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गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग भारत में शामिल होने के लिए कर रहे रैलियां, नारे लग रहे- आर-पार जोड़ दो करगिल रोड खोल दो, नेहरू की गलती से नासूर बनी कश्मीर समस्या

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एक तरफ पाकिस्तान कंगाली की कगार पर है तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की समृद्धि को देखते हुए गिलगित बाल्टिस्तान के बुद्धिजीवी अब इसका विलय भारत में करना चाहते हैं। इसके लिए वहां लगातार प्रदर्शन किया जा रहा है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से गिलगित बाल्टिस्तान में इन दिनों लोगों ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। पाकिस्तानी सेना वहां डेमोग्राफी बदलने के लिए दूसरे प्रांतों के लोगों को वहां बसा रही है। लोगों का आरोप है कि पाकिस्तानी सेना की शह पर पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा के लोग उनकी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं। इन लोगों को सुरक्षा देने के लिए बाकायदा पाकिस्तानी सेना के जवान तैनात किए जा रहे हैं। जिसके बाद लोगों ने हाईवे को जाम कर पाकिस्तानी सेना के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया। इन लोगों ने भारत से दखल देने की मांग भी की है। गिलगित बाल्टिस्तान जम्मू और कश्मीर का अभिन्न अंग है। पाकिस्तान लगभग सात दशकों से PoK पर अवैध कब्जा कर रखा है। लेकिन अब उसे भारत में शामिल करने की मांग उठने लगी है। वहां रैलियों में अब नारे लग रहे हैं- आर-पार जोड़ दो करगिल रोड खोल दो।

नेहरू ने गलती न की होती तो कश्मीर में कोई समस्या नहीं होती 

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की गलतियों की वजह से भारत का अभिन्न हिस्सा रहे पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) और गिलगित बाल्टिस्तान आज नासूर बन चुका है। आजादी के समय अगर इनका विलय सही से हो गया होता तो पाकिस्तान का हमला नहीं होता, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर नहीं होता, मामला संयुक्त राष्ट्र तक नहीं पहुंचता, बाद के दशकों में कश्मीर पर लड़ने का पाकिस्तान के पास कोई अधिकार नहीं होता, जिहादी आतंकवाद नहीं होता और 1990 में कश्मीरी हिंदुओं का सामूहिक पलायन नहीं होता। 21 अक्टूबर, 1947 तक भी नेहरू ने ऐक्शन दिखाया होता तो भी आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर नहीं होता। लेकिन नेहरू की भारी गलतियों यह आज तक समस्या बनी हुई है।

पटेल की चलती तो यूं नासूर न बनती कश्मीर की समस्या

सरदार पटेल कश्मीर को किसी भी तरह के विशेष राज्य का दर्जा देने के खिलाफ थे लेकिन नेहरू द्वारा कश्मीर का मुद्दा गृहमंत्रालय से लेकर अपने पास रखने के कारण पटेल विवश होकर रह गए थे। नेहरू की कश्मीर के प्रमुख नेता शेख अब्दुल्ला से निकटता की वजह से भी पटेल इस मुद्दे पर ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। सरदार पटेल पर कई किताबें लिखने वाले पीएन चोपड़ा अपनी किताब “कश्मीर एवं हैदराबादः सरदार पटेल” में लिखते हैं कि “सरदार पटेल मानते थे कि कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में नहीं ले जाना चाहिए था। कई देशों से सीमाओं के जुड़ाव के कारण कश्मीर का विशेष सामरिक महत्व था इस बात को पटेल बखूबी समझते थे इसीलिए वह हैदराबाद की तर्ज पर बिना किसी शर्त कश्मीर को भारत में मिलाना चाहते थे।” “इसके लिए उन्होंने लगभग रियासत के महाराज हरि सिंह को तैयार भी कर लिया था। लेकिन शेख अब्दुल्ला से महाराजा के मतभेद और नेहरू से शेख की नजदीकियों ने सारा मामला बिगाड़ दिया।” खास बात ये है कि कश्मीर में आज भी जो भारत का नियंत्रण है उसके पीछे भी पटेल का ही दिमाग माना जाता है। विपरीत परिस्थितियों में सेना को जम्मू कश्मीर भेजने का साहस सरदार पटेल ही दिखा सकते थे।

गिलगित-बाल्टिस्तान भारत के जम्मू-कश्मीर का अभिन्न हिस्सा

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के पश्चिमी सिरे पर गिलगित और इसके दक्षिण में बाल्टिस्तान स्थित है। गिलगित-बाल्टिस्तान भारत के जम्मू-कश्मीर का अभिन्न हिस्सा है, लेकिन यह आजादी के बाद से पाकिस्तान के कब्जे में है। यह क्षेत्र उपेक्षित, अलग-थलग और लगभग अविकसित है। पाकिस्तानी संविधान में भी इस हिस्से को राज्य के तौर पर मान्यता नहीं दी गई है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के संविधान में भी इस हिस्से को शामिल नहीं किया गया है। पाकिस्तान पिछली कुछ सरकारों ने गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का पांचवां प्रांत बनाने की तैयारी कर रहे हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान की राजधानी गिलगित है। गिलगित-बाल्टिस्तान 7 जिलों में बंटा हुआ है। इनमें गान्चे, स्कर्दू, गिलगित, दिआमेर, गिजर, अस्तोर और हुंजा नगर शामिल हैं।

