Home चुनावी हलचल HT Exclusive: अपमान अब आसानी से पचा लेता हूं- प्रधानमंत्री मोदी

HT Exclusive: अपमान अब आसानी से पचा लेता हूं- प्रधानमंत्री मोदी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव प्रचार की व्यस्तता के बीच हिन्दुस्तान टाइम्स के शिशिर गुप्ता और आर. सुकुमार के साथ विशेष बातचीत की। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज के युवाओं की प्राथमिकता जाति या वंशवाद की राजनीति नहीं बल्कि विकास का एजेंडा है। पांच साल पहले सरकार का नेतृत्व संभालने के बाद से आए बदलाव के बारे में पूछे जाने पर 68 वर्षीय मोदी ने कहा, मेरी पाचन शक्ति मजबूत हो गई है। अब मैं अपमान को आसानी से पचा लेता हूं। प्रधानमंत्री मोदी ने चुनावी मुद्दों के साथ देश के राजनीतिक परिदृश्य पर हिन्दुस्तान टाइम्स के साथ विस्तार से बातचीत की। आप भी पढ़िए-

सवाल: क्या आपको सत्ता में फिर वापसी का भरोसा है?
जवाब: बिल्कुल, पहले दिन 26 मई 2014 से

सवाल: चुनाव में बड़े मुद्दे क्या हैं?
जवाब: इस बार चुनाव में तीन मुद्दे हैं। पहला विकास, दूसरा समावेशी विकास और तीसरा सभी दिशाओं में विकास। वर्ष 2022 में भारत की आजादी के 75 साल पूरे होंगे। यह हम पर है कि भारत को ऐसा बनाए जिसपर हमारे स्वतंत्रता सेनानी गौरवान्वित हों। वर्ष 2019 का चुनाव खास है क्योंकि पहली बार वो लोग भी मतदान कर रहे हैं जो 21वीं शताब्दी में पैदा हुए हैं। इन युवाओं पर इतिहास का भार नहीं हैं वे बेहतर भविष्य चाहते हैं। ये युवा वंशावदियों द्वारा अपमानित नहीं होना चाहते। वे ऐसा देश चाहते हैं जहां योग्यता को मान्यता मिले। वे जाति आधारित राजनीतिक स्कूल नहीं चाहते। वे नया विकास एजेंडा चाहते हैं। इसलिए इस चुनाव में लोग उस नेता के लिए वोट करेंगे जिन्हें वे मानते हैं कि बेहतर देश का निर्माण कर सकता है और एक मजबूत समावेशी भारत की आधारशिला रख सकता है। लोग हमारे 60 महीने के कार्यकाल को देखेंगे और उन लोगों के काम से तुलना करेंगे जिन्हें 60 साल तक शासन करने का मौका मिला।

सवाल: क्या आप मानते हैं कि यह चुनाव केवल मोदी समर्थन और मोदी विरोध के नाम पर लड़ा जा रहा है?
जवाब: लोग ट्रैक रिकॉर्ड और पार्टियों की ओर से पेश विकास की परिकल्पना के आधार पर अपने विकल्पों का मूल्यांकन कर रहे हैं। मेरे लिए हमारा काम और विकास की परिकल्पना प्रमुख मुद्दा है। विपक्ष जहां प्रधानमंत्री के दावेदारों की कतार है, लेकिन दूरदृष्टि का अभाव है। उनकी योजना और एजेंडा मोदी विरोध, जाति और सांप्रदायिक राजनीति है। बाकी यह तय है कि लोग इस महामिलावटी गठबंधन को नकार देंगे।

सवाल: क्यों इस चुनाव के बारे में संदेश जा रहा है कि दोनों तरफ से ध्रुवीकरण किया जा रहा है?
जवाब: आपको समझना होगा कि हम यहां कक्षा के मॉनिटर का चुनाव नहीं करने जा रहे हैं। हम यह तय करने जा रहे हैं कि देश किस दिशा में जाएगा। हम 130 करोड़ भारतीयों का भविष्य तय करने जा रहे हैं। खासतौर पर 65 फीसदी उस आबादी का जिसकी उम्र 35 साल से कम है। बहुत कुछ दांव पर है। यह चुनाव विश्व में भारत के उदय के लिए अहम मोड़ साबित होगा। मैं खुश हूं कि इस चुनाव में दोनों पक्षों का अंतर साफ रूप से सामने आ गया है। अब लोग देश को देखने के दो नजरियों में से स्पष्ट रूप से चुनाव कर सकेंगे। वे जो कहते हैं कि परिवार पहले है या वे जो कहते हैं भारत पहले। वे जो आतंकी हमलों पर प्रेम पत्र भेजते हैं या वे जो आतंकियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देते हैं। वे जो टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथ खड़े होते हैं या उनके साथ जो अपने सैन्य बलों के साथ खड़े हैं। वे जो देशद्रोह के दोषियों को बचाने का प्रयास करते हैं या वे जो देश की एकता की रक्षा के लिए जीने-मरने को तैयार हैं। वे जो रक्षा सौदों में दलाली कर भारत की सुरक्षा को कमजोर करते हैं या वो जो साबित करते हैं कि अंतरिक्ष में भी भारत की ताकत को स्थापित करते हैं। वो जो घोटाले के बाद घोटाले की सुर्खियों में रहते हैं या वो जिन्होंने घोटाले की संस्कृति का अंत किया। वो जिन्होंने देश की पांच हजार की संस्कृति को दागदार करने का प्रयास किया या वो जो भारत के गौरवमयी इतिहास से सीख लेकर उज्ज्वल भविष्य बनाना चाहते हैं। चुनाव आसान और स्पष्ट है। इसलिए अगर चुनाव की बात करते हैं जहां दोनों पक्षों की पहचान विभिन्न मुद्दों पर उनके रुख रुख से हो तो मैं कहूंगा कि ध्रुवीकरण अच्छी चीज है।

