भारतीय संविधान में भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बताया गया है जिसके तहत यहां पर सभी धर्मों और पंथों के लोगों को एक समान अधिकार दिए गए हैं। भारत मूल रूप से हिंदू बाहुल्य देश है इसके बावजूद यहां पर सभी धर्मों को एक समान अधिकार दिए गए हैं, यह भारत की महानता है। लेकिन इसके साथ ही अल्पसंख्यकों को कुछ विशिष्ट अधिकार भी दिए गए हैं। भारतीय संविधान के भाग तृतीय में अनुच्छेद 30 का वर्णन किया गया है जिसमें अल्पसंख्यकों के अधिकारों के बारे में बताया गया है। संविधान के अनुच्छेद 30 के मुताबिक धर्म और भाषा के आधार पर अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के मुताबिक शैक्षिक संस्थानों को स्थापित करने का अधिकार है। यह मुख्य तौर पर अल्पसंख्यकों को धर्म एवं भाषा के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों को स्थापित करने और संचालन करने का विशेष अधिकार देता है।
सोशल मीडिया ट्विटर पर Agenda Buster ने संविधान के अनुच्छेद 30 पर ट्वीट की एक श्रृंखला प्रकाशित की है। यह स्टोरी उसी पर आधारित है।
Article 30 (Thread)
This thread is abt the biggest conspiracy done with Hindus. The work that Aurangzeb n Britishers cud not do, Our own leaders did n brought Hindu civilization at death bed.
Just one act of constitution n they broke backbone of Hindu civilization
1/23 pic.twitter.com/hhBD1r6Ugb
— Agenda Buster (@Starboy2079) September 1, 2022
यह हिंदुओं के साथ की गई सबसे बड़ी साजिश है। जो काम औरंगजेब और अंग्रेज नहीं कर पाए उसे हमारे अपने नेताओं ने कर दिया और हिंदू सभ्यता को मौत की शय्या पर लिटा दिया। संविधान के सिर्फ एक अधिनियम ने हिंदू सभ्यता की रीढ़ तोड़ दी।
मदरसा शिक्षा पर सरकारी खर्च के बारे में आपने कई बार सुना होगा। मदरसा वह जगह है जहां मुसलमानों को धार्मिक शिक्षा मिलती है। क्या आपने कभी गुरुकुलों पर सरकारी खर्च के बारे में सुना है? यहां आपको इन निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मिलेंगेः
प्रश्न –
1. सरकार मदरसा को फंड देती है लेकिन गुरुकुल को नहीं दे सकती?
2. भारत के टॉप स्कूलों के मालिक ईसाई और मुसलमान क्यों हैं?
3.क्यों वेद और गीता स्कूलों में कभी नहीं पढ़ाई जा सकती
4. क्यों अगले 30 वर्षों में भारत से हिंदू धर्म गायब हो जाएगा
5. सरकार कैसे एक सुधार करके हिंदुओं को बचा सकती है
हर राज्य में एक अलग मदरसा बोर्ड होता है और मदरसा शिक्षा के लिए फंड होता है। जैसे पश्चिम बंगाल में केवल मदरसा शिक्षा के लिए 5000 करोड़ रुपये का वार्षिक कोष है और अन्य राज्यों में इसी तरह से फंड की व्यवस्था की गई है। बिजनेस स्टैंडर्ड की 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने 7 वर्षों में मदरसों के आधुनिकीकरण पर 1000 करोड़ रुपये खर्च किए। इन सरकार द्वारा वित्त पोषित मदरसे के कारण, मुसलमान बहुत धार्मिक और जड़ हैं लेकिन क्या आपने कभी आश्चर्य किया है कि किसी भी राज्य में कोई हिंदू शिक्षा बोर्ड नहीं है। कोई भी सरकार गुरुकुल शिक्षा पर एक पैसा भी खर्च नहीं करती है जहां हिंदू बच्चे हिंदू धर्म सीख सकें। क्यों ?
