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कोरोना काल में पीएम मोदी के फैसले ने बचाई करोड़ों की जान, फाइजर की वैक्सीन निकली फर्जी, वैक्सीन खरीदने का दबाव बनाने वाले राहुल, केजरीवाल हुए बेनकाब

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कोरोना काल में दुनियाभर में जब त्राहिमाम मचा हुआ था। कोरोना की पहली वैक्सीन बनाने वाली अमेरिका की बड़ी फार्मा कंपनी फाइजर पूरे विश्व में अपना वैक्सीन बेचने के प्रयास कर रही थी और आज उसके टीके दुनिया भर के 181 देशों में लग रहे हैं। फाइजर ने भारत को भी वैक्सीन बेचने के तमाम प्रयास किए थे लेकिन उसकी कुछ शर्तें भी थी, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानने से इनकार कर दिया था। उस वक्त मोदी सरकार के वैक्सीन नहीं खरीदने के फैसले पर कांग्रेस के नेताओं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और लेफ्ट लिबरल गैंग के सदस्यों ने सवाल उठाए थे। लेकिन अब यूरोप से ऐसी ख़बर आई है, जिसे सुनकर आप दंग रह जाएंगे और यह कह उठेंगे कि पीएम मोदी ने कितना दूरदर्शी फैसला किया था। फाइजर कंपनी के एक अधिकारी ने यूरोप में वहां की यूरोपियन यूनियन की संसद के सामने ये कबूल किया है कि जब उनकी वैक्सीन को जब बाजार में उतारा गया था तो उन्हें भी ये पता नहीं था कि ये वैक्सीन कोरोना वायरस को फैलने से रोकने में कितनी कारगर है। यानी वे फर्जी वैक्सीन को बेच रहे थे। फाइजर की वैक्सीन के साइड इफेक्ट होने की खबरें भी लगातार आती रही हैं कि इसकी वजह से स्ट्रोक्स और हार्ट अटैक के मामले सामने आए हैं। अब यह भी कहा जा रहा है कि अमेरिका में वैक्सीन लगने के बाद भी इतने लोगों की मौत के पीछे यही फर्जी वैक्सीन है। अब यह समझ में आ रहा है कि पीएम मोदी के विदेशी टीके को ना कहने और स्वदेशी टीकों के निर्माण जैसे फैसले कितने अहम थे जिससे भारत में करोड़ों लोगों की जान बची। बात यहीं खत्म नहीं होती बल्कि अब तो यह भी सवाल उठ रहा है कि उस समय कांग्रेस के नेताओं से लेकर अरविंद केजरीवाल और लेफ्ट लिबरल गैंग के सदस्य आखिर किसकी शह पर फाइजर के टीके की तरफदारी कर रहे थे और मोदी सरकार पर इसे खरीदने के लिए दबाव बना रहे थे। यह देश के हर नागरिक के लिए एक बड़ा सवाल है और इसकी तह में जाकर इसकी पड़ताल होनी चाहिए।

उस वक्त फाइजर जैसी कंपनियां भारत पर दबाव बना रही थी कि बिना ट्रायल के उनके वैक्सीन को मंजूरी दी जाय। राहुल गांधी, पी. चिदंबरम, अरविंद केजरीवाल जैसे नेता सरकार पर दबाव बना रहे थे कि विदेशी इंपोर्ट को इजाजत दी जाए। केजरीवाल तो दो कदम आगे बढ़कर इन कंपनियों से वैक्सीन खरीदने को लेकर बात भी कर ली थी लेकिन फाइजर ने कह दिया कि वो राज्यों से बात नहीं करेगी बल्कि सीधा केंद्र सरकार से बात करेगी। फाइजर को मंजूरी न मिलने के कारण अमेरिकी प्रशासन वैक्सीन के रॉ मटेरियल को भारत भेजने पर किस कदर अड़ंगा डाल रहा था, यह हम सबने देखा है।

फार्मा कंपनी फाइजर की एक वरिष्ठ कार्यकारी, Janine Small ने खुलासा किया है कि Pfizer Covid-19 mRNA vaccine का वायरस को फैलने से रोकने के लिए कभी टेस्ट किया ही नहीं गया था। सोमवार को यूरोपीय संघ की संसदीय सुनवाई के दौरान, डच संसद सदस्य रॉब रोस द्वारा पूछताछ के दौरान, अंतरराष्ट्रीय विकास बाजारों के फाइजर की अध्यक्ष जेनाइन स्मॉल ने यूरोपीय संसद के COVID-19 सलाहकार बोर्ड के सामने ये चौंकाने वाला खुलासा किया।

विदेशी शह पर हंगामा खड़ा करने वाले राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और भारत के लेफ्ट लिबरल गैंग और अर्बन नक्सलियों को और कितने सबूत चाहिए? अब तो फाइजर के अंतरराष्ट्रीय विकसित बाजारों (Pfizer’s president of international developed markets) की अध्यक्ष, जेनाइन स्मॉल ने भी स्वीकार किया है कि वैक्सीन को जनता के लिए जारी करने से पहले COVID के प्रसार को रोकने की क्षमता पर टीके का परीक्षण कभी नहीं किया गया था।

