भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है। इस मामले में उसने चीन को पीछे छोड़ दिया है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जनसंख्या 142.86 करोड़ तक पहुंच गई है। इसके मुकाबले चीन की आबादी 142.57 करोड़ है। इसका मतलब है कि दोनों देशों की आबादी में 29 लाख का अंतर आ चुका है। भारत में पहली जनगणना 1951 में हुई थी। तब देश की आबादी 36 करोड़ थी। इन सालों में भारत में सभी प्रमुख धर्मों की आबादी बढ़ी है। लेकिन 1951 और 2011 के बीच आबादी का औसत ग्रोथ हिंदुओं में जहां 21 प्रतिशत थी वहीं मुसलमानों में यह 30 प्रतिशत रही। 1951 में देश की आबादी में हिंदुओं की आबादी का शेयर 84 प्रतिशत और मुसलमानों की आबादी का शेयर 10 प्रतिशत था। वहीं 2011 में हिंदुओं की आबादी का शेयर चार प्रतिशत घटकर 80 प्रतिशत रह गया जबकि मुसलमानों की आबादी का शेयर चार प्रतिशत बढ़कर 14 प्रतिशत हो गया। इस जनगणना में बांग्लादेश, म्यामांर और अन्य देशों से आए करीब 2 करोड़ अवैध प्रवासियों को शामिल नहीं किया गया है। अगर इसे भी शामिल कर लिया जाए तो मुसलमानों की आबादी कहीं ज्यादा होगी।
🔹The average growth% between two census: H =21% ; M =30%
🔹 Popln share-
1951: H=84%; M=10%
2011: H=80%; M=14%🔹Census doesn't include 20mn+ illegal migrants in India.
🔹The extrapolation for 2023 will be more explosive.
Rajdeep & Sayema may not like, but stats won't lie. pic.twitter.com/VpiAC66GnC
— The Hawk Eye (@thehawkeyex) April 20, 2023
मुसलमानों की आबादी 4 प्रतिशत बढ़ी, हिंदुओं की 4 प्रतिशत घटी
आजादी के समय 1951 की जनगणना में देश में हिंदुओं की आबादी 84 प्रतिशत थी जबकि मुसलमानों की आबादी 10 प्रतिशत थी। वहीं 2011 में हिंदुओं की आबादी चार प्रतिशत घटकर 80 प्रतिशत रह गई जबकि मुसलमानों की आबादी चार प्रतिशत बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई।
हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों की ग्रोथ 8 प्रतिशत ज्यादा
भारत में जनसंख्या ग्रोथ 1951-61 में 21.6 प्रतिशत थी। इसमें हिंदुओं की ग्रोथ 20.7 प्रतिशत थी वहीं मुसलमानों की ग्रोथ 32.7 प्रतिशत थी। 1961-71 कुल जनसंख्या ग्रोथ 24.8 प्रतिशत थी। इसमें हिंदुओं की ग्रोथ 23.7 प्रतिशत और मुसलमानों की ग्रोथ 30.9 प्रतिशत रही। 1971-81 में कुल जनसंख्या ग्रोथ 24.7 प्रतिशत रही। इसमें हिंदुओं की ग्रोथ 24.0 और मुसलमानों की ग्रोथ 30.7 प्रतिशत रही। 1981-1991 में जनसंख्या ग्रोथ 23.9 प्रतिशत रही। इसमें हिंदुओं की ग्रोथ 22.7 और मुसलमानों की ग्रोथ 32.9 प्रतिशत रही। 1991-2001 में जनसंख्या ग्रोथ 21.5 प्रतिशत रही। इसमें हिंदुओं की ग्रोथ 19.9 प्रतिशत और मुसलमानों की ग्रोथ 29.4 प्रतिशत रही। 2001-2011 में जनसंख्या ग्रोथ 17.7 प्रतिशत रही। इसमें हिंदुओं की ग्रोथ 16.7 और मुसलमानों की ग्रोथ 24.7 प्रतिशत रही।
आजादी के बाद मुसलमानों की आबादी लगातार बढ़ी, हिंदुओं की घटी
आजादी के समय 1951 में मुसलमानों की आबादी 9.8 करोड़ थी, 1961 में 10.7 करोड़, 1971 में 11.2 करोड़, 1981 में 11.8 करोड़, 1991 में 12.6 करोड़, 2001 में 13.4 करोड़, 2011 में 14.2 करोड़ हो गई। आजादी के समय 1951 में हिंदुओं की आबादी 84.1 करोड़ थी, 1961 में 83.5, 1971 में 82.7 करोड़, 1981 में 82.3 करोड़, 1991 में 81.5 करोड़, 2001 में 80.5 करोड़, 2011 में 79.8 करोड़ हो गई।
मुसलमानों की आबादी चार गुना से ज्यादा बढ़ी
देश में सभी प्रमुख धर्मों की आबादी बढ़ी है। उदाहरण के लिए 1951 से हिंदू 30 करोड़ से 96 करोड़ हो गए यानी तीन गुना बढ़ी। वहीं मुसलमानों की आबादी 3.5 करोड़ से बढ़कर 17.2 करोड़ हो गई यानी चार गुना से ज्यादा बढ़ी। ईसाइयों की जनसंख्या 80 लाख से बढ़कर 2.8 करोड़ पहुंच गई। भारत की आबादी के आकार के बारे में कुछ भी ठोस तरह से अभी कह पाना मुश्किल है। कारण है 2011 से जनगणना नहीं हुई है।
भारत में मुसलमानों के साथ अत्याचार का नैरेटिव
