भारत और पीएम नरेंद्र मोदी को बदनाम करने की साजिश के तहत बनाई गई ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) की डॉक्यूमेंट्री– इंडिया: द मोदी क्वेश्चन से परतें अब उठ गई हैं। इस प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री के पीछे भारतीय किरदारों की अहम भूमिका रही है जो भारत को कमजोर करने की साजिश में शामिल हैं। मूल रूप से यह तेल कंपनियों, फार्मा कंपनियों और आईटी कंपनियों का एक समूह है। इस कार्टेल में शामिल लोग थिंक टैंक के जरिए विभिन्न सरकारें चलाते हैं। वे सरकार पर अपनी जरूरत के हिसाब से नीतियां बनाने का दबाव बनाते हैं। अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो वे कार्यकर्ताओं और मीडिया के जरिये अपने मंसूबे को अंजाम देते हैं। मीडिया एक बहुत छोटे से मुद्दे से बवाल खड़ा कर सकते हैं और इसे एक बड़े आंदोलन में बदल सकते हैं, जो किसी भी सरकार को उखाड़ फेंक सकता है।अब इसी कड़ी में भारतीय आयकर विभाग को कुछ महत्वपूर्ण सुराग मिले हैं जिसके बाद आज (14 फरवरी 2022 को) बीबीसी के दिल्ली और मुंबई आफिस पर सर्वे का काम किया जा रहा है। अब इससे कांग्रेस पार्टी तिलमिला गई है उसने कहा है- बीबीसी पर आईटी छापा पड़ गया है। कांग्रेस ने आयकर छापे को अघोषित आपातकाल तक कह दिया है, अब इससे समझा जा सकता है कि उन्हें इसका कितना दर्द हो रहा है।
पहले BBC की डॉक्यूमेंट्री आई, उसे बैन किया गया।
अब BBC पर IT का छापा पड़ गया है।
अघोषित आपातकाल
— Congress (@INCIndia) February 14, 2023
मीडिया किस तरह एक छोटे से मुद्दे से बवाल खड़ा कर सकते हैं और इसे एक बड़े आंदोलन में बदल सकते हैं। इसका उदाहरण अरब स्प्रिंग में देख सकते हैं। अरब स्प्रिंग सरकार विरोधी प्रदर्शनों, विद्रोहों और सशस्त्र विद्रोहों की एक श्रृंखला थी जो 2010 की शुरुआत में अरब दुनिया के अधिकांश हिस्सों में फैल गई थी। डॉक्युमेंट्री बनाने वाले लोग, टारगेट करने वाले और विक्टिम कार्ड खेलने वाले लोग, मीडिया में प्रोपेगेंडा करने वाले लोग, विश्वविद्यालयों में विरोध प्रदर्शन करने वाले लोग एक ही इकोसिस्टम हिस्सा हैं और एक ही फंडिंग नेटवर्क से जुड़े हुए है!
2. Part two of Propaganda #BBCdocumentary has covered the removal of article 370 and the CAA Protest.
In this Propaganda documentary, BBC has shown UAPA accused Safoora Zargar as a victim! pic.twitter.com/zz56WMk3Hh— Vijay Patel🇮🇳 (@vijaygajera) January 26, 2023
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के किरदार- सफूरा ज़रगर
बीबीसी की प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री में UAPA (Unlawful Activities (Prevention) Act ) की आरोपी सफूरा ज़रगर को पीड़ित के रूप में दिखाया है! जबकि उस पर आतंकी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है। सफूरा जरगर साल 2020 में सीएए-एनआरसी के विरोध में दिल्ली में हुए दंगों की आरोपी है। आरोप है कि वह दंगों की शुरुआत करने वाले साजिशकर्ताओं में से एक है। सफूरा जामिया की एमफिल की पूर्व की छात्रा है, जिसे दोबारा एडमिशन नहीं दिया गया। विश्वविद्यालय के चीफ प्राक्टर की ओर से सितंबर 2022 में जारी आदेश में कहा गया है कि सफूरा जरगर अपने दुर्भावनापूर्ण राजनीतिक एजेंडे को साधने के लिए विश्वविद्यालय व यहां के छात्र-छात्राओं को मंच के रूप में इस्तेमाल कर रही थी। सफूरा अप्रासंगिक व विवादित मुद्दों पर बार-बार मार्च, धरना, प्रदर्शन आदि करती है जिसकी वजह से संस्थान का शिक्षा का शांतिपूर्ण माहौल दूषित होता है। इससे छात्र-छात्राओं की पढ़ाई भी बाधित होती है। इस कारण परिसर में उसका प्रवेश तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित किया गया है।
3. BBC documentary starts with @alishan_jafri
He is Journalist with the Propaganda website The Wire.