ट्विटर यूजर Bharat-Ek VishwaGuru ने लिखा- यह वैक्सीन धोखाधड़ी है। मैंने मार्च 2020 में अपने लेख में लिखा था, कोविड तीन प्राथमिक उद्देश्यों के साथ अमेरिका और चीन का जैव हथियार था। 1. फाइजर के नेतृत्व वाली फार्मा लॉबी के लिए पैसा कमाएं। 2. ट्रंप और मोदी को सत्ता से हटाओ। 3. दुनिया से जनसंख्या कम हो। उन्होंने लिखा कि कोविड का टीका पहले से ही तैयार कर लिया गया था। कोविड के प्रकोप से 3 साल पहले इसे बना लिया गया था। अगर पीएम मोदी की सरकार नहीं होती, तो महामारी से भारत में 6-10 करोड़ से अधिक लोगों की मौत हो जाती और बाकी लोग 1000 रुपये में टीके खरीदते और फिर उसके साइड इफेक्ट्स झेलते। आज हम देख रहे हैं फाइजर का टीका लेने वाले किन बीमारियों से जूझ रहे हैं।

एक तरफ फाइजर की अधिकारी ने स्वीकार किया है कि उनके COVID वैक्सीन का परीक्षण यह देखने के लिए नहीं किया गया था कि क्या यह कोविड का प्रसार रोक देगा। वहीं बिल गेट्स, एंथोनी फौसी, जो बाइडेन और कई अन्य लोग बार-बार कह रहे हैं कि यह कोविड प्रसार को रोकता है। अर्थात ये लोग एजेंडे के तहत फाइजर वैक्सीन का प्रचार कर रहे थे।

भगवान का शुक्र है कि पीएम मोदी ने यह सुनिश्चित किया कि फाइजर को भारत से बाहर रखा जाए। अब इससे बड़ा झूठ वो क्या बोलेंगे? जब उन्होंने प्रसार रोकने के संबंध में परीक्षण ही नहीं किया तो बड़ी संख्या में लोगों पर क्या प्रयोग किया गया? यानी लॉबी करके इस फर्जी वैक्सीन को बेचने की साजिश रची जा रही थी।

अब जब फाइजर वैक्सीन की हकीकत सबसे सामने आ चुकी है, हमें भारत के विपक्षी नेता राहुल गांधी को बेनकाब करने की जरूरत है, जिन्होंने कहा था कि फाइजर की शर्तों को स्वीकार नहीं करके, भारत सरकार गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार कर रही है और भारत को महामारी की ओर धकेल रही है। फाइजर की एक प्रमुख शर्त यह थी कि अगर वैक्सीन का दुष्प्रभाव होता है तो उन्हें कानूनी संरक्षण दिया जाए।

फाइजर ने भारत में राहुल गांधी और तथाकथित बुद्धिजीवियों को भुगतान किया ताकि मोदी सरकार पर फाइजर को भारत में अपना वैक्सीन बेचने की अनुमति देने का दबाव बनाया जा सके। हो सकता है आपको पसंद न आए, लेकिन आज हममें से ज्यादातर लोग इसीलिए जिंदा हैं और सांस ले रहे हैं क्योंकि मोदी सरकार अमेरिका और चीन की फार्मा लॉबी के सामने नहीं झुकी।

फाइजर कांड से अब बहुत कुछ साफ हो चुका है। फाइजर के लिए इको सिस्टम बनाने वाले सभी लोगों को देशद्रोही घोषित किया जाना चाहिए। हमारी जान बचाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी जी का धन्यवाद। भारत सरकार पर वैक्सीन खरीदने का दबाव बनाने के लिए राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और पी. चिदंबरम को इसके बदले कितना पैसा दिया गया होगा इसकी कल्पना ही की जा सकती है।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले साल कहा था, ‘‘प्रधानमंत्री को देश को बताना चाहिए कि कोविड का टीका बनाने की ओर अग्रसर इकाइयों में भारत सरकार किसका चुनाव करेगी और क्यों करेगी?’’ उन्होंने सवाल किया था, ‘‘पहले टीका किसको मिलेगा और इसके वितरण की रणनीति क्या है? क्या ‘पीएम केयर्स’ कोष का इस्तेमाल मुफ्त टीकाकरण के लिए होगा? कब तक सभी भारतीय नागरिकों को टीका लग जाएगा?’’ राहुल गांधी ने उस वक्त कहा था कि अमेरिकन कंपनी फाइजर ने कोरोना वायरस के लिए जो वैक्सीन बनायी है वह कोरोना से लड़ने के लिए 90 फीसदी तक कारगर है लेकिन अब सवाल है कि इसे देश के हर एक व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार के पास क्या रणनीति है। राहुल ने कहा था कि “भले ही फाइजर ने एक आशाजनक टीका बनाया है, लेकिन इसे हर भारतीय को उपलब्ध कराने के लिए लॉजिस्टिक्स पर काम करने की जरूरत है।” यहां लॉजिस्टिक्स की बात इसलिए हो रही है क्योंकि फाइजर के वैक्सीन को माइनस 70 डिग्री पर रखने की जरूरत थी वर्ना वह प्रभावी नहीं रहती। अब यह सोचने वाली बात है कि भारत जैसे देश में माइनस 70 डिग्री पर वैक्सीन गांव-गांव तक कैसे पहुंचती।

