पीएम मोदी के नेतृत्व में देश ने एक नया मील का पत्थर हासिल किया है और मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) में महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज हुई है। पीएम मोदी महिला स्वास्थ्य को लेकर बहुत ही गंभीर रहे हैं और उनका मानना है कि स्वस्थ नारी ही स्वस्थ्य समाज का निर्माण कर सकती है। यही वजह है कि सुरक्षित मातृत्व से लेकर महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए मोदी सरकार ने कई योजनाएं शुरू की। इन प्रयासों का असर भी सामने आने लगा है। आंकड़ों के अनुसार देश में मातृ-मृत्यु दर के आंकड़ों में पहले के मुकाबले कमी आई है। भारत में मातृ मृत्यु दर (MMR) में 2014-16 के मुकाबले 2018-20 में भारी कमी देखने को मिली है। भारत के रजिस्ट्रार जनरल के आंकड़ों के अनुसार देश में मातृ मृत्युदर 97 पहुंच गया है। जो 2014-16 में प्रति लाख बच्चों के जन्म पर 130 माताओं की मौत की तुलना में बेहद कम है। इन आंकड़ों को देख कहा जा सकता है कि भारत का ग्राफ सुरक्षित मातृत्व के क्षेत्र में बेहतर हुआ है।
मातृ मृत्यु दर को 70 से कम करने का लक्ष्य
गुणवत्तापूर्ण मातृ और प्रसव देखभाल सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार की विभिन्न स्वास्थ्य नीतियों व पहल ने एमएमआर को नीचे लाने में जबरदस्त तरीके से सहायता की है। मोदी सरकार की नीतियों की वजह से मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) में महत्वपूर्ण गिरावट आई है। प्रति लाख 2014-16 में 130 से घटकर 2018-20 में 97 के आंकड़े पर इसे लाया गया है। एमएमआर दर को सफलतापूर्वक कम करने में भारत के उत्कृष्ट प्रयास के बाद अब वर्ष 2030 के निर्धारित समय से पहले 70 से कम एमएमआर को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
मातृ मृत्यु दर कम करने के लिए सुमन-सुरक्षित मातृत्व आश्वासन योजना का महत्वपूर्ण योगदान
पीएम मोदी के विजन से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत, वर्ष 2014 से भारत ने सुलभ गुणवत्ता वाली मातृ एवं नवजात स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने और रोकथाम योग्य मातृ मृत्यु अनुपात को कम करने के लिए ठोस प्रयास किया गया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने एमएमआर लक्ष्यों को पूरा करने हेतु मातृ स्वास्थ्य कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की। “जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम” और “जननी सुरक्षा योजना” जैसी सरकारी योजनाओं को संशोधित किया गया है और इन्हें सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (सुमन) जैसी अधिक सुनिश्चित एवं सम्मानजनक सेवा वितरण योजनाओं में अपग्रेड किया गया है।
मोदी सरकार का गर्भवती महिलाओं के सुरक्षित प्रसव पर फोकस
प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए) विशेष रूप से उच्च जोखिम वाले गर्भधारण की पहचान करने और उनके उचित प्रबंधन को सुविधाजनक बनाने पर केंद्रित है। रोकी जा सकने वाली मृत्यु दर को कम करने पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। लक्ष्य और मिडवाइफरी पहल सभी गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित प्रसव कराने का विकल्प सुनिश्चित करते हुए एक सम्मानजनक तथा गरिमापूर्ण तरीके से गुणवत्तापूर्ण देखभाल को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
संस्थागत प्रसव बढ़कर 95 प्रतिशत हुई
भारत में संस्थागत प्रसव की हिस्सेदारी वर्ष 2014-15 में 87 प्रतिशत थी जो कि वर्ष 2020-2021 में बढ़कर 95 प्रतिशत हो गई। नौ लक्षित राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और असम ने इस अवधि के दौरान 50-64 प्रतिशत अंक के बीच समान वृद्धि दर्ज की।
असम में सबसे ज्यादा तो केरल में सबसे कम मातृ मृत्यु दर
देश के अलग अलग राज्यों में मातृ मृत्युदर के बीच भारी अंतर है। एक ओर जहां असम में यह अब भी 197 बना हुआ है, वहीं केरल जैसे राज्य में यह 19 तक पहुंच गया है। यूपी में 167, मध्यप्रदेश में 173 और बिहार में 118 है। सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) हासिल करने वाले राज्यों की संख्या के संदर्भ में हुई उत्कृष्ट प्रगति के बाद यह अब केरल (19) के साथ छह से बढ़कर आठ हो गई है, इसके बाद महाराष्ट्र (33), तेलंगाना (43), आंध्र प्रदेश (45), तमिलनाडु (54), झारखंड (56), गुजरात (57) और अंत में कर्नाटक (69) का स्थान है।