पाकिस्तान के कब्जे में कैसे गया गिलगित-बाल्टिस्तान

1947 में भारत की आजादी से पहले गिलगित-बाल्टिस्तान जम्मू-कश्मीर रियासत का हिस्सा था। लेकिन, 1935 में अंग्रेजों ने पूरे गिलगित-बाल्टिस्तान को कश्मीर के महाराजा से 60 साल की लीज पर ले रखा था। यह इलाका काफी ऊंचाई पर स्थित है, ऐसे में उस समय पूरे गिलगित-बाल्टिस्तान की रक्षा के लिए अंग्रेजों ने गिलगित स्काउट्स नाम की सैन्य टुकड़ी को तैनात किया था। जब भारत आजाद हुआ तो अंग्रेजों ने इस लीज को एक अगस्त 1947 को रद्द करके क्षेत्र को जम्मू एवं कश्मीर के महाराजा हरि सिंह को लौटा दिया। 1947 में जब कश्मीर पर पाकिस्तानी फौज ने हमला कर दिया तो 31 अक्टूबर को महाराजा हरिसिंह ने भारत के साथ विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। इस तरह गिलगित-बाल्टिस्तान भी भारत का हिस्सा बन गया। तब जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने ब्रिगेडियर घंसार सिंह को गिलगित-बाल्टिस्तान का गवर्नर बनाया।

गिलगित-बाल्टिस्तान की सेना ने विद्रोह कर पाक से मिलाया हाथ

गिलगित-बाल्टिस्तान के स्थानीय कमांडर कर्नल मिर्जा हसन खान ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को स्वीकार नहीं किया। उसने अंग्रेज सैन्य अधिकारियों और अपने विश्वासपात्रों के साथ मिलकर गिलगित-बाल्टिस्तान के गवर्नर घंसार सिंह को जेल में डाल दिया। इतना ही नहीं, उसने पाकिस्तान के साथ मिलकर गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान में मिलाने का समझौता भी कर लिया। 2 नवंबर 1947 को विद्रोह के फलस्वरूप गिलगित में पाकिस्तानी झंडा फहरा दिया गया। पाकिस्तान ने तुरंत मोहम्मद आलम नाम के शख्स को यहां का सदर नियुक्त कर दिया।

कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना थी बड़ी गलती

आजादी के समय जम्मू-कश्मीर पर कबायलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना ने आक्रमण कर दिया। पाकिस्तानी फौज ने पुंछ, नौसेरा के कई इलाकों पर अपना कब्जा जमा लिया। जब राजा हरि सिंह ने भारत के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर मदद की गुहार लगाई, तब भारतीय सेना ने कार्रवाई शुरू की। इससे पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान हुआ और वे पीछे हटने लगे। लेकिन इस मामले के संयुक्त राष्ट्र में चले जाने के कारण दोनों पक्षों ने युद्धविराम का ऐलान कर दिया। इस कारण जिस हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा बना रहा वो आज पाक अधिकृत कश्मीर के नाम से जाना जाता है।

नेहरू ने हरि सिंह की विलय याचिका तीन बार खारिज की

नेहरू ने कश्मीर मामले पर एक नहीं कई गलतियां की हैं। उन्होंने ही संविधान के विभाजनकारी अनुच्छेद 370 का निर्माण किया। नेहरू ने महाराजा हरि सिंह की भारत में विलय की याचिका को एक बार नहीं, तीन बार खारिज किया। ऐसे में अब समय आ गया है जब इतिहास को गलत तरीके से पेश करने के सभी प्रयासों का खंडन होना चाहिए। जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख के लोगों को सच से रूबरू करना चाहिए।

नेहरू ने आजादी के बाद उसी लॉर्ड माउंटबैटन को भारत का गवर्नर जनरल बनाया जिसने देश को बांटा

नेहरू ने ही आजादी के बाद लॉर्ड माउंटबैटन को भारत का गवर्नर जनरल बनाया था। आजादी के समय जो 562-563 रियासतें थीं वो सभी भारत का हिस्‍सा थीं। ये कोई स्‍वतंत्र राज्‍य नहीं थे। ब्रिटिश काल में इन्‍हें इंडियन प्रिंसली स्‍टेट कहा जाता था। दूसरे इंडियन प्रोविंस थे। अंग्रेजों ने भारत को दो टुकड़ों में नहीं 564 टुकड़ों में बांटा था। इन सबको स्‍वतंत्र देश बताकर वो इन्‍हें आजाद कर गए थे। अगर अंग्रेजों की यही नीति थी और लॉर्ड माउंटबैटन इसे करने वाले थे तो उसी को नेहरू ने भारत का पहला गवर्नर जनरल क्‍यों बना दिया। जिन अंग्रेजों ने 170 साल तक भारत के साथ न जानें क्‍या नहीं किया उसके प्रतिनिधि को आप कैसे यह पद दे सकते थे।

