देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस, दोनों आगामी चुनावों को देखते हुए अपनी राज्य सरकारों में कई अहम बदलाव कर रहे हैं। इसमें बीजेपी ने बाजी मार ली है। जहां बीजेपी शासित राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन बेहद आसानी से हो गया, वहीं कांग्रेस शासित राज्यों में खींचतान खुल कर सामने आ गई है। सबसे ज्यादा घमासान पंजाब में मचा हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने बगावत कर दिया है। वहीं नवजोत सिंह सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफे ने कांग्रेस को जोरदार झटका दिया है।मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को अपने मंत्रियों और अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर ‘चार्टर्ड प्लेन’ से दिल्ली का चक्कर लगाना पड़ रहा है।
This is how the new govt in Punjab under Dalit CM is working.
Every day a ‘chartered plane’ lands in Delhi for ‘Tughlaq Lane’ on public money
Then Rahul Gandhi & his team decides every appointment (CM, Ministers, DGP, Peon, Guard). https://t.co/a0eRTG9X5h pic.twitter.com/95RUBHfTeS
— Modi Bharosa (@ModiBharosa) October 1, 2021
पंजाब का शक्तिहीन दलित मुख्यमंत्री
कांग्रेस एक दलित को मुख्यमंत्री बनाकर सियासी फायदा लेने की कोशिश कर रही है। लेकिन उसने मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को मंत्रियों और अधिकारियों की नियुक्ति के मामले में आजादी नहीं दी है। उन्हेंं मंत्रियों से लेकर डीजीपी और एडवोकेट जनरल तक की नियुक्ति के लिए दिल्ली का चक्कर लगाना पड़ रहा है। इस मामले में अपनी उपेक्षा किए जाने से नाराज नवजाेत सिंह सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस पद से मंगलवार को इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद गुरुवार को मुख्यमंत्री चन्नी और सिद्धू के बीच चंडीगढ़ के पंजाब भवन में वार्ता हुई। बताया जाता है कि अधिकारियों की नियुक्ति के बारे में सहमति तो बन गई, लेकिन कुछ बिंदुओं पर गतिरोध बना हुआ है।
सिद्धू के इस्तीफे पर सस्पेंस
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के पद से नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं हुई है। सिद्धू के इस्तीफा देने के बाद आलाकमान की ओर से उनको मनाने की कोई कोशिश नहीं हुई, लेकिन पूरा मामला सीएम चन्नी को देखने के लिए कहा गया है। यह भी बताया जा रहा है कि अगर सीएम चन्नी सिद्धू को मनाने में विफल रहते हैं, तो आखिरकार पार्टी आलाकमान सोनिया गांधी इस्तीफे पर फैसला कर सकती है। वहीं पंजाब कांग्रेस के कई नेता आलाकमान से सिद्धू को हटाकर किसी और को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे हैं।
कैप्टन का ऐलान-ए-जंग
पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अब कांग्रेस पार्टी में नहीं रहेंगे। उन्होंने कहा कि वह इस तरह का अपमान नहीं सह सकेंगे, जिस तरह से मेरे साथ बर्ताव किया गया है वह ठीक नहीं है। बताया जा रहा है कि अमरिंदर सिंह अगले 15 दिनों में अपनी पार्टी लॉन्च कर सकते हैं। अगर किसानों के मुद्दे पर केंद्र सरकार से बातचीत में कोई समाधान निकाल पाया, तो इसी मुद्दे पर उनकी पार्टी चुनाव भी लड़ेगी। हालांकि अमरिंदर सिंह के पास अभी भी बीजपी के साथ जाने का विकल्प मौजूद है।
बीजेपी में शांतिपूर्ण बड़ा बदलाव
कांग्रेस के विपरीत बीजेपी ने जुलाई में कर्नाटक में अपने वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा को हटाकर बसवराज बोम्मई को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। उसके बाद गुजरात में विजय रुपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया। नई कैबिनेट में पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की सरकार वाले एक भी मंत्री को जगह नहीं दी गई है। बीजेपी ने सभी पुराने मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इसके पहले शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि मुख्यमंत्री को हटाए जाने के साथ ही पुराने मंत्रियों की भी विदाई कर दी गई हो। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इतने बड़े बदलाव के बावजूद पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल से लेकर किसी पूर्व मंत्री ने सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी नहीं जतायी है।
मजबूत नेतृत्व,संगठित बीजेपी
बीजेपी में इतने बड़े बदलाव के बावजूद उसके शासित राज्यों में शांति है। इसका मुख्य कारण यह है कि राज्यों के स्तर पर नेताओं को पता है कि उनके चुनाव जीतने और सरकार बनाने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बहुत बड़ा हाथ है। ऐसे में एक स्तर से ज्यादा विरोध करने का कोई फायदा नहीं है। साथ ही एक बात स्पष्ट है कि इस समय बीजेपी को लगातार चुनावी सफलता मिल रही है। अभी जनता के बीच बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी का इमेज बेहतर है। अगर कोई नेता बगावत करना भी चाहे तो उसके पास विकल्प सीमित है।
नेतृत्व का कंफ्यूजन,बिखरती कांग्रेस
उधर कांग्रेस में इस समय केंद्रीय नेतृत्व कमजोर है, जो मसलों को हल करने में नाकाम हो रहा है। पार्टी के अंदर से ही आलाकमान पर निशाना साधा जा रहा है। कपिल सिब्बल तक कह चुके है कि पार्टी में कौन फैसले ले रहा है, इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं है। पार्टी के नेताओं में शीर्ष नेतृत्व को लेकर कंफ्यूजन है। इसका असर भी दिख रहा है। कई युवा नेता पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टियों में जा चुके हैं। कई कोशिशों के बावजूद नेताओं की गुटबाजी खत्म नहीं हो रही है। पंजाब के अलावा छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान जारी है।