राहुल गांधी फाइजर के वैक्सीन की इतनी तरफदारी क्यों कर रहे थे ये समझ से परे है। यहां तक उन्होंने जुलाई में भी एक ट्वीट किया-  जुलाई आ गई, लेकिन वैक्सीन नहीं आई। जबकि जुलाई में ही राहुल गांधी खुद वैक्सीन लगवा चुके थे।  

कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने Covid वैक्सीन पर NDA की नीति पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था, हम ऑर्डर देने में देरी, भुगतान में देरी, फाइजर एंड मॉडर्ना को लाइसेंस न देने और अपर्याप्त उत्पादन और आपूर्ति के लिए कीमत चुका रहे हैं।

इतना ही नहीं, चिदंबरम ने यहां तक कहा था कि मोदी सरकार की सुरक्षा नीति की बदौलत हमारे पास अब 2 ही टीके हैं। फाइजर, मॉडर्ना और अन्य डब्ल्यूएचओ-अनुमोदित टीके किसी न किसी बहाने भारत से बाहर रखे गए हैं। यही कारण है कि हमारे पास 94 करोड़ वयस्क आबादी को 2 खुराक देने के लिए पर्याप्त टीके नहीं हैं।

अमेरिकी कम्पनी फाइजर की कोविड वैक्सीन भारत में बहुत चर्चा में रही थी। केजरीवाल और राहुल जैसे विपक्ष के बड़बोले भांड़ आये दिन मोदी जी को ट्विटर पर गालियां दे दबाव बना फाइजर कम्पनी की वैक्सीन खरीदने को बोल रही थी जो न केवल महंगी थी बल्कि कम्पनी केवल अपनी शर्तों पर देना चाहती थी। अफवाह तो ये भी थी कि केजरीवाल ने अपना दलाली का हिस्सा भी तय कर लिया था और राहुल गांधी व कांग्रेस तो अनुभवी दलाल हैं पर मोदी जी का दृढ़विश्वास भारत की वैक्सीन पर था! वे न रुके न दलालों के दबाव में झुके! अब पता चल रहा है कि फाइजर की वैक्सीन अप्रभावी थी अमेरिका मे मौतों का भयानक परिदृश्य इसी अप्रभावी वैक्सीन की देन थी। आज सभी दलाल खामोश हैं! अरे भाई हमारे दृढ़ संकल्प देशभक्त दूरदर्शी प्रधानमंत्री और वैज्ञानिकों का आभार तो प्रकट करो जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों मे न केवल स्वदेशी वैक्सीन विकसित की और जन जन तक निशुल्क पहुंचाई!

विश्व की सर्वप्रथम वैक्सीन बनाने वाली कंपनी फाइजर ने वैक्सीन की फाइनल विश्वनीयता में अपने हाथ ऊपर कर दिए। कहा हमें पता ही नहीं था वो कितनी असरकारक है और कितनी उम्र तक चलेगी। वो दिन याद करो जब राहुल गांधी, केजरीवाल, चिदंबरम जैसे नेताओं ने फाइजर की वैक्सीन खरीदने के लिए सरकार पर दवाब बनाया था। हर मुमकिन कोशिश की गई थी। लेकिन फिर भी सरकार ने वो वैक्सीन नहीं खरीदी थी। लेकिन ये मुफ्त की लालच में बिकने वाले लोग ये कभी नहीं समझ पाएंगे कि वो कितनी गहरी साजिश थी। राजनीति के लिए ये लोग कितने लोगों को मारने के लिए भी तैयार हो गए। सत नमन है ऐसे भारत के दलालों के सपोर्टर को जो सब कुछ देखते हुए भी इसलिए चुप है क्योंकि उसको मोदी पसंद नहीं है और ऐसे लोगो का साथ देते हैं।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि हमारी मॉडर्ना और फाइजर से बात हुई, वो कहते हैं कि हम आपको वैक्सीन नहीं देंगे, हम केंद्र सरकार से बात करेंगे। हम पहले ही काफी समय गंवा चुके हैं, मेरी केंद्र सरकार से अपील है​ कि केंद्र सरकार इनसे बात करके वैक्सीन आयात करे और राज्यों में बांटे।

औकात औकात की बात है…!! केजरीवाल:- मैंने फाइजर कंपनी में फोन कर
के वेक्सीन का ‘ऑर्डर’ देना चाहा,कंपनी ने ये कह कर मना कर दिया कि हम मात्र भारत सरकार को ही वेक्सीन देंगे…! मतलब ‘इज्जत’ तो इसकी है ही नहीं दलाली भी गई…!!

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