Answer of all these questions lies into 2 most dangerous articles of Indian constitution – Article
28 n 30Article 28 says:
No religious education can be given in any govt or govt aided school. pic.twitter.com/ceS2w6d1ho— Agenda Buster (@Starboy2079) September 1, 2022
इन सभी सवालों का जवाब भारतीय संविधान के 2 अनुच्छेदों…अनुच्छेद 28 एवं अनुच्छेद 30 में निहित है। अनुच्छेद 28 कहता है: किसी भी सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल में कोई भी धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है। कोई भी स्कूल जो सरकार से फंड, टैक्स छूट, भूमि छूट या यहां तक कि सरकारी पाठ्यक्रम या सीबीएसई जैसे सरकारी प्रमाणन से कोई सहायता लेता है, तो उस स्कूल को सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल कहा जाएगा, इसलिए इस तर्क से भारत के 99.99% स्कूल अनुच्छेद 28 के अंतर्गत आते हैं। इस हिसाब से इस अनुच्छेद ने सभी धर्मों की धार्मिक शिक्षा को बंद कर दिया। किसी भी स्कूल में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है।
अब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 पर नजर डालिए। अनुच्छेद 30 कहता है:
1. सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार होगा।
2. राज्य, शैक्षणिक संस्थान को सहायता प्रदान करने में, किसी भी शैक्षणिक संस्थान के खिलाफ इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगा कि वह अल्पसंख्यक के प्रबंधन के अधीन है।
Article 30 says :
1. All minorities shall have the right to establish and administer educational inst of their choice
2.The State shall not, in granting aid to educational inst, discriminate against any educational institution on ground that it is under management of a minority pic.twitter.com/J9W9yl9AwW— Agenda Buster (@Starboy2079) September 1, 2022
भारत में मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध अल्पसंख्यक में आते हैं। सरल शब्दों में, अनुच्छेद 28 अल्पसंख्यकों पर लागू नहीं होगा। अनुच्छेद 28 में उन्होंने सभी सरकार समर्थित धार्मिक शिक्षा की संभावना पर रोक लगा दी। लेकिन अनुच्छेद 30 में उन्होंने चुपके से मुस्लिम, ईसाई एवं अन्य अल्पसंख्यकों को उस दायरे से निकाल दिया और हिंदू धार्मिक शिक्षा को पिंजरे में बंद कर दिया और वह अब भी पिंजरे में बंद है।
इस तरह यदि हम अनुच्छेद 28 एवं 30 को एक साथ देखें तो मुस्लिम, ईसाई, सिख धार्मिक शिक्षा सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में दी जा सकती है लेकिन हिंदू धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है। मदरसा, क्रिश्चियन स्कूल को सरकार फंड दे सकती है लेकिन गुरुकुल को सरकार फंड नहीं कर सकती। इसलिए हर राज्य में मदरसा बोर्ड है लेकिन गुरुकुल बोर्ड नहीं है, क्योंकि संविधान इसकी अनुमति नहीं देता है। इसलिए स्कूल में बाइबिल, कुरान पढ़ाया जा सकता है लेकिन गीता कभी भी किसी सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल में नहीं पढ़ाई जा सकती।
एक और दिलचस्प बात – किस स्कूल को अल्पसंख्यक स्कूल और किस स्कूल को बहुसंख्यक स्कूल कहा जाएगा? कोई भी स्कूल जो हिंदू के स्वामित्व में हो, उसे बहुसंख्यक स्कूल कहा जाएगा और मुस्लिम या ईसाई के स्वामित्व वाले किसी भी स्कूल को अल्पसंख्यक स्कूल कहा जाएगा। वे धार्मिक शिक्षा पढ़ा रहे हैं या नहीं, या अल्पसंख्यक छात्र वहां हैं या नहीं इससे मतलब नहीं है।
Ram has to follow all govt guidelines like selection of principal, educational criteria of teachers, 25% seats for quota, fee structure, infrastructure but Michael and Abdul not required to do this.
