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मणिपुर पर अब नैरेटिव युद्ध, बीजेपी शासन में ड्रग्स पर लगी लगाम, ड्रग्स माफिया और मिशनरीज ने प्रदेश को हिंसा की आग में झोंका

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पिछले 10 दिनों से संसद ठप करने वाले विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के नेताओं ने 30 जुलाई 2023 को मणिपुर का दौरा किया, लोगों से मिले और फोटो खिंचवाई। विपक्षी दल अब इसे नैरेटिव युद्ध बनाना चाहते हैं और ड्रग्स तस्करी करने वाले देश विरोधी ताकतों का ढाल बनना चाहते हैं। विपक्षी दल जिस तरह से पाला बदल रहे हैं वह भी एक संदेह पैदा करता है। पहले उन्होंने कहा कि मणिपुर पर प्रधानमंत्री बयान दें। प्रधानमंत्री ने बयान दिया तो लोकसभा में चर्चा की मांग की। लोकसभा में चर्चा की मांग स्वीकार हुई तो वे अविश्वास प्रस्ताव ले आए। सरकार मणिपुर पर चर्चा करने के लिए तैयार है लेकिन विपक्षी दल अब चर्चा से भागकर इसे नैरेटिव वॉर बनाने पर तुले हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ड्रग माफिया और मिशनरीज की अंतर्राष्ट्रीय साजिश है। दरअसल बीजेपी के शासन में पिछले पांच-सात साल में ड्रग माफिया पर लगाम लगाया गया है। पिछले पांच-सात साल में हजार करोड़ से ज्यादा के ड्रग्स जब्त किए गए हैं और अफीम की खेती पर रोक लगाई जा रही है। देश विरोधी गतिविधियों पर लगाम लगाए जाने से तिलमिलाए भ्रष्टाचारी दलों को समझ नहीं आ रहा कि वे अब क्या करें इसीलिए वे लगातार पाला बदल रहे हैं।

विपक्षी गठबंधन का नैरेटिव, अनिश्चितता और भय का माहौल
मणिपुर के दौरे से लौटने बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि मणिपुर में ‘अनिश्चितता और भय’ व्याप्त है। विपक्षी दलों के गठबंधन ‘I.N.D.I.A.’ का एक प्रतिनिधिमंडल दो दिवसीय दौरे के बाद हिंसा प्रभावित मणिपुर से लौट आया है। ‘I.N.D.I.A.’ गठबंधन ने कहा कि तीन महीने से जारी मणिपुर जातीय संघर्ष जल्द हल नहीं किया गया, तो यह देश के लिए सुरक्षा समस्याएं पैदा कर सकता है।

नैरेटिव का खेलः कुकी समुदाय के लिए खड़ा हो गया यूरोपीय संसद
कुकी समुदाय के लोग ईसाई धर्म को मानते हैं और वे मिशनरीज से जुड़े हुए हैं। यही वजह है कि यह मुद्दा यूरोपीय संसद जैसे वैश्विक मंचों तक पहुंच गया और उन्होंने इसकी निंदा की। जबकि यह भारत का आंतरिक मामला है। इससे समझा जा सकता है कि इस मुद्दे को किस तरह नैरेटिव का खेल बनाया जा रहा है। भारत ने यूरोपीय संसद के 16 जुलाई 2023 के प्रस्ताव को “भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप” करार दिया और उसके रवैये को “औपनिवेशिक मानसिकता” से प्रेरित बताया।

म्यांमार से हो रही घुसपैठ मणिपुर को कर रहा अस्थिर
पिछले कुछ माह से म्यांमार (बर्मा) की सीमा से लगे राज्य मणिपुर में हिंसा देखी जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि बर्मा के चरमपंथी समूह और विस्थापित नागरिक, देश के गृह युद्ध की आंच के तहत, भारत में घुसपैठ कर रहे हैं और सीमावर्ती राज्य को अस्थिर कर रहे हैं। 2021 में सैन्य जुंटा के सत्ता संभालने और उग्रवाद विरोधी अभियान शुरू करने के बाद स्थिति और खराब हो गई।