सरकार द्वारा मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) में सुधार के लिए उपाय:
2016 में शुरू किया गया प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए) हर महीने की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं को निश्चित दिन, नि:शुल्क और गुणवत्तापूर्ण प्रसवपूर्व देखभाल सुनिश्चित करता है।
2017 से लागू की गई प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई) एक प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजना है जिसके तहत गर्भवती महिलाओं को सीधे उनके बैंक खाते में नकद लाभ प्रदान किया जाता है ताकि उनकी बढ़ी हुई पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सके और उनकी मजदूरी की हानि की आंशिक रूप से क्षतिपूर्ति की जा सके।
लेबर रूम क्वालिटी इम्प्रूवमेंट इनिशिएटिव (लक्ष्य), 2017 में शुरू की गयी थी, जिसका उद्देश्य लेबर रूम और मैटरनिटी ऑपरेशन थिएटर में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान और तत्काल बाद की अवधि में सम्मानजनक और गुणवत्तायुक्त देखभाल उपलब्ध हो।
भारत सरकार ने समयबद्ध तरीके से बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं की पोषण स्थिति में सुधार लाने के लक्ष्य को हासिल करने के साथ 2018 से पोषण अभियान लागू किया है।
एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी): वर्ष 2018 में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अनीमिया मुक्त भारत रणनीति की शुरूआत की थी, जिसका उद्देश्य जीवन चक्र पहुंच में पोषण और गैर-पोषण कारणों से एनीमिया के प्रसार को कम करना है। इस रणनीति का 30 मिलियन गर्भवती महिलाओं सहित 450 मिलियन लाभार्थियों तक पहुंचने का अनुमान है।
सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (सुमन) 2019 से प्रभावी हुआ। इसका उद्देश्य बिना किसी लागत के सुनिश्चित, सम्मानजनक, गरिमामयी और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है ताकि सभी रोकथाम योग्य मातृ और नवजात मौत को समाप्त करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में आने वाली प्रत्येक महिला और नवजात शिशु के लिए इंकार न करने वाली सेवा प्रदान की जा सके।
स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के प्रशिक्षण, दवाओं, उपकरणों की आपूर्ति, सूचना शिक्षा और संचार (आईईसी) आदि के माध्यम से व्यापक गर्भपात देखभाल सेवाओं को मजबूत किया गया है।
डिलीवरी पॉइंट- देश भर में 25,000 से अधिक ‘डिलीवरी पॉइंट्स’ को व्यापक आरएमएनसीएएच + एन सेवाओं के प्रावधान के लिए बुनियादी ढांचे, उपकरण और प्रशिक्षित जनशक्ति को मजबूत किया गया है।
मानवशक्ति, रक्त भंडारण इकाइयों, रेफरल लिंकेज आदि को सुनिश्चित करके प्रथम रेफरल इकाइयों (एफआरयू) को कार्यरत करना।
माताओं और बच्चों को प्रदान की जाने वाली देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के लिए अधिक केस लोड सुविधाओं पर मातृ एवं बाल स्वास्थ्य (एमसीएच) विंग की स्थापना।
जटिल गर्भधारण को संभालने के लिए देश भर में उच्च केस लोड तृतीयक देखभाल सुविधाओं पर प्रसूति आईसीयू/एचडीयू का संचालन।
विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में इन विषयों में विशेषज्ञों की कमी को दूर करने के लिए सी-सेक्शन (ईएमओसी) कौशल सहित एनेस्थीसिया (एलएसएएस) और प्रसूति देखभाल में एमबीबीएस डॉक्टरों के लिए क्षमता निर्माण किया जाता है।
मातृ मृत्यु निगरानी समीक्षा (एमडीएसआर) सुविधाओं और सामुदायिक स्तर दोनों पर लागू की जाती है। इसका उद्देश्य उचित स्तर पर सुधारात्मक कार्रवाई करना और प्रसूति देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाना है।
मासिक ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण दिवस (वीएचएसएनडी) पोषण सहित मातृ एवं शिशु देखभाल के प्रावधान के लिए एक पहुंच (आउटरीच) गतिविधि है।
एएनसी के शीघ्र पंजीकरण, नियमित एएनसी, संस्थागत प्रसव, पोषण और गर्भावस्था के दौरान देखभाल आदि के लिए नियमित आईईसी/बीसीसी गतिविधियां संचालित की जाती हैं।
गर्भवती महिलाओं को आहार, आराम, गर्भावस्था के खतरे के संकेत, लाभ योजनाओं और संस्थागत प्रसव के बारे में शिक्षित करने के लिए एमसीपी कार्ड और सुरक्षित मातृत्व पुस्तिका वितरित की जाती है।
प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियानः गर्भवती महिलाओं की मुफ्त स्वास्थ्य जांच
