प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही कहा था कि तीसरे कार्यकाल का पहला छह महीना बड़े फैसलों का होगा। अब उसकी बानगी भी देखने को मिलने लगी है। कार्यभार ग्रहण करते ही पीएम मोदी ने दुनिया के सबसे विकसित सात देशों के समूह जी-7 सम्मेलन में हिस्सा लिया और प्रमुख नेताओं से मुलाकात की। वहीं इटली ने अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेज भारत को सौंप दिया है। इतना ही नहीं अपने इस दौरे के दौराऩ पीएम मोदी ने चीन की नापाक चाल पर लगाम लगाने के लिए बड़ी कूटनीतिक चाल चल दी है। उनकी इस चाल से अब चीन खुद ही तिब्बत को लेकर घिर गया है। ज्ञात हो कि चीन आए दिन भारत को अरुणाचल प्रदेश को लेकर घेरता रहता है। मालूम हो कि चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा जमा लिया था। लेकिन अब भारत ने तिब्बत पर चीन को चौतरफा घेरने की रणनीति बनाई है। भारत पहले ही तिब्बत के स्वायत्त क्षेत्र में 30 से अधिक गांवों व शहरों के नाम बदलने का फैसला कर चुका है। इस संदर्भ में अमेरिकी सांसदों की भारत में लंबी मीटिंग हुई है। अमेरिकी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने निर्वासित धर्म गुरु दलाई लामा से धर्मशाला में मिलने के बाद नई दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाकात की। इन बैठकों में ‘रिजॉल्व तिब्बत एक्ट 2024’ बिल पर चर्चा हुई, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन जल्द साइन करने वाले हैं। यह पीएम मोदी की कूटनीति ही है कि अमेरिका तिब्बत मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहा है। भारत की इस कूटनीतिक चाल से अब चीन घुटनों पर आ गया है।
दलाई लामा से मिला अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल
तिब्बत की आजादी को लेकर अमेरिकी कांग्रेस की पूर्व स्पीकर नैंसी पेलोसी के नेतृत्व में आए अमेरिकी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने तिब्बत से निर्वासित धर्मिक गुरु दलाई लामा से मुलाकात की। पेलोसी ने दलाई लामा की तारीफ करते हुए कहा कि वह हमेशा रहेंगे, लेकिन चीन के राष्ट्रपति हमेशा नहीं रहेंगे। नैंसी पेलोसी ने भारत की धरती से जो तंज कसा भाषण दिया है, वह चीन को काफी अखर सकता है। नैंसी पेलोसी वही अमेरिकी नेता हैं, जिनके ताइवान जाने का विरोध करते हुए चीन ने युद्ध की चेतावनी दी थी।
Today, it was my honor to join a bipartisan Congressional delegation to meet with His Holiness, the 14th @DalaiLama, in Dharamsala, India.
In our meeting, we strongly reaffirmed Congressional support for the people of Tibet. pic.twitter.com/MUoAPFc4vB
— Nancy Pelosi (@SpeakerPelosi) June 19, 2024
अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल पीएम मोदी से मिला, चीन की छाती पर सांप लोटा
तिब्बत पर ताबड़तोड़ जख्म से चीन कराह रहा है। इसी बीच पीएम मोदी की एक तस्वीर सामने आई है। उस तस्वीर को देख चीन पूरी तरह से छटपटा उठेगा। उसके पास हाथ मलने के अलावा कोई और चारा नहीं है। चीन अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का विरोध करता ही रह गया वहीं अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने दलाई लामा से मिलने के बाद नई दिल्ली में पीएम मोदी से भी मुलाकात की। अब इसकी तस्वीर भी सामने आ गई है। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का पहले दलाई लामा से मिलना और फिर पीएम मोदी से मिलना, इसे देखकर पक्का चीन की छाती पर सांप लोट जाएगा। अमेरिकी कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की और लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने पर उन्हें बधाई दी। प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक बयान में कहा कि ‘हाउस फॉरेन अफेयर्स’ कमेटी के अध्यक्ष प्रतिनिधि माइकल मैककॉल के नेतृत्व में सात सदस्यीय अमेरिकी कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने भारत-अमेरिका संबंधों को सबसे महत्वपूर्ण बताया। पीएम मोदी और अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के बीच इस मुलाकात के कई मायने तलाशे जा रहे हैं। दरअसल ये पहली बार है जब कोई विदेशी प्रतिनिधिमंडल भारत की जमीन से तिब्बत के समर्थन में आवाज उठा रहा है। वहीं भारत भी तिब्बत की आजादी का पक्षधर रहा है।
Watch: US Delegation, including Nancy Pelosi, Michael McCaul, Gregory Meeks meets PM Modi in Delhi https://t.co/FSJztdLXPf pic.twitter.com/zDKI3AcNvC
— Sidhant Sibal (@sidhant) June 20, 2024
PM Modi meets US Congressional delegation, including former House speaker Nancy Pelosi#NancyPelosi #US #India #PMModi pic.twitter.com/1HR1DGggqv
— The UnderLine (@TheUnderLineIN) June 20, 2024
चीन को भारी पड़ा गलवान का धोखा
गलवान में झड़प के बाद भारत अब चीन को चौतरफा घेरने में जुटा है। गलवान में भारत को धोखा देना चीन को भारी पड़ रहा है। भारत ने चीन के लिए पिछले 4 साल से सीधी उड़ान को बंद कर रखा है और चीन लगातार इसे शुरू करने की मांग कर रहा है। भारत ने चीन की इस मांग को एक बार फिर से खारिज कर दिया है। भारत ने साफ कर दिया है कि जब तक सीमा विवाद जारी रहेगा, चीन के साथ रिश्ते सामान्य नहीं होंगे। वहीं भारत ने चीनी नागरिकों को वीजा देने में भी कड़ा रुख जारी रखा हुआ है। गलवान हिंसा के बाद से ही भारत ने चीन के नागरिकों को बहुत ही कम संख्या में वीजा जारी किया है। भारत सरकार की नीति अब राष्ट्रीय आर्थिक सुरक्षा पर है। इससे चीनी विमानन कंपनियों को बड़ा घाटा हो रहा है।
चीन की भ्रष्टाचार में लिप्त कंपनियों पर जोरदार एक्शन
गलवान में लड़ाई के बाद भारत ने चीन की कंपनियों को भारत में निवेश करने पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए हैं। चीन इस बात से भी भड़का हुआ है कि भारत ने चीन की भ्रष्टाचार में लिप्त कंपनियों पर जोरदार एक्शन लिया है।
भारत और चीन के बीच सीधी उड़ान बंद
भारत और चीन के बीच जहां सीधी उड़ान बंद है, वहीं डायरेक्ट कार्गो फ्लाइट अभी भी चल रही है। चीन और भारत के बीच सीधी उड़ान से जहां दोनों देशों को फायदा है लेकिन इसमें बीजिंग को ज्यादा होता। दिसंबर 2019 में भारत और चीन के बीच सीधी उड़ान अपने चरम पर थी और 539 उड़ानें हुई थीं जिसमें भारतीय और चीनी कंपनियां शामिल थीं। चीन की विमान कंपनियों ने जहां 371 उड़ानें भरी थीं, वहीं भारतीय कंपनियों ने केवल 168 उड़ानें। इससे चीन को जमकर फायदा हुआ था। अभी भारतीयों को हांगकांग या किसी तीसरे देश के रास्ते चीन जाना होता है।
चीनी नागरिकों को वीजा नहीं दे रहा भारत
वीजा की बात करें तो जहां साल 2019 में चीनी नागरिकों को 2 लाख वीजा जारी किए गए थे, वहीं साल 2024 में यह घटकर मात्र 1500 पर आ गई है। इसमें भी 1000 चीनी इंजीनियर हैं जो यहां की कंपनियों के लिए बुलाए गए थे।
चीन चाहता है कठपुतली दलाई लामा
अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल ने कहा कि अमेरिका, चीन को दलाई लामा के ‘उत्तराधिकार’ मामले में हस्तक्षेप की इजाजत नहीं देगा। दरअसल, चीन तिब्बती धर्मगुरु के सर्वोच्च पद पर अपने ‘दलाई लामा’ को बैठाना चाहता है यानी चीन कठपुतली दलाई लामा को बिठाना चाहता है।
चीन ने अमेरिका को दी धमकी