म्यांमार से आए कुकी समुदाय आज पूर्वोत्तर भारत में फैल गए
मणिपुर म्यांमार के साथ लगभग 250 मील की जंगली और अत्यधिक खुली सीमा साझा करता है। लेकिन मई 2023 से बहुसंख्यक मैतेई, गैर-आदिवासी स्थानीय लोगों और कुकी जातीयता के बीच हिंसक झड़पें देखी गई हैं। मूल रूप से म्यांमार के रहने वाले कुकी समुदाय आज पूर्वोत्तर भारत, बांग्लादेश और बर्मा में फैले हुए हैं। मणिपुर में हुई हिंसा में नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप के अनुसार, 70,000 से अधिक लोग विस्थापित हो गए हैं और वर्तमान में उन्होंने चार पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों में विभिन्न राहत शिविरों में शरण ली है।

सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे फर्जी वीडियो
सोशल मीडिया पर फर्जी वीडियो फैलाए जा रहे हैं जिनमें जातीय संघर्ष को धार्मिक दृष्टि से चित्रित करने का प्रयास किया गया। झूठी कहानियां भारतीय समाज में व्यापक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रही हैं। यह स्थिति क्षेत्र में दीर्घकालिक शांति के लिए खतरा पैदा कर रही है और भारत के खिलाफ एक घातक प्रभाव अभियान को बढ़ावा दे रही है, एक ऐसा देश जहां सामाजिक और धार्मिक पहचान पारंपरिक रूप से एक संवेदनशील मुद्दा रही है।

मणिपुर हिंसा से अंतरजातीय दंपतियों के लिए बड़ी मुश्किलें
मणिपुर हिंसा ने समाज पर व्यापक प्रभाव डाला है और अंतरजातीय दंपतियों के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर दी है। मैतेई और कुकी समुदाय के बीच झड़प से कई अंतरजातीय दंपति प्रतिशोध के डर से अलग रहने को मजबूर हुए हैं। अंतरजातीय दंपतियों के खिलाफ हिंसा ने एक घायल सात वर्षीय लड़के जैसे अत्याचार को जन्म दिया। उसकी मां मैतेई थी और उसे मां सहित एम्बुलेंस में जिंदा जला दिया गया था। लड़के का पिता कुकी समुदाय से था। विपक्षी दलों को इनकी पीड़ा से कोई मतलब नहीं है। वे अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुए हैं। 

अंतराष्ट्रीय ड्रग माफिया का मैदान बन रहा मणिपुर
भारत-म्यांमार की लगभग 400 किमी लंबी सीमा भारत की सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक चुनौती बनी हुई है। चुनौती इसलिए क्योंकि पूरी सीमा ऐसी है कि कहीं से भी आर पार आवाजाही की जा सकती है। यही खूबी मणिपुर को दुनिया भऱ में बदनाम ड्रग्स सप्लाई का हिस्सा बना रही थी। मणिपुर की मुश्किल ये कि पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता और ड्रग माफिया का अंतराष्ट्रीय स्तर पर चल रहा खुले ऑपरेशन ने राज्य में ड्रग्स के खतरे को और बढ़ा दिया है।

ड्रग्स के खिलाफ जंग भी मणिपुर हिंसा की वजह
संगठित ड्रग माफिया मणिपुर के रास्ते नारकोटिक्स जैसे हेरोईन, गांजा, अफीम, सिंथेटिक ड्रग में क्रिस्टल मेथामफेटामिन, सूडो इफएड्रीन, डब्लू वाई टैबलेट भरत के दूसरे हिस्सों में भेजते हैं। केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय ने भी माना है कि देश में ड्रग का खतरा बढ़ता जा रहा है और युवा इसके शिकार होते जा रहे हैं। इसलिए गृह मंत्रालय ने भी ड्रग्स के खिलाफ जंग को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। मणिपुर में हिंसा की एक प्रमुख वजह यह भी है जिससे ड्रग के धंधे से देश का ध्यान भटकाया जाए।

