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हिंदू धर्म और शिवलिंग का मजाक बनाने वालों पर कार्रवाई कब? सोशल मीडिया पर सवाल कर रहे हैं यूजर्स

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फिल्म, कहानी, कॉर्टून, कॉमेडी, फोटो या पेंटिंग के माध्यम से हिंदू धर्म का मजाक उड़ाया जाता रहा है। हाल ही में वाराणसी के ज्ञानवापी मामले में भी कट्टरपंथियों ने शिवलिंग का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। लेकिन दूसरे की आस्था और धर्म का मजाक उड़ाने वाले खुद अपने धर्म के बारे में एक शब्द भी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। अपने धर्म के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं होते। अपने धर्म के बारे में कुछ भी कहे जाने पर बौखला जाते हैं और हिंसा का रास्ता अपना लेते हैं। इसी तरह के एक मामले में एक चैनल में शिवलिंग को फव्वारा बताए जाने पर नूपुर शर्मा ने सवाल किया कि जैसे लोग बार-बार उनके भगवान का मजाक उड़ा रहे हैं, वैसे ही वो भी दूसरे धर्मों का भी मजाक उड़ा सकती हैं। इसके बाद नूपुर ने जो कुछ भी कहा, उसे मुस्लिम मौलाना और भगोड़ा जाकिर नाइक भी कह चुका है। इसको लेकर नूपुर शर्मा को रेप, जान से मारने और सिर कलम करने की धमकियां दी जाने लगी। ये इतना पर ही नहीं रुका भारत से बाहर भी इसको लेकर गुस्सा भड़क उठा। कतर, ईरान, कुवैत सहित कई मुस्लिम देशों नें भारत के प्रति गुस्सा देखने को मिला। आखिर में बीजेपी को नूपुर शर्मा को सस्पेंड करना पड़ा। इसको लेकर सोशल मीडिया पर यूजर्स सवाल कर रहे हैं कि वे जो शुरू से हिंदू धर्म और शिवलिंग का मजाक उड़ाते आए हैं आखिर उनपर कार्रवाई कब?

सदियों तक दूसरे धर्म स्थल को नुकसान पहुंचाने वाले खास समुदाय के लोग आज भी दूसरे धर्म के बारे में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी बोल-लिख देते हैं, लेकिन जब अपनी बात आती है तो मरने-मारने पर आतुर हो जाते हैं।

अगर पिछले कुछ वर्षों को ही देखा जाए तो ऑप इंडिया के अनुसार कुछ साल पहले फ्रांस में शार्ली ऐब्दो पत्रिका में पैगंबर मुहम्मद का कार्टून छापने पर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने दुनिया भर में प्रदर्शन शुरू कर दिया था। कई लोगों की हत्या तक कर दी गई थी। साल 2012 में अमेरिका में इनोसेंस ऑफ मुस्लिम नामक फिल्म को लेकर भी काफी बवाल हुआ था। लोग सड़कों पर आ गए थे। कई देशों में अमेरिकी दूतावास पर हमला हुआ था और प्रदर्शनकारियों ने जमकर तोड़फोड़ की थी। लीबिया के बेनगाजी में अमेरिकी राजदूत समेत चार लोगों की मौत भी हुई थी।

पैगंबर मोहम्मद के नाम पर पश्चिम बंगाल के मालदा में साल 2016 में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। इसके बाद 2017 में राज्य के बशीरहाट में एक फेसबुक पोस्ट को लेकर हिंसा भड़क उठी थी, जिससे भारी नुकसान हुआ था। इसके एक साल बाद 2018 में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज में पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी को लेकर सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए थे।

साल 2019 में बांग्लादेश के बोरानुद्दीन शहर में एक फेसबुक पोस्ट को लेकर हुई हिंसा चार लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे। इसी साल 18 अक्तूबर को एक टिप्पणी के लिए हिंदू महासभा के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की लखनऊ में बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इतना ही नहीं साल 2020 में कांग्रेस नेता के भतीजे की टिप्पणी को लेकर कर्नाटक के बेंगलुरु में कट्टरपंथियों की भीड़ ने थाने के घेरकर दर्जनों गाड़ियों में आग लगा दी थी। पिछले साल 2021 में ही पाकिस्तान के सियालकोट में एक श्रीलंकाई नागरिक को उग्र इस्लामी भीड़ ने जलाकर मार डाला था। इसी साल 17 दिसंबर, 2021 को पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी को लेकर महाराष्ट्र में यवतमाल के उमरखेड़ में भारी हिंसा और आगजनी की गई थी।

हाल ही में 25 जनवरी, 2022 को गुजरात के धंधुका में एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर किशन भरवाड की हत्या कर दी गई। बाद में पता चला कि इस हत्या के लिए एक मौलवी ने भीड़ को भड़काया था। ये तो पिछले कुछ दिनों की बात है। अगर पीछे जाएंगे तो इस तरह के सैकड़ों मामले आपके सामने आ जाएंगे। साल 2000 में न्यू इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने 700 साल पुरानी एक किताब से एक कोट लेकर अपना आर्टिकल लिखा था। जिसके बेंगलुरु में हजारों की भीड़ ने अखबार के दफ्तर को घेर लिया। अखबार के माफी मांगने के बाद मामला शांत हुआ था। इसी तरह साल 1986 में डेक्कन हेराल्ड की एक छोटी सी स्टोरी के कारण साम्प्रदायिक हिंसा भड़क गई और 17 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।

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