He also writes for Article 14 and money laundering accused propaganda firm Newsclick pic.twitter.com/mBtdW9hg0f— Vijay Patel🇮🇳 (@vijaygajera) January 24, 2023
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के किरदार- अलीशान जाफरी
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री अलीशान जाफरी से शुरू होता है। वह प्रोपेगेंडा वेबसाइट द वायर के पत्रकार हैं। वह आर्टिकल 14 और मनी लॉन्ड्रिंग आरोपी प्रोपेगेंडा फर्म न्यूज़क्लिक के लिए भी लिखते हैं। अलीशान जाफरी लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम का हिस्सा हैं और वे मुस्लिमों को भड़काने वाले मुद्दे पर लिखते रहे हैं।
4. The second character in this propaganda documentary is Hartosh Singh Bal. He is the Political Editor of the Propaganda news website The Caravan.
Please go and check his timeline to understand his ideology pic.twitter.com/Zha57Ian2Q— Vijay Patel🇮🇳 (@vijaygajera) January 24, 2023
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के किरदार- हरतोष सिंह बल
इस प्रोपगेंडा डॉक्यूमेंट्री में एक किरदार हरतोष सिंह बल हैं। वह प्रोपेगेंडा न्यूज वेबसाइट द कारवां के राजनीतिक संपादक हैं। कहने को तो वह पत्रकार हैं लेकिन वह पीएम मोदी के खिलाफ मुखर होकर लिखते रहे हैं। इससे उनकी विचारधारा को समझी जा सकती है। इन्होंने डॉक्यूमेंट्री में कही गई बातों को सही ठहराते हुए दवायर में 26 जनवरी 2023 को एक लेख भी लिखा है। इससे इनकी मानसिकता समझी जा सकती है। हरतोष सिंह ने वॉटर्स क्लोज ओवर अस : ए जर्नी अलॉन्ग द नर्मदा के लेखक भी हैं।
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के किरदार- नीलांजन मुखोपाध्याय
बीबीसी के प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री में दिखाई देने वाला एक किरदार नीलांजन मुखोपाध्याय है। दिलचस्प बात यह है कि वह प्रोपेगेंडा वेबसाइट द वायर और द कारवां के लिए भी लिखते हैं। वह पीएम मोदी और हिंदू धर्म के खिलाफ लिखते रहे हैं। वह मनी लॉन्ड्रिंग आरोपी फर्म न्यूज़क्लिक के लिए काम करते हैं उससे वेतन प्राप्त करते हैं। दक्विंट बेवसाइट पर उनके आलेखों को देखें तो वह समान नागरिक संहिता, राम मंदिर, आर्टिकल 370 को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ नैरेटिव बनाने में जुटे रहते हैं।
7. The Forth character who appeared in Propaganda BBC Documentary is Arundhati Roy. I think almost every Indian knows about her.
