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मोदी मॉडल बनाम केजरीवाल + कांग्रेस मॉडलः तेल और पानी से समझिए खेल, देश बनाना है या देश बेचना है?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कविता के माध्यम से देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी का कई बार इजहार किया है- ”सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा…। वो लूट रहे हैं सपनों को, मैं चैन से कैसे सो जाऊं, वो बेच रहे अरमानों को, खामोश मैं कैसे हो जाऊं, हां मैंने कसम उठाई है, मैं देश नहीं बिकने दूंगा, मैं देश नहीं मिटने दूंगा।” पीएम मोदी ने भारत को मजबूत देश बनाने के लिए कई जतन किए हैं और कई कठोर फैसले भी लिए हैं। वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने खुद के प्रचार के लिए विज्ञापन पर करोड़ों रुपये खर्च किए हैं। दिल्ली के सभी अस्पतालों एवं विभागों की हालत खस्ताहाल है, मरीज से लेकर आम लोग परेशानहाल हैं। भ्रष्टाचार खत्म करने के आंदोलन से नेता बने केजरीवाल और उनके मंत्री आज इस कदर भ्रष्टाचार एवं घोटालों में लिप्त हैं यह देखकर दिल्ली की जनता का माथा शर्म से झुक जाए।

वहीं कांग्रेस सरकारों की बात की जाए तो यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि अगर उन्होंने 60 सालों तक ईमानदारी से काम किया होता तो आज भारत एक मजबूत राष्ट्र होता। लेकिन वह भी अंग्रेजों की राह पर ही चल निकले और 60 सालों तक देश को खूब जमकर लूटा। कांग्रेस की सरकारों के तहत घोटालों की सूची इतनी लंबी है कि कभी खत्म नहीं होती। कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार के 2004-2014 के कार्यकाल की बात की जाए तो इस दौरान सरकार हमेशा किसी न किसी घोटाले की वजह से सुर्खियों में रही। अब सोचिए घोटालों का पैसा अगर देश के विकास में लगा होता तो क्या भारत आज विश्व महाशक्ति नहीं होता? इससे यही साबित होता है कि कांग्रेस और केजरीवाल को देश बनाने से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन पीएम मोदी ने यह प्रण लिया है भारत को मजबूत राष्ट्र बनाकर रहेंगे। यही वजह है कि जब भी उन्होंने देश हित में कठोर फैसले लिए हैं, जनता हमेशा उनके साथ खड़ी होती है।

2010 से पहले भारत में पेट्रोल की कीमत सरकार द्वारा नियंत्रित की जाती थी, इसके लिए सरकार पेट्रोल पर सब्सिडी देती थी। इसका मतलब है कि मान लीजिए कि इंडियन ऑयल ने कहा कि पेट्रोल की उनकी बिक्री मूल्य 80 रुपये प्रति लीटर है तो सरकार ने कहा कि इसे 60 रुपये प्रति लीटर पर बेचिए शेष 20 रुपये मैं आपको भुगतान करूंगा। इसका कारण यह है कि उस समय की कांग्रेस सरकार को पता था कि पेट्रोल की ऊंची कीमतों से उन्हें चुनाव में हार का सामना करना पड़ेगा। इसलिए चुनाव जीतने के लिए वे हमें कम कीमत पर पेट्रोल देते रहे। लेकिन यहां खेल आ गया।

कांग्रेस सरकार ने तेल कंपनियों से कहा कि 80 रुपये वाला पेट्रोल आप 60 रुपये में बेचो। मैं आपको 20 रुपये प्रति लीटर दूंगा, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें कभी भी 20 रुपये प्रति लीटर (सब्सिडी) नहीं दिया। उसके स्थान पर सरकार उन्हें तेल बांड जारी करती है। वह बांड कहता है कि हम आपको यह पैसा बाद में लगभग 7-8% प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ देंगे लेकिन कांग्रेस सरकार ने उन्हें कभी भुगतान नहीं किया।