मणिपुर सरकार ने ड्रग्स के खिलाफ खुली जंग का ऐलान किया
मणिपुर सरकार ने ड्रग्स के खिलाफ खुली जंग का ऐलान किया है जिसे मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने वॉर ऑन ड्रग्स 2.0 का नाम दिया है। सीएम बिरेन सिंह ने इसे अपने दूसरे कार्यकाल के पहले 100 दिन के एजेंडे का हिस्सा बनाया है। सरकार ने इस बार ड्रग्स के खिलाफ जंग शुरू की है एक नए अवतार में और गठित किया है एंटी-नारकोटिक्स टास्क फोर्स। और इस जंग में हर स्तर पर ड्रग्स रोकने के लिए कई स्तरों पर रणनीति बनाई है जिसमें कानून, समाजिक, मानव संसाधन और तकनीकि पहलुओं का इस्तेमाल किया जा रहा है ड्रग्स के खतरे को रोकने के लिए।

ड्रग्स की सप्लाई के सभी रास्तों पर शिकंजा कसा
मणिपुर सरकार की कड़ाई से ड्रग्स की सप्लाई के सभी रास्तों पर शिकंजा कसता जा रहा है। संवेदनशील राष्ट्रीय राजमार्ग-2 पर 24 घंटे हाईवे पेट्रोलिंग करने वाली जीपीएस युक्त गाड़ियों को लगाया गया है। राज्य हाईवे सिक्यूरिटी योजना पर भी एक महत्वाकांक्षी काम शुरू हो चुका है। इसके तहत मणिपुर को म्यांमार, असम और नगालैंड से जोड़ने वाले 3 मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच-2, एनएच-102 और एनएच-37 पर ड्रग्स माफिया को कोई मौका नहीं देने की तैयारी चल रही है। इस योजना के तहत ड्रग्स माफिया को मणिपुर को ट्रांसिट रूट की तरह इस्तेमाल करना मुश्किल होगा।

ड्रग्स की तस्करी पर लगाम, पांच साल में 3 हजार करोड़ के ड्रग जब्त
राज्य सरकार की लगातार कोशिशों के बाद मणिपुर में गैरकानूनी ड्रग्स ट्रैफिकिंग पर क्रैक डाउन शुरु हो चुका है और भारी मात्रा में ड्रग्स बरामद किए गए हैं। पिछले पांच सालों में इतने ड्रग्स जब्त किए है जिनकी अंतराष्ट्रीय बाजार में कीमत 3,213 करोड़ रुपये आंकी जा रही है। एनडीपीएस एक्ट के तहत कुल 1674 केस दर्ज किए गए हैं और 2104 पैडलरों को गिरफ्तार किया गया है। इसके अलावा पुलिस ने 170 किलो हेरोईन पाउडर, 1265 किलो अफीम, 520 किलो ब्राउन शुगर, 725 सिंथेटिक ड्रग्स, 16 लाख साइकोट्रोपिक टैबलेट, ड्रग्स सीरप की 63000 बोतलें जब्त की हैं। मणिपुर सरकार और पुलिस बल ने अफीम की गैरकानूनी रुप से चल रही 13894 एकड़ जमीन पर खेती और गांजा उगायी जा रही 20 एकड़ जमीन पर पूरी फसल नष्ट कर दी।

एनडीपीएस एक्ट के तहत 174 लोग गिरफ्तार
एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स के 2020 में गठन के बाद से गैरकानूनी सप्लाई में लगे ड्रग्स पैडलर्स के खिलाफ सख्त कारवाई की गई है। इसमें एनडीपीएस एक्ट के तहत 174 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और 18 किलो हेरोईन पाउडर, 135 किलो अफीम, 85 किलो डब्लू वाई टैबलेट, 44000 कैप्सूल और 24000 ड्रग्स के सीरिंज जब्त किया गया है और 382 एकड पॉपी की फसल को नष्ट कर दिया गया है। मणिपुर सारकार के मुताबिक 70 दिनों के भीतर ही 142 करोड रुपये के ड्रग्स जब्त किए गए हैं।

मणिपुर में 400 करोड़ रुपये की नशीली दवाओं के साथ म्यांमार का व्यक्ति गिरफ्तार
जनवरी 2020 में म्यांमार के एक ड्रग डीलर को इंफाल में 400 करोड़ रुपये की बड़ी मात्रा में वर्ल्ड इज योर्स (डब्ल्यूवाई) टैबलेट जब्त किया गया और गिरफ्तार किया गया। उसे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत हिरासत में लिया गया है। रंगून के काव्हू गांव के आरोपी क्याव क्याव निंग उर्फ ​​अब्दुल रहीम (33) की हिरासत का आदेश जिला मजिस्ट्रेट (थौबल) द्वारा 29 जनवरी को जारी किया गया था, जिसके एक दिन बाद उसे नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक द्वारा जमानत पर रिहा किया गया था।

