प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। उनके चाहने वालों में विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन से लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तक शामिल है। रूस में आयोजित एक आर्थिक सम्मेलन में राष्ट्रपति पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी और उनकी महत्वाकांक्षी पहल मेक इन इंडिया की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि रूस के हमान दोस्त भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ साल पहले मेक इन इंडिया को लॉन्च किया था। इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर काफी सकारात्मक असर पड़ा है और भारत को इसका काफी फायदा मिला है। उन्होंने भारत की इस योजना से सीखने की सलाह दी। इसके साथ ही राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के प्रभाव को खारिज कर दिया।
मॉस्को में आयोजित एजेंसी फॉर स्ट्रैटेजिक इनिशिएटिव्स के एक कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी को रूस का महान दोस्त बताया। भारत का जिक्र करते हुए कहा कि भारत में जो भी अच्छा काम हो रहा है, उससे सीखने में रूस को कोई हर्ज नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेक इन इंडिया भारत में अच्छी तरह से काम कर रहा है। मेक इन इंडिया की तर्ज पर ही रूस में स्वदेशी उत्पादों पर जोर दिया जाए और देश में ही जरूरत की सभी चीजें तैयार की जाएं। उन्होंने कहा कि भले ही यह हमारी योजना नहीं है लेकिन हमारे दोस्त की है, इसे अपनाया जा सकता है।
🇷🇺 #Russia Takes Note of ‘#MakeinIndia‘ 📷#Putin
Check out what the #Russian president thinks about #India‘s push for indigenous manufacturing! #sanctions #AtmanirbharBharat pic.twitter.com/botBpV7l6Z— Sputnik India (@Sputnik_India) June 29, 2023
यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका समेत यूरोपीय देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया था। राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि इन आर्थिक प्रतिबंधों का असर रूस पर नहीं हुआ है। इससे रूसी बाजार में गिरावट नहीं आई है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी कंपनियों के देश से चले जाने से रूसी उद्यमियों के लिए अवसर बढ़ गए हैं। रूस को घरेलू उत्पादों और ब्रांडों को बढ़ावा देने के लिए एक नई पॉलिसी की जरूरत है। इस दौरान पुतिन ने कहा कि हमें अपने प्रोडक्ट्स को आधुनिक रूप देने के साथ ज्यादा सुविधाजनक और फंक्शनल बनाने के बारे में सोचने की जरूरत है। इसीलिए इंडस्ट्रियल और प्रोडक्ट डिजाइन घरेलू व्यापार के लिए एक जरूरी संसाधन बनना चाहिए।
रूस के राष्ट्रपति का यह बयान विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयान के एक दिन बाद आया है। बुधवार (28 जून, 2023) को दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि तमाम चुनौतियों के बावजूद रूस के साथ हमारा संबंध अडिग है। रूस से संबंध की अहमियत को लेकर हमारा वर्षों का मूल्यांकन है। रूस से भारत की दोस्ती को केवल रक्षा निर्यात के आईने में देखना गलत होगा। हमारे संबंध इससे कहीं आगे के हैं। रूस के साथ संबंधों को लेकर हमारा अपना जियोपॉलिटिकल तर्क है। दोनों देशों के बीच आर्थिक सहोयग बढ़ रहे हैं।
Delighted to speak on “9 Years of Modi Government: A Foreign Policy Overview” at the India International Centre.
Highlighted 9 key achievements of PM @narendramodi’s foreign policy.
