Home कोरोना वायरस प्रधानमंत्री मोदी को बदनाम करने के लिए स्क्रॉल ने गढ़ी झूठी कहानी

प्रधानमंत्री मोदी को बदनाम करने के लिए स्क्रॉल ने गढ़ी झूठी कहानी

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कोरोना महामारी के इस दौर में भारत पूरी दुनिया को एक नई राह दिखा रहा है, पूरा विश्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ कर रहा है। ऐसे में कुछ एजेंडा पत्रकार और मीडिया संस्थान गिद्ध दृष्टि लगाकर मोदी जी को बदनाम करने की साजिश रच रहे हैं। कुछ इसी प्रकार के कुत्सित प्रयासों के साथ एक लेख स्क्रॉल में प्रकाशित किया गया है। इसमें वाराणसी के एक गांव डोमरी की कहानी छापी गई है। डोमरी गांव इसलिए चुना गया है, क्योंकि आदर्श ग्राम योजना के तहत प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गोद लिया हुआ ये चौथा गांव है। स्क्रॉल ने कुछ लोगों को आधार बनाकर ये नैरेटिव सेट करने की कोशिश की है कि लॉकडाउन की वजह से प्रधानमंत्री मोदी का गोद लिया हुआ गांव भूखा है। लेकिन जब हमने पड़ताल की तो पता चला कि ये आर्टिकल न केवल तथ्यहीन और भ्रामक है, बल्कि पूर्वाग्रह के साथ लिखा गया है।

स्क्रॉल ने लेख में बताया है कि किस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी के गोद लिए गांव डोमरी में लोग खाने के लिए तरस रहे हैं। वेबसाइट ने चार केस स्टडी भी दी हैं। लेकिन चारों केस स्टडी मनगढ़ंत, पक्षपातपूर्ण और झूठ पर आधारित हैं। हमने चारों केस स्टडी की पड़ताल की और इसके चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। आइए एक-एक कर चारों केस स्टडी की सत्यता सामने रखते हैं-

पहली केस स्टडी –

स्क्रॉल का आरोप –
पहली केस स्टडी कल्लू नाम के दिहाड़ी मजदूर की है। स्क्रॉल लिखता है कि लॉकडाउन के दौरान कल्लू को मुफ्त भोजन के लिए 1 से 5 किमी तक पैदल चलना पड़ा। कल्लू दिहाड़ी मजदूर है, लेकिन लॉकडाउन में उसे काम नहीं मिला। मछली व्यवसाय के लिए कल्लू 10 वर्षों तक घर से बाहर रहा। वह मथुरा से मछली लेकर फरीदाबाद में बेचता था, लेकिन छह साल पहले वह डोमरी वापस लौटा और राशनकार्ड बनवाने की कोशिश की, लेकिन उसका राशन कार्ड नहीं बना और उसे बाहर से ही राशन खरीदना पड़ा। जब वह राशन लेने के लिए पीडीएस दुकान पहुंचा, तो वहां से उसे भगा दिया गया।

हकीकत –
जांच में पता चला कि कल्लू अब डोमरी का स्थायी निवासी नहीं है। यहां पर वो अपना मकान बेच चुका है। इस समय वो अपने भाई सीताराम के घर में ठहरा है, जहां मंशा देवी के नाम से अंत्योदय कार्ड बना हुआ है, जिसका नंबर 219720554188 है। इस नंबर पर खाद्यान्न भी प्राप्त किया जा रहा है। लेख में लिखा गया है कि वह छह साल पहले लौटकर आया है, जो गलत है। वह हाल-फिलहाल में ही लौटकर वाराणसी के डोमरी गांव अपने भाई के पास आया है।

जांच में ये भी पता चला कि कल्लू को प्रवासी/ अस्थायी राशनकार्ड (नंबर 219750005113) जारी किया जा चुका है। क्षेत्रीय लेखपाल के अनुसार उसे 2 बार राशन किट भी दी गई है। 14 मई, 2020 को कल्लू ने स्थानीय राशन की दुकान से कच्ची सामग्री की किट ली है, इसका भी रिकॉर्ड दर्ज है। यही नहीं, सामान लेने के बाद उस पर कल्लू के अंगूठे का निशान भी लगा है।

दूसरी केस स्टडी

स्क्रॉल का आरोप –
स्क्रॉल ने दूसरी कहानी माला नाम की महिला की लिखी है। घरों में काम करने वाली माला सिंगल मदर है और उसके पांच बच्चे हैं। लॉकडाउन के दौरान उसके मालिक ने सैलरी रोक दी। नए काम की तलाश में वो कई बार वाराणसी गई, लेकिन काम नहीं मिला। माला एक तरह से वाराणसी की सड़कों पर भीख मांगने के लिए मजबूर हो गई। उसकी मां के पास राशन कार्ड है, लेकिन उसके पास नहीं है। 6 महीने पहले उसके बेटे को 6,000 रुपये प्रति महीने पर सफाई कर्मचारी की नौकरी मिल गई और वो खुद 2,000 का काम कर लेती थी, लेकिन लॉकडाउन में मां और बेटे दोनों का काम छिन गया। बगैर राशनकार्ड के राशन मिलने की खबर पर वो पीडीएस दुकान गई, लेकिन उसे वहां राशन नहीं दिया गया।