But very few know that she was the first to give funds to propaganda fact-checking website Altnews and their communist owners! pic.twitter.com/sxMflgRbFp— Vijay Patel🇮🇳 (@vijaygajera) January 24, 2023
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के किरदार- अरुंधति रॉय
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री में दिखाई देने वाला एक किरदार अरुंधति रॉय है। फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट Altnews और उनके कम्युनिस्ट मालिकों को फंड देने वाली वह पहली महिला थीं! अरुंधति की विचारधारा जगजाहिर है। उन्होंने कहा था- NPR पर जानकारी मांगी जाए तो अपना नाम रंगा-बिल्ला बताइए। उनके कुछ अन्य बयान देखिए- कश्मीर समस्या का एकमात्र हल कश्मीर की आजादी है। 70 लाख भारतीय सैनिक मिलकर ‘आजादी गैंग’ को हरा नहीं पाते। अफजल गुरु के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे। 1998 में अटल सरकार का परमाणु परीक्षण करना गलत था। इससे आप समझ सकते हैं अरुंधति किस विचारधारा की पोषक हैं।
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के किरदार- जैफ्रेलॉट क्रिस्टोफ़
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री में एक किरदार जैफ्रेलॉट क्रिस्टोफ़ हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनके प्रचार कार्यों को द वायर और द कारवां जैसी ही संस्थाओं द्वारा प्रचारित किया जाता है। जैफ्रेलॉट एक फ्रांसीसी राजनीतिक वैज्ञानिक और दक्षिण एशिया, विशेष रूप से भारत और पाकिस्तान में विशेषज्ञता वाले इंडोलॉजिस्ट हैं। वे किंग्स इंडिया इंस्टीट्यूट (लंदन) में भारतीय राजनीति और समाजशास्त्र के प्रोफेसर हैं और मुंबई में शोध निदेशक हैं। जैफ्रेलॉट भी लेफ्ट लिबरल हैं और पीएम मोदी के खिलाफ एजेंडे में शामिल रहते हैं। प्रोपेगेंडा राइटर जैफ्रेलॉट क्रिस्टोफ ने बीबीसी के इस प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री को देखने और शेयर करने के लिए भारतीय अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल को टैग किया है।
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के किरदार- जैक स्ट्रॉ
बीबीसी प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री में एक किरदार जैक स्ट्रॉ हैं। इस डॉक्यूमेंट्री के निर्माण में ब्रिटेन के इस पूर्व विदेश मंत्री की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। क्या संयोग है कि डॉक्यूमेंट्री रिलीज होने के बाद वेबसाइट द वायर पर उनका एक विशेष साक्षात्कार प्रसारित किया गया। क्या इत्तेफाक है कि उन्होंने इंटरव्यू के लिए द वायर को ही चुना!
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के किरदारः साधना सुब्रमण्यम
दिलचस्प बात यह है कि प्रोपेगेंडा बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के निर्माताओं में से एक साधना सुब्रमण्यम को अपनी पहली डॉक्यूमेंट्री के लिए क़तर के स्वामित्व वाले अलजज़ीरा से फंडिंग मिली थी। उसने अपने संपर्कों को छिपाने के लिए अपनी प्रोफ़ाइल को लॉक कर दिया है! उनका पहला वृत्तचित्र भी प्रोपेगेंडा था क्योंकि इसमें जाति व्यवस्था को लक्षित किया गया था।
सिद्धार्थ वर्धराजन: द वायर के संस्थापक और संपादक
दवायर के संपादक सिद्धार्थ वर्धराजन, नीलांजन मुखोपाध्याय, हरतोष सिंह बल प्रचार वेबसाइटों द वायर, द कारवां और न्यूज़क्लिक के साथ जुड़े हुए हैं। बीबीसी के इस प्रोपेगैंडा डॉक्यूमेंट्री में न्यूज़क्लिक और द कारवां के फ़ुटेज का भी इस्तेमाल किया है।
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री रिलीज होते ही प्रोपेगेंडा पत्रकारों ने काम शुरू कर दिया