विलय डॉक्‍यूमेंट पर माउंटबैटन ने लिखा टेम्‍परेरी, नेहरू उसे स्‍वीकार कर लिया

माउंटबैटन सिर्फ एक दिन के लिए हरिसिंह से मिलने गए थे। उनके दिमाग में बैठाया जाता है कि आप स्विट्जरलैंड टाइप का एक देश बना लीजिए। आप स्‍वतंत्र रहिए। आप किसी भी यूनियन (भारत और पाकिस्‍तान) को ज्‍वाइन मत कीजिए। उसके बाद जब सरदार वल्‍लभ भाई पटेल विलय का पूरा डॉक्‍यूमेंट ले आते हैं तो माउंटबैटन उसके ऊपर लिख देते हैं कि यह टेम्‍परेरी है। नेहरू उसे स्‍वीकार कर लेते हैं।

जब पटेल ने कहा- मिस्‍टर नेहरू! डू यू वॉन्‍ट टू लूज कश्‍मीर?

जवाहर लाल नेहरू ने जब कश्मीर मुद्दे पर संयुक्‍त राष्‍ट्र में जाने की बात की थी तो सरदार पटेल ने आगाह किया था – ‘मिस्‍टर नेहरू! डू यू वॉन्‍ट टू लूज कश्‍मीर?’ (क्‍या आप कश्‍मीर को खो देना चाहते हैं)। इस पर नेहरू चुप हो जाते हैं। उसके बाद नेहरू फिर गलती करते हैं। कैबिनेट की पहली मीटिंग में ही पटेल प्रस्‍ताव रखते हैं कि जिन दर्रों से ये कबायली घुस रहे हैं और पाकिस्‍तानी सेना आ रही है, इन पर एयरफोर्स से बम बार्डिंग कराकर रस्‍ता रोकते हैं। नेहरू इस प्रस्‍ताव को नहीं मानते हैं। उसके बाद वह कश्‍मीर अपने हाथ में लेकर चलते हैं। नतीजा सभी जानते हैं। तब सेना ने कहा था कि जब तक इन कबायलियों को कश्‍मीर से खदेड़ नहीं दिया जाता है तब तक युद्ध विराम नहीं करें। उसके बावजूद नेहरू ने युद्ध विराम किया। नेहरू ने ही पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) बनवाया। वही आर्टिकल 370 लाए।

जम्मू-कश्मीर पर नेहरू ने की पांच सबसे बड़ी गलती

नेहरू की इन पांच गलतियों से कश्मीर समस्या पैदा हुई जो दशकों तक देश के गले की फांस बनी रही। कश्मीर अति प्राचीन काल से भारतीय सांस्कृतिक चेतना का एक केंद्र रहा है। विभाजन के वक्त कश्मीर के शासक बिना शर्तों के बाकी भारत से जुड़ना चाहते थे। इस मिलन को खारिज करने वाले और कोई नहीं, नेहरू थे। और किसलिए? नेहरू ने कश्मीर के लिए जनता की स्वीकार्यरता का पैंतरा गढ़ा क्योंकि उनकी नजर में यह ‘स्पेशल केस’ था।

पहली गलती- कश्मीर को स्पेशल केस बताया

कश्मीर पर नेहरू की पहली गलती इसे स्पेशल केस बताना थी। नेहरू ने उस दौरान कहा था, ‘हमने दोनों (महाराजा हरि सिंह और नैशनल कॉन्फ्रेंस) को सलाह दी कि कश्मीर एक स्पेशल केस है और वहां हड़बड़ी में फैसला लेना उचित नहीं होगा।’ लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि नेहरू चाहते क्या थे? वर्ष 1952 के उनके भाषण स्पष्ट होता है। उन्होंने कहा था, ‘महाराजा और उनकी सरकार तब भारत में विलय चाहते, तो मैं उनसे कुछ और उम्मीद करता। वो ये कि वहां लोगों की राय ली जाए।’ हालांकि, इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट में ऐसी कोई शर्त नहीं थी कि प्रिंसली स्टेट्स का भारत में विलय से पहले लोगों की राय ली जाए। भारतीय संघ से जुड़ने की शासक की इच्छा काफी थी। दूसरे प्रिंसली स्टेट्स ने ठीक वैसा ही किया भी था। नेहरू की गलतियां जुलाई 1947 की दगाबाजियों तक ही सीमित नहीं रहीं। विभाजन में हुए रक्तपात और हिंसा के बावजूद नेहरू कश्मीर के विलय से पहले अपना पर्सनल एजेंडा पूरा करने पर अड़े रहे। एजेंडा क्या था यह उन्हीं के शब्दों में जानिए। पाकिस्तानी हमले के दूसरे दिन 21 अक्टूबर, 1947 को नेहरू ने जम्मू-कश्मीर के प्रधामंत्री मेहरचंद महाजन को एक चिट्ठी चिट्ठी लिखी थी जिसमें उन्होंने कहा था, ‘मैंने आपको अस्थायी सरकार के गठन जैसे कुछ कदम उठाने की त्वरित कार्रवाई का सुझाव दिया था। शेख अब्दुल्ला को ऐसी सरकार बनाने को कहा जा सकता है जो स्वाभाविक रूप से कश्मीर में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं।’ यानी अपने दोस्त शेख अब्दुल्ला को सरकार में बिठाना नेहरू के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण था, ना कि कश्मीर का भारत में विलय।

