मोदी सरकार विरोधी कुछ मीडिया संस्थान सरकार को बदनाम करने के लिए लगातार झूठी खबरें फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। ऑनलाइन मीडिया पोर्टल स्क्रॉल ने 28 अगस्त को अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि यूनिक हेल्थ आईडी के लिए कई संवेदनशील जानकारियां एकत्रित की जाएंगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि न केवल मेडिकल हिस्ट्री, फाइनेंस के बारे में पूछा जाएगा, बल्कि जेनेटिक्स और सेक्स लाइफ की जानकारी भी ली जाएगी। हालांकि नेशनल हेल्थ अथॉरिटी (एनएचए) ने इस खबर का खंडन किया है। एनएचए ने इस रिपोर्ट को गलत व्याख्या करने वाला और सनसनीखेज लेख बताया है।
पोर्टल स्क्रॉल में “Indians get just one week to review crucial health data policy. The Centre’s rush is undemocratic” शीर्षक से प्रकाशित लेख में यह बताया गया कि ‘comprehensive data protection law’ की अनुपस्थिति में सरकार लोगों की संवेदनशील जानकारियां एकत्रित कर रही है। बात दें कि स्क्रॉल ने डेटा प्वाइंट्स को ‘संवेदनशील पर्सनल डेटा’ कहा है क्योंकि उसमें फाइनेंशियल डिटेल्स, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, सेक्स लाइफ, मेंटल रिकॉर्ड, जेंडर और सेक्सुएलिटी, जाति, धर्म जैसी चीजों के बारे में पूछा जाएगा।
“Do you have sex? How often?”
The government’s asking you. Also, CASTE. Religion. Sexual orientation. Political beliefs!
Believe it or not, this may become India’s #HealthDataPolicy next week. Has all the looks of another commercial phishing venture.https://t.co/CpKEVhYfwN pic.twitter.com/w0YTKMOyMa
— Sunil Menon (@kazhugan) August 30, 2020
इस लेख का मुख्य उद्देश्य लोगों के मन में यूनिक हेल्थ आईडी को लेकर प्रश्न खड़ा करना था। तभी तो इसमें कहा गया है कि यह स्वास्थ्य मिशन नैतिक चिंताओं की वजह बन गया है। लेख की मानें तो लोगों से डेटा एकत्रित करना उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का जवाब नहीं है। लेकिन हो सकता है यह कॉर्पोरेट के लिए अनुकूल हो।
इस लेख में लोगों की राय के लिए तय समय सीमा को लेकर भी झूठ फैलाया गया है। इसमें समय सीमा को एक हफ्ते और बेहद कम बताया गया है। इनके अलावा ऐसे बिंदु तर्क के तौर पर रखे गए, जिसके द्वारा यह बताया गया कि इस स्कीम में आम जनमानस के अधिकार हाशिए पर हैं।
इस लेख के प्रकाशित होने के तीन दिन बाद नेशनल हेल्थ अथॉरिटी ने इस पर संज्ञान लिया। उन्होंने स्पष्ट किया है कि सरकार ने ऐसी कोई व्यक्तिगत जानकारी नहीं ली और न ही उनका ऐसे निजी सवाल पूछने का कोई इरादा है। हेल्थ आईडी के लिए रजिस्टर करने हेतु केवल नाम, जन्म का साल, राज्य और जिला ही जरूरी है।
स्क्रॉल के झूठे दावों वाले लेख को देखकर एनएचए ने भ्रम की स्थिति मिटाने के लिए यह भी साफ किया है कि पंजीकरण और किसी भी जानकारी को साझा करना सभी के लिए स्वैच्छिक है, न कि अनिवार्य। हेल्थ आईडी के लिए पंजीकरण करते समय केवल नाम, जन्म का वर्ष, जिले और राज्य की जानकारी देने की आवश्यकता है। पब्लिक फीडबैक के लिए पहले 2 हफ्तों का समय दिया था, जिसे बाद में एक और सप्ताह यानि 10 सितंबर तक के लिए बढ़ा दिया गया। यानि जिस एक हफ्ते की समय सीमा को लेकर स्क्रॉल शिकायत कर रहा है, वो समय सीमा तीन हफ्ते की है।
बता दें कि एक राष्ट्र और एक कार्ड का जिक्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 74वीं स्वतंत्रता दिवस पर देश को संबोधित करते हुए किया था। उन्होंने नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन का उल्लेख करते हुए बताया था कि यूनिक हेल्थ आई़डी हर नागरिक को इस स्कीम के तहत मिलेगी और ये सुविधा सबके लिए वैकल्पिक होगी। इसके लिए जो डेटा चाहिए होंगे, उनमें व्यक्ति की मेडिकल हिस्ट्री जैसे टेस्ट, डायगनॉसिस और ट्रीटमेंट आदि की जानकारी होगी।
SCROLL ने फैलाई झूठी खबर
यह पहली बार नहीं है, जब SCROLL ने झूठी खबरों के माध्यम से लोगों को गुमराह करने की कोशिश की है। इससे पहले इस पोर्टल ने बिहार के जहानाबाद के बारे में झूठी खबर प्रकाशित की जिसमें कहा गया कि जहानाबाद के बच्चे खाने नहीं मिलने के कारण फ्राग खाने को मजबूर है लेकिन जांच में यह खबर झूठी निकली। दरअसल, मीडिया के कुछ लोगों ने बच्चों को ये लालच देकर उससे ये बातें बोलने के लिए मजूबर किया और विडियो बनाया। जहानाबाद के जिलाधिकारी ने इस खबर का खंडन किया। जिलाधिकारी का कहना है कि खाने की कोई कमी नहीं है। एक वीडियो ने बच्चों ने खुद कबूला कि उन्हें ये बातें बोलने के लिए प्रलोभन दिया गया।