यह योजना तीन से छह महीने की गर्भवती महिलाओं के लिए है। इस के तहत हर महीने की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं की मुफ्त स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था की गई है। इस जांच में गर्भ में पल रहे शिशु की जांच भी शामिल है। इसे देश के सभी 650 जिलों में लागू कर दिया गया है जिसमें नकद राशि 4000 से बढ़ाकर 6000 रुपयों तक कर दी गई है।
मातृत्व अवकाशः 12 सप्ताह से बढ़ा कर 26 सप्ताह किया
मोदी सरकार ने नया मातृत्व लाभ संशोधित कानून एक अप्रैल 2017 से लागू कर दिया है। संशोधित कानून के तहत सरकार ने कामकाजी महिलाओं के लिए वैतनिक मातृत्व अवकाश की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ा कर 26 सप्ताह कर दी है। इसके तहत 50 या उससे ज्यादा कर्मचारियों वाले संस्थान में एक तय दूरी पर क्रेच सुविधा मुहैया कराना अनिवार्य है। महिलाओं को मातृत्व अवकाश के समय घर से भी काम करने की छूट है। मातृत्व लाभ कार्यक्रम के 1 जनवरी 2017 से लागू है। योजना के अंतर्गत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पहले दो जीवित शिशुओं के जन्म के लिए तीन किस्तों में 6000 रुपये का नकद प्रोत्साहन दिया जाता है।
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के लाभार्थियों की संख्या एक करोड़ पार
मोदी सरकार की गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए योजना-प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना ( PMMVY) एक करोड़ से अधिक लाभार्थियों तक पहुंच गई है। इस योजना के तहत अभी तक कुल 4,000 करोड़ से अधिक की राशि दी जा चुकी है। पीएमवीवाई डायरेक्ट बेनिफिट योजना है। इसके तहत गर्भवती महिलाओं को नकद लाभ सीधे उनके बैंक खाते में भेजा जाता है ताकि वे पौष्टिकता आवश्यकताओं को बढ़ा सकें। यह योजना 01 जनवरी 2017 से लागू है। योजना के अंतर्गत उन गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को तीन किस्तों में पांच हजार रुपए का नकद लाभ प्राप्त होता है, जिन्होंने प्रसव का प्रारंभिक पंजीकरण कराया है, प्रसुति जांच कराई है, बच्चे के जन्म का पंजीकरण कराया है और परिवार के पहले बच्चे के लिए टीकाकरण का पहला चक्र पूरा किया है। इसके साथ ही जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) के अन्तर्गत भी नकद प्रोत्साहन दिया जाता है। इस तरह औसत रूप में एक महिला को 6,000 रुपए मिलते हैं।
स्वास्थ्य को लेकर मोदी सरकार का 4 Pillar पर फोकस
पूर्व की सरकारों के विपरीत मौजूदा मोदी सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र को वर्गों में बंटकर देखने के बजाय समग्र रूप से देख रही है। मोदी सरकार स्वस्थ्य भारत की दिशा में चौतरफा रणनीति पर काम कर रही है। स्वास्थ्य संबंधी वास्तविक जरूरतों को समझते हुए हेल्थ सेक्टर से जुड़े अभियानों में स्वच्छता मंत्रालय, आयुष मंत्रालय, रसायन और उर्वरक मंत्रालय, उपभोक्ता मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को भी शामिल किया गया। इन सब मंत्रालयों को मिलाकर चार Pillars पर फोकस किया जा रहा है जिनसे लोगों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
Preventive Health – इसके तहत स्वच्छता, योग और टीकाकरण को बढ़ावा देने वाले अभियान शामिल हैं जिनसे बीमारियों को दूर रखा जा सके।
Affordable Healthcare – इसके अंतर्गत जनसामान्य के लिए सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं।
Supply side interventions – इसमें उन कदमों पर जोर है जिनसे किसी दुर्गम क्षेत्र में भी ना तो डॉक्टरों और ना ही अस्पतालों की कमी हो।
Mission mode intervention – इसमें माता और शिशु की समुचित देखभाल पर बल दिया जा रहा है।
इन चार Pillars के आधार पर ही मोदी सरकार ने हेल्थकेयर से जुड़ी अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाया है।
आयुष्मान कार्ड प्राप्त करने वालों में लगभग 49 प्रतिशत महिलाएं
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने देशवासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना ‘आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना’ (पीएम-जेवाई) की शुरुआत की थी। इस योजना में पैनलबद्ध अस्पताल नेटवर्क में देश भर में 12,824 निजी अस्पतालों सहित कुल 28,351 अस्पताल शामिल हैं। राशि के हिसाब से वर्ष 2022-23 के दौरान कुल दाखिलों में से करीब 56 प्रतिशत निजी अस्पतालों में जबकि 44 प्रतिशत दाखिले सरकारी अस्पतालों में किए गए। आयुष्मान कार्ड प्राप्त करने वालों में लगभग 49 प्रतिशत महिलाएं हैं और योजना के तहत कुल उपचार में 48 प्रतिशत से अधिक महिलाओं द्वारा लाभ उठाया गया है।