सवाल: इस चुनाव में लगता है कि भाषण का स्तर गिर रहा है। ममता बनर्जी ने कहा कि आपके हाथ खून से रंगे है। आपने राजीव गांधी (कहा भ्रष्टाचारी नंबर-1) पर टिप्पणी की। कांग्रेस ने भी इसी तरह की प्रतिक्रिया दी। यहक्या हो रहा है?
जवाब: मैं आपको पूरी सूची दे सकता हूं कि परिवार सहित (गांधी-नेहरू)कांग्रेस के अहम लोगों ने और उनके करीबियों ने मुझे क्या-क्या कहा। मुझे प्रियंका गांधी ने दुर्योधन कहा। संजय निरुपम ने औरंगजेब कहा। दीनदयाल भैरवा ने हिंदू आतंकी कहा। पहले भी मुझे विभिन्न नाम दिए गए। 2016 में राहुल गांधी ने मुझे सैनिकों के खून का दलाल कहा था। 2007 में सोनिया गांधी ने मुझे मौत का सौदागर कहा था। ऐसे और वाकये हैं। बहुत लोगों ने मौजूदा प्रधानमंत्री को निशाना बनाया। ऐसे में जब हम पद के सम्मान की बात करते हैं, तो यही सम्मान सभी का होना चाहिए। कर्नाटक में देवेगौड़ा जी के लिए होना चाहिए। यह उनकी सरकार के लिए (पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह) होना चाहिए जिसके अध्यादेश को सार्वजनिक रूप से फाड़ा गया। अगर आप पद के सम्मान की बात करते हैं तो फिर आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अजयइया जी, एक दलित जिसका अपमान हैदराबाद एयरपोर्ट (राजीव गांधी द्वारा) पर किया गया। अगर अब कोई शिकायत करता है तो उसे पूरी पृष्ठभूमि को भी देखना चाहिए। जहां तक ममता जी की बात है तो एक पत्रकार के तौर पर आप फैसला कर सकते हैं कि आप उनके बात करने के लहजे और भाषा से सहज है या नहीं। आप बंगाल के पत्रकारों से पूछिए क्या इस बयान से राज्य का कुछ होगा।

सवाल: देश के कई हिस्सों में मुकाबला ‘प्रेसिडेंशियल’ चुनाव की तरह लगता है और इसमें एक बड़ा मुद्दा मोदी प्रभाव है। ऐसा नहीं लगता कि यह संसदीय व्यवस्था का महत्व कमतर करेगा?
जवाब: यह पूरा चुनाव प्रदर्शन पर है न कि धारणा पर। प्रदर्शन से अभिप्राय भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं से है और स्थानीय सांसद इन योजनाओं को जमीन स्तर पर उतारने में शामिल होते हैं। ऐसे में इस चुनाव में बस यह कह देना कि केवल नाम काम कर रहा है गलत है। नाम भी चल रहा है और काम भी चल रहा है। एक ऐसी विचारधारा है जो कहती है कि भाजपा को 180 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी। इसके प्रोफेसर और शिक्षक इसपर पाठ्यक्रम चला रहे हैं और डायरी बना रहे हैं। प्रत्येक वर्ष छात्र नए होते हैं पर शिक्षक और उनके विचार वहीं रहते हैं। दुनिया बदल जाती है पर वह उसी पाठ्यक्रम से पढ़ाते हैं। इसी विचार के लोगों ने 2014 में भी यही कहा था।

सवाल: बेशक, पर क्या इससे परिस्थितियां जटिल नहीं होंगी? उदाहरण के लिए अगली बार अगर हमला होता है तो क्या इससे हमपर कार्रवाई करने का दबाव नहीं बढ़ेगा?
जवाब: तो क्या दबाव के डर से कुछ न करें?

सवाल: सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
जवाब: हमारे पास बहुत सारे अवसर हैं, अगर हम उनसे चूकते हैं तो यह गंभीर होगा। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम एक भी मौका न छोड़ें।

सवाल: क्या अंतर पाते हैं 2014 के मोदी में और 2019 के मोदी में?
जवाब: अपमान सहने की पाचन शक्ति बढ़ गई है।

सवाल: गठबंधान पर क्या राय है? आप भी गठबंधन में हैं और विपक्ष को महामिलावटी कहते है।
जवाब: अटल बिहारी वाजपेयी का एक बड़ा योगदान दो-पक्षीय राजनीति है। एक पक्ष भाजपा के नेतृत्व में और दूसरा कांग्रेस के नेतृत्व में। हमारा मॉडल केंद्र में पूर्ण बहुमत वाली सरकार और क्षेत्रीय आकांक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करने वाला है। इसका सबूत हमारा पांच साल का कार्यकाल है। वहीं कांग्रेस की गठबंधन के प्रति दूसरी समझ है। चौधरी चरण सिंह को पीएम बनाओ और फिर जमीन खींच लो। चंद्रशेखरजी को पीएम बनाओ फिर सरकार गिरा दो। गुजराल को पीएम बनाओ और फिर सरकार गिरा दो।

सौजन्य- हिन्दुस्तान टाइम्स

 

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