पश्चिमी देशों में ऐसी धारणा बना दी गई है कि भारत में मुसलमानों के साथ अत्याचार होता है। पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी लंदन गए तो विदेशी रिपोर्टों का हवाला देते हुए कह आए कि भारत में अल्पसंख्यकों के साथ गलत हो रहा है। उन्होंने कहा था कि यह दुनिया के अखबार कह रहे हैं।
राहुल गांधी ने लंदन में कहा था- मोदी मुसलमानों को दोयम दर्जे के नागरिक मानते हैं
पश्चिम मीडिया तो पहले से ही भारत को बदनाम करने के पीछे लगी रहती है। उस आग में राहुल गांधी जब तब घी डालते रहते हैं। लंदन में राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर हमला करते हुए कहा था, ‘भारत में मुस्लिम, ईसाई रहते हैं लेकिन मिस्टर नरेंद्र मोदी उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक मानते हैं।’ जब राहुल ने ऐसी बात कही तो भाजपा ने करारा जवाब दिया था। काफी बवाल हुआ था। संसद तक इसका असर दिखा। राहुल से माफी मांगने की मांग उठने लगी। विदेश की धरती पर जाकर राहुल गांधी इसी तरह देश को बदनाम करते रहे हैं।
निर्मला सीतारमण मुसलमान मुद्दे पर अमेरिका में मुंहतोड़ जवाब दिया
अमेरिका में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने मुसलमानों के साथ अत्याचार का मुद्दा उठा तो उन्होंने आंकड़े देते हुए भारत विरोधी एजेंडा चलाने वालों की बोलती बंद कर दी। निर्मला ने साफ कहा कि भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है। उन्होंने पश्चिम की मीडिया को जवाब दिया कि भारत में मुसलमानों की आबादी में लगातार बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहा कि जो लोग अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर भारत सरकार को दोष देते फिरते हैं, उन्हें जमीनी हकीकत के बारे में पता ही नहीं है।
FM Nirmala Sitharaman drew a comparison between India & Pakistan in response to a question on ‘violence against Muslims’ in India. She said, “Pakistan was formed at the same time, India was divided into two. Pakistan declared itself as an Islamic country but however, it said that… pic.twitter.com/l4SpU9HmVz
— Eagle Eye (@SortedEagle) April 11, 2023
निर्मला सीतारमण ने कहा- मुसलमानों पर अत्याचार तो आबादी कैसे बढ़ी?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि यह धारणा केवल एक भ्रम है कि भारत में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा हो रही है। वित्त मंत्री ने आगे कहा, ‘अगर कुछ लोग भारत सरकार को जिम्मेदार ठहराएंगे तो क्या 2014 से आज तक आबादी घटी है?’ उन्होंने कहा कि जैसा कि ज्यादातर रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मुसलमानों की जिंदगी को मुश्किल बना दिया गया है, अगर इसमें थोड़ी भी सच्चाई होती तो क्या 1947 के बाद मुस्लिम आबादी में बढ़ोतरी होती। उन्होंने कहा कि मैं उस देश का नाम लेना चाहूंगी, जिससे अंतर साफ समझ में आएगा। वित्त मंत्री ने कहा कि उसी समय अस्तित्व में आए पाकिस्तान में स्थितियां बिल्कुल उलट हैं। पाकिस्तान में मुहाजिर (शरणार्थियों), शियाओं और दूसरे अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा हुई है जबकि भारत में मुस्लिमों का हर वर्ग तरक्की कर रहा है और आराम से रह रहा है।
मुसलमानों के नाम पर भारत की छवि को कौन बिगाड़ रहा
भारत के मुसलमान आराम से रह रहे और देश के विकास में योगदान दे रहे हैं और अपनी भी तरक्की कर रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी कुछ लोग निहित स्वार्थ के लिए यह एजेंडा चलाते रहते हैं कि मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार हो रहा है। अब सवाल उठ रहे हैं कि वे कौन लोग हैं जो दुनिया में भारत की छवि को बिगाड़ रहे हैं। क्या भारत के ही कुछ नेता अपने बयानों से यह मौका दे रहे हैं या फिर दुनिया के कुछ मीडिया समूह भारत विरोधी एजेंडा चला रहे हैं?