दूसरी गलती – विलय को अस्थायी करार दिया

कश्मीर पर नेहरू की दूसरी सबसे बड़ी गलती थी- अंतिम विलय को भी अस्थायी विलय घोषित करना। महाराजा हरि सिंह ने बिल्कुल उसी विलय पत्र पर दस्तखत किया था जिस पर अन्य रजवाड़ों ने किया था। सभी रजवाड़ों का भारत में विलय हो गया, सिर्फ कश्मीर को छोड़कर। क्यों? क्योंकि नेहरू ने विलय को अस्थायी घोषित किया था, ना कि महाराजा ने। 26 अक्टूबर को नेहरू ने एमसी महाजन को एक और चिट्ठी लिखी और कहा, ‘भारत सरकार घोषित नीति के तहत कश्मीर के विलय को अस्थायी तौर पर ही स्वीकार करेगी और घोषित नीति यह है कि ऐसे मुद्दे जनता की इच्छा के मुताबिक ही हल होने चाहिए।’ विलय को नेहरू की तरफ से अस्थायी घोषित किए जाने के बाद कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिससे लगने लगा कि कश्मरी कहीं ना कहीं अलग तो है। यह भी धारणा बनने लगी कि कश्मीर का विलय विवादास्पद है और भारत में इसके स्थायी विलय के सिवा भी कई और विकल्प हो सकते हैं। लेकिन नेहरू की भारी गलतियों से ऐसा दरवाजा खुल गया जिससे होकर सात दशकों तक संदेहों, अलगाववादी भावनाओं और रक्तपात के रास्ते गुजरे।

तीसरी गलती- आर्टिकल 51 के बजाय आर्टिकल 35 का उपयोग

कश्मीर पर नेहरू की तीसरी सबसे बड़ी गलती आर्टिकल 51 के बजाय आर्टिकल 35 के तहत 1 जनवरी, 1948 को संयुक्त राष्ट्र का दरवाजाज खटखटाना था। आर्टिकल 51 पाकिस्तान का भारत पर अवैध कब्जे को उजागर करने के नजरिए से सटीक होता। महाराजा ने सिर्फ एक विलय पत्र पर दस्तखत किया था और वह भारत का था। फिर भी, नेहरू ने कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच का विवाद बताकर पाकिस्तान को बेवजह एक पक्ष बना दिया। तब से संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव भारत को परेशान करते रहे।

चौथी गलती- भारत के प्रति गलत धारणा विकसित होने दिया

कश्मीर पर नेहरू की चौथी सबसे गलती गलती यह थी कि इस धारणा को विकसित होने दिया कि संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के तहत कश्मीर में जनमत संग्रह करवाना अनिवार्य है जिसे भारत ने रोक रखा है। भारत-पाकिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (UNCIP) के 13 अगस्त, 1948 के प्रस्ताव में तीन शर्तें क्रमवार रखी गई थीं। पहली- युद्धविराम। दूसरी- पाकिस्तान को अपने सभी सैनिक पीछे हटाने होंगे और तीसरी- जनमत संग्रह। तीसरी शर्त की बात तभी हो सकती है जब पहली दोनों शर्तें पूरी हों। 1 जून, 1949 को युद्धविराम हो गया। लेकिन पाकिस्तान ने कब्जे में लिए इलाके को खाली करने से इनकार कर दिया। इसलिए, 23 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र के आयोग ने भारत के स्टैंड से सहमति जताई कि पहली और दूसरी शर्तें पूरी नहीं हुईं तो तीसरी शर्त पूरा करने की अनिवार्यता खत्म हो जाएगी। आयोग ने 5 जनवरी, 1949 के प्रस्ताव में भी इसकी पुष्टि की। इसलिए आयोग ने खुद स्वीकार किया कि उसके प्रस्ताव के तहत दूसरी शर्त को नहीं मानकर पाकिस्तान ने जनमत संग्रह का रास्ता बंद कर दिया। फिर भी, भारत पर जनमत संग्रह की तलवार लटकती रही। क्यों? क्योंकि नेहरू ने खुद ही इसका दरवाजा खोल रखा था!