Spoke about:
1️⃣Why and how has Indian ability on global stage expanded? Why was PM in Papua… pic.twitter.com/cpwwRoLZN5
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) June 28, 2023
आइए देखते हैं मोदी सरकार किस तरह रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया को बढ़ावा दे रही है…
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन से भारत ने रक्षा निर्यात के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाई है। रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में लगातार आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदमों के साथ नौ साल में रक्षा निर्यात 23 गुना बढ़ गया है। वित्त वर्ष 2022-23 में भारत ने 15,940 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात किया। जबकि वित्त वर्ष 2013-14 में भारत का रक्षा निर्यात 686 करोड़ रुपये था। करीब एक दशक पहले महंगे हथियारों से लेकर छोटे मोटे रक्षा सामानों के लिए भारत विदेशों पर निर्भर था। वहीं निर्यात के मोर्चे पर भी रक्षा क्षेत्र की हिस्सेदारी नाममात्र की थी। लेकिन मोदी सरकार के 9 साल में हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं।
पीएम मोदी की पहल से शुरू किए गए मेक इन इंडिया और वोकल फॉर लोकल जैसे अभियानों का रक्षा क्षेत्र पर सकारात्मक असर पड़ा है। यही वजह है कि रक्षा निर्यात में भारत नए मुकाम हासिल कर रहा और आज देश के निर्यात में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है। आत्मनिर्भर भारत अभियान ने देश को स्वदेशी डिजाइन, विकास और निर्माण के लिए तैयार किया है और वह दिन दूर नहीं, जब भारतीय सैनिक पूरी तरह स्वदेशी साजोसामान से लैस होंगे।
पिछले नौ साल में 23 गुना बढ़ा रक्षा निर्यात
रक्षा विभाग के अनुसार वित्तीय वर्ष 2013-14 में भारत से रक्षा निर्यात मात्र 686 करोड़ रुपये के आसपास था। जो कि वित्त वर्ष 2022-23 में बढ़कर 15,940 करोड़ हो गया है। मात्र 9 साल में रक्षा निर्यात के मोर्चे पर 23 गुना की वृद्धि वैश्विक रक्षा निर्माण क्षेत्र में भारत की बढ़ती धाक को प्रदर्शित करती है।
भारत का रक्षा निर्यात 15,940 करोड़ रुपए पहुंचा
मोदी सरकार की रक्षा क्षेत्र में निर्यात को बढ़ावा देने की योजना रंग लाती दिख रही है। बीते 9 वर्षों में 23 गुना की ऊंची छलांग के साथ ही इस साल भारत का रक्षा निर्यात करीब 15,940 करोड़ रुपए का हो गया है। पिछले वित्त वर्ष यह 13 हजार करोड़ रुपए का था।
85 देशों को निर्यात कर रहा है भारत
भारत में रक्षा उत्पादों के निर्माण में काफी तेजी आई है। सरकार के प्रयास से दुनिया भर की कई दिग्गज कंपनियां भारत में आकर उत्पाद तैयार कर रही हैं। आज भारत में निर्मित प्रोडक्ट का निर्यात 85 से अधिक देशों में हो रहा है। इस बढ़ी क्षमता के साथ दुनिया भर में भारत के रक्षा उद्योग ने डिजाइन और विकास के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया है।
100 कंपनियां कर रहीं रक्षा उत्पादों का निर्यात
वर्तमान में 100 कंपनियां रक्षा उत्पादों का निर्यात कर रही हैं। वर्तमान में डिफेंस प्रोडक्टर्स का एक्सपोर्ट करने वाली 100 कंपनियों के साथ दुनिया भर में डिजाइन और विकास की अपनी क्षमता दिखाई है। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि बढ़ता रक्षा निर्यात तो अपनी जगह है ही, एयरो इंडिया 2023 में दुनिया के 104 देशों की भागीदारी हमारी रक्षा निर्माण क्षमताओं का प्रमाण है।
निर्यात में लगभग 70 फीसदी हिस्सेदारी निजी क्षेत्र की
देश रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ रहा है और निर्यात में तो ऊंची छलांग लगा रहा है। निर्यात में लगभग 70 फीसदी हिस्सेदारी निजी क्षेत्र की है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां बाकी 30 फीसदी निर्यात कर रही हैं।
रक्षा उत्पादन का मूल्य 1 लाख करोड़ के पार