भारत की आबादी पर एक नजर-
25 साल से कम की 40 फीसदी से ज्यादा आबादी
भारत की आबादी में 40 फीसदी हिस्सेदारी 25 साल से कम उम्र के लोगों की है। यह बात भारत को अमेरिका और चीन जैसे दूसरे बड़े मुल्कों से अलग करती है। इन दोनों देशों की आबादी तेजी से बूढ़ी हो रही है। सबसे ज्यादा आबादी 10-24 एज ग्रुप वालों की है। करीब 68 फीसदी जनसंख्या 15-64 आयु वर्ग में है।
भारत में 25 फीसदी जनसंख्या 0-14 आयु वर्ग की
यूएनएफपीए की ताजा रिपोर्ट कहती है कि भारत में 25 फीसदी जनसंख्या 0-14 आयु वर्ग की है। 18 फीसदी 10-19 वर्ष की आयु की। 26 फीसदी 10-24 आयु वर्ग की। लगभग 68 फीसदी जनसंख्या 15-64 आयु वर्ग में है। जबकि 65 से ऊपर के लोग सिर्फ 7 फीसदी हैं। चीन लाइफ एक्सपेक्टेंसी (जीवन प्रत्याशा) के मामले में भारत से बेहतर कर रहा है। महिलाओं के मामले में यह 82 और पुरुषों के मामले में 76 साल है। भारत के लिए यह आंकड़ा 74 और 71 है। भारत की जनसांख्यिकी एक राज्य से दूसरे राज्य में अलग है। केरल और पंजाब में बुजुर्ग आबादी ज्यादा है। जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश में युवा आबादी अधिक है।
भारत में सबसे अधिक 25.4 करोड़ युवा आबादी
यूएनएफपीए की भारत की प्रतिनिधि और भूटान की ‘कंट्री डायरेक्ट’ एंड्रिया वोज्नार ने कहा है कि भारत के 1.4 अरब लोगों को 1.4 अरब अवसरों के रूप में देखा जाना चाहिए। देश की सबसे अधिक 25.4 करोड़ आबादी युवा (15 से 24 वर्ष के आयुवर्ग) है। यह नवाचार, नई सोच और स्थायी समाधान का स्रोत हो सकती है।
165 करोड़ पर पहुंचने के बाद ही घटना शुरू होगी आबादी
भारत की 25 फीसदी जनसंख्या 0-14 (वर्ष) आयु वर्ग की, 18 फीसदी 10 से 19 आयु वर्ग, 26 फीसदी 10 से 24 आयु वर्ग, 68 फीसदी 15 से 64 आयु वर्ग की और सात फीसदी आबादी 65 वर्ष से अधिक आयु की है। विभिन्न एजेंसियों के अनुमानों के अनुसार, भारत की आबादी करीब तीन दशकों तक बढ़ते रहने की उम्मीद है। यह 165 करोड़ पर पहुंचने के बाद ही घटना शुरू होगी।
भारत में 65 साल से अधिक उम्र वालों की हिस्सेदारी 7 फीसदी
चीन और अमेरिका दोनों बुजुर्ग आबादी की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। तेजी से बढ़ती बुजुर्ग आबादी ने दोनों को परेशान किया हुआ है। भारतीय आबादी में 65 साल या इससे अधिक उम्र वालों की हिस्सेदारी सिर्फ 7 फीसदी है। वहीं, चीन में यह 14 फीसदी और अमेरिका में 18 फीसदी है।
भारत में हाल के दशकों में फर्टिलिटी रेट में आई है गिरावट
बेशक चीन और अमेरिका की तुलना में भारत का फर्टिलिटी रेट ज्यादा है। लेकिन, हाल के दशकों में इसमें गिरावट आई है। एक औसत भारतीय महिला अपनी पूरी जिंदगी में 2 बच्चों की उम्मीद करती है। चीन में यह 1.2 और अमेरिका में 1.6 है। नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NHFS) के मुताबिक, पिछले तीन दशकों में शिशु मृत्यु दर में 70 फीसदी तक गिरावट आई है। लेकिन, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय पैमानों के हिसाब से यह ज्यादा है।