पांचवीं गलती – आर्टिकल 370 बनाना

कश्मीर पर नेहरू की पांचवी सबसे बड़ी गलती निश्चित तौर पर आर्टिकल 370 (संविधान के अंतरिम मसौदे में आर्टिकल 306ए) बनाना था। पहली नजर में ऐसे आर्टिकल का कोई औचित्य नहीं था क्योंकि विलय पत्र वही था जिस पर अन्य रजवाड़ों ने दस्तखत किए थे। स्पेशल केस तो सिर्फ नेहरू के दिमाग की उपज थी। दरअसल, संयुक्त प्रांत के एक मुस्लिम प्रतिनिधि मौलाना हसरत मोहानी ने संविधान सभा की बहसों में कई सवाल उठाए। 17 अक्टूबर, 1949 को मौलाना मोहानी ने खास तौर से पूछा, ‘आप इस शासक के प्रति ऐसा भेदभाव क्यों कर रहे हैं?’ ना तो नेहरू और ना ही शेख अब्दुल्ला से बातचीत करने वाले नेहरू के प्रतिनिधि एन. गोपालस्वामी आयंगर के पास इस सवाल का कोई जवाब था। आयंगर ने ही आर्टिकल 370 (तत्कालीन 306ए) को गढ़ा था। नेहरू अपने रास्ते पर चले और आर्टिकल 370 अस्तित्व में आ गया और इस कारण अलगाववादी भावनाओं को संस्थागत स्वरूप मिल गया। फिर अलगाववादी विचारधारा भारत के गले ही पड़ गई।

गिलगित-बाल्टिस्तान भारत का, पाक का कब्जा गैरकानूनीः ब्रिटिश संसद

पाकिस्तान ने जब गिलगित-बाल्टिस्तान को अलग प्रांत बनाने की घोषणा की तो वर्ष 2017 में ब्रिटेन की संसद ने पाकिस्तान के खिलाफ एक प्रस्‍ताव पारित कर उसके द्वारा गिलगित और बाल्टिस्तान को पांचवां प्रांत बनाने के प्रयासों की निंदा की है। ब्रिटेन की संसद ने साफतौर पर गिलगित-बाल्टिस्‍तान को जम्‍मू कश्‍मीर और भारत का अभिन्‍न अंग बताया। ब्रिटेन का कहना है कि इस हिस्‍से पर पाकिस्‍तान ने 1947 से ही अवैध रूप से कब्‍जा कर रखा है। उस वक्त पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र को पाकिस्तान का पांचवां प्रांत बनाने की सिफारिश की थी। उस समय पाकिस्तान में पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा (पूर्व में नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस) पाकिस्तान के चार प्रांत थे।

ब्रिटिश संसद ने चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर को भी अवैध करार दिया

ब्रिटिश संसद ने चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर (सीपीईसी) के निर्माण को भी गैर कानूनी करार दिया है। ब्रिटिश संसद द्वारा पारित इस प्रस्‍ताव में कहा गया है कि पाकिस्तान ने विभाजन के तुरंत बाद ही गैरकानूनी तौर से इस क्षेत्र पर कब्‍जा कर लिया था। कंजरवेटिव पार्टी के सांसद बॉब ब्लैकमैन ने 23 मार्च 2017 को पाकिस्‍तान के खिलाफ यह प्रस्ताव ब्रिटेन की संसद में पेश किया था। इसमें कहा गया था कि पाकिस्तान ऐसे क्षेत्र को अपने में शामिल करने का प्रयास कर रहा है जो उसका नहीं है। इस क्षेत्र में लोगों को मूल अधिकारों और अभिव्यक्ति की आजादी से वंचित रखा गया है। ब्रिटिश सांसदों ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान स्टेट सब्जेक्ट आर्डिनेंस का उल्लंघन कर गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में आबादी में बदलाव की नीति अपना रहा है। प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि जबरन और अवैध तरीके से चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर का निर्माण विवादित क्षेत्र में दखलंदाजी है।