हकीकत –
स्क्रॉल ने माला की कहानी को जिस प्रकार से पेश किया, उसे पढ़कर हम सबको गुस्सा आएगा। और इसमें कोई गलत बात भी नहीं है। लेकिन जिस प्रकार इस वेबसाइट ने हकीकत को छिपा लिया, वो पत्रकारिता के गुण-धर्म के न केवल विपरीत है, बल्कि खतरनाक भी है।

सच्चाई यह है कि माला की शादी नाटी ईमली में हुई है। वह लॉकडाउन के समय ग्रामसभा डोमरी में अपनी मां के पास आई हुई है। यही नहीं, माला का प्रवासी/ अस्थायी राशनकार्ड (नंबर 219750005086) भी जारी किया गया है। और इन सबसे बड़ी बात यह है कि कि माला नगर निगम वाराणसी में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करती है। इस बात की पुष्टि खुद लेखपाल और राजस्व निरीक्षक ने भी की है।

तीसरी केस स्टडी

स्क्रॉल का आरोप –
स्क्रॉल ने रंजू देवी नाम की महिला की कहानी को बिल्कुल रुपहले पर्दे की तरह पेश किया है। इस कहानी को कुछ इस प्रकार शुरू किया गया है कि रंजू देवी के हाथ में सिर्फ बीस रुपये का एक नोट और पांच रुपये का एक सिक्का है। और वो इस पैसे से अपने बच्चों के लिए दूध और बिस्किट खरीदने जा रही है, जिसमें उसे दिक्कत हो रही है।

स्क्रॉल का आरोप है कि रंजू देवी के पास राशन कार्ड नहीं है। राशन कार्ड नहीं होने के कारण उन्हें कोटे से राशन नहीं मिल पाया। दो-तीन बार कोशिश करने के बाद भी उसका राशन कार्ड नहीं बना और उसे पंचायत दफ्तर से भगा दिया गया। रंजू देवी के तीन बच्चे हैं। बच्चों के लिए दूध और बिस्किट के पैसे नहीं हैं। जबकि उसका पति नाव चलाकर पेट भरता था, लेकिन लॉकडाउन के कारण घर पर बैठा हुआ है।

हकीकत –
स्क्रॉल की इस कहानी पर एक सनसनीखेज उपन्यास लिखा जा सकता था, लेकिन सच्चाई इससे कोसों दूर है। पड़ताल में पता चला कि रंजू देवी अपने पति महेश के साथ डोमरी की नई बस्ती में रहती है। पति पेशे से नाविक है। इनका डोमरी में 8 कमरों का तीन मंजिला मकान है। इनके मकान में तीन किरायेदार भी रहते हैं। फोटो देखकर आप इनकी आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं।

उनके परिवार में कुल 7 भाई हैं और सभी गंगापार अपने मकान में रहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि रंजू देवी का वाराणसी में भी अपना एक मकान है। आर्थिक रूप से संपन्न होने के कारण परिवार का राशन कार्ड नहीं बन सकता।

चौथी केस स्टडी

स्क्रॉल का आरोप –
स्क्रॉल ने चौथी केस स्टडी के रूप में सिर्फ तस्वीर लगाई है। शब्दों की जादूगरी से ज्यादा काम नहीं लिया। दरअसल गरीबी को दिखाने के लिए कुछ मसाला नहीं मिला होगा। स्क्रॉल लिखता है कि राधा देवी की मां राजमणि का तो राशन कार्ड है, लेकिन राधा के पास राशन कार्ड नहीं होने के कारण राशन नहीं मिला।

हकीकत –
हमने इस बारे में भी पूरी पड़ताल की तो जो सच सामने आया, उससे हमारे होश उड़ गए। राधा देवी के पति का नाम संजय कुमार है। जबकि संजय कुमार का नाम उसकी मां नगीना के नाम पर बने अंत्योदय कार्ड में अंकित है। इनका राशन कार्ड नंबर 219720554603 है। जब राशन कार्ड की ऑनलाइन सूची देखी तो इनके पूरे परिवार की लिस्ट सामने आ गई। इसमें राधा के पति संजय कुमार का भी नाम है और तफ्तीश में पता चला कि ये राशन भी ले रहे हैं।

इसके अलावा संजय की पत्नी राधा देवी का अलग से एक यूनिट का पात्र गृहस्थी कार्ड बना हुआ है। इसका नंबर 219740892251 है। खास बात यह है कि उक्त दोनों कार्डों पर ये परिवार नियमानुसार खाद्यान्न प्राप्त कर रहा है। रही बात राधा की मां राजमणि देवी की तो उनके राशन कार्ड की संख्या 2197040616728 है। इस कार्ड पर भी नियमानुसार खाद्यान्न प्राप्त किया जा रहा हैा

अब इन चारों परिवारों की कहानियों को पढ़कर समझ में आ गया होगा कि स्क्रॉल ने किस प्रकार आधारहीन, तथ्यहीन, भ्रामक और पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर झूठी रिपोर्ट प्रकाशित की और जान बूझकर प्रधानमंत्री मोदी को बदनाम करने की साजिश रची।

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