ड्रोन से निगरानी, ड्रग्स माफिया की कमर टूटी
मणिपुर ड्रग्स के कारोबार का कहीं से भी हिस्सा नहीं बने इसके लिए सरकार आधुनिक तरीके अपना रही है। मणिपुर रिमोट सेंसिंग अप्लीकेशन सेंटर को कहा गया है कि वो हाई रिजोल्यूशन डेटा इस्तेमाल कर मणिपुर के उन इलाकों की पहचना करे जहां अफीम की खेती हो रही है। ड्रोन से भी डेटा इक्ट्ठा किया जा रहा है। इन सबूतों के आधार पर ही एनडीपीएस एक्ट के तहत जमीन के मालिकों और गांवों के मुखियाओं पर मुकदमे दर्ज हो रहे हैं जिनके इलाके में पॉपी की खेती हो रही है। जाहिर जमीन से आसमान तक सख्ती हो तो ड्रग्स माफिया की मणिपुर में कमर टूटने लगी है।

ड्रग्स पैडलरों के रोजगार की वैकल्पिक व्यवस्था
एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ड्रग्स के व्यापार और उसकी सप्लाई में लगे लोगों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था और पुनर्वास के लिए भी योजनाएं लागू कर रही है। रोजगार नहीं मिलने के कारण गांवों के लोग अफीम की गौरकानूनी खेती में नहीं लगें इसके लिए उन इलाकों में सरकार नई योजनाएं बना कर उन्हें वैकल्पिक व्यवस्था देने की कोशिश कर रही है। सरकार ने जिला स्तर पर समिति बनाई है जो आबादी के साथ साथ सही योजना की पहचान कर ड्रग्स से दूर जा रहे लोगों को वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था पर नजर रखेगी। इसमें हॉर्टीकल्चर, पॉल्ट्री, फूल, मधुमक्खी पालन, बीजेपी सरकार स्थानीय वस्तुओं को सीधा बाजार से जोड़ने की तैयारी कर रही है।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की थीम है ड्रग्स मुक्त मणिपुर
मणिपुर की सरकार और प्रशासन जानता है कि बिना जन समर्थन और मुख्य स्टेक होल्डरों से चर्चा किए बिना वॉर ऑन ड्रग्स 2.0 सफल नहीं होगा. खास कर युवा वर्ग का समर्थन जरूरी है जो इस मुहिम में सबसे बड़ा स्टेक होल्डर है. इसलिए सरकार ने पहले चरण में पहाड़ी जिलों के 70 स्थानों पर जनजागरण अभियान शुरू किया। इसलिए इसके उद्घाटन के लिए भी चुना गया एक लोकप्रिय फुटबॉल टुर्नामेंट को जिसमें राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हिस्सा ले रहे थे और शीर्ष पुलिस अधिकारी मौजूद रहे।

मणिपुर को अंतराष्ट्रीय ड्रग्स तस्करी के जाल से निकालने की मुहिम
ड्रग्स के खिलाफ जंग में मोदी सरकार और मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह की व्यक्तिगत पहल ने ड्रग्स के खिलाफ इस जंग में धार डाल दी है। इसके नतीजे भी मिलने लगे हैं। ड्रग्स माफिया को संदेश साफ है कि मणिपुर को अंतराष्ट्रीय ड्रग्स तस्करी के जाल से निकालने की मुहिम चल पड़ी है और एन बीरेन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी सरकार इस मुहिम में सभी स्टेकहोल्डर्स और आम आदमी को शामिल कर इसे जन आंदोलन का रुप दे रही है ताकि इन ड्रग्स माफियाओं को मणिपुर में घुसने की जगह नहीं मिले।

मणिपुर में मैतेई की आबादी 53 प्रतिशत और नगा व कुकी 40 प्रतिशत
मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद राज्य में जातीय हिंसा भड़क उठी थी। पूर्वोत्तर राज्य की आबादी में मैतेई समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं। वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासियों की आबादी 40 प्रतिशत है और वे ज्यादातर पर्वतीय जिलों में रहते हैं।

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