सरकार ने बताया कि सुधारों को लागू करने के बाद देश में रक्षा उत्पादन का मूल्य पहली बार एक लाख करोड़ रुपए को पार कर गया है। सरकार ने बताया कि 2021-22 में रक्षा उत्पादन का मूल्य 95,000 करोड़ रुपए था जो कि 2022-23 में बढ़कर 1,06,800 करोड़ रुपए हो गया। पांच साल पहले देश का रक्षा उत्पादन मूल्य 54,971 करोड़ रुपए था।
आयातक से निर्यातक हुआ भारत
भारत अब न सिर्फ निर्यात के साथ बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को भारत लाने का प्रयास कर रहा है, बल्कि घरेलू खरीद में भी विदेशी निर्भरता में कमी देखी गई है। विदेशी स्रोतों से रक्षा खरीद पर खर्च 2018-19 में कुल व्यय के 46 प्रतिशत से घटकर दिसंबर, 2022 में 36.7 प्रतिशत हो गया है। भारत, जो कभी मुख्य रूप से एक रक्षा उपकरण आयातक के रूप में जाना जाता था, अब निर्यातक के रूप में जाना जाने लगा है।
सरकार की कोशिशें ला रही हैं रंग
रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने पिछले 9 वर्षों में कई नीतिगत पहल की हैं और सुधार किए हैं। निर्यात प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है और ऑनलाइन निर्यात प्राधिकरण के साथ देरी को कम करने और व्यापार करने में आसानी लाने के साथ उद्योग के अनुकूल बनाया गया है। इसके अलावा, आत्मनिर्भर भारत पहल ने देश में रक्षा उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन, विकास और निर्माण को प्रोत्साहित करके देश की मदद की है, जिससे लंबे समय में आयात पर निर्भरता कम हुई है।
डोर्नियर से ब्रह्मोस मिसाइल तक का निर्यात कर रहा भारत
भारत से निर्यात किए जाने वाले अन्याधुनिक हथियारों में डोर्नियर -228, आर्टिलरी गन, ब्रह्मोस मिसाइल, पिनाका रॉकेट और लॉन्चर, रडार, सिमुलेटर, बख्तरबंद वाहन आदि जैसे विमान शामिल हैं। वैश्विक एलसीए-तेजस, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर, एयरक्राफ्ट कैरियर और एमआरओ गतिविधियों जैसे भारत के स्वदेशी उत्पादों की मांग भी बढ़ रही है।
लड़ाकू विमान से लेकर रॉकेट तक बन रहे देश में
भारत इन दिनों लड़ाकू विमानों, हल्के हेलिकॉप्टरों, युद्धपोतों, टैंक्स, रॉकेट एवं अन्य रक्षा उपकरणों का उत्पादन कर रहा है। वैश्विक स्थितियों को देखते हुए एवं रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए भारत लगातार रक्षा सुधार की दिशा में आगे बढ़ रहा है। रक्षा उपकरणों एवं हथियारों के निर्माण में उसने निजी क्षेत्रों को शामिल किया है। सेना विदेश की जगह देश में बने रक्षा उपकरणों, हथियारों एवं कल-पुर्जों की खरीदारी कर रही है। रक्षा उत्पादन में प्रत्यक्ष विदेश निवेश 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 फीसदी किया गया है।
भारतीय हथियार खरीदने में कई देशों की दिलचस्पी
सरकार का लक्ष्य 2024-25 में रक्षा उत्पादन का मूल्य बढ़ाकर 1,75,000 करोड़ रुपए करने की है। विगत दशकों तक भारत की पहचान एक बड़े हथियार आयातक देश के रूप में रही है लेकिन अब वह दुनिया के शीर्ष 25 हथियार निर्यातक देशों में शामिल हो गया है। भारतीय हथियारों एवं मिसाइलों को खरीदारी के लिए कई देश सामने आए हैं। फिलिपींस ने भारत की ब्रह्मोस मिसाइल खरीदी है। इसके अलावा कई अन्य देश भी यह मिसाइल खरीदना चाहते हैं। हिंदुस्तान एयरोनॉक्स लिमिटेड का कहना है कि अर्जेंटीना भारत से 15 और मिस्र 20 तेजस विमान खरीदना चाहता है।
आत्मनिर्भर भारत की झलक
मोदी सरकार लगातार रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयासरत है। घरेलू उद्योगों को मजबूती देने के लिए कई रक्षा उपकरणों का आयात भी प्रतिबंधित किया गया है। अब आंकड़े इन प्रयासों की सफलता का प्रमाण दे रहे हैं। रक्षा खरीद पर होने वाले खर्च में विदेशी स्त्रोत की हिस्सेदारी भी गिरी है। मेक इन इंडिया’ का मिशन का असर हर क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। खासतौर से रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने में बड़ा योगदान दिया है। इसका असर यह हुआ है कि बीते नौ वर्षों रक्षा उत्पादन में भारी इजाफा हुआ है और रक्षा आयात में कमी आई है।
रक्षा उत्पादों की लंबी है निर्यात की सूची