गिलगित-बाल्टिस्तान में बेशर्मी से डेमोग्राफी बदल रहा पाकिस्तान

पाकिस्तान ने पिछले दशकों में गिलगित-बाल्टिस्तान में बेशर्मी के साथ डेमोग्राफी को बदलने का काम किया है। डोगरा शासकों द्वारा लागू किया गया स्टेट सब्जेट रूल बाहरी लोगों को इस रियासत में स्थायी निवासी बनने से रोकता था। जुल्फिकार अली भुट्टो ने इस क्षेत्र के डेमोग्राफिक प्रोफाइल को बदलने के लिए इसे 1970 के दशक में जानबूझकर हटा दिया था। बीते वर्षों में, पाकिस्तानी सरकार ने शिया और इस्माइली बहुल क्षेत्र में विभिन्न समूहों, विशेष रूप से पश्तून और तालिबानी लोगों के बसने को प्रोत्साहित किया है, जिससे वहां सांप्रदायिकता और धार्मिक उग्रवाद में वृद्धि हुई है। पाकिस्तानी सरकार ने जनसंख्या विस्थापन को भी बढ़ावा दिया है। इसके लिए उसने डायमर-बाशा और स्कार्दू-करज़ुरा जैसे बांधों के निर्माण का बहाना बनाया। उसका कहना है कि इनके निर्माण के परिणामस्वरूप ऐसा हो रहा है और हजारों स्थानीय निवासियों को स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया गया और उनकी स्थानीय संस्कृति और पहचान को खत्म करने की कोशिश हो रही है। पाकिस्तान का सहयोगी चीन भी शिनजियांग में ऐसा ही कर रहा है। वहां मुसलमानों को खुलेआम अपने धर्म का पालन करने तक की इजाजत नहीं दी जा रही है। अगर पाकिस्तान, कश्मीर में मुसलमानों की हित बात करता है तो वह चीन के शिनजियांग प्रांत में मुसलमानों के सांस्कृतिक और धार्मिक दमन को लेकर चुप क्यों है।

क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्या है?

भारत पूरे जम्मू कश्मीर को अपना ‘अभिन्न अंग’ मानता है जिसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान दोनों आते हैं। इसलिए भारत जम्मू कश्मीर के किसी भी हिस्से को एक अलग पाकिस्तानी राज्य बनाए जाने के बिलकुल खिलाफ है।

पाकिस्तान का संविधान गिलगित-बाल्टिस्तान या पीओके को पाकिस्तान में मिलाने की इजाजत नहीं देता।

बलूचिस्तान, खैबर-पख्तूनख्वा, पंजाब और सिंध पाकिस्तान के चार प्रांत हैं।

पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान दोनों अलग-अलग इलाके हैं, जबकि भारत इन्हें जम्मू-कश्मीर का एक हिस्सा मानता है।

इन दोनों क्षेत्रों की अपनी विधानसभाएं हैं और तकनीकी रूप से यह पाकिस्तान संघ का हिस्सा नहीं है।

पाकिस्तान कश्मीर के लिये एक विशेष मंत्री और संयुक्त परिषदों के ज़रिये उनका शासन करता है।

प्रत्यक्षतः दोनों क्षेत्र स्वतंत्र हैं, लेकिन विदेश और रक्षा मामले पाकिस्तान के नियंत्रण में हैं।

अभी तक गिलगित-बाल्टिस्तान स्वायत्त क्षेत्र है, जहां प्रादेशिक असेंबली के अलावा एक चुना हुआ मुख्यमंत्री भी है।

इसका कुल क्षेत्रफल 72,971 वर्ग किमी. है और इसका प्रशासनिक केंद्र गिलगित शहर है, जिसकी जनसंख्या लगभग ढाई लाख है।

कुल लगभग 20 लाख की जनसंख्या में 14% शहरी आबादी वाले गिलगित-बाल्टिस्तान में शिया मुस्लिमों की संख्या अधिक है।

पाकिस्तान ने 1963 में पाक अधिकृत कश्मीर की 5 हजार वर्गमील वाली शक्सगाम घाटी का इलाका चीन को दे दिया था, जिससे होकर चीन ने कराकोरम राजमार्ग बना लिया।

1970 में पाकिस्तान ने गिलगित एजेंसी, बाल्टिस्तान, हुंजा और नगर इलाकों को मिलाकर नार्दन एरियाज़ का गठन किया था।

गिलगित-बाल्टिस्तान में कुल 7 ज़िले हैं, जिनमें से 5 गिलगित में और 2 बाल्टिस्तान में हैं तथा गिलगित और स्कर्दू से इनका प्रशासन चलाया जाता है।

पाकिस्तान ने एक योजना के तहत गिलगित-बाल्टिस्तान सशक्तीकरण और स्वशासन आदेश जारी कर 2009 में गिलगित-बाल्टिस्तान में विधानसभा बनाई थी, ताकि इस क्षेत्र को अलग प्रांत बनाया जा सके।

गिलगित-बाल्टिस्तान की सीमाएं पश्चिम में खैबर-पख्तूनख्वा से, उत्तर में अफगानिस्तान के वाखान गलियारे से, उत्तर-पूर्व में चीन के शिन्जियांग प्रांत से, दक्षिण में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और दक्षिण-पूर्व में भारतीय जम्मू-कश्मीर राज्य से लगती हैं।

गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान ऐसी चालें क्यों चल रहा है?

– गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का हिस्सा है

– इस पर 1947 में पाकिस्तान ने अवैध कब्जा किया था

– 73 हजार वर्ग किलोमीटर के इस इलाके में करीब 20 लाख लोग रहते हैं

– इसके उत्तर में चीन और अफगानिस्तान, पश्चिम में पाकिस्तान का खैबर पख्तूनख्वा प्रांत और पूरब में भारत है, इसकी सीमाएं उत्तर-पूर्व में चीन के शिन्जियांग प्रांत से जुड़ती हैं.