बीबीसी की प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री के रिलीज़ होने के बाद, द वायर और द कारवां के प्रोपेगेंडा पत्रकारों और IPSMF ने योजना के अनुसार अपना काम किया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि The Wire, The Caravan, Alt News, Article 14, आदि इन Propaganda वेबसाइटों को पैसा कौन देता है..? यह IPSMF है।
IPSMF के दानदाता कौन हैं? जो प्रोपेगेंडा वेबसाइटों को फंड देते हैं
अब यहां यह समझना जरूरी है कि IPSMF के दानदाता कौन हैं? IPSMF की शुरुआत 100 करोड़ का फंड हासिल करके की गई थी। नंदन नीलेकणी की पत्नी रोहिणी नीलेकणि ने 30 करोड़ देने का वादा किया था। नंदन नीलेकणी की पत्नी रोहिणी नीलेकणी का रोल मॉडल बिल गेट्स और फोर्ड फाउंडेशन के साथ जॉर्ज सोरोस और उनकी ओपन सोसाइटी फाउंडेशन हैं! यानी वह इन वैश्विक संस्थाओं का अनुसरण करती हैं।
IPSMF के संस्थापक ट्रस्टी आशीष धवन
IPSMF के संस्थापक ट्रस्टी आशीष धवन ने वर्ष 2000 में एक निजी इक्विटी फर्म क्रिसकैपिटल की स्थापना की। क्या आप जानते हैं कि इसमें निजी निवेशक कौन थे? इसमें कुवैत सरकार, सिंगापुर सरकार, बिल गेट्स और अन्य अमेरिकी-यूरोपीय टाइकून और विश्वविद्यालय शामिल रहे। दिलचस्प बात यह है कि इंफोसिस के सह-संस्थापक एन.एस. राघवन क्रिसकैपिटल के सलाहकार बोर्ड में थे! 2008 में, जब पूरी दुनिया मंदी का सामना कर रही थी, जिसमें भारतीय बाजार भी शामिल था, क्रिसकैपिटल ने इंफोसिस में 200 मिलियन डॉलर का निवेश किया! 2002 में आशीष धवन ने अजीम प्रेमजी की विप्रो को स्पेक्ट्रामाइंड बेचकर 10 मिलियन डॉलर के निवेश पर 60 मिलियन डॉलर कमाए!
IPSMF को रोहिणी नीलेकणि ने किया था 30 करोड़ देने का वादा
IPSMF की शुरुआत 100 करोड़ का फंड हासिल करके की गई थी। नंदन नीलेकणी (इन्फोसिस के सह-संस्थापक) की पत्नी रोहिणी नीलेकणि ने अजीम प्रेमजी के नेतृत्व में 30 करोड़ रुपये देने का वादा किया। रोहिणी नीलेकणि ने 2004 में अपना एनजीओ प्रथम बुक्स शुरू किया। जिसे राजीव गांधी फाउंडेशन से शुरुआती समर्थन मिला है! वर्तमान में, उनके एनजीओ को आशीष धवन के सीएफएस, अजीम प्रेमजी, बिल गेट्स और एजुकेशन एबव ऑल (ईएए) सहित विभिन्न एनजीओ से धन प्राप्त होता है। एजुकेशन एबव ऑल (ईएए) एनजीओ की स्थापना और संचालन कतर राज्य की पूर्व प्रथम महिला शेखा मोजा बिन्त नासिर द्वारा किया जाता है!उनके पति, हमद बिन खलीफा, अल-जज़ीरा और कतर फाउंडेशन के संस्थापक थे। अरब स्प्रिंग में भी इन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। उसने आतंकवादी संगठन हमास को भी वित्त पोषित किया है और अन्य अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन का भी समर्थन किया है।
नंदन नीलेकणि 2014 में कांग्रेस के टिकट पर लड़ चुके चुनाव
आपको याद ही होगा कि नंदन नीलेकणि 2014 में कांग्रेस में शामिल होने के बाद कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। यही वह समय है जब नंदन नीलेकणि और IPSMF के अन्य दाताओं को यह एहसास हुआ कि उन्होंने अनजाने में फंडिंग की है और यह उनकी गलती थी, उन्हें तुरंत आईपीएसएमएफ को भंग कर देना चाहिए और उन्हें भारतीयों से माफी मांगनी चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करते तो हम भारतीय इसे भारत के खिलाफ साजिश मानते। इससे इस बात का खुलासा हो जाता कि कोई गुप्त संस्था भारत को विभाजित करना चाहता है और वे उनकी मदद कर रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसे जलियांवाला बाग में आदेश तो एक अंग्रेज ने दिया था लेकिन गोली चलाने वाले भी भारतीय थे और इसमें मरने वाले निर्दोष लोग भी भारतीय थे!