भारत के रक्षा उत्पादों की निर्यात की सूची लंबी है। डार्नियर-228 एयरक्राफ्ट, आर्टिलरी बंदूक, ब्रह्मोस मिसाइल, पिनाका राकेट एवं लांचर, रडार, सिमुलेटर और बख्तरबंद गाड़ियों समेत रक्षा क्षेत्र से जुड़े कई तरह के उपकरणों का निर्यात किया जा रहा है। भारत के तेजस विमान, हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टर और एयरक्राफ्ट कैरियर की मांग भी लगातार बढ़ रही है। मौजूदा समय में भारत डॉर्नियर-228, 155 मिमी एडवांस्ड टोएड आर्टिलरी गन्स, एटीएजी, ब्रह्मोस मिसाइल, आकाश मिसाइल सिस्टम, रडार, सिमुलेटर, माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल, आर्मर्ड व्हीकल, पिनाका रॉकेट और लॉन्चर, गोला-बारूद, थर्मल इमेजर्स, बॉडी आर्मर्स, सिस्टम के अलावा, लाइन रिप्लेसेबल यूनिट्स इत्यादि का निर्यात कर रहा है।
हथियारों और युद्ध तकनीक के बारे में आत्मनिर्भर बनाने पर बल
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को हथियारों और युद्ध तकनीक के बारे में आत्मनिर्भर होने की जरूरत पर बल दिया है। ताकि भारत भविष्य में आने वाली जंग जैसी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हो सके। इसके लिए कई अहम निर्णय लिए गए हैं। रक्षा मंत्रालय ने अब तक 200 से अधिक रक्षा उपकरणों की सूची जारी की, जिन्हें अब विदेश से नहीं खरीदा जाएगा। इसके लिए देश में ही सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में रक्षा अनुसंधान, डिजाइन और विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है।
हथियार बनाने के लिए 494 करोड़ रुपये का विदेशी निवेश
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत हर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ रहा है। वहीं भारत को लेकर दुनिया का दृष्टिकोण भी काफी आशावादी है। इसी का परिणाम है कि रक्षा क्षेत्र में तेजी से विदेशी निवेश हो रहा है। रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने सोमवार (25 जुलाई, 2022) को लोकसभा में बताया कि 2020 में संशोधित एफडीआई नीति पर अधिसूचना जारी होने के बाद से रक्षा क्षेत्र में लगभग 494 करोड़ रुपये का निवेश प्राप्त हुआ है।
निवेश को आकर्षित करने के लिए कई नीतिगत सुधार
संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए रक्षा राज्य मंत्री ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार ने घरेलू रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय किए हैं। 2020 में सरकार ने रक्षा क्षेत्र में स्वचालित मार्ग से एफडीआई की सीमा को 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत और सरकारी मार्ग से 100 प्रतिशत तक बढ़ाने की घोषणा की थी। रक्षा उत्पादन विभाग (डीडीपी) ने निवेश को आकर्षित करने के लिए कई नीतिगत सुधार किए हैं। इससे आधुनिक प्रौद्योगिकी की पहुंच बनने की संभावना बढ़ी है।
358 निजी कंपनियों को 584 रक्षा लाइसेंस जारी
भट्ट ने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि सरकार ने विनिर्माण इकाइयों की स्थापना के लिए निजी कंपनियों को लाइसेंस जारी कर रही है। रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने 358 निजी कंपनियों को विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने की खातिर 584 रक्षा लाइसेंस जारी किए हैं। इनमें हथियार निर्माण के लिए 107 लाइसेंस शामिल हैं।
2014 के बाद रक्षा क्षेत्र में 3,343 करोड़ रुपये का FDI
इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 28 मार्च, 2022 को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि वर्ष 2014 से रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रूप में कुल 3,343 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। उन्होंने कहा था कि वर्ष 2001-2014 की अवधि के दौरान, लगभग 1,382 करोड़ रुपये का कुल एफडीआई प्रवाह दर्ज किया गया था और वर्ष 2014 से अब तक लगभग 3,343 करोड़ रुपये का कुल एफडीआई हासिल किया गया है।