Check this table
Table credit : Sanjeev Nayyar, Hariprasad Nellitheertha pic.twitter.com/A3s2JM6DD8— Agenda Buster (@Starboy2079) September 1, 2022
मान लीजिए राम, अब्दुल और माइकल सीबीएसई से संबद्ध एक निजी स्कूल शुरू करते हैं। तीनों एक ही विषय पढ़ा रहे हैं, एक ही सिलेबस और तीनों में 100% हिंदू छात्र हैं, तो क्या होगा? अब्दुल स्कूल और माइकल स्कूल को अल्पसंख्यक स्कूल कहा जाएगा और वे अनुच्छेद 30 में वर्णित सभी लाभों के लिए पात्र हैं। इसका मतलब है कि राम को सभी सरकारी दिशानिर्देशों का पालन करना होगा लेकिन अब्दुल और माइकल को ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है। राम अपने स्कूल में भगवद गीता नहीं पढ़ा सकते, लेकिन अब्दुल और माइकल कुरान और बाइबिल पढ़ा सकते हैं, जबकि वहां 100% हिंदू छात्र हैं। इसका मतलब है कि राम को आरटीई के तहत 25% सीटें आरक्षित रखनी होंगी लेकिन यह अब्दुल और माइकल पर लागू नहीं होगा। इसलिए एक हिंदू स्कूल नहीं चला सकता और भारत में आपको ज्यादातर अच्छे स्कूलों के मालिक मुस्लिम और ईसाई मिल जाएंगे।
इस तरह से देखें तो 26 जनवरी 1950 भारत के लिए गणतंत्र दिवस नहीं था, यह हिंदू सभ्यता के लिए गुलामी दिवस था, जिस दिन उन्होंने संविधान के माध्यम से हिंदू शिक्षा को आधिकारिक रूप से नष्ट कर दिया। उन्होंने पूरी शिक्षा प्रणाली अल्पसंख्यकों के हाथों में दे दी। दुनिया में 200 देश हैं लेकिन दुनिया में एक भी ऐसा देश नहीं है जहां इस तरह के खतरनाक बहुसंख्यक विरोधी नियम हैं। धार्मिक शिक्षा के कारण मुसलमान आज भी मुसलमान हैं, एक ईसाई अभी भी ईसाई है लेकिन एक हिंदू अंततः हिंदू हेटर बन गया। अगर इस अनुच्छेद 28/30 को हटाया नहीं गया है, तो 20-30 वर्षों में हिंदू सभ्यता ज्ञान के अभाव में भारत में हिंदू धर्म पर गंभीर खतरा है। सरकार को भारतीय संविधान के इस अनुच्छेद 28 एवं 30 को समाप्त करना चाहिए ताकि बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों को भारत में फलने-फूलने का समान अधिकार मिल सके।
We cud have still survived this partially of Govt
We still cud have made best Hindu schools of the world without any Govt support If our temples were free.
coz temple have so much money
But Nehru didn't stop at article 30 only He captured our temples also pic.twitter.com/OyxH8OVUYz— Agenda Buster (@Starboy2079) September 1, 2022
बहुसंख्यक हिंदू और अल्पसंख्यक के बीच इस संवैधानिक पक्षपात की कहानी केवल शिक्षा पर समाप्त नहीं होती है। यह पक्षपात हिंदू मंदिरों के साथ भी किया गया। अगर हमारे मंदिर आज़ाद होते तो हम आज भी बिना किसी सरकारी सहयोग के दुनिया के सबसे अच्छे हिंदू स्कूल बना पाते। क्योंकि मंदिरों के पास पैसा है। लेकिन नेहरू अनुच्छेद 30 पर ही नहीं रुके, उन्होंने मंदिर अधिनियम लाकर हमारे मंदिरों पर भी कब्जा कर लिया। लेकिन मस्जिद और चर्च को नहीं छुआ। अब हमें न तो हिंदू शिक्षा पर राज्य का समर्थन है और न ही हमें मंदिरों से धन मिल सकता है। भारत में मस्जिद, चर्च फ्री लेकिन मंदिर नहीं। अल्पसंख्यक धार्मिक शिक्षा की अनुमति लेकिन हिंदू शिक्षा की नहीं।