बीबीसी की प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री के किरदारों के जुड़ाव को समझें
बीबीसी की प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री जुड़े किरदारों को समझने के लिए कुछ अतीत में जाना होगा। जनवरी 2011 में, भारत और कुछ इस्लामिक देशों के पेशेवर वामपंथी कार्यकर्ताओं ने फिलिस्तीन में हमास और कुछ अन्य आतंकवादी संगठनों की मदद के लिए गाजा कारवां का आयोजन किया! इस कारवां का मकसद था ‘गाजा को आजाद कराना’। इसमें आठ सदस्य थे जिसमें 4 लोग भारतीय थे। चार भारतीयों के नाम ब्रिगेडियर सुधीर सावंत, शाहीन कट्टीपरांबिल (जमात ए इस्लामी), असलम खान (आइसा) और तहलका के अजीत साही हैं। उन्होंने सिमी के अपराध पर पर्दा डाला था। ब्रिगेडियर सुधीर सावंत बाद में 2019 में आप महाराष्ट्र प्रमुख बने। अजीत साही वकालत निदेशक के रूप में भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद में शामिल हुए। वह एक सिमी समर्थक है और भारत पर प्रतिबंध लगाने की मांग करके भारत के खिलाफ काम करते रहे हैं।
उमर खालिद के पिता ने की थी गाजा कारवां के लिए फंडिंग की व्यवस्था
क्या आप जानते हैं कि 2011 में गाजा कारवां के लिए फंडिंग की व्यवस्था किसने की थी? इसमें इलियास (उमर खालिद के पिता और वेलफेयर पार्टी के अध्यक्ष) और प्रबीर पुरकायस्थ (न्यूजक्लिक के मालिक) प्रमुख भूमिका रही थी। उन्होंने ही फंड के समन्वय की जिम्मेदारी ली। इससे आसानी से समझा जा सकता है कि डॉक्यूमेंट्री में सफूरा को पीड़िता के रूप में क्यों दिखाया गया। यूएपीए का आरोपी उमर खालिद अभी भी जेल में है और उसके पिता न्यूज़क्लिक के मालिक के दोस्त हैं! और इन दोनों ने हमास को समर्थन देने का काम किया था।
वेलफेयर पार्टी जमात-ए-इस्लामी हिंद का हिस्सा
उमर खालिद के पिता इलियास राजनीतिक दल वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष हैं। वेलफेयर पार्टी जमात-ए-इस्लामी हिंद का हिस्सा है। जमात-ए-इस्लामी हिंद अलग-अलग नामों से कई एनजीओ चलाता है जैसे विजन 2026, ह्यूमन वेलफेयर फाउंडेशन और ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट आदि। इस ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट की कई अंतरराष्ट्रीय एनजीओ से पार्टनरशिप है। ये एनजीओ उनका समर्थन करते हैं। ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट के मुख्य समर्थक कौन हैं? यह जानकर आप चौंक जाएंगे। इसे कतर चैरिटी, तुर्की की खुफिया एजेंसी से संबद्ध एनजीओ आईएचएच ह्यूमैनिटेरियन रिलीफ फाउंडेशन (आईएचएच) और कई अन्य से समर्थन प्राप्त है।
भारतीय समाज में आज भी ‘जयचंद’ मौजूद हैं!
वर्ष 1191 में तराईन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने अन्य भारतीय हिन्दू राजाओं (जिनमें जयचंद भी शामिल था) के साथ मिलकर मुहम्मद गौरी को पराजित किया। इस युद्ध के एक साल बाद गौरी ने पुनः अपनी सेना इकट्ठी की और दिल्ली पर आक्रमण किया, लेकिन इस बार उसने सिर्फ सैन्य बल का उपयोग नहीं किया बल्कि उसने कूटनीति के दम पर जयचंद समेत कुछ हिन्दू राजाओं को अपनी ओर कर लिया। युद्ध में मदद के एवज में गौरी ने जयचंद को राजगद्दी का प्रलोभन दिया और जयचंद ने गद्दी के लालच में चौहान के साथ गद्दारी कर दी। अगर तराईन के द्वितीय युद्ध में भी अन्य भारतीय राजाओं ने उसका साथ दिया होता तो वह पुनः गौरी को हरा देता और भारतवर्ष की पाक भूमि पर कभी गौरी, बलबन, बाबर और गजनवी जैसे आक्रांता कदम भी नहीं रख पाते। इस एक युद्ध की हार ने भारत में अरब और मध्य एशिया के तमाम लुटेरों को भारत में घुसने का मौका दे दिया और बाकी सब इतिहास में वर्णित है।