दो डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का निर्माण जारी
गौरतलब है कि बजट 2018-19 में सरकार ने रक्षा क्षेत्र की मजबूती के लिए दो डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का ऐलान किया था। पहला डिफेंस कॉरिडोर उत्तर प्रदेश में और दूसरा कॉरिडोर तमिलनाडु में बनाया जा रहा है। इस कॉरिडोर की मदद से सरकार डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना चाहती है। सरकार की योजना इस कॉरिडोर की मदद से वित्त वर्ष 2024-25 तक दोनों राज्यों में 10-10 हजार करोड़ के निवेश को आकर्षित करने को है।
मोदी सरकार द्वारा स्वदेशी कंपनियों को बढ़ावा
मोदी सरकार के नीतिगत फैसले और प्रोत्साहन की वजह से 14 रक्षा तकनीकों को स्वदेशी स्टार्टअप कंपनियों द्वारा बनाया जा रहा है, उसमें एमसीडी ग्लैंड्स शामिल है। इसे स्वीडन की रोक्सटैक से आयात किया जा रहा था, जिसे फरीदाबाद की मैसर्स वालमैक्स ने बनाना शुरू कर दिया है। इसी प्रकार ब्रिज विंडो ग्लास पहले स्पेन की सेंट गोबैन कंपनी से आयात किया जाता था, लेकिन जयपुर के एक स्टार्टअप मैसर्स जीत एंड जीत इसका विकास और निर्माण कर रहा है। इसके अलावा जर्मनी की एक कंपनी से सीकेड्स को लासर्न एंड टूब्रो बेंगलुरु और आयुध कारखाने डीआरडीई ग्वालियर ने तैयार किया है। मुंबई की कंपनी मैसर्स जेम्स वाल्कर ने फ्रांस से आयातित दो तकनीकों को तैयार किया है।
आयात होने वाले रक्षा उपकरणों का भारत में निर्माण
समुद्री पनडुब्बियों में इस्तेमाल होने वाली बैटरी लोडिंग ट्राली एक बहुतायत से इस्तेमाल होने वाला उपकरण है। इसके मैसर्स नेवल ग्रुप फ्रांस से आयात किया जाता था, जिसे अब हैदराबाद की स्टार्टअप कंपनी एसईसी इंडस्ट्रीज द्वारा तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा पनडुब्बियों में इस्तेमाल होने वाले वातानुकूलन संयंत्र का आयात मैसर्स सनोरी फ्रांस से हो रहा था, जिसे कारद स्थित श्री रेफ्रीजरेशन ने तैयार कर लिया है। इसी प्रकार वेंटीलेसन वालव्स का आयात भी ब्रिटेन से किया जा रहा था, जिसका निर्माण अहमदाबाद की कंपनी मैसर्स चामुंडा वालव्स द्वारा किया जा रहा है। रिमोट कंट्रोल वालव्स का आयात ब्रिटेन की कंपनी थामपसान से किया जा रहा था, जिसका निर्माण पुणे की कंपनी मैसर्स डेलवाल ने शुरू कर दिया है।
आत्मनिर्भरता में सहायक बनीं स्टार्टअप कंपनियां
आज भारत की स्टार्टअप कंपनियां रक्षा क्षेत्र की आत्मनिर्भरता में अहम भूमिका निभा रही है। विदेशों से आयात की जाने वाली रक्षा तकनीकों को स्वदेशी स्टार्टअप कंपनियां अब तेजी से तैयार करने लगी हैं। रक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक साल के दौरान 14 ऐसी महत्वपूर्ण रक्षा तकनीकों को भारत में तैयार करने में सफलता मिली है, जिन्हें अभी तक विदेशों से आयात किया जा रहा था। इनके देश में ही निर्माण का रास्ता साफ होने से इन्हें आयात करने की बाध्यता खत्म हो गई है।
आयात में कमी से विदेशी मुद्रा की बचत, रोजगार सृजन
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक रक्षा तकनीकों के देश में निर्माण होने से इनके आयात में 40-60 प्रतिशत तक की कमी आने का अनुमान है। दूसरे, इससे हर साल भारी मात्रा में विदेश मुद्रा की बचत होगी। साथ ही रोजगार सृजित होंगे। रक्षा तकनीकों के देश में निर्माण होने से रक्षा क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बनेगा। भारत अपने रक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता की तरफ अग्रसर होने के साथ ही बड़े निर्यातक के रूप में उभर रहा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत अब रक्षा उत्पादों के निर्यात करने वाले शीर्ष 25 देशों की सूची में शामिल हो गया है। भारत ने मिसाइल और अन्य रक्षा उपकरणों के निर्यात के लिए कई देशों से समझौता किया है।
सैन्य हथियार बनाने वाली 3 भारतीय कंपनियां दुनिया की टॉप 100 में शामिल