इस बिल को लेकर अप्रैल में चीन की प्रतिक्रिया आई थी। चीन ने कहा कि दलाई लामा अलगावादी हैं और अमेरिका को उनके चीन विरोधी रवैये को पहचानना चाहिए। चीन ने चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर अमेरिका, शीजांग (तिब्बत) को चीन का हिस्सा ना मानते हुए, अपने ही पुराने वादे से पीछे हटेगा तो चीन उसका कड़े अंदाज में जवाब देगा।
अमेरिका को चीन की धमकियों की परवाह नहींः रिपब्लिकन सांसद
अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल में शामिल रिपब्लिकन सांसद माइकल मैकॉल ने कहा कि इस सप्ताह उन्हें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने एक लेटर लिखा था जिसमें हमें यहां न आने की धमकी दी गई थी। लेकिन हमें उनकी धमकियों की परवाह नहीं है। अमेरिका, तिब्बत को हमेशा की तरह एक शक्तिशाली ताकत बने रहने में मदद करेगा। डेलीगेशन ने कहा कि वे दलाई लामा और चीनी सरकार के बीच बातचीत का अवसर तलाश रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि तिब्बत और चीन के बीच एक शांतिपूर्ण समाधान निकलेगा।
‘रिजॉल्व तिब्बत एक्ट’ से चीन पर दबाव बनाने की राजनीति
अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव का एक द्विदलीय प्रतिनिधिमंडल, जिसमें पूर्व स्पीकर नैंसी पेलोसी समेत विदेशी मामलों के अध्यक्ष माइकल मैकोल समेत सात सांसदों ने तिब्बत के निर्वासित धार्मिक गुरु दलाई लामा से धर्मशाला में मुलाकात की। इस बातचीत के दौरान इस प्रतिनिधिमंडल ने तिब्बत की आजादी के पक्ष में भी आवाज बुलंद की। वहीं, यह मुलाकात ऐसे समय हो रही है, जब दलाई लामा अपने घुटनों का इलाज कराने के लिए अमेरिका जाने की योजना बना रहे थे। इस चर्चा में ‘रिजॉल्व तिब्बत एक्ट 2024’ बिल पर चर्चा हुई, जिसे अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडन जल्द साइन करने वाले हैं। इस बिल का उद्देश्य दलाई लामा के साथ बातचीत फिर से शुरू करने के लिए बीजिंग पर दबाव बनाना है, ताकि वह तिब्बत के साथ चल रहे विवाद को निपटाए। दोनों पक्षों ने 2010 से औपचारिक बातचीत नहीं की है।
अमेरिका में 12 जून को पास हुआ तिब्बत से जुड़ा बिल
अमेरिका में 12 जून को तिब्बत से जुड़ा एक बिल ‘द रिजोल्व तिब्बत एक्ट’ पास किया गया था। अमेरिका के दोनों सदनों हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव और सीनेट ने 12 जून को ही ‘रिजॉल्व तिब्बत एक्ट’ 391-26 वोटों से पारित किया था। इस बिल में चीन के उस नैरेटिव को काउंटर किया जाएगा, जिसमें वह तिब्बत पर अपना दावा करता है। इस पर फिलहाल जो बाइडेन के दस्तखत होने बाकी हैं। यह एक्ट तिब्बत का समर्थन करता है और चीन और दलाई लामा के बीच बिना किसी शर्त के बातचीत बढ़ाने के पक्ष में है।
पेलोसी ने धर्मशाला में चीनी राष्ट्रपति पर बोला हमला
दलाई लामा के साथ मुलाकात के बाद अमेरिकी कांग्रेस की पूर्व स्पीकर नैंसी पेलोसी ने चीन और चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग पर जमकर हमला बोला। धर्मशाला में नैंसी पेलोसी ने कहा, ” चीन के राष्ट्रपति, आप चले जाएंगे और कोई भी आपको किसी भी चीज का श्रेय नहीं देगा। जैसा कि हमारे सहयोगियों ने कहा है कि उम्मीद कुछ विश्वास लाती है और दूसरों की भलाई में तिब्बती लोगों का विश्वास ही सब कुछ बदल देगा…।” इससे पहले 2008 में पेलोसी ने धर्मशाला में दलाई लामा से मुलाकात की थी और तिब्बत पर चीन के कब्जे की निंदा की थी।
बाइडन पर तिब्बत मुद्दे पर बोलने का दबाव