– अपने इसी भूगोल की वजह से ये इलाका भारत, चीन और पाकिस्तान, तीनों के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है

– अफगानिस्तान और चीन का बॉर्डर होने से ये इलाका रणनीतिक रूप से अहम है

– इस इलाके से ही होकर पाकिस्तान के अंदर चीन का आर्थिक कॉरिडोर जाता है

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर(PoJK) को लेकर भारतीय नेताओं ने कब क्या कहा

14 फरवरी 2019 को जब पुलवामा जिले में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने एक आत्मघाती हमलें में 40 सीआरपीएफ जवानों को मार दिया था, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर कहा था, “जघन्य हमले को अंजाम देने वालों और उनके सरपरस्तों को करारा जवाब दिया जाएगा। भारत की शांति, प्रगति और स्थिरता को भंग करने में कोई भी ताकत कामयाब नहीं होगी।” जिसके 12 दिन बाद ही भारतीय वायुसेना ने PoJK के बालाकोट में कई आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले किए और उन्हें नष्ट कर दिया।

गृहमंत्री अमित शाह

5 अगस्त 2019 को देश की संसद ने जम्मू और कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया। 6 अगस्त 2019 को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि “जम्मू-कश्मीर पर सभी फैसले PoJK और अक्साई चिन पर लागू होते हैं। PoJK और अक्साई चिन भारत के अभिन्न और अवियोज्य अंग है और इसमें कोई संदेह नहीं है और इस पर कोई कानूनी विवाद नहीं है।” उन्होंने यह भी कहा कि “जब भी मैं जम्मू और कश्मीर के बारे में बात करता हूं, PoJK और अक्साई चिन इसके अंतर्गत आते है और हम इसके लिए जान भी दे सकते हैं।”

13 फरवरी 2021 को गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा को अवगत कराया कि “पाकिस्तान, पश्चिमी पाकिस्तान और PoJK शरणार्थियों के साथ-साथ 2,642 वाल्मीकि परिवारों, 592 गोरखाओं और 43 अन्य परिवारों को अधिवास प्रमाण पत्र प्रदान किया गया है।”

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह

18 अगस्त 2019 को केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने हरियाणा में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि अगर भविष्य में पाकिस्तान के साथ बातचीत होती है तो PoJK एजेंडे में सबसे ऊपर होगा। उन्होंने आगे कहा कि “बातचीत क्यों होनी चाहिए? किन मुद्दों पर बातचीत होगी? पाकिस्तान के साथ बातचीत तभी शुरू होगी जब वो आतंकवाद को संरक्षण देना बंद कर देगा। अगर बातचीत शुरू होती है, तो यह केवल PoJK पर होगी और कोई अन्य मुद्दा नहीं होगा।”

29 अगस्त 2019 को तत्कालीन उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि “कश्मीर के बारे में चर्चा करने के लिए क्या है? कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। 1954 से चुनाव होते हैं, मुख्यमंत्री चुने जाते हैं, राज्य में चुनी हुई सरकारें होती हैं, संसद सदस्य चुने जाते हैं। जो चर्चा की जानी बाकी है वह PoJK को सौंपे जाने पर होगी।”

29 अगस्त 2019 को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि “मैं पाकिस्तान से पूछना चाहता हूं – कश्मीर कब आपका हिस्सा था? कश्मीर हमेशा भारत का हिस्सा था। पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान समेत PoJK पर अवैध कब्जा किया है। कश्मीर पर बोलने के बजाय, उसे उस क्षेत्र में लोगों पर किए जा रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन पर ध्यान देना चाहिए।”

22 सितंबर 2019 को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि “आप देख सकते हैं कि पाकिस्तान पहले से ही हतोत्साहित हो रहा हैं। पाकिस्तान के पीएम PoJK आते हैं और पाकिस्तानियों को सीमा पर नहीं जाने का सुझाव देते हैं। यह अच्छा है क्योंकि अगर वे आते हैं, तो वे पाकिस्तान वापस नहीं जा पाएंगे। उन्हें 1965 और 1971 को दोहराने की गलती फिर से नहीं करनी चाहिए। अगर पाकिस्तान इसे दोहराता हैं, तो उन्हें सोचना चाहिए कि PoJK का क्या होगा।”

25 सितंबर 2019 को एक रैली को संबोधित करते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि “अनुच्छेद 370 को खत्म कर हमारी सरकार ने एक ऐतिहासिक काम किया है, लेकिन पाकिस्तान इसे पचा नहीं पा रहा है। हम पाकिस्तान के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं लेकिन PoK पर पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। आज भी जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में 24 सीटें PoJK के लिए खाली छोड़ी गई हैं।”

