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वैश्विक स्तर पर पीएम मोदी की बड़ी पहल, ‘वायस आफ ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन के माध्यम से गरीब और विकासशील देशों की आवाज बनेगा भारत

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है। इसकी पहल गुरुवार (12 जनवरी, 2023) को ‘वायस आफ ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन के आयोजन के साथ की गई। इस सम्मेलन के माध्यम से भारत दुनिया के कम विकसित, गरीब और विकासशील देशों की आवाज बनने जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने दो दिवसीय ‘वायस आफ ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन के वर्चुअल बैठक के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने सदस्य देशों को ‘भाई’ कहकर संबोधित किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस सम्मेलन का उद्देश्य वैश्विक दक्षिण की आवाज को बढ़ाना है।

ग्लोबल साउथ की आवाज भारत की आवाज- पीएम मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने ‘वायस आफ ग्लोबल साउथ’ सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि हमने विदेशी शासन के खिलाफ लड़ाई में एक-दूसरे का समर्थन किया और हम इस सदी में फिर से एक नई विश्व व्यवस्था बनाने के लिए ऐसा कर सकते हैं जो हमारे नागरिकों के कल्याण को सुनिश्चित करेगी। आपकी आवाज भारत की आवाज है और आपकी प्राथमिकताएं भारत की प्राथमिकताएं हैं। उन्होंने कहा कि वैश्विक मुद्दों को हल करने में संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों की बड़ी भूमिका है। हमें इनमें सुधार और प्रगति को शामिल करना चाहिए।

हमारा उद्देश्य वैश्विक दक्षिण की आवाज को बढ़ाना है- पीएम मोदी

अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमने एक और कठिन वर्ष को पीछे छोड़ दिया जो युद्ध, संघर्ष, आतंकवाद और भू-राजनीतिक तनाव, बढ़ती खाद्य उर्वरक और ईंधन की कीमतों को दर्शाता है। अधिकांश वैश्विक चुनौतियां ग्लोबल साउथ द्वारा नहीं बनाई गई हैं, लेकिन वो हमें अधिक प्रभावित करती हैं। उन्होंने कहा कि भारत ने इस वर्ष अपनी जी-20 अध्यक्षता शुरू की है, ये स्वाभाविक है कि हमारा उद्देश्य वैश्विक दक्षिण की आवाज को बढ़ाना है।

नई भू-राजनीति में नई भूमिका निभाने के लिए भारत तैयार

इस समय रूस- यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया दो गुटों में बंटी नजर आ रही है। वहीं चीन दुनिया और भारत के लिए एक अलग चुनौती के रूप में उभर रहा है। ऐसी भू-राजनीति में भारत अपनी एक नई भूमिका के लिए तैयार है। हालांकि इसे निर्गुट आंदोलन से तुलना की जा रही है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने नये रूप में भारत को गरीब और विकासशील देशों की अगुवाई करने के लिए पेश किया है। उन्होंने हाल के महीनों में कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों से ग्लोबल साउथ के देशों के हितों की बात की है। फिर चाहे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता हो या जी-20 की कमान, भारत ने समय के साथ एक नेतृत्वकर्ता का अवतार लिया है। वह विश्व व्यापार संगठन और विश्व बैंक सहित तमाम मंचों पर विकासशील देशों के हितों की पुरजोर वकालत कर रहा है।

ग्लोबल साउथ देशों को एकजुट करने की कोशिश

भारत ने बदलते वैश्विक माहौल में दुनिया के कम विकसित, गरीब व विकासशील देशों को एक साथ एकत्रित करने की एक बड़ी कोशिश की है। पिछले कुछ वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने तमाम विकासशील देशों विशेषकर अफ्रीकी और दक्षिण अमेरिकी देशों के साथ आर्थिक सहयोग एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान के आधार पर रिश्ते मजबूत किए हैं। इससे विकासशील देशों के पक्ष में माहौल बनाने का उपयुक्त मंच तैयार हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘वायस आफ ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मलेन को संबोधित करते हुए कहा कि हम ग्लोबल साउथ वालों की वैश्विक भविष्य में सबसे बड़ी हिस्सेदारी है। यह जरूरी है कि हमारी भी बराबरी की आवाज हो।

चीन के कर्ज के जाल से बचाने के लिए भारत की पहल

चीन अपनी आर्थिक ताकत का इस्तेमाल गरीब और कम विकसित देशों को कर्ज के जाल में फंसाने और भारत को घेरने के लिए कर रहा है। इस चीनी परिपाटी को लेकर चिंता व्यक्त की जाने लगी है कि इससे आर्थिक अस्थिरता और यहां तक कर्जदार देशों के समक्ष दिवालिया होने तक का संकट पनप सकता है। पड़ोस में श्रीलंका और पाकिस्तान इस चीनी कर्ज के जाल में फंसने के भुक्तभोगी हैं। ऐसे में भारत ग्लोबल साउथ के देशों को चीन के कर्ज के जाल से बचाने के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उनकी आवाज को मजबूती से रखने की कोशिश कर रहा है।  

गरीब और विकासशील देशों को मिला नया मंच

‘वाइस आफ ग्लोबल साउथ’ समिट का आयोजन गरीब और विकासशील देशों के बीच सहयोग बढ़ाने की दिशा में एक बड़ी पहल है। कोविड महामारी के समय भारत ने ‘वैक्सीन मंत्री’ के तहत अपनी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का परिचय दिया। इसके बाद यह दुनिया के अधिकांश देशों के जुटान का पहला बड़ा अवसर है, जहां समकालीन चुनौतियों पर चर्चा के लिए 120 देश जुटे हैं। भारत ने विकासशील देशों को अपनी चिंताओं और आशंकाओं को सामने रखने का मंच प्रदान किया है। प्रधानमंत्री मोदी पहले ही कह चुके हैं कि जी-20 की अध्यक्षता के दौरान भारत की प्राथमिकताएं केवल सदस्य देशों के आधार पर तय नहीं होंगी। उसमें ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों की आवाज का भी समुचित समावेश होगा।

120 देशों की सामूहिक ताकत का प्रतिनिधित्व करेगा भारत

भारत ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों को गरीबी के दुष्चक्र और अस्थिरता से बाहर निकालने और आर्थिक असमानता को समाप्त करने में सहायक बन सकता है। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में एक बड़ी ताकत के रूप में उभरकर सामने आ सकता है। 120 देशों की सामूहिक ताकत के रूप में भारत अंतर्राष्ट्रीय मंचोंं पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा सकता है। इसके अलावा भारत को अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय विकास रणनीतियों को आगे बढ़ाने में मदद मिल सकती है। 

 

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