सैन्य हथियार बनाने में भारत तेजी से आत्मनिर्भर बन रहा है। आज दुनिया भर में मेक इन इंडिया का दबदबा बढ़ा है। सैन्य उपकरण बनाने वाली दुनिया की टॉप 100 कंपनियों में 3 भारतीय कंपनियां शामिल हैं। स्वीडिश थिंक-टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 के दौरान जहां हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (42वें स्थान पर) और भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (66वें स्थान पर) की हथियारों की बिक्री में क्रमश: 1.5 प्रतिशत और 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, वहीं इंडियन ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज (60वें स्थान पर) की हथियारों की बिक्री में 0.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय कंपनियों की कुल हथियारों की बिक्री 6.5 बिलियन डॉलर (लगभग 48,750 करोड़ रुपये) रही, जो 2019 की तुलना में 2020 में 1.7 प्रतिशत अधिक थी।
स्वाति वेपन लोकेटिंग रडार का अर्मेनिया को निर्यात
प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों का असर है कि अब तक हथियारों का आयात करने वाला भारत अब हथियारों का निर्यात कर रहा है। भारत ने रूस और पौलेंड की पछाड़ते हुए अर्मेनिया के साथ रक्षा सौदा किया। इस करार में भारत रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित और भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा निर्मित 40 मिलियन डॉलर (करीब 280 करोड़ रुपये) का हथियार अर्मेनिया को बेच रहा है। इसमें ‘स्वाती वेपन लोकेटिंग रडार’ सिस्टम शामिल है। इन हथियारों का निर्माण ‘मेक इन इंडिया’ के तहत किया गया है। स्वाति वेपन लोकेटिंग रडार 50 किमी के रेंज में दुश्मन के हथियारों जैसे मोर्टार, शेल और रॉकेट तेज, स्वचालित और सटीक तरीके से पता लगा लेता है।
भारत में बनी बुलेटप्रूफ जैकेट 100 से ज्यादा देशों को निर्यात
रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने का ही नतीजा है कि आज दुनिया भर में भारत में बनी बुलेटप्रूफ जैकेट की मांग है। भारत ने 100 से ज्यादा देशों को राष्ट्रीय मानक की बुलेटप्रूफ जैकेट का निर्यात शुरू कर रहा है। भारत की मानक संस्था ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) के मुताबिक, बुलेटप्रूफ जैकेट खरीददारों में कई यूरोपीय देश भी शामिल हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी के बाद भारत चौथा देश है, जो राष्ट्रीय मानकों पर ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की बुलेटप्रूफ जैकेट बनाता है। भारत में बनी बुलेटप्रूफ जैकेट की खूबी है कि ये 360 डिग्री सुरक्षा के लिए जानी जाती है।
लाइटवेट एंटी-सबमरीन टॉरपीडो म्यांमार को किया गया निर्यात
भारत ने स्वदेश निर्मित लाइटवेट एंटी-सबमरीन शायना टॉरपीडो को म्यांमार को निर्यात किया। एडवांस्ड लाइट टॉरपीडो (TAL) शायना भारत की पहली घरेलू रूप से निर्मित लाइटवेट एंटी-सबमरीन टॉरपीडो है। इसे DRDO के नौसेना विज्ञान और तकनीकी प्रयोगशाला द्वारा विकसित किया गया है और इस टॉरपीडो का निर्माण भारत डायनेमिक्स लिमिटेड ने किया है। भारतीय हथियार उद्योग के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। टीएएल शायना टॉरपीडो के पहले बैच को 37.9 मिलियन डॉलर के निर्यात सौदे के हिस्से के रूप में म्यांमार भेजा गया, जिस पर 2017 में हस्ताक्षर किए गए थे।
रक्षा क्षेत्र में स्टार्टअप शुरू करने पर जोर
अगस्त 2018 में बेंगलुरु में डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज का आयोजन किया गया था, जिसमें मोदी सरकार ने लेजर हथियारों और 4G लैन (लोकल एरिया नेटवर्क) जैसी 11 तकनीकी चुनौतियों को स्टार्टअप शुरू करनेवाले उद्यमियों के सामने रखा। इन चुनौतियों में ज्यादातर ऐसी हैं, जो सुरक्षा बलों से जुड़ी हैं। सरकार ने देश में स्टार्टअप को शुरू करने और उसे आगे बढ़ाने में सहयोग देने वाली केंद्र सरकार की नीति की घोषणा करते हुए उद्यमियों को रक्षा क्षेत्र में निवेश करने और इसमें हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया।
आइए देखते हैं मेक इन इंडिया के तहत निर्मित रक्षा उपकरण किस तरह सेना की ताकत बढ़ा रहे हैं…