पीएम मोदी की कूटनीति के साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन पर तिब्बत पर बोलने के लिए घरेलू दबाव है। नैंसी पेलोसी तो लंबे समय से तिब्बत की आवाज उठाती रही हैं। 2008 में पेलोसी ने धर्मशाला में दलाई लामा से मुलाकात की थी और तिब्बत पर चीन के कब्जे की निंदा की थी। चीन दलाई लामा की मौत का इंतजार कर रहा है। वह उनकी जगह पर अपना कठपुतली उत्तराधिकारी बैठाना चाहता है, ताकि तिब्बतियों को अपनी उंगली पर नचा सके। पहले बाइडन एडमिनिस्ट्रेशन तिब्बत मुद्दे पर बोलने से बचता था। लेकिन अब भारत की कूटनीति की वजह से अमेरिकी सांसदों की यात्रा हुई है तो यह सकारात्मक संकेत है। 2020 में अमेरिकी चुनावों क दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दलाई लामा से मिले थे। वहीं अब दलाई लामा अपने घुटनों का इलाज कराने के लिए अमेरिका जाने की योजना बना रहे हैं, तो बाइडन भी उनसे मुलाकात कर सकते हैं।
तिब्बत की आजादी के पक्ष में बुलंद हुई आवाजें
तिब्बत को चीन अपना हिस्सा मानता है। तिब्बत के लोग सालों से आजादी का सपना देख रहे हैं। अमेरिका ने बिल पास करके चीन को यही संदेश देने की कोशिश की है कि वह भी तिब्बत की आजादी का पक्षधर है। यही वजह है कि अमेरिका का तिब्बत के प्रति स्टैंड और अमेरिकी सांसदों का तिब्बत के बाद सीधे पीएम मोदी से मिलना चीन को जरूर खलेगा। अमेरिका और भारत दोनों मानते हैं कि तिब्बती लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार है और उन्हें अपने धर्म का स्वतंत्र रूप से पालन करने की अनुमति देनी चाहिए। जबकि चीन चाहता है कि उसकी मंजूरी के बगैर तिब्बत में एक पत्ता तक नहीं हिले। चीन दलाई लामा को गद्दार और अलगाववादी मानता है।
चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया
चीन और तिब्बत के बीच विवाद बरसों पुराना है। चीन, तिब्बत को अपना ‘शीजांग’ प्रांत बताता है। चीन के मुताबिक तिब्बत तेरहवीं शताब्दी से ही चीन का हिस्सा रहा है इसलिए तिब्बत पर उसका हक है। हालांकि तिब्बत चीन के इस दावे को खारिज करता है। साल 1912 में तिब्बत के धर्मगुरु और 13वें दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया था। उस समय चीन कमजोर था इसलिए वह विरोध नहीं कर पाया था। करीब 40 सालों बाद कम्युनिस्ट सरकार आने के बाद चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया। इस सरकार की विस्तारवादी नीतियों के चलते 1950 में चीन ने हजारों सैनिकों के साथ तिब्बत पर हमला कर दिया। करीब 8 महीनों तक तिब्बत पर चीन का कब्जा चलता रहा। आखिरकार 1951 में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने 17 बिंदुओं वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। इस समझौते के बाद तिब्बत आधिकारिक तौर पर चीन का हिस्सा बन गया। हालांकि दलाई लामा इस संधि को नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि ये संधि दबाव बनाकर करवाई गई थी।
तिब्बत से 1959 में भागकर भारत आए थे दलाई लामा
इस बीच तिब्बती लोगों में चीन के खिलाफ गुस्सा बढ़ने लगा। 1955 के बाद पूरे तिब्बत में चीन के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन होने लगे। इसी दौरान पहला विद्रोह हुआ जिसमें हजारों लोगों की जान गई। मार्च 1959 में खबर फैली कि चीन दलाई लामा को बंधक बनाने वाला है। इसके बाद हजारों की संख्या में लोग दलाई लामा के महल के बाहर जमा हो गए। आखिरकार एक सैनिक के वेश में दलाई लामा तिब्बत की राजधानी ल्हासा से भागकर भारत पहुंचे। भारत सरकार ने उन्हें शरण दी। चीन को ये बात पसंद नहीं आई। कहा जाता है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध की एक बड़ी वजह ये भी थी। दलाई लामा आज भी भारत में रहते हैं। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से तिब्बत की निर्वासित सरकार चलती है।