यही भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है। कभी मुंबई की गलियों में ऑटो-रिक्शा चलाने वाले एकनाथ शिंदे अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री होंगे। शिंदे बीजेपी ने हिंदुत्व के नाम पर शिवसेना के बागी विधायक एकनाथ शिंदे को समर्थन दिया है। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व के नाम भाजपा शिंदे को समर्थन देगी। वही राज्य के मुख्यमंत्री होंगे। फडणवीस ने कहा कि उद्धवजी ने इस्तीफा दिया तो राज्य को वैकल्पिक सरकार देने की जरूरत है। सरकार गिरने के बाद वैकल्पिक सरकार आएगी, ऐसा मैंने पहले ही कहा था। आज शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट, भाजपा और कुछ छोटे दलों ने मिलकर सरकार बनाने का फैसला लिया है।
बीजेपी के समर्थन से आज शिंदे लेंगे सीएम पद की शपथ, बीजेपी-शिवसेना को ही मिला था जनादेश
यह किसने सोचा था कि बेटे-बेटी की मौत के गम में कभी राजनीति को छोड़ चुके शिंदे सीएम पद को सुशोभित करेंगे। गुरुवार यानि 30 जुलाई को शाम साढ़े 7 बजे एकनाथ शिंदे सीएम पद की शपथ लेंगे। शिंदे को शिवसेना का समर्थन है, भाजपा भी उनका साथ देगी। महाविकास अघाड़ी ने 2019 में जनादेश का अपमान किया था। महाराष्ट्र की जनता ने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को जनादेश सौंपा था। लेकिन उद्धव धोखा देकर सीएम बन गए। महाराष्ट्र सरकार के दो मंत्री जेल में हैं। एक तरफ बाला साहेब ठाकरे ने दाउद का विरोध किया दूसरी तरफ दाउद से जुड़े मंत्री को जेल जाने के बाद भी मंत्रिमंडल से निकाला नहीं गया। इस बीच ‘खिसयानी बिल्ली खंभा नौचे’ के अंदाज में सांसद संजय राउत ने कहा कि शिवसेना सत्ता के लिए पैदा नहीं हुई, सत्ता शिवसेना के लिए पैदा हुई है। ये बाला साहेब का मंत्र रहा है। हम वापस काम करेंगे और फिर अपने दम पर सत्ता में आएंगे।
ठाणे के ‘ठाकरे’ और आनंद चिंतामणि दिघे के प्रतिबिंब के रूप में प्रसिद्ध हैं एकनाथ शिंदे
एकनाथ शिंदे का सीएम बनना वाकई भारतीय लोकतंत्र की जीत है। पिछले कुछ दिनों से महाराष्ट्र में मौजूदा राजनीतिक में जिस शख्स का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में रहा- वे हैं एकनाथ शिंदे। अब बीजेपी के साथ मिलकर एकनाथ शिंदे प्रदेश में नई सरकार बना रहे हैं। बगावत के नायक बनकर उभरे शिंदे को तोहफे में बीजेपी ने सीएम पद दिया है। ठाणे की कोपरी-पछपाखाड़ी विधानसभा सीट से विधायक और उद्धव सरकार में नगर विकास और सार्वजनिक निर्माण मंत्री शिंदे की ठाणे में मजबूत पकड़ है। एकनाथ, एक नाम नहीं बल्कि अपने आप में एक पार्टी हैं। ठाणे की जनता उन्हें शिवसेना के संस्थापकों में से एक आनंद चिंतामणि दिघे के प्रतिबिंब के रूप में देखती है। लोग उन्हें ठाणे का ‘ठाकरे’ मानते हैं।
शिवसेना से जुड़ने से पहले ठाणे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखा प्रमुख थे एकनाथ शिंदे
शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे की यह छवि यूं ही नहीं बनी है, बल्कि यह उनकी बरसों की मेहनत की कमाई है। यही वजह है कि शिवसेना के विधायक आंख बंद करके शिंदे के फैसले के साथ खड़े हैं। बात ठाणे की करें तो वहां पर शिंदे का कद कुछ ऐसा है कि शिवसेना का मूल कैडर यानी हिंदू ही नहीं, मुस्लिम भी उनके साथ खड़ा नजर आता है। यह सबसे बड़ी वजह है कि शिंदे के नाम पर दोनों समुदायों के लोगों ने उनके बेटे श्रीकांत शिंदे को चुन कर लोकसभा में भेजा। एकनाथ के पीए रह चुके इम्तियाज शेख उर्फ ‘बच्चा’ के मुताबिक शिवसेना से जुड़ने से पहले शिंदे आरएसएस शाखा प्रमुख थे और ऑटो रिक्शा चलाते थे। आरएसएस की पृष्ठभूमि से होने के चलते उनका बीजेपी और हिंदुत्व से जुड़ाव है। बाद में उन्होंने शिवसेना को खड़ी करने में बहुत मेहनत की।
कमजोर थी आर्थिक स्थिति, पिता गत्ते की कंपनी में और मां करती थीं घरों में काम
शिंदे आज भले ही डिप्टी सीएम पद की दौड़ में शामिल हों, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब उनके घर की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। उनके पिता संभाजी शिंदे एक गत्ते की कंपनी में और मां घरों में काम किया करती थीं। इतनी गरीबी के बावजूद शिंदे ने कभी कोई गलत रास्ता नहीं चुना और हमेशा अपनों की मदद के लिए तैयार रहते थे। परिवार को आर्थिक तंगी से उबारने के लिए एकनाथ शिंदे ऑटो चलाने के साथ-साथ लेबर कॉन्ट्रैक्टर के रूप में भी काम करते थे। कई बार ऐसा हुआ कि काम ज्यादा आ गया और मजदूर कम होते थे। ऐसे समय में खुद शिंदे ने बतौर लेबर काम किया। वे अपने हाथों से मछलियां भी साफ करते थे।
नगर निगम पार्षद बनने के सात साल बाद महाराष्ट्र विधानसभा में पहुंचे
राजनीति की बात करें तो साल 1997 में एकनाथ शिंदे को शिवसेना ने ठाणे नगर निगम चुनाव में पार्षद का टिकट दिया और उन्होंने भारी बहुमत से जीत हासिल की। 2001 में वह ठाणे नगर निगम में सदन के नेता के रूप में चुने गए और 2004 तक इस पद पर बने रहे। साल 2004 में एकनाथ शिंदे को बालासाहेब ठाकरे ने ठाणे विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका दिया और उन्होंने जीत हासिल की। साल 2005 में शिवसेना ठाणे जिला प्रमुख के प्रतिष्ठित पद पर एकनाथ शिंदे को नियुक्त किया गया था। इसके बाद उन्होंने साल 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।
लाइफ का सबसे दुखद पहलू, बेटे-बेटी की आंखों के सामने ही डूबने से मौत हुई
आज से 22 साल पहले, यानी 2 जून 2000 को शिंदे की लाइफ में ऐसा टर्न आया कि उन्होंने पार्टी तक छोड़ने का निर्णय ले लिया। सतारा में हुए नाव हादसे में उनकी आंखों के सामने उनके छोटे बेटे दीपेश और बेटी सुभद्रा की डूबने से मौत हो गई थी। इस हादसे के बाद शिंदे इस कदर टूट गए कि उन्होंने राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया। शिंदे के साथ पिछले 40 सालों से रह रहे देविदास चालके ने बताया कि बच्चों की मौत के बाद एकनाथ ने खुद को एक कमरे में कैद कर लिया। वे किसी से नहीं मिलते थे और न ही किसी से बात करते थे। फिर उनके राजनीतिक गुरु और शिवसेना के कद्दावर नेता आनंद दीघे ही उन्हें वापस राजनीति में लाए और फिर वे महाराष्ट्र विधानसभा में पहुंचे।