डॉर्नियर सर्विलांस एयरक्राफ्ट से बढ़ी नौसेना की ताकत
भारतीय नौसेना में नया डॉर्नियर -228 स्क्वाड्रन INAS 313 शामिल किया गया। नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने जुलाई 2019 में मीनाम्बक्कम में पांचवें डॉर्नियर एयरक्राफ्ट स्वैड्रॉन को भारतीय नौसेना को सौंपा। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा स्वदेशी रूप से बनाए गए इन विमानों को आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया है। मल्टीरोल सर्विलांस डॉर्नियर एयरक्राफ्ट में आधुनिक सेंसर्स और उपकरण लगाए गए हैं, जिससे दुश्मन पर कड़ी नजर रखी जा सकेगी। यह बचाव और खोजी अभियानों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इससे नौसेना की निगरानी क्षमता काफी बढ़ गई है। डॉर्नियर विमान का इस्तेमाल पूर्वी समुद्री सीमा पर निगरानी के लिए किया जाएगा।
‘मेक इन इंडिया’ के तहत तैयार आईएनएस ‘करंज’
मेक इन इंडिया के तहत निर्मित स्कॉर्पीन श्रेणी की तीसरी पनडुब्बी आईएनएस ‘करंज’ को 31 जनवरी, 2018 को नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया था। ‘करंज’ एक स्वदेशी पनडुब्बी है। करंज पनडुब्बी कई आधुनिक फीचर्स से लैस है और दुश्मनों को चकमा देकर सटीक निशाना लगा सकती है। इसके साथ ही ‘करंज’ टॉरपीडो और एंटी शिप मिसाइलों से हमले भी कर सकती है। करंज पनडुब्बी में कई और खूबियां भी हैं। यह पनडुब्बी रडार की पकड़ में नहीं आ सकती। यह जमीन पर हमला करने में सक्षम है, इसमें ऑक्सीजन बनाने की भी क्षमता है, यही वजह है कि करंज पनडुब्बी लंबे समय तक पानी में रह सकती है। युद्ध की स्थिति में करंज पनडुब्बी हर तरह के हालात से सुरक्षित और बड़ी आसानी से दुश्मनों को चकमा देकर बाहर निकल सकती है।
पीएम मोदी ने लांच की आईएनएस ‘कलवरी’
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत में बनी स्कॉर्पीन श्रेणी की पहली पनडुब्बी आईएनएस कलवरी को 14 दिसंबर, 2017 को लांच किया था। वेस्टर्न नेवी कमांड में आयोजित एक कार्यक्रम में पीएम मोदी की मौजूदगी में इस पनडुब्बी को नौसेना में कमीशंड किया गया था। इस पनडुब्बी ने केवल नौसेना की ताकत को अलग तरीके से परिभाषित किया, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के लिए भी इसे एक मील का पत्थर माना गया। कलवरी पनडुब्बी को फ्रांस की एक कंपनी ने डिजाइन किया था, तो वहीं मेक इन इंडिया के तहत इसे मुंबई के मझगांव डॉकयॉर्ड में तैयार किया गया। आईएनएस कलवरी के बाद 12 जनवरी, 2019 को स्कॉर्पीन श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी आईएनएस खांदेरी को लांच किया गया था। कलवरी और खंडेरी पनडुब्बियां भी आधुनिक फीचर्स से लैस हैं। यह दुश्मन की नजरों से बचकर सटीक निशाना लगाने में सक्षम हैं, साथ ही टॉरपीडो और एंटी शिप मिसाइलों से हमले भी कर सकती हैं।
पूरी तरह देश में निर्मित धनुष तोप सेना में शामिल
अक्टूबर 2019 में भारतीय सेना ने संभावित खतरों को देखते हुए बोफोर्स से भी खतरनाक तोप धनुष को अपने आर्टिलरी विंग में शामिल कर लिया। स्वदेश में निर्मित इस तोप की मारक क्षमता इतनी खतरनाक है कि 50 किलोमीटर की दूरी पर बैठा दुश्मन पलक झपकते ही खत्म हो जाएगा। यह 155 एमएम और 45 कैलिबर की आर्टिलरी गन है। धनुष में इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम को जोड़ा गया है। इसमें आटो लेइंग सुविधा है। ऑनबोर्ड बैलिस्टिक गणना और दिन और रात में सीधी फायरिंग की आधुनिकतम क्षमता से लैस है। इसमें लगी सेल्फ प्रोपल्शन यूनिट पहाड़ी क्षेत्रों में धनुष को आसानी से पहुंचाने में सक्षम है। धनुष के ऊपर मौसम का कोई असर नहीं होता। यह -50 डिग्री सेल्सियस से लेकर 52 डिग्री की भीषण गर्मी में भी 24 घंटे काम कर सकती है। सेल्फ प्रोपेल्ड मोड में भी ये गन रेगिस्तान और हजारों मीटर ऊंचे खड़े पहाड़ों पर चढ़ सकती है।
K9 वज्र और M777 होवित्जर तोपें सेना में शामिल