2014 में कांग्रेस चुनाव हार गई और भाजपा सत्ता में आई। मोदी सरकार को पता चला कि उन्हें तेल कंपनियों (ऑयल बॉन्ड भुगतान) को 1,30,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा। और जब तक वे भुगतान नहीं करते हैं तब तक उन्हें प्रति वर्ष 10000 करोड़ रुपये का ब्याज देना होगा। यदि वे ब्याज का भुगतान भी नहीं करते हैं तो भविष्य की सरकारों को ब्याज पर भी ब्याज देना होगा और वह राशि इतनी बड़ी होगी कि पूरी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। लेकिन अगर वे उस तेल के पैसे को चुकाते हैं तो उन्हें पेट्रोल की कीमत बढ़ानी होगी और जनता के गुस्से का सामना करना पड़ेगा। मोदी सरकार ने 2014 में अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने की जगह जनता के गुस्से का सामना करना चुना। क्योंकि उन्हें भारत को मजबूत देश बनाना है। और जनता ने दोबारा मोदी सरकार को चुना क्योंकि जनता जानती है कि मजबूत भारत से ही देश सुरक्षित होगा और यहां के लोग सुरक्षित होंगे। 

मोदी सरकार ने पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि की और तेल का भुगतान करना शुरू कर दिया जो वास्तव में कांग्रेस सरकार की नाकामी की वजह से बकाया था। 2014 के बाद से वे तेल कंपनियों को इन तेल बांडों का भुगतान कर रहे हैं और 2025 तक वे 2004-14 के दौरान कांग्रेस सरकार द्वारा बकाया रखे गए सभी पैसे का भुगतान करेंगे।

कांग्रेस के समय पेट्रोल न तो 60 रुपये था और न ही बीजेपी के समय 100 रुपये था। यह हमेशा 80 रुपये था। अंतर यह है कि कांग्रेस के समय में जनता को पेट्रोल पर 20 रुपये की छूट मिल रही थी और आज जनता को जो 20 रुपये छूट मिली थी उसका अतिरिक्त भुगतान करना पड़ रहा है। पीएम मोदी ने अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए और भारत को मजबूत राष्ट्र बनाने के लिए यह फैसला किया।
(पेट्रोल की कीमतें सिर्फ कहानी को समझाने के लिए ली गई हैं)

अब दूसरी कहानी पर नजर डालिए। केजरीवाल 2015 में दिल्ली के सीएम बने और उन्हें भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा जिसका मोदी को सामना करना पड़ा। 1998-2003 तक दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी। उन्होंने दिल्ली जल बोर्ड के लिए बहुत बड़ा कर्ज लिया और उसका भुगतान नहीं किया। केजरीवाल जब सीएम बने तो दिल्ली पर 20,000 करोड़ रुपये का कर्ज बकाया था और ब्याज की रकम लगातार बढ़ती जा रही थी। केजरीवाल को इस बकाया का भुगतान करने के लिए पीने के पानी की कीमत तुरंत बढ़ा देनी चाहिए थी। लेकिन केजरीवाल ने इसके विपरीत किया। उसने पानी को मुफ्त कर दिया और लोन को नहीं चुकाया। उन्होंने राज्य की अर्थव्यवस्था दुरुस्त करने की जगह व्यक्तिगत प्रचार पर ध्यान लगाया और दिल्ली जल बोर्ड का बकाया बढ़ता रहा।

यह बात सीएजी रिपोर्ट 2019 में आई थी जिसमें कहा गया था कि दिल्ली जल बोर्ड पर 26000 करोड़ रुपये का कर्ज है और केजरीवाल सरकार ने पिछले 5 वर्षों में एक भी रुपये का भुगतान नहीं किया है। अब हाल ही में एक आरटीआई से पता चला है कि दिल्ली जल बोर्ड का कर्ज अब बढ़कर 57,000 रुपये हो गया है क्योंकि केजरीवाल सरकार ने ब्याज भी नहीं चुकाया है।

अब हालात की गंभीरता को समझिए। पूरे दिल्ली राज्य का बजट 75,000 करोड़ रुपये है और अकेले दिल्ली जल बोर्ड पर 57,000 रुपये का कर्ज है जो लगातार बढ़ रहा है और केजरीवाल अभी भी मुफ्त पानी दे रहे हैं। दिल्ली जल बोर्ड अब एक बुलबुला की तरह है, जिस दिन विस्फोट होगा, दिल्ली वालों को पानी के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। क्योंकि यह तो हम सब जानते हैं कि फ्री में कुछ भी नहीं होता है।

श्रीलंका में भी यही हुआ और वहां के हालात से हम सभी परिचित हैं। अब यह बात आसानी से समझा जा सकता है कि दो नेताओं को एक ही समय में एक ही स्थिति का सामना करना पड़ा और दोनों ने हालात को कैसे संभाला। एक ने देश को चुना और दूसरे ने खुद का प्रचार चुना और चुनाव जीतने के लिए रेवड़ी बांटना चुना।

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