14 जून 2020 को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि “जरा रुकिए, जल्द ही PoJK मांग करेगा कि वे भारत के साथ रहना चाहते हैं, न कि पाकिस्तान के शासन में। और जिस दिन ऐसा हो जाएगा, हमारी संसद का एक लक्ष्य भी पूरा हो जाएगा।”

4 नवंबर 2020 को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि “पाकिस्तान को एक बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि पूरा PoJK भारत का था और आज भी हम PoJK को भारत का हिस्सा मानते हैं और भविष्य में भी यह भारत के पास रहेगा। यह हमारी संसद का संकल्प है।”

24 जुलाई 2022 रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि “PoJK पर संसद में एक प्रस्ताव पारित किया गया है। PoJK भारत का हिस्सा था, है और भारत का हिस्सा रहेगा। यह कैसे हो सकता है कि शिव के रूप में बाबा अमरनाथ हमारे यहां और मां शारदा शक्ति LoC के दूसरी तरफ है।”

26 सितंबर 2022 को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि “1971 का युद्ध प्रभुत्व, भूमि या शक्ति के लिए नहीं था, इसे मानवता के लिए याद किया जाएगा। यदि उस समय PoJK पर निर्णय लिया गया होता तो PoJK आज भारत के पास होता, न कि पाकिस्तान के पास।”

27 अक्टूबर 2022 को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि “मैं पाकिस्तान से पूछना चाहता हूं कि उसने हमारे इलाके के लोगों को कितने अधिकार दिए हैं, जिन पर उसने अनाधिकृत कब्जा कर लिया है। सभी जानते हैं कि मानवाधिकारों के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाने वाला पाकिस्तान इन लोगों की कितनी परवाह करता है। पाकिस्तान अमानवीय घटनाओं के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। पाकिस्तान जो आज PoJK में अत्याचार के बीज बो रहा है, उसे आने वाले समय में कांटों का सामना करना पड़ेगा।”

विदेश मंत्री एस जयशंकर

17 सितंबर 2019 को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि “PoJK पर हमारी स्थिति बहुत स्पष्ट है। PoJK भारत का हिस्सा है और हमें उम्मीद है कि एक न एक दिन क्षेत्राधिकार होगा।”

भारतीय सेना

12 सितंबर 2019 को तत्कालीन भारतीय थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने PoJK पर सवाल पूछे जाने पर कहा कि सेना PoJK में एक्शन के लिए हमेशा तैयार रहती है। उन्होंने कहा, “इस मुद्दे पर सरकार द्वारा कुछ किया जाना चाहिए। अन्य संस्थान इस संबंध में सरकार के निर्देशानुसार कार्य करेंगे।”

14 सितंबर 2019 को तत्कालीन नॉर्दर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने कहा कि “पाकिस्तान द्वारा प्रयास किए गए हैं और पिछले कुछ दिनों से बहुत बयानबाजी हुई है कि वे PoJK में नागरिकों, स्थानीय लोगों को लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) के करीब आने और यहां तक कि पार करने का प्रयास करना चाहते हैं।” हालांकि, मैं पाकिस्तान को आगाह करना चाहूंगा कि वह PoJK के नागरिकों को ‘तोप के चारे’ के रूप में इस्तेमाल न करें क्योंकि भारतीय सेना बहुत स्पष्ट है, अगर LOC का उल्लंघन करने का कोई प्रयास किया गया तो उन्हें बहुत प्रभावी ढंग से जवाब दिया जाएगा।”

25 अक्टूबर 2019 को भारतीय थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा कि “जिस क्षेत्र पर पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा किया है वो पाकिस्तानी संस्थानों द्वारा नियंत्रित नहीं है, यह आतंकवादियों द्वारा नियंत्रित है। PoJK वास्तव में एक आतंकवादी-नियंत्रित देश या पाकिस्तान का एक आतंकवादी-नियंत्रित हिस्सा है।”

11 जनवरी 2020 को सेना प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे ने कहा कि “एक संसदीय प्रस्ताव है कि पूरा जम्मू-कश्मीर क्षेत्र भारत का हिस्सा है। अगर संसद चाहती है तो PoJK भी हमारा होना चाहिए। जब हमें इस आशय का आदेश मिलेगा, हम उचित कार्रवाई करेंगे।”

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर

मार्च 2019 में यूनाइटेड नेशन ह्यूमन राइट काउंसिल की एक मीटिंग को संबोधित करते हुए भारत ने कहा कि कुछ बड़े मामलों को देखने की आवश्यकता है, वे हैं जम्मू और कश्मीर के एक हिस्से पर पाकिस्तान का अवैध कब्ज़ा और PoJK के लोगों की निरंतर पीड़ा, जो सांप्रदायिक संघर्ष, सेना उत्पीड़न, हिंसा, आतंकवाद, आर्थिक कठिनाइयों, भेदभावपूर्ण नीतियों के शिकार हैं और यहां तक कि बुनियादी अधिकारों से भी वंचित है।

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