K9 वज्र और M777 होवित्जर तोपों को 9 नवंबर 2018 को सेना में शामिल किया गया। इससे सेना की ताकत और बढ़ गई है। के9 वज्र तोप की रेंज 28-38 किमी है और तीन मिनट में 15 गोले दाग सकती है। यह पहली ऐसी तोप है जिसे भारतीय प्राइवेट सेक्टर ने बनाया है। इसके साथ एम 777 होवित्जर तोप 30 किमी तक वार कर सकती है। इसे हेलिकॉप्टर या प्लेन से आवश्यकतानुसार एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। 9 नवंबर को देवलाली में आयोजित समारोह में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत समेत कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारी भी शामिल हुए।
इसके अलावा भी कई ऐसी रक्षा परियोजनाएं हैं जिनमें पीएम मोदी की पहल पर मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया जा रहा है। डालते हैं एक नजर-
अपाचे जैसा हेलिकॉप्टर बनाने के प्रोजेक्ट पर काम जारी
मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ योजना के तहत भारत में अपाचे जैसा हेलिकॉप्टर के विनिर्माण का रास्ता खुला है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने भारतीय सेना के लिए युद्धक हेलिकॉप्टर बनाने के मेगा प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है। एचएएल के मुताबिक 10 से 12 टन के ये हेलिकॉप्टर दुनिया के बेहतरीन हेलिकॉप्टर्स की तरह आधुनिक और शक्तिशाली होंगे। एचएएल के प्रमुख आर माधवन ने कहा कि जमीनी स्तर पर काम शुरू किया जा चुका है और 2027 तक इन्हें तैयार किया जाएगा। इस मेगा प्रोजेक्ट का लक्ष्य आने वाले समय में सेना के तीनों अंगों के लिए 4 लाख करोड़ रुपये के सैन्य हेलिकॉप्टर्स के आयात को रोकना है।
पनडुब्बी बढ़ाएगी नौसेना की ताकत
मेक इन इंडिया के तहत नौसेना के लिए भारत में ही करीब 40 हजार करोड़ रुपये की लागत से छह पी-75 (आई) पनडुब्बियां बनाई जा रही है। पनडुब्बियों के निर्माण की दिशा में स्वदेशी डिजाइन और निर्माण की क्षमता विकसित करने के लिए नौसेना ने 20 जुलाई, 2021 को संभावित रणनीतिक भागीदारों को छांटने के लिए कॉन्ट्रैक्ट जारी कर दिया। रणनीतिक भागीदारों को मूल उपकरण विनिर्माताओं के साथ मिलकर देश में इन पनडुब्बियों के निर्माण का संयंत्र लगाने को कहा गया है। इस कदम का मकसद देश को पनडुब्बियों के डिजाइन और उत्पादन का वैश्विक केंद्र बनाना है।
मेक इन इंडिया के तहत क्लाश्निकोव राइफल
मेक इन इंडिया के तहत अब दुनिया के सबसे घातक हथियारों में से एक क्लाश्निकोव राइफल एके 103 भारत में बनाए जाएंगे। असास्ट राइफॉल्स एके 47 दुनिया की सबसे कामयाब राइफल है। भारत और रूसी हथियार निर्माता कंपनी क्लाश्निकोव मिलकर एके 47 का उन्नत संस्करण एके 103 राइफल बनाएंगे। सेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इसे भारत में बनाया जाएगा। इसे भारत से निर्यात भी किया जा सकता है।
भारत में फाइटर जेट एफ-16 के उपकरण का निर्माण
पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडिया’ परवान चढ़ रहा है। इसी योजना के तहत भारत में फाइटर जेट एफ-16 के विनिर्माण का रास्ता खुला। सुरक्षा और एयरो स्पेस काम करने वाली अमेरिकी कंपनी लॉकहिड मार्टिन ने इसके लिए भारतीय कंपनी टाटा एडवांस सिस्टम लिमिटेड (TASL) के साथ समझौता किया। इसके तहत भारत में फाइटर जेट F-16 के विंग का निर्माण का समझौता किया गया। पीएम मोदी का सपना भारत को आने वाले कुछ सालों में दुनिया के बड़े सैन्य उपकरण बनाने वाले देशों में शामिल करना है। पीएम मोदी के मेक इन इंडिया की पहल से देश इस दिशा में कदम मजबूती से बढ़ा रहा है।
रोबोटिक ड्रोन ‘आईरोवटुना’ का उत्पादन
केरल के कोच्चि स्थित फर्म ने रिमोट कंट्रोल की मदद से नियंत्रित किया जाने वाला एक ड्रोन विकसित किया, जिसे ‘आईरोवटुना’ नाम दिया गया। इसका व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए उत्पादन किया जा रहा है। कंपनी ने अपना पहला रोबोट डीआरडीओ के नेवल फिजिकल ओसियनोग्राफी लेबोरेटरी (एनपीओएल) को सौंपा। पानी के भीतर काम करने में सक्षम यह रोबोटिक ड्रोन पानी के भीतर जहाजों और अन्य संरचनाओं का समय पर वीडियो भेजने सक्षम है।