ये फिल्म दिखाई जानी थी लेकिन कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया। जेएनयू ने छात्रों के एक समूह द्वारा “इंडिया: द मोदी क्वेश्चन” की 24 जनवरी के लिए तय की गई स्क्रीनिंग को रद्द करने का फैसला किया। जेएनयू प्रशासन का कहना था कि इस तरह की डॉक्युमेंट्री कैंपस की शांति भंग कर सकती है। जेएनयू कैंपस में स्क्रीनिंग के कार्यक्रम को लेकर पैंपलेट्स बांटे गए थे। इतना ही नहीं छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष ने भी विवादित डॉक्‍यूमेंट्री का पोस्‍टर शेयर किया। उन्‍होंने इसकी स्क्रीनिंग का पोस्टर भी शेयर किया था। आइशी का यह पोस्‍ट वायरल होने पर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रशासन ने एक एडवाइजरी जारी कर दी है। इसके बाद यहां स्क्रीनिंग को भी रद्द कर दिया गया।

क्या भारतीय समाज में आज भी जयचंद जैसे गद्दार मौजूद हैं?

वर्ष 1191 में तराईन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने अन्य भारतीय हिन्दू राजाओं (जिनमें जयचंद भी शामिल था) के साथ मिलकर मुहम्मद गौरी को पराजित किया। इस युद्ध के एक साल बाद गौरी ने पुनः अपनी सेना इकट्ठी की और दिल्ली पर आक्रमण किया, लेकिन इस बार उसने सिर्फ सैन्य बल का उपयोग नहीं किया बल्कि उसने कूटनीति के दम पर जयचंद समेत कुछ हिन्दू राजाओं को अपनी ओर कर लिया। युद्ध में मदद के एवज में गौरी ने जयचंद को राजगद्दी का प्रलोभन दिया और जयचंद ने गद्दी के लालच में चौहान के साथ गद्दारी कर दी। अगर तराईन के द्वितीय युद्ध में भी अन्य भारतीय राजाओं ने उसका साथ दिया होता तो वह पुनः गौरी को हरा देता और भारतवर्ष की पाक भूमि पर कभी गौरी, बलबन, बाबर और गजनवी जैसे आक्रांता कदम भी नहीं रख पाते। इस एक युद्ध की हार ने भारत में अरब और मध्य एशिया के तमाम लुटेरों को भारत में घुसने का मौका दे दिया और बाकी सब इतिहास में वर्णित है।

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