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पीएम मोदी ने लौटाया वैभव, 831 साल पहले नालंदा यूनिवर्सिटी की नौ मंजिला लाइब्रेरी में तीन लाख किताबों को लगवाई थी मुस्लिम आक्रांता ने आग, अब 1749 करोड़ से बना नया कैंपस

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सिर्फ प्राचीन धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार करके उन्हें भव्य-दिव्य ही नहीं बना रहे हैं, बल्कि ध्वस्त हो चुके दुनिया के प्राचीनतम शिक्षा के केंद्र का भी वैभव लौटा रहे हैं। भारत के गौरव रहे, जिस नालंदा विश्वविद्यालय में कभी दुनियाभर के मेधावी छात्र शिक्षा हासिल करने के लिए आते थे, उसे 1193 में आक्रांता बख्तियार खिलजी के आक्रमण ने बर्बाद कर दिया गया था। वह इतना बर्बर था कि उसने विश्वविद्यालय परिसर और खासकर इसकी लाइब्रेरी में लाखों किताबों को आग को आग के हवाले कर दिया था। कहा जाता है कि यहां इतनी किताबें थीं कि आग करीब छह माह तक सुलगती रही। इतिहास के गर्त में खो गए पुरातन नालंदा विश्वविद्यालय को नूतन बनाने का सफर नए कैंपस का लोकार्पण कराके पीएम मोदी ने पूरा किया है। प्राचीन नालंदा में बच्चों का प्रवेश नेशनलिटी को देखकर नहीं होता था। हर देश के युवा यहां आते थे। नए कैंपस में उसी व्यवस्था को आधुनिक रूप में मजबूती मिलेगी। वसुधैव कुटुंबकम का बड़ा उदाहरण नालंदा यूनिवर्सिटी फिर से सांस्कृतिक आदान-प्रदान का दुनिया का प्रमुख केंद्र बनेगी।

तीन लेवल का टेस्ट पास करने के बाद मिलता था नालंदा में प्रवेश
नालंदा विश्वविद्यालत के प्राचीन वैभव की बात करें तो चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भारत की यात्रा के बाद लिखा, “नालंदा में दाखिला लेने वालों में दुनियाभर से आए लोगों में सिर्फ 20 प्रतिशत छात्रों को एंट्री मिलती थी.” एंट्री के लिए सबसे पहला टेस्ट द्वारपाल लेते थे। यहां द्वारपाल भी बहुत विद्वान लोगों को बनाया जाता था, जो धर्म और दर्शन से जुड़े कठिन सवाल पूछते थे। यहां से पास होने के बाद दो और लेवल पर टेस्ट देना पड़ता था। इनमें पास होने के बाद ही नालंदा में दाखिला मिल जाता था। ह्वेनसांग ने नालंदा के बारे में लिखा है, “पूरा विहार ईंटों की एक दीवार से घिरा था। जिसका एक गेट सीधे शिक्षा केंद्र में खुलता। शिक्षा केंद्र में आठ बड़े-बड़े हॉल में पढ़ाई होती थी। नालंदा में मठों की एक कतार, भव्य स्तूप और मंदिर बने हुए थे।” नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई. में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। बाद में इसे हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। इस विश्वविद्यालय की भव्यता का अनुमान इससे लगाइए कि इसमें 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें 3 लाख से अधिक किताबें थीं।

मुस्लिम आक्रांता बख्तियार खिलजी ने किया नालंदा पर आक्रमण
इतना भव्य और पुरातन नालंदा विश्वविद्यालय फिर इतिहास की गर्त में कैसे चला गया। नालंदा की खुदाई के दौरान ऊपरी लेयर में बहुत सी राख मिली थी, जिससे पता चलता है कि यहां एक बहुत बड़ी आग लगी थी। इतिहासकार बताते हैं कि आक्रांता बख्तियार खिलजी ने नालंदा को आग लगा दी थी। और जब नालंदा की नौ मंजिला लाइब्रेरी को जलाया गया, वो 6 महीने तक जलती रही। खिलजी की कहानी जानने के लिए हमें 12वीं सदी में चलना होगा। खिलजी के वक्त के इतिहासकार मिन्हाज ने अपनी किताब ‘तबकात-ए-नासिरी’ में इसका जिक्र किया है। खिलजी दिल्ली सल्तनत के दरबार में मुलाजिम हुआ करता था। साल 1192 में पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद बख्तियार खिलजी को बड़ा मौका मिला।

नालंदा की नौ मंजिला लाइब्रेरी में तीन किताबों को किया आग के हवाले
दिल्ली से खिलजी बदायूं जाता है, जहां एक तुर्क कमांडर के मातहत उसे मिलिट्री कमांडर की पदवी मिलती है। अवध के मिर्ज़ापुर जिले में जागीर हासिल करने के बाद खिलजी की नजर बंगाल और बिहार सूबे पर पड़ती है। जहां तब ‘लक्ष्मण सेन’ का राज था और बंगाल भारत के सबसे अमीर इलाकों में से एक था। खिलजी ने एक के बाद एक बंगाल पर कई हमले किए और वहां से खूब सारी दौलत लूटकर ले गया। मिन्हाज लिखता है, “खिलजी ने 200 घुड़सवारों के साथ बिहार में एक किले पर आक्रमण किया। किले में बहुत से ब्राह्मण थे, जिन्होंने अपने सर मुंडाए हुए थे। उन सभी को मार डाला गया। किले की नौ मंजिला लाइब्रेरी में खिलजी को बहुत सारी किताबें मिलीं। तीन लाख से ज्यादा किताबों से पता चला कि असल में ये किला नहीं, नालंदा विश्वविद्यालय था और इसे विहार बोला जाता था। उसने गुस्से में मंदिर-मठों में तोड़फोड़ करके लाइब्रेरी में किताबों को आग के हवाले कर दिया।”अब नालंदा विश्वविद्यालय का नया कैंपस 1,749 करोड़ रुपये की लागत से बनवाया
अब प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय का नया कैंपस 1,749 करोड़ रुपये की लागत से बनवाया है। यह नया कैंपस प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों के पास बनाया गया है। प्रधानमंत्री ने बुधवार को नए कैंपस का उद्घाटन किया और अनावरण करते हुए एक पौधा भी लगाया। नए कैंपस का उद्घाटन करने से पहले पीएम मोदी ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों को भी देखा। यह स्थल एक प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र हुआ करता था। यहां स्तूप, मंदिर और विहार जैसे कई प्राचीन ढांचे मौजूद हैं। इस नए कैंपस में दो अकैडमिक ब्लॉक हैं। इनमें 40 क्‍लासरूम हैं। यहां लगभग 1900 छात्रों के बैठने की व्यवस्था है। नए कैंपस में 300 सीटों की क्षमता वाले दो ऑडिटोरियम और लगभग 550 छात्रों के रहने के लिए एक छात्रावास भी है। इसके अलावा कैंपस में एक अंतरराष्‍ट्रीय केंद्र, 2000 लोगों की क्षमता वाला एक एम्फीथिएटर, एक फैकल्टी क्लब और एक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स जैसी कई अन्य सुविधाएं भी हैं।

5वीं शताब्दी में हुई नालंदा की स्थापना, कई महान विद्वानों ने शिक्षा ली
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में हुई थी। कभी यह दुनियाभर के विद्वानों के लिए आकर्षण का केंद्र था। इसी नालंदा विश्वविद्यालय में हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति, नागार्जुन जैसे कई महान विद्वानों ने शिक्षा प्राप्त की थी। खुदाई में नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष 1.5 लाख वर्ग फीट में मिले हैं, जो इसके विशाल और विस्तृत परिसर का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा माना जाता है। यह ऐतिहासिक संस्थान आठ शताब्दियों तक फला-फूला, जब तक 12वीं शताब्दी में आक्रमणकारियों ने इसे नष्ट नहीं कर दिया। पीएम मोदी के पहले कार्यकाल में 2016 में इस जगह को संयुक्त राष्ट्र की ओर से ‘विश्व धरोहर स्थल’ घोषित किया गया था। फिर से स्थापित यह विश्वविद्यालय 2014 में एक अस्थायी जगह से शुरू हुआ था, जिसमें केवल 14 छात्र थे। नए कैंपस का निर्माण 2017 में शुरू हुआ था। उद्घाटन समारोह में विदेश मंत्री एस जयशंकर और 17 देशों के राजदूतों सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

नए कैंपस से पहले पीएम ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों का देखा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज, 19 जून को बिहार के राजगीर में प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों का अवलोकन किया। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को विश्व के प्रथम आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक माना जाता है। नालंदा के खंडहरों को 2016 में संयुक्त राष्ट्र विरासत स्थल घोषित किया गया था। करीब 455 एकड़ में फैला यह कैंपस देश का सबसे बड़ा नेट जीरो ग्रीन कैंपस है। यहां 20 से ज्यादा देशों के स्टूडेंट्स पढ़ाई कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने खंडहरों को देखने के बाद कहा कि नालंदा के खुदाई किए गए अवशेषों का दौरा करना अनुकरणीय था। यह प्राचीन विश्व के सीखने के सर्वाधिक बड़े स्थानों में से एक पर उपस्थित होने का अवसर था। यह साइट विद्वानों के अतीत की एक गहरी झलक प्रस्तुत करती है जो कभी यहां फला-फूला था। नालंदा ने एक ऐसी बौद्धिक भावना पैदा की है जो हमारे देश में लगातार पनप रही है।

 

 

 

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